रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


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प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Thursday, December 30, 2010

आपने जिसे चुना उन गीतों को हमने सुना मशहूर फिल्म समीक्षक अजय ब्रह्मात्मज जी के साथ - वर्ष २०१० के टॉप गीत



दोस्तों पूरे साल "ताज़ा सुर ताल" के माध्यम से हम आपका परिचय नए फिल्म संगीत से करवाते रहे. आज साल का अंतिम दिन है. ये जानने के लिए कि इन नए गीतों में से कौन से हैं जिन्होंने हमारे श्रोताओं पर जादू चलाया, हमने आवाज़ पर एक पोल लगाया इस बार. जिसके परिणाम का खुलासा हम टी एस टी के इस वर्ष के इस सबसे अंतिम एपिसोड में आज करने जा रहे हैं. इस अवसर को खास बनाने के लिए आज हमारे बीच मौजूद हैं, हिंदी सिनेमा के जाने माने समीक्षक अजय ब्रह्मात्मज जी, आईये उनसे करें कुछ बातचीत और हटाएँ इस वर्ष के आपके वोटों द्वारा चुने हुए श्रेष्ट गीतों के नामों से पर्दा.

सजीव - अजय जी, हिंदी चिट्टाजगत के आप स्टार फ़िल्मी समीक्षक हैं, आज आवाज़ के इस मंच पर आपका स्वागत करते हुए हमें बेहद खुशी हो रही है. स्वागत है

अजय ब्रह्मात्मज – मेरे लिए सौभाग्‍य की बात है कि इस बातचीत के जरिए मैं अधिकतम पाठकों तक पहुंच पाऊंगा। आपलोग बहुत अच्‍छा काम कर रहे हैं। सबसे बड़ी बात है कि आप सभी नियमित और स्‍तरीय हैं।

सजीव - आवाज़ पर हमने जो पोल लगाया था उसके परिणाम मेरे पास हैं, जिनका खुलासा हम अभी इसी बातचीत में करेंगें. पर इससे पहले कि हम फिल्म संगीत की दिशा में बढ़ें, पहले बात फिल्मों की कर ली जाए....और आपसे बेहतर कैन बता सकता है हमें कि साल २०१० में बॉक्स ऑफिस का हाल कैसा रहा...

अजय ब्रह्मात्मज – हर साल लगभग पांच प्रतिशत फिल्‍में ही संतोषजनक कारोबार कर पाती हैं। 2010 में भी हमने देखा कि लगभग आधा दर्जन फिल्‍मों ने ही अच्‍छा कारोबार किया। हम कहते और लिखते हैं कि हिंदी में हर साल 400 से अधिक फिल्‍में बनती हैं। सच्‍चाई यह है कि मल्‍टीप्‍लेक्‍स विस्‍फोट के बावजूद पिछले पांच सालों में फिल्‍मों की संख्‍या 200 भी नहीं पहुंच पाई है। इधर यह देखा जा रहा है कि फिल्‍मों का बिजनेस लगातार ज्‍यादा से ज्‍यादा होता जा रहा है। पहले ‘3 इडिएट’ और फिर ‘दबंग’ इसके उदाहरण हैं। यकीन मानिए इस साल कोई न कोई फिल्‍म 500 करोड़ का आंकड़ा पार करेगी। इस बढ़ते बिजनेस को आप फिल्‍म की क्‍वालिटी से कतई न जोडि़ए।

सजीव - अजय जी, क्या परल्लेल फिल्मों का दौर खत्म हो चुका है या फिर आजकल मैन स्ट्रीम सिनेमा में उसका समावेश हो चुका है ?

अजय ब्रह्मात्मज - पैरेलल सिनेमा निजी कारणों से पहले ही दम तोड़ चुका है। आप देखें कि पैरेलल सिनेमा के पायोनियर श्‍याम बेनेगल और फॉलोअर प्रकाश झा मेनस्‍ट्रीम सिनेमा में सफल काम कर रहे हैं। फिल्‍मों का कथ्‍य और ग्रामर बदल चुका है। इधर कुछ नए हस्‍ताक्षर उभरे हैं। 2010 में सुभाष कपूर, विक्रमादित्‍य मोटवानी, अभिषेक शर्मा, अभिषेक दूबे, अनुषा रिजवी के रूप में हमें संभावनाशील निर्देशक मिले हैं। बिजनेस के लिहाज से तो मैं नहीं कह सकता, लेकिन 2011 में किरण राव, अलंकृता श्रीवास्‍तव, सचिन करांदे, अनुराग कश्‍यप और डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी की फिल्‍मों से हम कुछ नई उम्‍मीद रख सकते हैं।

सजीव - एक समीक्षक के नाते अजय ब्रह्मात्मज इस वर्ष हिंदी सिनेमा की उपलब्धियों और खामियों को किस तरह आंकेंगें. ?

अजय ब्रह्मात्मज – मुझे लगता है कि महानगरों की क‍हानियां इस साल ज्‍यादा सफल नहीं रही। हिंदी फिल्‍मों की कथाभूमि उत्तर भारत की तरफ जाती दिख रही है। निश्चित रूप से दृश्‍य माध्‍यमों में उत्तर भारत की जरूरी मौजूदगी बढ़ी है। मल्‍टीप्‍लेक्‍स संस्‍कृति ने हिंदी सिनेमा के पारंपरिक दर्शकों को सिनेमाघरों से विस्‍थापित कर दिया था। 2010 में उन दर्शकों के पुनर्स्‍थापन की प्रक्रिया आरंभ हो गई है।

सजीव - हमारी फ़िल्में बिना गीत संगीत के मुक्कमल नहीं होती, और देखा जाए तो संगीत प्रेमियों के लिए भी फिल्म संगीत के अलावा कोई विकल्प उपलब्ध नहीं है....ऐसे में संगीत के लिहाज से इस साल की किस फिल्म के संगीत ने या अल्बम ने आपको सबसे अधिक प्रभावित किया है ?

अजय ब्रह्मात्मज – मुझे व्‍यक्तिगत रूप से ‘इश्किया’, ‘दबंग’, ‘खेलें हम जी जान से’ और ‘स्‍ट्राइकर’ का संगीत पसंद आया।

सजीव - हमारे श्रोताओं ने जिस अल्बम को चुना है वो भी आपकी पसंद में से एक है...जी हमारे श्रोताओं की राय में इस साल की सर्वश्रेष्ठ अल्बम है -"दबंग". सुनते हैं इस फिल्म का शीर्षक गीत. वैसे इस गीत को खास फिल्म में डाला गया था ताकि लोग "दबंग" शब्द के मायने समझ पायें. विडम्बना देखिये कि अंग्रेजी शीर्षकों से भरे इस दौर में एक हिंदी शब्द के मायने समझाने के लिए निर्देशक को ये सब करना पड़ता है

गीत - हुड़ हुड़ दबंग


सजीव - आईटम गीत की बात करें तो इस साल इनकी भरमार रही है. मुन्नी और शीला में से आप किसी चुनेंगें :)

अजय ब्रह्मात्मज – मैं मुन्‍नी को चुनूंगा।

सजीव - जी अजय जी और हमारे श्रोताओं ने भी इसे ही चुना है. "शीला" को फिल्म के प्रदर्शन के बाद कुछ अधिक वोट मिले, पर फिर भी वो मुन्नी की स्थापित सत्ता को नहीं हिला पायी, आई सुनें साल का सबसे चर्चित आईटम गीत.

गीत - मुन्नी बदनाम


सजीव - इस साल का कोई रोमांटिक गीत जो आपको बहुत पसंद आया हो ?

अजय ब्रह्मात्मज – ‘दिल तो बच्‍चा है जी’

सजीव - हमारे श्रोताओं ने जिस रोमांटिक युगल गीत को चुना है वो है एक बार फिर "दबंग" से 'चोरी किया रे जिया' इस गीत को ५२ प्रतिशत वोट मिले. भाव प्रधान गीतों की श्रेणी में विजेता रहा "अंजना अंजानी" में विशाल शेखर का रचा गीत "तुझे भुला दिया". आईये सुनें -

गीत - चोरी किया रे जिया


गीत - तुझे भुला दिया फिर


सजीव - रियालिटी कार्यक्रमों के चलते इन दिनों नए गायक/गायिकाओं की एक पूरी फ़ौज जमा हो चुकी है. इस नए ट्रेंड के बारे में आपकी क्या राय है ?

अजय ब्रह्मात्मज - इस फौज की कोई पहचान नहीं है। मैं लगातार इस तथ्‍य को रेखांकित कर रहा हूं कि श्रेया घोषाल और सुनिधि चौहान के बाद किसी महिला स्‍वर ने अपनी पहचान नहीं बनाई। गायकों में केवल मोहित चौहान ही पहचान में आ रहे हैं। संगीत निर्देशन में तकनीक के हावी होने से साधारण आवाज किसी एक गाने में अच्‍छी लग जाती है। किंतु निजी पहचान के लिए आवश्‍यक मौके नए गायकों को नहीं मिल पा रहे हैं।

सजीव - सही है अजय जी, हम आपको बता दें कि हमें इस पोल में भारत से ही नहीं बल्कि अमेरिका, स्वीडन, कनाडा और पोलेंड से भी वोट मिले. जिनके आधार पर सर्वश्रेष्ठ गायक चुने जा रहे हैं, रहत फ़तेह अली खान साहब और गायिका हैं सुनिधि चौहान. राहत साहब और के के के बीच जबरदस्त मुकाबला हुआ, के के को ३८ प्रतिशत वोट मिले तो रहत साहब को बाज़ी मार गए ४२ प्रतिशत वोट लेकर. सुनिधि को ३५ प्रतिशत वोट मिले. सुनते हैं इन दों फनकारों को बैक टू बैक

गीत: दिल तो बच्चा है जी


सजीव - वैसे सुनिधि "उडी" के लिए नामांकित हुई थी, पर वो जरा बाद में, फिलहाल उनकी आवाज़ में ये चर्चित गीत भी सुन लीजिए

शीला की जवानी... Sunidhi Chauhan


सजीव - निर्देशक संजय लीला बंसाली संगीतकार बन कर आये इस साल, तो वहीं विशाल भारद्वाज जिनकी शुरूआत एक संगीतकार के रूप में हुई थी, आज के एक कामियाब निर्देशक हैं, आपके हिसाब से ऐसा क्या है जो एक फिल्मकार को संगीतकार बनने पर मजबूर कर देता है, वो भी तब जबकि ढेरों सफल संगीतकार इंडस्ट्री में मौजूद हों ?

अजय ब्रह्मात्मज – विशाल भारद्वाज ने एक इंटरव्यू में मुझे कहा था कि फिल्‍म इंडस्‍ट्री से जुड़े हर व्‍यक्ति की ख्‍वाहिश निर्देशक बनने की होती है। रही बात संजय के संगीतकार बनने की तो मैं बता दूं कि संजय संगीत की गहरी जानकारी रखते हैं और उनकी पिछली फिल्‍मों का संगीत भी उनकी सोच से प्रभावित रहा है।

सजीव - जी लेकिन हमारे श्रोताओं ने बंसाली के पहले प्रयास को २९ प्रतिशत वोट दिया मगर वो ए आर रहमान जिन्हें ३३ प्रतिशत वोट मिले उनसे पीछे रहे. तो आवाज़ के श्रोताओं की राय है कि वर्ष २०१० के सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का खिताब है ए आर रहमान के नाम, सुनिए फिल्म "रावण" का ये गीत.

गीत: रांझा रांझा


सजीव - आप खुद हिंदी भाषा के एक बड़े पहरूवा हैं, शब्दों की गुणवत्ता के लिहाज से कोई ऐसा गीत जो आपको खूब भाया हो इस साल ?

अजय ब्रह्मात्मज - भाषा की बानगी गीतों में खत्‍म होती जा रही है। फिर भी गुलजार, प्रसून जोशी, जावेद अख्‍तर और स्‍वानं‍द किरकिरे शब्‍दों के खेल से चमत्‍कृत करते रहते हैं। मैं स्‍वानंद किरकिरे को एक बड़ी और ठोस संभावना के रूप में देखता हूं।

सजीव - जी, स्वनद का कोई गीत इस वर्ष मैदान में नहीं था, लिहाजा यहाँ हमारे श्रोताओं ने भारी मत से चुना गुलज़ार साहब को, जी हाँ गुलज़ार साहब को सबसे अधिक ८२ प्रतिशत वोट मिले हैं, यानी सर्वश्रेष्ठ गीतकार का ताज है एक बार फिर गुलज़ार साहब के सर, बधाई हो गुलज़ार साहब. अब चूँकि हम "दिल तो बच्चा है जी" पहले हीं सुन चुके हैं, इसलिए गुलज़ार साहब के लिए हम उनका लिखा "वीर" फिल्म से "कान्हा" सुन लेते हैं।

गीत - कान्हा बैरन हुई बांसुरी.. Gulzar


सजीव - फिल्म निर्माण में गीतों का फिल्मांकन एक मुश्किल प्रक्रिया होती है, पर यही फिल्मांकन प्रदर्शन से पहले फिल्म को लोकप्रिय बनने में बेहद सहायक भी होता है. आपके हिसाब से ऐसा कौन से गीत आया है इस साल जिसका फिल्मांकन शानदार हुआ हो ?

अजय ब्रह्मात्मज – ‘गुजारिश’ का ‘उड़ी उड़ी...’ गीत। यह किरदार के भावनाओं को बहुत सुंदर तरीके से अभिव्‍यक्‍त करता है।

सजीव - बिल्कुल अजय जी यहाँ आपकी पसंद हमारे श्रोताओं से शत प्रतिशत मिल गयी है, ४२ प्रतिशत वोटों से गुज़ारिश का "उडी" गीत है साल का सर्वश्रेष्ट फिल्मांकित गीत. सुनिए-

गीत - उड़ी


सजीव - आने वाले साल में किन फिल्मों से आपको उम्मीदें हैं, आपकी खुद की क्या योजनाएं हैं और फेसबुक अपने प्रशंसकों से मिलना आपको कैसा लग रहा है ?

अजय ब्रह्मात्मज – मुझे अनुराग कश्‍यप, अनुराग बसु, इम्तियाज अली, अनुभव सिन्‍हा की फिल्‍मों से उम्‍मीदें हैं। इस साल मैं अपने ब्‍लॉग चवन्‍नीचैप को बेबसाइट का रूप देने की कोशिश करूंगा। कुछ पुस्‍तकों की योजनाएं हैं, जो प्रकाशकों की तलाश में हैं। फेसबुक अत्‍यंत कारगर माध्‍यम है। मैं इसके अधिकतम उपयोग की कोशिश करता हूं। पाठक बताएं कि और किन पहलुओं से इसका इस्‍तेमाल किया जा सकता है।

सजीव - अजय जी अब अंत में हम आपसे जानेंगें कि कि निम्न गीतों में से जिन्हें हमारी टीम ने नामांकित किया है, अजय ब्रह्मात्मज किस गीत को श्रेष्ठ मानते हैं, उसके बाद हम आपको बतायेंगें और सुन्वायेंगें वो गीत जिसे हमारे श्रोताओं से सर्वश्रेष्ठ माना है, देखते हैं आपकी राय क्या हमारे श्रोताओं की राय से मिलती है या नहीं : )

तेरे मस्त मस्त दो नैन (दबंग)
महंगाई डायन (पीपली लाइव)
बस इतनी सी तुमसे गुज़ारिश है (गुज़रिश)
सजदा (माई नेम इस खान)
नैना लागे तोसे (माधोलाल कीप वाकिंग)
रांझा रांझा (रावण)

अजय ब्रह्मात्मज - नैना लागे तोसे (माधोलाल कीप वाकिंग)

सजीव - अजय जी मैं आपको बता दूँ, विदेशों से आये वोटों में सजदा काफी पसंद किया गया है, महगाई डायन दूसरे स्थान पर रही, मगर सबसे अधिक ३३ प्रतिशत वोटों से हमारे श्रोताओं से जिसे गीत को सर्वश्रेष्ठ चुना है वो ये है -

गीत - तेरे मस्त मस्त दो नैन


सजीव - अजय जी इस बातचीत में हमारे साथ जुड़ने के लिए बहुत बहुत आभार, नयी फिल्मों की समीक्षा के लिए हमारे श्रोता अजय जी कि वेब साईट "चवन्नी चैप" में अवश्य जाएँ, चलते चलते इन तस्वीरों में देखिये कि हमारे अजय जी किन किन से मिले साल २०१० में....आप सब को नववर्ष की ढेरों शुभकामनाएँ. आवाज़ पर आपका ये साथी, सजीव सारथी, अपने सहयोगी सुजॉय चट्टर्जी और विश्व दीपक के साथ आपको दे रहा है इस वर्ष का अंतिम सलाम. मिलते हैं फिर अगले साल में.


तू मेरा जानूँ है तू मेरा हीरो है.....८० के दशक का एक और सुमधुर युगल गीत



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 560/2010/260

'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार! देखिए, गुज़रे ज़माने के सुमधुर गीतों को सुनते और गुनगुनाते हुए हम आ पहुँचे हैं इस साल २०१० के 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की अंतिम कड़ी पर। आज ३० दिसंबर, यानी इस साल का आख़िरी 'ओल्ड इज़ गोल्ड'। जैसा कि इन दिनों आप इस स्तंभ में सुन और पढ़ रहे हैं फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर की कुछ सदाबहार युगल गीतों से सजी लघु शृंखला 'एक मैं और एक तू', आज ८० के दशक के ही एक और लैण्डमार्क डुएट के साथ हम समापन कर रहे हैं इस शृंखला का। यह वह गीत है दोस्तों जिसने लता और आशा के बाद की पीढ़ी के पार्श्वगायिकाओं का द्वार खोल दिया था। इस नयी पीढ़ी से हमारा मतलब है अनुराधा पौड़वाल, अल्का याज्ञ्निक, साधना सरगम और कविता कृष्णमूर्ती। आज हम चुन लाये हैं अनुराधा और मनहर उधास की आवाज़ों में १९८३ की फ़िल्म 'हीरो' का गीत "तू मेरा जानू है... मेरी प्रेम कहानी का तू हीरो है"। युं तो इस गीत से पहले भी अनुराधा ने कुछ गीत गाये थे, लेकिन इस गीत ने उन्हें पहली बार अपार सफलता दी जिसके बाद उन्हें पीछे मुड़कर देखने की ज़रूरत नहीं पड़ी। 'एक दूजे के लिए' ही की तरह 'हीरो' भी एक कामयाब युवा फ़िल्म है, और इस फ़िल्म के ज़रिए जैकी श्रॊफ़ और मीनाक्षी शेषाद्री ने फ़िल्मी दुनिया में क़दम रखा था। 'हीरो' के गीतों की अपार कामयाबी ने एक बार फिर साबित किया कि ८० के दशक में भी एल.पी का संगीत उतना ही पुरअसर है जितना पिछले दो दशकों में था "निंदिया से जागी बहार" की शास्त्रीयता से भरी सुमधुर धुन, रेशमा की आवाज़ में कलेजे को चीर कर रख देने वाली "लम्बी जुदाई", लता-मनहर का गाया "प्यार करने वाले कभी डरते नहीं", तथा अनुराधा-मनहर के गाये दो गीत - "तू मेरा जानू है" और "डिंग डॊंग" जैसे गीतों के लिए एल. पी को बंगाल फ़िल्म जर्नलिस्ट एसोसिएशन के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।

दोस्तों, आज पहली बार 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर अनुराधा और मनहर की आवाज़ें गूंज रही है। ऐसे में आइए आज अनुराधा पौडवाल द्वारा प्रस्तुत 'विशेष जयमाला' कार्यक्रम का एक अंश पढ़ते हैं जिसमें वो बता रही हैं कि फ़िल्म जगत में उनका पदार्पण किस तरह से हुआ था। विविध भारती के सौजन्य से यह रहा वह अंश - "फ़ौजी भाइयों को मेरा संगीतमय नमस्कर! आज यह अवसर आप से बातें करने का, अपने गानें सुनाने का मिला है उसे मैं शिव जी का प्रसाद कहूँ तो सही होगा। जैसा कि बहुत से सुनने वाले शायद जानते हैं कि मेरे शोहर, श्री अरुण पौडवाल एक ज़माने में एस. डी. बर्मन के ऐसिस्टैण्ट भी रहे। बात युं हुई कि 'अभिमान' फ़िल्म का 'बैकग्राउण्ड म्युज़िक' रेकॊर्ड किया जा रहा था। सोच विचार हो रहा था कि एक 'पर्टिकुलर सिचुएशन' में कौन सा श्लोक रखा जाए। दादा ने अरुण से कहा कि तुम महाराष्ट्रियन हो और तुम्हारे घरों में बड़े बुज़ुर्ग बहुत अच्छे अच्छे श्लोक रिसाइट करते हैं। तो कल कोई श्लोक घर से लेके आना। मेरी क़िस्मत को मंज़ूर था और ईश्वर की कृपा मुझ पर होनी थी कि अरुण जी के मन में यह ख़याल आया कि क्यों ना यह श्लोक अनुराधा से, यानी मुझसे अपने टेप रेकोर्डर पे घर से ही रेकोर्ड करके ले जाऊँ! दादा ने श्लोक सुना और मेरे लिये प्लेबैक की दुनिया के दरवाजे खुल गये। उन्होंने श्लोक सुनते ही पूछा, 'कौन है ये?' दादा ने कहा कि शायद मैंने ऐसी ही आवाज़ में ऐसा ही श्लोक सोचा था जो बरबस तुम मेरे सामने ले आये। अरुण जी से कहा, अभी बुलाओ इस आवाज़ को। जब अरुण ने कहा कि यह आवाज़ अनुराधा की है, मेरी वाइफ़ की है, तो दादा और भी ख़ुश हुए। और शिव जी का प्रसाद मुझे ऐसा मिला कि दिन-ओ-दिन आप लोगों का प्यार और सुनने वालों की चाहत आज मुझे यहाँ तक ले आई है।" हाँ तो दोस्तों, ये थी अनुराधा जी के शब्द जो रेकॊर्ड हुए थे १९८७ में विविध भारती के स्टुडिओ में। और अब फ़िल्म 'हीरो' का वही हिट गीत जिसे शायद आपने कुछ दिनों से नहीं सुना होगा, लीजिए ८० के दशक की यादें फिर एक बार ताज़ा कर लीजिए इस गीत के माध्यम से। और इसी के साथ 'एक मैं और एक तू' शृंखला सम्पन्न होती है। हमें उम्मीद है कि ३० के दशक से लेकर ८० के दशक के ये १० युगल गीत आपको पसंद आये होंगे। आप अपने विचार और सुझाव हमारे ईमेल पते oig@hindyugm.com पर अवश्य लिख भेजिएगा। हमें इंतज़ार रहेगा। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की अगली कड़ी अब अगले साल ही पेश होगी। अरे अरे घबराइए नहीं, अगले साल, यानी कि इसी रविवार, २ जनवरी की शाम को। नये साल की ढेरों हार्दिक शुभकामनाओं के साथ अब हमें इजाज़त दीजिए, नमस्कार!



क्या आप जानते हैं...
कि अनुराधा पौडवाल ने अपना पहला फ़िल्मी एकल गीत गाया था संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के संगीत निर्देशन में, हेमा मालिनी - शशि कपूर अभिनीत फ़िल्म 'आप बीती' में।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली 01/शृंखला 07
गीत का ये हिस्सा सुनें-


अतिरिक्त सूत्र - खुद संगीतकार है इस युगल गीत में गायक.

सवाल १ - किस संगीतकार की बात है यहाँ - १ अंक
सवाल २ - गीतकार बताएं - २ अंक
सवाल ३ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी को बधाई हमारी ७ वीं शृंखला में वो विजेता हुए हैं. अमित जी कल तो आपका अंदाजा गलत हो गया..खैर कोई बात नहीं, नयी शृंखला के लिए सभी को शुभकामनाएँ

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Wednesday, December 29, 2010

हम बने तुम बनें एक दूजे के लिए....और एक दूजे के लिए ही तो हैं आवाज़ और उसके संगीत प्रेमी श्रोता



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 559/2010/259

फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर के चुने हुए युगल गीतों को सुनते हुए आज हम क़दम रख रहे हैं ८० के दशक में। कल के गीत से ही आप ने अंदाज़ा लगाया होगा कि ७० के दशक के मध्य भाग के आते आते युगल गीतों का मिज़ाज किस तरह से बदलने लगा था। उससे पहले फ़िल्म के नायक नायिका की उम्र थोड़ी ज़्यादा दिखाई जाती थी, लेकिन धीरे धीरे फ़िल्मी कहानियाँ स्कूल-कालेजों में भी समाने लगी और इस तरह से कॊलेज स्टुडेण्ट्स के चरित्रों के लिए गीत लिखना ज़रूरी हो गया। नतीजा, वज़नदार शायराना अंदाज़ को छोड़ कर फ़िल्मी गीतकार ज़्यादा से ज़्यादा हल्के फुल्के और आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग करने लगे। कुछ लोगों ने इस पर फ़िल्मी गीतों के स्तर के गिरने का आरोप भी लगाया, लेकिन क्या किया जाए, जैसा समाज, जैसा दौर, फ़िल्म और फ़िल्म संगीत भी उसी मिज़ाज के बनेंगे। ख़ैर, आज हम बात करते हैं ८० के दशक की। इस दशक के शुरुआती दो तीन सालों तक तो अच्छे गानें बनते रहे और लता और आशा सक्रीय रहीं। ८० के इस शुरुआती दौर में जो सब से चर्चित प्रेम कहानी पर बनी फ़िल्म आई, वह थी 'एक दूजे के लिए'। यह फ़िल्म तो जैसे एक ट्रेण्डसेटर सिद्ध हुई। सब कुछ नया नया सा था इस फ़िल्म में। नई अभिनेत्री रति अग्निहोत्री रातों रात छा गईं और दक्षिण के कमल हासन ने बम्बई में अपना सिक्का जमा लिया। और साथ ही गायक एस. पी. बालसुब्रह्मण्यम ने भी तो अपना जादू चलाया था इस फ़िल्म में। आनंद बक्शी के लिखे गीत, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के सुपरडुपर हिट संगीत ने ऐसी धूम मचाई जिसकी गूँज आज तक सुनाई देती है। वैसे एल.पी को इस फ़िल्म के लिए फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार तो नहीं मिला था, लेकिन सब से बड़ा पुरस्कार इनके लिए तो यही है कि आज भी आये दिन इस फ़िल्म के गीत कहीं ना कहीं से सुनाई दे जाते हैं। चाहे "तेरे मेरे बीच में कैसा है ये बंधन हो" या "हम तुम दोनों जब मिल जाएँगे", "मेरे जीवन साथी प्यार किए जा" हो या "सोलह बरस की बाली उमर को सलाम", या फिर फ़िल्म का सब से लोकप्रिय शीर्षक गीत "हम बने तुम बने एक दूजे के लिए"। तो आइए दोस्तों, ८० के दशक को सलाम करते हुए आज इसी गीत को सुना जाए लता और एस.पी की युगल आवाज़ों में।

यह गीत अपने आप में एक रोमांटिक कॊमेडी है, एक बड़ा ही अनूठा और एकमात्र गीत है कि जिसमें नायक और नायिका दो अलग अलग प्रदेशों से होने की वजह से एक दूसरे की भाषा समझ नहीं पाते हैं, जिसकी वजह से गीत में हास्य रस समा जाता है। हिंदी तो है ही, अंग्रेज़ी और तमिल के शब्दों का भी इस्तेमाल है इस गीत में। यहाँ तक की बक्शी साहब ग़ालिब के नाम को भी ले आये हैं जब वो लिखते हैं कि "इश्क़ पर ज़ोर नहीं ग़ालिब ने कहा है इसीलिए..."। और सोने पे सुहागा इस गीत को तब लगती है जब आख़िर में लता जी हँसती हुई सुनाई देती है। सचमुच, लता जी की गाती हुई आवाज़ जितनी मधुर है, शायद उससे भी मीठी है उनकी हँसी। बहुत से गीतों में उनकी इस तरह की हँसी और मुस्कुराहट का संगीतकारों ने समय समय पर इस्तेमाल किया है, मसलन, "भँवरे ने खिलाया फूल", "सुन बाल ब्रह्मचारी मैं हूँ कन्याकुमारी", "थोड़ी सी ज़मीन थोड़ा आसमाँ", आदि। आप भी कुछ और गीतों की याद दिलाइए ना! ख़ैर, वापस आते हैं 'एक दूजे के लिए' पर, यह १९८१ की फ़िल्म थी। १९७८ से १९८१ तक एल.पी ने लगातार चार बार सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार जीता था, और इस कड़ी को ख़य्याम साहब ने तोड़ा 'उमरावजान' के ज़रिए। पंकज राग के शब्दों में "व्यावसायिक्ता और लोकप्रियता के पायदान पर नम्बर एक पर स्थापित लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल को ख़य्याम के अतिरिक्त आर. डी. बर्मन की 'कुदरत', 'याराना', 'साथी', और 'लवस्टोरी', शिव-हरि की 'सिलसिला', वार्षिक बिनाका गीतमाला में चोटी के गीत "मेरे अंगने में" वाले कल्याणजी-आनंदजी की 'लावारिस' और बप्पी लाहिड़ी की 'अरमान' ने कड़ी चुनौती दी और मिश्र शिवरंजनी में "तेरे मेरे बीच में", अहीर भरवी में "सोलह बरस की" और "हम बने तुम बने" जैसे गीतों के साथ 'एक दूजे के लिए' ही उनका उत्तर बनी।" तो आइए दोस्तों, ८० के दशक के इस महत्वपूर्ण फ़िल्म का यह सदाबहार युगल गीत सुनते हैं।



क्या आप जानते हैं...
कि एस. पी. बालसुब्रहमण्यम को 'एक दूजे के लिए' फ़िल्म के गायन के लिए १९८२ का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली 10/शृंखला 06
गीत का ये हिस्सा सुनें-


अतिरिक्त सूत्र - ८० के दशक का एक और हिट गीत.

सवाल १ - पुरुष गायक बताएं - २ अंक
सवाल २ - गीतकार बताएं - १ अंक
सवाल ३ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
श्याम जी कुछ दिनों से गायब हैं, वैसे शरद जी ने इस शृंखला में अजय बढ़त बना ली है, इंदु जी एक दम सही कहा आपने और देखिये आज के गीत का शीर्षक भी यही है. अमित जी ओल्ड इस गोल्ड लेकर हम भारतीय समानुसार शाम 6.30 पर हाज़िर होते हैं. अगर आप ठीक समय पर आ सकें तो, हमारे दिग्गजों को टक्कर दे सकते हैं

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Tuesday, December 28, 2010

एक मैं और एक तू, दोनों मिले इस तरह....ये था प्यार का नटखट अंदाज़ सत्तर के दशक का



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 558/2010/258

'एक मैं और एक तू' - 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस लघु शृंखला की आठवीं कड़ी में आज एक और ७० के दशक का गीत पेश-ए-ख़िदमत है। दोस्तों, फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर की गायक-गायिका जोड़ियों में जिन चार जोड़ियों का नाम लोकप्रियता के पयमाने पर सब से उपर आते हैं, वो हैं लता-किशोर, लता-रफ़ी, आशा-किशोर और आशा-रफ़ी। ७० के दशक में इन चार जोड़ियों ने एक से एक हिट डुएट हमें दिए हैं। कल के लता-रफ़ी के गाये गीत के बाद आज आइए आशा-किशोर की जोड़ी के नाम किया जाये यह अंक। और ऐसे में फ़िल्म 'खेल खेल में' के उस गीत से बेहतर गीत और कौन सा हो सकता है, जिसके मुखड़े के बोलों से ही इस शृंखला का नाम है! "एक मैं और एक तू, दोनों मिले इस तरह, और जो तन मन में हो रहा है, ये तो होना ही था"। नये अंदाज़ में बने इस गीत ने इस क़दर लोकप्रियता हासिल की कि जवाँ दिलों की धड़कन बन गया था यह गीत और आज भी बना हुआ है। उस समय ऋषी कपूर और नीतू सिंह की कामयाब जोड़ी बनी थी और एक के बाद एक कई फ़िल्में इस जोड़ी के बने। 'खेल खेल में' १९७५ में बनी थी जिसका निर्देशन किया था रवि टंडन ने। वैसे तो इस फ़िल्म की कहानी कॊलेज में पढ़ने वाले युवाओं के हँसी मज़ाक से शुरु होती है, लेकिन कहानी तब सीरियस हो जाती है जब वे एक ख़तरनाक मुजरिम से भिड़ जाते हैं, और एक रोमांटिक फ़िल्म थ्रिलर में बदलकर रह जाती है। इस फ़िल्म में राकेश रोशन, अरुणा ईरानी और इफ़्तेखार ने भी अहम भूमिकाएँ अदा की थी। वैसे आपको यह भी बता दें कि इस फ़िल्म की कहानी मूल अंग्रेज़ी उपन्यास 'गूड चिल्ड्रेन डोण्ट किल' से ली गई है जिसके लेखक थे लूई थॊमस, जो नेत्रहीन थे, और यह उपन्यास सन् १९६७ में प्रकाशित हुआ था।

'खेल खेल में' फ़िल्म में संगीत था राहुल देव बर्मन का और गीत लिखे गुल्शन बावरा ने। दोस्तों, एक ज़माने में गुल्शन बावरा ने पंचम के लिए काफ़ी सारे फ़िल्मों में गीत लिखे थे। आज ये दोनों ही इस संसार में मौजूद नहीं हैं, लेकिन कुछ साल पहले 'यूनिवर्सल म्युज़िक' ने पंचम के जयंती पर एक ऐल्बम जारी किआ जिसका शीर्षक था - 'Untold Stories about Pancham - Rare Sessions of Gulshan Bawra'। तो आइए आज इसी ऐल्बम से चुनकर गुल्शन बावरा के कुछ शब्द पढ़ें जो उन्होंने अपने इस मनपसंद संगीतकार के लिए रेकॊर्ड करवाये थे। "संगीत उसकी ज़िंदगी थी, और वो ज़िंदगी का भरपूर मज़ा ले ही रहा था कि मौत के ख़तरनाक हाथों ने उसे अपने शिकंजे में ले लिया। आर. डी. बर्मन, यानी कि पंचम, उसके चाहनेवालों को, उसकी हमनवा, हमप्याला, गुल्शन बावरा का नमस्कार! दोस्तों, यह मेरा सौभाग्य है कि मैं यूनिवर्सल म्युज़िक के सौजन्य से अपने जिगरी दोस्त पंचम की बर्थ ऐनिवर्सरी पे उसको अपनी खट्टी मीठी यादों का गुल्दस्ता पेश कर रहा हूँ, इस आशा के साथ कि स्वग लोक में पंचम को इसकी भीनी भीनी ख़ुशबू आ रही होगी। पंचम देवी सरस्वती का पुजारी था। हर साल अपने घर में सरस्वती पूजा बड़ी धूम धाम से मनाता था। उस दिन अमिताभ बच्चन, जया, जीतेन्द्र, धर्मेन्द्र, ऋषी कपूर, रणधीर कपूर, डिरेक्टर्स में नासिर हुसैन, शक्ति सामंत, प्रमोद चक्रवर्ती, गीतकारों मे आनंद बक्शी, मजरूह सुल्तानपुरी साहब, गुलज़ार और मैं, हम सब इकट्ठा होते। पहले पूजा होती, और उसके बाद लंच होता। लंच बड़ा ही लज़ीज़ होता था और एस्पेशियली बैंगन के जो पकोड़े बनते थे, उनका तो मज़ा ही अलग था। और सोने पे सुहागा, आशा जी बड़े प्यार से सबको सर्व करती थीं। जितने भी पंचम के म्युज़िशियन्स थे, उस दिन ख़ूब एन्जॊय करते थे।" दोस्तों, आगे और भी बहुत बातें बावरा साहब ने कही है जिन्हें हम हौले हौले आप तक पहुँचाते रहेंगे। फिलहाल जवाँ दिलों की धड़कन बना यह गीत आपकी नज़र कर रहे हैं, "एक मैं और एक तू"। बड़ा ही पेपी नंबर है, एक हल्का फुल्का रोमांटिक डुएट, जिसमें किशोर दा की मीठी शरारती अंदाज़ भी है और आशा जी की शोख़ी भी। सुनते हैं...



क्या आप जानते हैं...
कि फ़िल्म 'खेल खेल में' में मिथुन चक्रवर्ती ने एक 'एक्स्ट्रा' के तौर पे अभिनय किया था।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली 9/शृंखला 06
गीत का ये हिस्सा सुनें-


अतिरिक्त सूत्र - किसी अन्य सूत्र की दरकार नहीं.

सवाल १ - पुरुष गायक बताएं - २ अंक
सवाल २ - इस सफल फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
सवाल ३ - फिल्म की प्रमुख अभिनेत्री का नाम बताएं - १ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
इस बार शरद जी ने बढ़त बना ली है, अमित तिवारी जी, सिर्फ एक सवाल का जवाब देना है सभी का नहीं, अंतः अंक शून्य

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Monday, December 27, 2010

पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है....मीर ने दी चिंगारी तो मजरूह साहब ने बात कर दी आम इश्क वाली



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 557/2010/257

'एक मैं और एक तू' - फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर के सदाबहार युगल गीतों से सजी इस लघु शृंखला में आज बारी ७० के दशक की। आज का यह अंक हम समर्पित कर रहे हैं १८-वीं शताब्दी के मशहूर शायर मीर तक़ी मीर के नाम। जी हाँ, उनकी लिखी हुई एक मशहूर ग़ज़ल से प्रेरीत होकर मजरूह सुल्तानपुरी ने यह गीत लिखा था - "पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है, जाने ना जाने गुल ही ना जाने बाग़ तो सारा जाने है"। यह पूरा मुखड़ा मीर के उस ग़ज़ल का पहला शेर है। आगे गीत के तीन अंतरे मजरूह साहब ने ख़ुद लिखे हैं। इन्हे आप गीत को सुनते हुए जान ही लेंगे, लेकिन क्या आप जानना नहीं चाहेंगे कि मीर के उस ग़ज़ल के बाक़ी शेर कौन कौन से थे? लीजिए हम यहाँ पेश कर रहे हैं उस पुराने ग़ज़ल के कुल ७ शेर।

पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है,
जाने ना जाने गुल ही ना जाने बाग़ तो सारा जाने है।

आगे उस मुतकब्बर के हम ख़ुदा ख़ुदा किया करते हैं,
कब मौजूद ख़ुदा को वो मग़रूर ख़ुद-आरा जाने है।

आशिक़ सा तो सादा कोई और न होगा दुनिया में,
जी के ज़ियाँ को इश्क़ में उसके अपना वारा जाने है।

चारा गरी बीमारी-ए-दिल की रस्म-ए-शहर-ए-हुस्न नहीं,
वरना दिलबर-ए-नादाँ भी इस दर्द का चारा जाने है।

मेहर-ओ-वफ़ा-ओ-लुतफ़-ओ-इनायत एक से वाक़ीफ़ इन में नहीं,
और तो सब कुछ तन्ज़-ओ-कनया रम्ज़-ओ-इशारा जाने है।

आशिक़ तो मुर्दा है हमेशा जी उठता है देखे उसे,
यार के आ जाने को यकायक उम्र दोबारा जाने है।

तश्ना-ए-ख़ून भी अपना कितना मीर भी नादाँ तल्ख़ीकश,
दमदार आब-ए-तेग़ को उसके आब-ए-गवारा जाने है।


लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ों में यह फ़िल्म 'एक नज़र' का गीत है। गीतकार का नाम तो हम बता ही चुके हैं, संगीतकार हैं लक्ष्मीकांत प्यारेलाल। 'एक नज़र' शीर्षक से दो फ़िल्में बनीं हैं। एक १९५७ में, जिसमें रवि का संगीत था और जिसमें तलत महमूद के गाए कुछ अच्छे गानें भी थे। आज का गीत १९७२ की 'एक नज़र' का है जिसमें मुख्य कलाकार थे अमिताभ बच्चन और जया भादुड़ी। यह फ़िल्म उन दोनों के करीयर के साथ साथ काम किया हुआ सब से बड़ी फ़्लॊप फ़िल्म साबित हुई। इसी समय इन दोनों ने 'बंसी बिरजु' फ़िल्म में भी काम किया था और वह भी असफल रही। आज 'एक नज़र' फ़िल्म को अगर कोई याद करता है तो बस इस दिलकश गीत की वजह से। दोस्तों, प्यार भरे युगल गीतों की इस शृंखला में आइए आज सुनते हैं स्वर कोकिला लता जी और गायकी के शहंशाह रफ़ी साहब की आवाज़ें! लेकिन गीत सुनने से पहले एक अंतरा और पढ़ लीजिए इस गीत का जिसे मैंने लिखने की गुस्ताख़ कोशिश की है...

"तूने ही तो कहा था, मरना हमें गवारा नहीं,
हमको तो ज़िंदा रहके, करनी है दुनिया में रोशनी,
कितनी सच्ची कही है, कितनी अच्छी कही है,
दिल को बहुत ही भाये है, पत्ता पत्ता...."।



क्या आप जानते हैं...
कि लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी ने साथ में कुल ४४० युगल गीत गाए हैं।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली 8/शृंखला 06
गीत का ये हिस्सा सुनें-


अतिरिक्त सूत्र - किसी अन्य सूत्र की दरकार नहीं.

सवाल १ - गीतकार बताएं - २ अंक
सवाल २ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
सवाल ३ - संगीतकार बताएं - १ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
इंदु जी ये आपने क्या किया...अंक नहीं मिल पायेंगें, शरद जी का तुक्का एकदम सही है

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Sunday, December 26, 2010

तुझे प्यार करते हैं करते रहेंगें.... जब प्यार में कसमें वादों का दौर चला



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 556/2010/256

रोमांटिक फ़िल्मी गीतों में जितना ज़्यादा प्रयोग "दिल" शब्द का होता आया है, शायद ही किसी और शब्द का हुआ होगा! और क्यों ना हो, प्यार का आख़िर दिल से ही तो नाता है। हमारे फ़िल्मी गीतकारों को जब भी इस तरह के हल्के फुल्के प्यार भरे युगल गीत लिखने के मौके मिले हैं, तो उन्होनें "दिल", "धड़कन", "दीवाना" जैसे शब्दों को जीने मरने के क़सम-ए-वादों के साथ मिला कर इसी तरह के गानें तैयार करते आए हैं। आज हमने जो गीत चुना है, वह भी कुछ इसी अंदाज़ का है। गीत है तो बहुत ही सीधा और हल्का फुल्का, लेकिन बड़ा ही सुरीला और प्यारा। हसरत जयपुरी साहब रोमांटिक गीतों के जादूगर माने जाते रहे हैं, जिनकी कलम से न जाने कितने कितने हिट युगल गीत निकले हैं, जिन्हे ज़्यादातर लता-रफ़ी ने गाए हैं। लेकिन आज हम उनका लिखा हुआ जो गीत आप तक पहुँचा रहे हैं उसे रफ़ी साहब ने लता जी के साथ नहीं, बल्कि सुमन कल्याणपुर के साथ मिलकर गाया है फ़िल्म 'अप्रैल फ़ूल' के लिए। शंकर जयकिशन के संगीत निर्देशन में यह गीत है "तुझे प्यार करते हैं करते हैं करते रहेंगे, के दिल बनके दिल में धड़कते रहेंगे"। 'अप्रैल फ़ूल' १९६४ की फ़िल्म थी जिसके मुख्य कलाकार थे बिस्वजीत और सायरा बानो। सुबोध मुखर्जी निर्मित व निर्देशित इस फ़िल्म का शीर्षक गीत आज भी बेहद लोकप्रिय है जिसे हम हर साल पहली अप्रैल के दिन याद करते हैं।

जैसा कि अभी हमने आपको बताया कि 'अप्रैल फ़ूल' १९६४ की फ़िल्म थी। और यही वो समय था जब लता जी और रफ़ी साहब ने रायल्टी के विवाद की वजह से एक दूसरे के साथ गीत गाना बंद कर दिया था। १९६३ से लेकर अगले तीन-चार सालों तक इन दोनों ने साथ में कोई भी युगल गीत नहीं गाया, और १९६७ में सचिन देव बर्मन के मध्यस्थता के बाद 'ज्वेल थीफ़' में "दिल पुकारे आ रे आ रे आ रे" गा कर इस झगड़े को ख़त्म किया। हमने इस बात का ज़िक्र यहाँ पर इसलिए किया क्योंकि बात रफ़ी साहब और सुमन कल्याणपुर के गाने की चल रही है। जी हाँ, लता जी के रफ़ी साहब के साथ ना गाने की वजह से फ़िल्म निर्माता और संगीतकार सुमन जी की आवाज़ की ओर आकृष्ट हुए क्योंकि एक सुमन जी ही थीं जिनकी आवाज़ लता जी से बहुत मिलती जुलती थी। ज़रा ग़ौर कीजिए दोस्तों कि संगीतकारों ने लता जी के बदले आशा जी को लेना गवारा नहीं किया, बल्कि सुमन जी की आवाज़ ली। इसी से आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि लता जी जैसी आवाज़ की क्या डिमाण्ड रही होगी उस ज़माने में। ख़ैर, इस विवाद की वजह से अगर किसी को फ़ायदा हुआ तो वो थीं सुमन जी। इन तीन सालों में सुमन जी को रफ़ी साहब के साथ कई कई हिट गीत गाने के सुयोग मिले और आज का प्रस्तुत गीत भी उन्ही में से एक है। कुछ मशहूर रफ़ी - सुमन डुएट्स की याद दिलाएँ आपको जो इन तीन सालों के भीतर बनीं थीं?

दिल एक मंदिर (१९६३) - "दिल एक मंदिर है"
जहाँ-आरा (१९६४) - "बाद मुद्दत के ये घड़ी आई"
कैसे कहूँ (१९६४) - "मनमोहन मन में हो तुम्ही"
जी चाहता है (१९६४) - "ऐ जाने तमन्ना ऐ जाने बहारा"
बेटी-बेटे (१९६४) - "अगर तेरा जल्वा नुमाई ना होती, ख़ुदा की क़सम ये ख़ुदाई ना होती"
राजकुमार (१९६४) - "तुमने पुकारा और हम चले आए"
सांझ और सवेरा (१९६४) - "अजहूँ ना आए साजना सावन बीता जाए"
शगुन (१९६४) - "पर्बतों के पेड़ों पे शाम का बसेरा है"
आधी रात के बाद (१९६५) - "बहुत हसीं हैं तुम्हारी आँखें"
मोहब्बत इसको कहते हैं (१९६५) - "ठहरिए होश में आ लूँ तो चले जाइएगा"
भीगी रात (१९६५) - "ऐसे तो ना देखो के बहक जाएँ"
जब जब फूल खिले (१९६५) - "ना ना करते प्यार तुम्ही से कर बैठे"
दिल ने फिर याद किया (१९६६) - "दिल ने फिर याद किया बर्फ़ सी लहराई है"
सूरज (१९६६) - "इतना है तुमसे प्यार मुझे मेरे राज़दार"
साज़ और आवाज़ (१९६६) - "किसने मुझे पुकारा, किसने मुझे सदा दी"
ममता (१९६६) - "रहें ना रहें हम महका करेंगे"
ग़ज़ल (१९६६) - "मुझे ये फूल ना दे तुझे दिलबरी की क़सम"
छोटी सी मुलाक़ात (१९६७) - "तुझे देखा, तुझे चाहा, तुझे पूजा मैंने"
चांद और सूरज (१९६५) - "तुम्हे दिल से चाहा तुम्हे दिल दिया है"
फ़र्ज़ (१९६७) - "तुमसे ओ हसीना कभी मोहब्बत ना मैंने करनी थी"
पाल्की (१९६७) - "दिल-ए-बेताब को सीने से लगाना होगा"
ब्रह्मचारी (१९६८) - "आजकल तेरे मेरे प्यार के चर्चे हर ज़बान पर"

तो दोस्तों, देखा आपने कि कैसे कैसे हिट गीत इन तीन चार सालों में सुमन जी को रफ़ी साहब के साथ गाने को मिले थे। वैसे इनके अलावा भी, इन चंद सालों के बाहर भी इन दोनों ने और भी बहुत से हिट युगल गीत गाए, लेकिन जो कामयाबी उन्हे इन गीतों में मिली, वह शायद इससे पहले या इसके बाद नहीं मिली होगी। ख़ैर, आइए अब सुना जाए आज का गीत फ़िल्म 'अप्रैल फ़ूल' से।



क्या आप जानते हैं...
कि सुमन कल्याणपुर ने सन् १९५४ में संगीतकार मोहम्मद शफ़ी के निर्देशन में फ़िल्म 'मंगू' में पहली बार गीत गाया था और उस गीत के बोल थे "कोई पुकारे धीरे से तुझे"।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली 7/शृंखला 06
गीत का ये हिस्सा सुनें-


अतिरिक्त सूत्र - किसी अन्य सूत्र की दरकार नहीं.

सवाल १ - किस मशहूर शायर की है मूल रचना - २ अंक
सवाल २ - किस गीतकार ने इस ग़ज़ल को आगे बढ़ाया है फिल्म के लिए - १ अंक
सवाल ३ - संगीतकार बताएं - १ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
गलत जवाब है श्याम कान्त जी.....आपने २ अंक गँवा दिए....इंदु जी और रोमेंद्र जी एक एक अंक जरूर कमाए

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Saturday, December 25, 2010

ई मेल के बहाने यादों के खजाने (२२), सभी श्रोताओं को क्रिसमस की शुभकामनाएँ



नमस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' शनिवार विशेष की २२ वीं कड़ी में आप सभी का स्वागत है। आप सभी को क्रिस्मस की बहुत बहुत शुभकामनाएँ। इस साप्ताहिक विशेषांक में अधिकतर समय हमने 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' पेश किया, जिसमें आप ही के भेजे हुए ईमेल शामिल हुए और कई बार हमने नामचीन फ़नकारों से संपर्क स्थापित कर फ़िल्म संगीत के किसी ना किसी पहलु का ज़िक्र किया। आज हम आ पहुँचे हैं इस साप्ताहिक शृंखला की २०१० वर्ष की अंतिम कड़ी पर। तो आज हम अपने जिस दोस्त के ईमेल से इस शृंखला में शामिल कर रहे हैं, वो हैं ख़ानसाब ख़ान। हर बार की तरह इस बार भी उन्होंने 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की तारीफ़ की है और हमारा हौसला अफ़ज़ाई की है। लीजिए ख़ानसाब का ईमेल पढ़िए...

******************************

आदाब,

नौ रसों की 'रस माधुरी' शृंखला बहुत पसंद आई। आपने केवल इन रसों का बखान फ़िल्मी गीतों के लिए ही नहीं किया, बल्कि हमारी ज़िंदगी से जोड़ कर भी आप ने इनको पूरे विस्तार से बताया, जिससे हमें हमारी ज़िंदगी से जुड़े पहलुओं को भी जानने को मिला। और हमें ज्ञात हुआ कि हमारे मन की इन मुद्राओं को भी फ़िल्मी गीतों में किस तरह से अभिव्यक्ति मिली है। आपके इन अथक प्रयासों के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। और आपकी बात बिल्कुल सही है। मैं भी यह सोच रहा था कि "फिर छिड़ी रात बात फूलों की" ग़ज़ल और "फूल आहिस्ता फेंको" गीत के बोलों में, बड़े ही सुंदर तरीक़े से "फूल" शब्द का इस्तेमाल किया गया, जिसको सुनकर दिलों में भी फूलों की तरह नर्मोनाज़ुक अहसास पैदा हो जाते हैं। इससे ज़्यादा और किसी गीत की कामयाबी क्या होगी!

'ओल्ड इज़ गोल्ड - सफ़र अब तक' पढ़कर मज़ा आ गया। और हमारे जो साथी बाद में जुड़े थे, जिनमें मैं भी शामिल हूँ, सब को मालूम हो गया कि पिछे का भी 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का सफ़र कितना शानदार रहा है। मैं एक दिन ऐसा सोच ही रहा था कि 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का पिछला सफ़र कैसा रहा होगा, इसमें किस तरह के और कौन कौन से गीत बजे होंगे, और आपने शायद मेरे मन की आवाज़ को सुन ली। क्योंकि हमारे इस महफ़िल का नाम भी तो आवाज़ ही है, जो कि पीछे की, आगे की, अभी की सारी आवाज़ों को अपने में शामिल किए हुए है। इसके लिए मैं आपका तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ। इसकी वजह से हम भी अब आवाज़ की इस महफ़िल से किसी भी तरह से अंजान नहीं रहे हैं।

धन्यवाद।

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वाह ख़ानसाब, और आपका बहुत बहुत शुक्रिया भी। आइए आज एक ऐसा गीत सुनते हैं जो आज के दिन के लिए बहुत ही सटीक है। आज क्रिसमस है और इस अवसर पर बनने वाले फ़िल्मी गीतों की बात करें तो सबसे पहले जिस गीत की याद आती है वह है फ़िल्म 'ज़ख़्मी' का "जिंगल बेल जिंगल बेल.... आओ तुम्हे चाँद पे ले जाएँ"। गौहर कानपुरी का लिखा और बप्पी लाहिड़ी का संगीतबद्ध किया हुआ यह गीत है जिसे लता मंगेशकर और सुषमा श्रेष्ठ ने गाया है। गीत फ़िल्माया गया है आशा पारेख और बेबी पिंकी पर। कहानी के सिचुएशन के मुताबिक़ गीत का फ़िल्मांकन दर्दीला है। गीत "जिंगल बेल्स" से शुरु होकर मुखड़ा "आओ तुम्हे चांद पे ले जाएँ, प्यार भरे सपने सजाएँ" पे ख़त्म होता है। अंतरों में भी एक सपनों की सुखद दुनिया का चित्रण है। गीत के फ़िल्मांकन से अगर बोलों की तुलना की जाये तो एक तरह से विरोधाभास ही झलकता है। राजा ठाकुर निर्देशित इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे सुनिल दत्त, आशा पारेख, राकेश रोशन और रीना रॊय। तो आइए सुनते हैं यह गीत और आप सभी को एक बार फिर से किरस्मस की हार्दिक शुभकामनाएँ।

गीत - जिंगल बेल्स... आओ तुम्हे चाँद पे (ज़ख़्मी)


तो ये था आज का 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने'। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की नियमित कड़ी के साथ आपसे कल फिर मुलाक़ात होगी, तब तक के लिए इजाज़त दीजिए, नमस्कार!

Friday, December 24, 2010

अनुराग शर्मा की कहानी "आती क्या खंडाला?"



'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में हरिशंकर परसाई की कहानी "उखड़े खंभे" का पॉडकास्ट सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं अनुराग शर्मा की एक सामयिक कहानी "आती क्या खंडाला?", उन्हीं की आवाज़ में। कहानी "आती क्या खंडाला?" का कुल प्रसारण समय 1 मिनट 56 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं।

इस कथा "आती क्या खंडाला?" का टेक्स्ट बर्ग वार्ता ब्लॉग पर उपलब्ध है।

यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें।

पतझड़ में पत्ते गिरैं, मन आकुल हो जाय। गिरा हुआ पत्ता कभी, फ़िर वापस ना आय।।
~ अनुराग शर्मा

हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी
"सब लोग बातें बनायेंगे, पहले ही हमारा नाम जोडते रहते हैं।"
(अनुराग शर्मा की "आती क्या खंडाला?" से एक अंश)


नीचे के प्लेयर से सुनें.
(प्लेयर पर एक बार क्लिक करें, कंट्रोल सक्रिय करें फ़िर 'प्ले' पर क्लिक करें।)

यदि आप इस पॉडकास्ट को नहीं सुन पा रहे हैं तो नीचे दिये गये लिंक से डाऊनलोड कर लें:
VBR MP3
#117th Story, Ati Kya Khandala: Anurag Sharma/Hindi Audio Book/2010/49. Voice: Anurag Sharma

Thursday, December 23, 2010

आसमां के नीचे हम आज अपने पीछे, प्यार का जहाँ बसा के चले...लता और किशोर दा



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 555/2010/255

फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर के कुछ सदाबहार युगल गीतों से सज रही है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल इन दिनों। ये वो प्यार भरे तराने हैं, जिन्हे प्यार करने वाले दिल दशकों से गुनगुनाते चले आए हैं। ये गानें इतने पुराने होते हुए भी पुराने नहीं लगते। तभी तो इन्हे हम कहते हैं 'सदाबहार नग़में'। इन प्यार भरे गीतों ने वो कदमों के निशान छोड़े हैं कि जो मिटाए नहीं मिटते। आज इस 'एक मैं और एक तू' शृंखला में हमने एक ऐसे ही गीत को चुना है जिसने भी अपनी एक अमिट छाप छोड़ी है। लता मंगेशकर और किशोर कुमार की सदाबहार जोड़ी का यह सदाबहार नग़मा है फ़िल्म 'ज्वेल थीफ़' का - "आसमाँ के नीचे, हम आज अपने पीछे, प्यार का जहाँ बसाके चले, क़दम के निशाँ बनाते चले"। मजरूह सुल्तानपुरी के लिखे इस गीत को दादा बर्मन ने स्वरबद्ध किया था। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के शुरुआती दिनों में, बल्कि युं कहें कि कड़ी नं - ६ में हमने आपको इस फ़िल्म का "रुलाके गया सपना मेरा" सुनवाया था, और इस फ़िल्म की जानकारी भी दी थी। आज इस युगल गीत के फ़िल्मांकन की आपको ज़रा याद दिलाते हैं। हमारी फ़िल्मों में कई फ़ॊरमुला पहलुएँ हुआ करती हैं। जैसे कि एक दौर था कि जब रोमांटिक गीतों में नायक नायिका को बाग़ में, पहाड़ों में, वादियों में, भागते हुए गीत गाते हुए दिखाए जाते थे। आज वह परम्परा ख़त्म हो चुकी है, लेकिन आज के प्रस्तुत गीत में वही बाग़ बग़ीचे वाला मंज़र देखने को मिलता है। फ़िल्मांकन में कुछ कुछ हास्य रस भी डाला गया है, जैसे कि गीत के शुरु में ही देव आनंद साहब वैजयंतीमाला की टांग खींच कर उन्हे गिरा देते हैं। इसका बदला वो लेती हैं देव साहब के पाँव में अपनी पाँव जमा कर और यह गाते हुए कि "क़दम के निशाँ बनाते चले"। देव साहब के मैनरिज़्म्स को किशोर दा ने क्या ख़ूब अपनी गायकी से उभारा है इस गीत में।

सचिन देव बर्मन ने जितने भी लता-किशोर डुएट्स रचे हैं, उनका स्कोर १००% रहा है। चलिए आपको एक फ़ेहरिस्त ही पेश किए देता हूँ जिस पर नज़र दौड़ाते हुए आपको इस बात का अंदाज़ा हो जाएगा। तो ये रहे वो फ़िल्में और उनके गानें जिन्हे लता जी और किशोर दा ने दादा के लिए गाए थे।
अभिमान - "तेरे मेरे मिलन की ये रैना"
आराधना - "कोरा काग़ज़ था ये मन मेरा"
गैम्बलर - "चूड़ी नहीं ये मेरा दिल है", "अपने होठों की बंसी बना ले मुझे"
गाइड - "गाता रहे मेरा दिल"
ज्वेल थीफ़ - "आसमाँ के नीचे हम आज अपने पीछे"
जुगनु - "गिर गया झुमका गिरने दो"
प्रेम नगर - "किसका महल है, किसका ये घर है"
प्रेम पुजारी - "शोख़ियों में घोला जाए फूलों का शबाब"
शर्मिली - "आज मदहोश हुआ जाए रे मेरा मन"
तीन देवियाँ - "लिखा है तेरी आँखों में किसका फ़साना", "ऊफ़ कितनी ठण्डी है ये रात"
तेरे मेरे सपने - "हे मैंने क़सम ली", "जीवन की बगिया महकेगी"
ये गुलिस्ताँ हमारा - "गोरी गोरी गाँव की गोरी रे"

देखा दोस्तों, क्या एक से एक सुपरहिट गानें थे ये सब के सब अपने ज़माने के। ये सभी इस 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में शामिल होने के हक़दार हैं। तो चलिए आज इनमें से जो गीत हमने चुना है उसे सुन लेते हैं। लता जी, किशोर दा, बर्मन दा और मजरूह साहब के साथ साथ याद करते हैं देव साहब और वैजयंतीमाला जी के प्यार भरे टकरारों की भी। और चलते चलते आप सभी को हम दे रहे हैं क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनाएँ।



क्या आप जानते हैं...
कि लता मंगेशकर और किशोर कुमार ने साथ में कुल ३२७ युगल गीत गाए हैं।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली 6/शृंखला 06
गीत का ये हिस्सा सुनें-


अतिरिक्त सूत्र - किसी अन्य सूत्र की दरकार नहीं.

सवाल १ - किन युगल आवाजों में है ये गीत - १ अंक
सवाल २ - गीतकार कौन हैं - २ अंक
सवाल ३ - संगीतकार बताएं - १ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
शृंखला के मध्यांतर तक शरद जी आगे हैं श्याम जी से, इंदु जी भी इस शृंखला में कुछ सक्रिय हैं. कल का कमेन्ट ऑफ द डे रहा सुमित चक्रवर्ति जी के नाम, बधाई

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Wednesday, December 22, 2010

दीवाना हुआ बादल, सावन की घटा छायी...जब स्वीट सिक्सटीस् में परवान चढा प्रेम



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 554/2010/254

जीव जगत की तमाम अनुभूतियों में सब से प्यारी, सब से सुंदर, सब से सुरीली, और सब से मीठी अनुभूति है प्रेम की अनुभूति, प्यार की अनुभूति। यह प्यार ही तो है जो इस संसार को अनंतकाल से चलाता आ रहा है। ज़रा सोचिए तो, अगर प्यार ना होता, अगर चाहत ना होती, तो क्या किसी अन्य चीज़ की कल्पना भी हम कर सकते थे! फिर चाहे यह प्यार किसी भी तरह का क्यों ना हो। मनुष्य का मनुष्य से, मनुष्य का जानवरों से, प्रकृति से, अपने देश से, अपने समाज से। दोस्तों, यह 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल है, जो बुना हुआ है फ़िल्म संगीत के तार से। और हमारी फ़िल्मों और फ़िल्मी गीतों का केन्द्रबिंदु भी देखिए प्रेम ही तो है। प्रेमिक-प्रेमिका के प्यार को ही केन्द्र में रखते हुए यहाँ फ़िल्में बनती हैं, और इसलिए ज़ाहिर है कि फ़िल्मों के ज़्यादातर गानें भी प्यार-मोहब्बत के रंगों में ही रंगे होते हैं। दशकों से प्यार भरे युगल गीतों की परम्परा चली आई है, और एक से एक सुरीले युगल गीत हमें कलाकारों ने दिए हैं। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर इन दिनों आप सुन रहे हैं फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर से चु्ने हुए कुछ सदाबहार युगल गीत 'एक मैं और एक तू' लघु शृंखला के अंतर्गत। यह तो सच है कि केवल दस गीतों में हम सुनहरे दौर के सदाबहार युगल गीतों की फ़ेहरिस्त को समेट नहीं सकते। यह बस एक छोटी सी कोशिश है इस विशाल समुंदर में से कुछ दस मोतियाँ चुन लाने की जो फ़िल्म संगीत के बदलते मिज़ाज को दर्शा सके, कि किस तरह से ३० के दशक से लेकर ८० के दशक तक फ़िल्मी युगल गीतों का मिज़ाज, उनका रूप रंग बदला। ३०, ४० और ५० के दशकों से एक एक गीत सुनने के बाद आज हम क़दम रख रहे हैं ६० के दशक में। ६० का दशक, जिसे हम 'स्वीट सिक्स्टीज़' भी कहते हैं, और इस दशक में ही सब से ज़्यादा लोकप्रिय गीत बनें हैं। इसलिए हम इस दशक से एक नहीं बल्कि तीन तीन युगल गीत आपको एक के बाद एक सुनवाएँगे। इन गीतों का आधार हमने लिया है उन तीन गायिकाओं का जो इस दशक में सब से ज़्यादा सक्रीय रहे। ये गायिकाएँ हैं लता मंगेशकर, आशा भोसले और सुमन कल्याणपुर।

आज के अंक में प्रस्तुत है आशा भोसले और मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ों में फ़िल्म 'कश्मीर की कली' का सदाबहार युगल गीत "दीवाना हुआ बादल, सावन की घटा छायी"। युं तो यह १९६४ की फ़िल्म है, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है जैसे इस फ़िल्म के गीतों पर वक़्त की ज़रा सी भी आंच नहीं लग पायी है। आज भी इस फ़िल्म के तमाम गानें उसी रूप में ब-दस्तूर बजते चले जा रहे हैं जैसे फ़िल्म के प्रदर्शन के दौर में बजे होंगे। ओ. पी. नय्यर के ६० के दशक की शायद यह सफलतम फ़िल्म रही होगी। शम्मी कपूर, शर्मीला टैगोर और नज़ीर हुसैन अभिनीत इस फ़िल्म के गीत लिखे थे एस.एच. बिहारी साहब ने। शक्ति दा, यानी शक्ति सामंत की यह फ़िल्म थी, और आप में से कुछ दोस्तों को याद होगा कि शक्ति दा के निधन के बाद जब हमने उन पर एक ख़ास शृंखला 'सफल हुई तेरी आराधना' प्रस्तुत की थी, उसमें हमने इस फ़िल्म की विस्तारीत चर्चा की थी। आज इस गीत के बारे में बस यही कहना चाहते हैं कि इसके मुखड़े का जो धुन है, वह दरअसल नय्यर साहब ने एक पीस के तौर पर "आँखों ही आँखों में इशारा हो गया" गीत के इंटरल्युड म्युज़िक में किया था। यह १९५६ की फ़िल्म 'सी.आइ.डी' का गीत है, और देखिये इसके ८ साल बाद इस धुन का इस्तमाल नय्यर साहब ने दोबारा किया और यह गीत एक माइलस्टोन बन गया ना केवल उनके करीयर का बल्कि फ़िल्म संगीत के धरोहर का भी। तो आइए अब इस गीत का आनंद उठाते हैं। रुत तो नहीं है सावन की, लेकिन ऐसे मधुर गीतों की बौछार का तो हमेशा ही स्वागत है, है न!



क्या आप जानते हैं...
कि 'कश्मीर की कली' फ़िल्म साइन करने के वक़्त शर्मीला टैगोर की उम्र केवल १४ वर्ष थी।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली 5/शृंखला 06
गीत का ये हिस्सा सुनें-


अतिरिक्त सूत्र - किसी अन्य सूत्र की दरकार नहीं.

सवाल १ - लता जी के साथ किस गायक ने दिया है यहाँ - १ अंक
सवाल २ - गीतकार कौन हैं - २ अंक
सवाल ३ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी बहुत बढ़िया चल रहे हैं इस बार, प्रतिभा जी और रोमेंद्र जी बहुत दिनों में दिखे

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Tuesday, December 21, 2010

भुला नहीं देना जी भुला नहीं देना, जमाना खराब है दगा नहीं देना....कुछ यही कहना है हमें भी



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 553/2010/253

३० और ४० के दशकों से एक एक मशहूर युगल गीत सुनने के बाद 'एक मैं और एक तू' शुंखला में आज हम क़दम रख रहे हैं ५० के दशक में। इस दशक में युगल गीतों की संख्या इतनी ज़्यादा बढ़ गई कि एक से बढ़कर एक युगल गीत बनें और अगले दशकों में भी यही ट्रेण्ड जारी रहा। अनिल बिस्वास, नौशाद, सी. रामचन्द्र, सचिन देव बर्मन, शंकर जयकिशन, रोशन, ओ. पी. नय्यर, हेमन्त कुमार, सलिल चौधरी जैसे संगीतकारों ने एक से एक नायाब युगल गीत हमें दिए। अब आप ही बतायें कि इस दशक का प्रतिनिधित्व करने के लिए हम इनमें से किस संगीतकार को चुनें। भई हमें तो समझ नहीं आ रहा। इसलिए हमने सोचा कि क्यों ना किसी कमचर्चित संगीतकार की बेहद चर्चित रचना को ही बनाया जाये ५० के दशक का प्रतिनिधि गीत! क्या ख़याल है? तो साहब आख़िरकार हमने चुना लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी का गाया फ़िल्म 'बारादरी' का एक बड़ा ही ख़ूबसूरत युगलगीत "भुला नहीं देना जी भुला नहीं देना, ज़माना ख़राब है दग़ा नहीं देना जी दग़ा नहीं देना"। संगीतकार हैं नौशाद नहीं, नाशाद। नाशाद का असली नाम था शौक़त अली। उनका जन्म १९२३ को दिल्ली में हुआ था। बहुत छोटे उम्र से वो अच्छी बांसुरी बजा लेते थे और समय के साथ साथ उस पर महारथ भी हासिल कर ली। संगीत के प्रति उनका लगाव उन्हें बम्बई खींच लाया, जहाँ पर उन्हें उस समय के मशहूर संगीतकार मास्टर ग़ुलाम हैदर और नौशाद अली के साथ बतौर साज़िंदा काम करने का मौका मिला। नाशाद के बारे में एक दिलचस्प बात यह है कि इस नाम को धारण करने से पहले उन्होंने कई अलग अलग नामों से फ़िल्मों में संगीत दिया है। और ऐसा उन्होंने १९४७ से ४९ के बीच किया था। 'दिलदार', 'पायल' और 'सुहागी' फ़िल्मों में उन्होंने शौकत दहल्वी के नाम से संगीत दिया तो 'जीने दो' में शौकत हुसैन के नाम से, 'टूटे तारे' में शौकत अली के नाम से तो 'आइए' में शौकत हैदरी का नाम पर्दे पर आया। और 'दादा' फ़िल्म में उनका नाम आया शौकत हुसैन हैदरी। इन फ़िल्मों के एक आध गानें चले भी होंगे, लेकिन उनकी तरफ़ किसी का ध्यान नहीं गया। आख़िरकार १९५३ में निर्देशक और गीतकार नक्शब जराचवी ने उनका नाम बदलकर नाशाद कर दिया, और यह नाम आख़िर तक उनके साथ बना रहा। नक्शब ने अपनी १९५३ की फ़िल्म 'नग़मा' के लिए नाशाद को संगीतकार चुना, जिसमें अशोक कुमार और नादिरा ने अभिनय किया था।

नाशाद के नाम से उन्हें पहली ज़बरदस्त कामयाबी मिली सन् १९५५ में जब उनके रचे गीत के. अमरनाथ की फ़िल्म 'बारादरी' में गूंजे और सर्वसाधारण से लेकर संगीत में रुचि रखने वाले रसिकों तक को बहुत लुभाये। ख़ास कर आज के प्रस्तुत गीत ने तो कमाल ही कर दिया था। अजीत और गीता बाली पर फ़िल्माया यह गीत १९५५ के सबसे लोकप्रिय युगल गीतों में शामिल हुआ। ख़ुमार बाराबंकवी ने 'बारादरी' के गानें लिखे थे। इसी फ़िल्म में लता-रफ़ी का एक और युगल गीत "मोहब्बत की बस इतनी दास्तान है, बहारें चार दिन की फिर ख़िज़ाँ है" को भी लोगों ने पसंद किया। तलत महमूद की आवाज़ में "तसवीर बनाता हूँ तसवीर नहीं बनती" को भी ज़बरदस्त लोकप्रियता हासिल हुई और आज भी तलत साहब के सब से लोकप्रिय गीतों में शुमार होता है। आगे चलकर यह गीत भी ज़रूर शामिल होगा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर। ख़ुमार साहब ने हो सकता है कि बहुत ज़्यादा फ़िल्मी गानें नहीं लिखे हों, लेकिन जितने भी लिखे बहुत ही सुंदर और अर्थपूर्ण लिखे। नाशाद और ख़ुमार का इसी साल १९५५ में एक बार फिर से साथ हुआ था फ़िल्म 'जवाब' में, जिसमें भी तलत साहब के गाये लोरी "सो जा तू मेरे राजदुलारे सो जा, चमके तेरी क़िस्मत के सितारे राजदुलारे सो जा" को लोगों ने पसंद किया। वापस आते हैं आज के गीत पर। मैंडोलीन का बड़ा ही ख़ूबसूरत और असरदार प्रयोग इस गीत में नाशाद ने किया है और बंदिश भी कितनी प्यारी है। तो आइए अब मैं आपके और इस सुमधुर गीत के बीच में से हट जाता हूँ, कल फिर मुलाक़ात होगी ६० के दशक में। नमस्कार!



क्या आप जानते हैं...
कि नाशाद १९६६ में पाक़िस्तान स्थानांतरित हो गये थे और वहाँ जाकर 'सालगिरह', 'ज़ीनत', 'नया रास्ता', 'रिश्ता है प्यार का', 'फिर सुबह होगी' जैसी कुछ पाक़िस्तानी फ़िल्मों में संगीत दिया था।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली 4/शृंखला 06
गीत का ये हिस्सा सुनें-


अतिरिक्त सूत्र - किसी अन्य सूत्र की दरकार नहीं.

सवाल १ - आवाजें बताएं - १ अंक
सवाल २ - गीतकार कौन हैं - २ अंक
सवाल ३ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
इंदु जी आप बिल्कुल सही हैं, शरद जी और श्याम जी का मुकाबला दिलचस्प है

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Monday, December 20, 2010

वार्षिक समीक्षा....हमें इंतज़ार है आपकी राय का



ताज़ा सुर ताल - वार्षिक समीक्षा

सजीव - नये संगीत के चाहनेवालों का 'ताज़ा सुर ताल' के इस ख़ास अंक में बहुत बहुत स्वागत है, और सुजॊय तथा विश्व दीपक, आप दोनों का भी मैं स्वागत करता हूँ।

सुजॊय - नमस्कार आप दोनों को। कितनी जल्दी समय बीत जाता है, मुझे ऐसा लग रहा है जैसे अभी हाल ही में २०१० की वार्षिक समीक्षा की थी, और देखिए देखते ही देखते एक साल गुज़र गया।

विश्व दीपक - मेरी तरफ़ से भी आप दोनों को और सभी पाठकों को नमस्कार। आज बहुत ही अच्छा लग रहा है क्योंकि यह शायद पहला मौका है कि जब हम तीनों एक साथ किसी स्तंभ को प्रस्तुत कर रहे हैं। तो सजीव जी, आप ही बताइए कि हम तीनों मिलकर किस तरह से इस ख़ास अंक को आगे बढ़ाएँ।

सजीव - ऐसा करते हैं कि कुछ विभाग या कैटेगरीज़ बना लेते हैं ठीक उस तरह से जिस तरह से वार्षिक पुरस्कार दिए जाते हैं, जैसे कि सर्वश्रेष्ठ गीत, सर्वश्रेष्ठ संगीतकार वगैरह। हम तीनों हर विभाग के लिए दो दो गीत सुझाते हैं। इस तरह से हर विभाग के लिए ६ गीत चुन लिए जाएँगे। फिर हम अपने पाठकों पर छोड़ेंगे कि वो हर विभाग के लिए इन ६ गीतों में कौन सा गीत चुनते हैं। कहिए क्या ख़याल है?



सुजॊय - बहुत बढ़िया! तो चलिए शुरु करते हैं पहले कैटगरी से जो है 'सर्वश्रेष्ठ गीत'। इस साल बने इतने सारे गीतों में से किन दो गीतों को चुना जाये, यह एक बड़ी समस्या थी। आख़िर में मैंने सोचा कि दो ऐसे गीतों को चुनूँ जो थोड़े से ऒफ़बीट फ़िल्मों से हों। ये फ़िल्में भले ही ऒफ़बीट या कम चलने वाले रहे हों, लेकिन ये दो गीत उत्कृष्टता में दूसरे गीतों से कम नहीं हैं। पहला गीत है 'माधोलाल कीप वाकिंग' फ़िल्म का - "नैना लागे तोसे", जिसके तीन तीन वर्ज़न थे। मैंने भूपेन्द्र के गाये वर्ज़न को चुना है। और दूसरा गीत है आमिर ख़ान की ऒस्कर में जाने वाली फ़िल्म 'पीपलि लाइव' से रघुवीर यादव और साथियों का गाया "महंगाई डायन खाये जात है"।

विश्व दीपक - वाह! मैंने साल के सर्वश्रेष्ठ गीत के लिए जिन दो गीतों को निर्धारित किया है, उनमें से एक है फ़िल्म 'रावण' से "रांझा रांझा" तथा दूसरा गीत है "सजदा" 'माइ नेम इज़ ख़ान' फ़िल्म का। "रांझा रांझा" गीत के बारे में 'टी.एस.टी' में चर्चा करते वक़्त हमने इस बात का ज़िक्र भी किया था कि यह गीत वार्षिक टॊप-१० में शामिल होगा, और देखिए साल के अंत होने पर इस गीत ने हमारी बात का पूरा पूरा सम्मान किया है। और जहाँ तक "सजदा" की बात है, इसे भी तीन गायकों ने गाया है और यह गीत भी सूफ़ियाना अंदाज़ का है। इस तरह से मेरे चुने हुए दोनों सर्वश्रेष्ठ गीतों में कुछ समानता ज़रूर है। और सजीव जी, अब आप बताइए कि आप ने किन दो गीतों को चुना है।

सजीव - वर्ष २०१० के दो सर्वश्रेष्ठ गीतों के लिए मेरा नामांकन ये है- १. बस इतनी सी तुमसे गुज़ारिश है. २. तेरे मस्त मस्त दो नैन....गुज़ारिश के शीर्षक गीत मुझे क्यों इस हद तक पसंद है इस पर मै अपनी राय अपनी समीक्षा में कर चुका हूँ. इससे पहले भी फ़िल्मी गीतों में गायक/गायिका ने अपने लिए मौत मांगी है पर ये अंदाज़ एकदम अनूठा है और उस पर के के की गहराईयों में डूबी आवाज़ और संजय भंसाली का संगीत जहाँ ओपेरा स्टाइल में कुछ संवाद भी है, इस गीत को एक अलग ही मुकाम दे देते हैं. "तेरे मस्त मस्त दो नैन" सुनते सुनते कब मन में समां गया मै खुद नहीं जानता. वैसे इसके फिल्मांकन का भी इसमें हाथ है. फिल्म देखने से पहले मैंने बस एक दो बार ये गीत सुना था पर फिल्म के बाद इसे लगातार सुनता रहा, राहत साहब ने बहुत कशिश के साथ निभाया है इसे और संगीत संयोजन भी कमाल का है. एक और बात है कि ये गीत हर किसी को पसंद आता है, चाहे वो पुराने संगीत के शौकीन हो या आज के दौर के युवा हों। चलिए अब दूसरे कैटगरी पर आ जाते हैं, यह है 'सर्वश्रेष्ठ ऐल्बम' का। सर्वश्रेष्ठ अल्बम के लिए मैं नामांकित कर रहा हूँ - 'गुज़ारिश' और 'दबंग' को. 'गुज़ारिश' तो एक ऐसी अल्बम है जिसे मैं आज से ५ साल बाद भी इसी उत्साह से सुन पाऊंगा. 'दबंग' के गीतों का खालिस देसीपन मुझे बहुत भाया है. दो मशहूर गीतों के अलावा "चोरी किया", "हमका पीनी है" और शीर्षक गीत भी मुझे बेहद प्रभावी लगे. फिल्म की आपार सफलता में इसके संगीत का योगदान भी कम नहीं है।

सुजॊय - सजीव जी, जहाँ तक 'दबंग' की बात है, सल्लु मियाँ के फ़िल्मों के गानें हमेशा ही सुपर-डुपर हिट होते रहे हैं, और 'गुज़ारिश' में संजय लीला भंसाली ने भी अनोखा संगीत दिया है। आपके चुने इन दोनों फ़िल्मों को पूरा पूरा सम्मान देते हुए मैंने जिन दो फ़िल्मों को चुना है, वो हैं 'माइ नेम इस ख़ान' और 'मिस्टर सिंह ऐण्ड मिसिस मेहता'। 'माइ नेम इज़ ख़ान' की तो ख़ूब चर्चा हुई है, लेकिन दूसरे फ़िल्म के गानें लोगों तक पहुँच ही नहीं पाये जो कि बेहद अफ़सोस की बात है। सजीव और विश्व दीपक जी, आपको याद होगा कि इस फ़िल्म के निर्देशक ने हमें बधाई और धन्यवाद दिया था जब हमने इस फ़िल्म के गीतों का पॊज़िटिव रिव्यू 'टी.एस.टी.’ में पोस्ट किया था।

विश्व दीपक - बिल्कुल याद है और वाक़ई यह अफ़सोस की ही बात है कि इतना अच्छा संगीत अनसुना सा रह गया। और मुझे पूरा यकीन है कि प्रचलित व्यावसायिक पुरस्कारों में इसका कहीं नामोनिशान तक नहीं मिलेगा। इस मामले में 'आवाज़' का यह मंच बिल्कुल अलग है। हम जानते हैं अच्छे संगीत को किस तरह से सराहा जाता है। अच्छा, अब मैं उन दो फ़िल्मों के नाम बता दूँ जिन्हें मैंने चुने हैं। एक तो है 'पीपलि लाइव' और दूसरी फ़िल्म है 'स्ट्राइकर'। क्यों चौंक गये ना आप दोनों?

सजीव - 'पीपलि लाइव' तो ठीक है, लेकिन 'स्ट्राइकर' का नाम सुन कर थोड़ा चौंक ज़रूर गया था, लेकिन झट से यह अहसास भी हो गया और याद भी आ गया कि 'स्ट्राइकर' का संगीत बहुत अच्छा था। मुझे याद है कि इस फ़िल्म में ६ गीतकार और ६ संगीतकारों ने काम किया है और फ़िल्म के सभी गानें अच्छे बने हैं भले ही फ़िल्म ज्यादा ना चली हो। वैसे इस फिल्म की खासियत यह है कि यह हिन्दुस्तान की पहली फिल्म है, जिसे थियेटर में रीलिज के दिन हीं यूट्युब पर रीलिज किया गया था और यूट्युब पर इसे रिकार्ड हिट्स भी हासिल हुए थे। इस मामले में फिल्म को सफल कहा जा सकता है। 'माधोलाल कीप वाकिंग' और 'मिस्टर सिंह ऐण्ड मिसिस मेहता' की तरह इस कमचर्चित फ़िल्म के अच्छे संगीत को भी हम सलाम करते हैं। चलिए आगे बढ़ते हैं और ज़िक्र करते हैं 'सर्वश्रेष्ठ गायक' की। सुजॊय, तुम पहले बताओ कि कौन से गायकों को तुमने चुना है इस विभाग के लिए।

सुजॊय - पता नहीं क्या बात है उनकी आवाज़ में, लेकिन हर साल मुझे के.के की आवाज़ ही सर्वश्रेष्ठ आवाज़ लगती है, और देखिए इस साल के लिए भी एक नाम मैंने के.के का चुना है। युं तो कई फ़िल्मों में इन्होंने इस साल गाने गाये हैं, लेकिन जिस फ़िल्म में उनके गाये गीत सब से ज़्यादा मकबूल हुए वह फ़िल्म है 'काइट्स'। इस फ़िल्म में उन्ही के गाये दो गीत "ज़िंदगी दो पल की" और "दिल क्यों ये मेरा शोर करे" कामयाबी की बुलंदी तक पहँचे, और मेरी तरफ़ से भी के.के का नामंकन इन दो गीतों के लिए आ रहा है। दूसरा नामांकन है रघुवीर यादव का जिन्होंने 'पीपलि लाइव' में "महंगाई डायन" गाया है। एक और नामांकन देना चाहूँगा, वह है मोहित चौहान के नाम का, जिन्होंने 'वन्स अपोन ए टाइम' में "पी लूँ" गाया था। वैसे इस गीत में कार्तिक का गाया "आइ ऐम इन लव" भी मुझे बहुत पसंद है।

विश्व दीपक - 'सर्वश्रेष्ट गायक' के लिए मैंने दो ऐसे गायकों को चुना है जो सूफ़ी शैली में गायन के लिए जाने जाते हैं। इनमें से एक हैं कैलाश खेर और दूसरे हैं राहत फ़तेह अली ख़ान। कैलाश तो आजकल फ़िल्मी गीतों में थोड़े कम कम ही सुनाई दे रहे हैं, लेकिन राहत साहब के गाये गीत तो लगभग हर फ़िल्म में आ रहे हैं। तो कैलाश खेर का गाया जो गीत मैंने चुना है, वह है 'लव सेक्स और धोखा' फ़िल्म का "तू गंदी लगती है" तथा राहत साहब का गाया "दिल तो बच्चा है जी" फ़िल्म 'इश्क़िया' से। "दिल तो बच्चा है जी" क्यों चुना.. मुझे नहीं लगता कि इसकी वज़ह बताने की जरूरत भी पड़ेगी। हाँ, आप दोनों और सभी श्रोतागण (पाठकगण) "एल एस डी" के गाने के लिए कैलाश खेर का नाम देखकर हैरत में जरूर पड़ गए होंगे। दर-असल इस चुनाव का एक और एकमात्र कारण है "कैलाश खेर" की अनकन्वेशनल गायकी। इस गाने या फिर "एल एस डी" के टाईटल ट्रेक को सुनने के पहले किसी ने यह नहीं सोचा होगा कि कैलाश खेर ऐसा भी गाना गा सकते हैं.. ये गाने उनके अंदाज के थे हीं नहीं। फिर भी इन गानों को जिस तरह से "कैलाश खेर" ने गाया और गायकी की वज़ह से गाना जितना मक़बूल हुआ, उसमें कैलाश के महत्व को थोड़ा भी कम करना मुमकिन नहीं। मैं यहाँ पर "दिबाकर बनर्जी" को भी बधाई देना चाहूँगा, न सिर्फ़ वे ढर्रे से हटकर फिल्म बनाने में कामयाब हुए, बल्कि लीक से हटकर संगीत तैयार करवाने (संगीतकार: स्नेहा खनवल्कर) और बोल लिखने में भी सफल हुए। इस फिल्म ने यह भी साबित किया कि सेक्स शब्द से जुड़ी हर चीज निचले स्तर की नहीं होती.. खैर आगे बढते हैं!!!

सजीव - सुजॊय, तुम्हे यह जानकर अच्छा लगेगा कि सर्वश्रेठ गायक के रूप में एक बार फिर के.के हैं मेरे पसंदीदा 'गुज़ारिश' के शीर्षक गीत के लिए। के.के जो भी गाते हैं दिल से गाते हैं और यहाँ भी उनका वही जलवा बरकरार है। सोनू के क्या कहने, "स्ट्राईकर" का गीत इस वर्ष के सबसे मधुरतम मगर मुश्किल गीतों में से एक है और इसे इतना खास बनाने में सोनू की भूमिका सबसे अधिक है। यह गीत है "चम चम"। चलिए, अब बारी है 'सर्वश्रेष्ठ गायिका' की। सुनिधि चौहान ने जिस ऊर्जा के साथ "उडी" गाया है 'गुज़ारिश' में, वो लाजवाब है। सुनिधि को अधिकतर आईटम नंबर दिए जाते हैं. पर जब भी उन्हें मौका मिलता है वो दूसरे जेनर में भी कमाल कर जाती हैं. रेखा भारद्वाज ने "ससुराल गेंदाफूल" के बाद जैसे एक के बाद एक हिट गीतों की लड़ी लगा दी है. पर विशाल के लिए गाये 'इश्किया' के दो गीत बेमिसाल हैं. "बड़ी धीरे जली" की धुन और संगीत संयोजन पंचम की याद दिलाता है और रेखा ने जिस सहजता ने इस भावपूर्ण गीत को अंजाम दिया है, इसके लिए मेरा नामांकन उन्हें ही जाता है।

सुजॊय - के.के को मैंने 'काइट्स' के लिए चुना और आपने 'गुज़ारिश' के लिए। दोनों में जो बात कॊमन है, वह है हृतिक रोशन। जहाँ तक गायिका का सवाल है, मैंने जिन दो गायिकाओं को चुना है, वो हैं कविता सेठ, जिन्होंने फ़िल्म 'राजनीति' में आदेश श्रीवास्तव के संगीत में शास्त्रीय रचना "मोरा पिया मोसे बोलत नाही" गाया है। समीर ने इस गीत को लिखा है। और दूसरी गायिका हैं नगीन तनवीर, जिन्होंने 'पीपलि लाइव' में "चोला माटी के राम" गाया था। इस गीत को सुनते हुए एक अलग ही अनुभूति होती है। एक अनोखी आवाज़, सब से अलग सब से जुदा। काश उन्हें इस साल का सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायिका का पुरस्कार दिया जाए!

विश्व दीपक - 'वीर' के लिए सजीव जी ने तो रेखा भारद्वाज का नाम मनोनीत कर ही दिया है, मैं भी करने वाला था। चलिए दो और नाम सुझाता हूँ। एक हैं श्रेया घोषाल, जिन्होंने 'ऐक्शन रीप्ले' में "ओ बेख़बर" गाया है। और दूसरा नाम है शिल्पा राव, जिन्होंने 'लफ़ंगे परिंदे' में "नैन परिंदे" गाया है।

सजीव - वाह! बहुत ही सुरीला पसंद है वी.डी भाई, निस्संदेह ये दोनों गीत इस साल के दो बेहतरीन गीतों में से हैं। अब अगले कैटगरी की बारी। 'सर्वश्रेष्ठ युगल गीत' की बात करें तो 'झूठा ही सही' का जावेद और श्रेया का गाया "क्राई क्राई" मुझे बहुत भाया। गाने का थीम अलग है और एक्सप्रेशंस दोनों के कमाल के हैं। 'खेलें हम जी जान से' में "सपने सलोने" अख्तर साहब ने लिखा है और सोहेल सेन और पामेला जैन ने प्यार और कर्तव्य के द्वंद्व को बहुत खूबी से उभारा है।

सुजॊय - युगल गीतों में पहला गीत मैं चुनूँगा फ़िल्म 'वीर' का, "सलाम आया"। इस साल के शुरु शुरु में यह फ़िल्म आयी थी, फ़िल्म तो नहीं चली लेकिन इस गीत ने काफ़ी लोकप्रियता हासिल कर ली थी। रूप कुमार राठोड़ और श्रेया घोषाल ने इस गीत को गाया है। वैसे सुज़ेन डी'मेलो ने भी अपनी आवाज़ दी है, इस तरह से यह युगल गीत तो नहीं है, लेकिन फिर भी मैंने इसे चुन लिया। साजिद वाजिद ने गुलज़ार के बोलों को बहुत ही मीठे धुनों में पिरोया, और साबित किया कि अच्छे बोल मिले तो संगीतकार अच्छा काम कर ही निकलता है। और दूसरा गाना है फ़िल्म 'खट्टा मीठा' का, "सजदे किए हैं लाखों", के.के और सुनिधि चौहान की आवाज़ों में। लोक शैली (बंगाल की लोकधुनों पर आधारित) में प्रीतम ने इस गीत को स्वरबद्ध किया है जो मुझे पसंद है। विश्व दीपक जी, आपने किन दो युगल गीतों को चुना है?

विश्व दीपक - एक तो है फ़िल्म 'लम्हा' का "मदनो", जिसे क्षितिज तारे और चिनमयी ने गाया है, तथा दूसरा गीत है फ़िल्म 'दबंग' का "चोरी किया रे जिया" जो सोनू निगम और श्रेया घोषाल की आवाज़ों में है। रोमांटिक डुएट्स में साजिद वाजिद हमेशा ही अच्छा काम दिखाते आये हैं, जैसे कि 'मुझसे शादी करोगी' के तमाम गीत और जैसा कि ऊपर आप ने 'वीर' का "सलाम आया" चुना है। 'लम्हा' में संगीत था मिथुन का और इस गीत को भी अच्छा रेस्पॊन्स मिला था, भले ही फ़िल्म बॊक्स ऒफ़िस पर असफल रही हो। चलिए अब आगे बढ़ते हैं अगले कैटगरी की ओर, और यह कैटगरी वह कैटगरी है जिसके बग़ैर शायद आज फ़िल्में बनती ही नहीं है। जी हाँ, आइटम नंबर। 'सर्वश्रेष्ठ आइटम सॊंग' के लिए जो दो गीत मैं सुझा रहा हूँ, उनमें एक है फ़िल्म 'वन्स अपोन ए टाइम' का "परदा"। यह दर-असल एक रीमिक्स नंबर है। ७० के दशक के दो जबरदस्त राहुल देब बर्मन हिट्स "दुनिया में लोगों को" और "मोनिका ओ माइ डारलिंग" को मिलाकर इस गीत का आधार तय्यार किया गया है और उसमें नए बोल डाले गए हैं "परदा परदा अपनों से कैसा परदा"। एक तरह से ट्रिब्यूट सॊंग माना जा सकता है उस पूरे दशक के नाम। सुनिधि चौहान इस तरह के गीतों को तो ख़ूब अंजाम देती है ही है, लेकिन आर. डी. बर्मन जैसी आवाज़ निकालने वाले गायक राना मजुमदार को भी दाद देनी ही पड़ेगी। और दूसरा आइटम सॊंग है फ़िल्म 'राजनीति' का "इश्क़ बरसे"। प्रणब बिस्वास, हंसिका अय्यर और स्वानंद किरकिरे की आवाज़ों में यह गीत एक मस्ती भरा गीत है। 'लागा चुनरी में दाग' फ़िल्म के "हम तो ऐसे हैं भ‍इया" की थोड़ी बहुत याद आ ही जाती है इस गीत को सुनते हुए। स्वानंद किरकिरे क्रमश: एक ऐसे गीतकार की हैसियत रखने लगे हैं जिनकी लेखन शैली में एक मौलिकता नज़र आती है। भीड़ से अलग सुनाई देते हैं उनके लिखे हुए गीत। और भीड़ से अलग है शांतनु का संगीत भी।

सुजॊय - आइटम सॊंग्स में मैं सब से पहले नाम लूँगा मुन्नी का, यानी "मुन्नी बदनाम हुई", फ़िल्म 'दबंग' से। यह गीत जितनी वितर्कित रही, उतनी ही लोकप्रिय भी साबित हुई। और दूसरा गीत है फ़िल्म 'आक्रोश' का "तेरे इसक से मीठा कुछ भी नहीं"। "बीड़ी" जलै ले" जैसी बात तो इन दोनों में ही नहीं आ पायी, लेकिन इस साल के आइटम गीतों की लिस्ट को देखते हुए मुझे ये गीत ही ठीक लगे। सजीव, आपका क्या कहना है?

सजीव - "मुन्नी" को सुजॉय नामांकित कर चुके हैं, तो मैं 'शीला' को चुन लेता हूँ। "शीला, शीला की जवानी", फ़िल्म 'तीस मार खान' का। वैसे गाना एवरेज ही है पर बीट्स और अंतरों में कव्वाली के पुट से गाने में जान आती है। 'हाउसफ़ुल' के "धन्नो" में पुराने अमिताभ के हिट गीत का तडका काफी जमता है. वाकई इसे सुनकर थिरकने का मन होता है। 'सर्वश्रेष्ठ भावप्रधान गीत' की बात करें तो "मिस्टर सिंह और मिसेस मेहता" में दिल्ली की कुड़ी रिचा शर्मा की सशक्त अभिव्यक्ति वाला गीत "फ़रियाद है" और शंकर महादेवन का ऊंची पट्टी पर गाया शुद्ध कवितामय गीत "धुंधली धुंधली शाम हुई" मेरी नज़र में सर्वश्रेष्ठ हैं।

विश्व दीपक - ईमोशनल कैटगरी के लिए पहला गीत मेरी पसंद का होगा फ़िल्म 'झूठा ही सही' का "दो निशानियाँ"। एक और सुंदर कम्पोज़िशन, और सोनू निगम और रहमान का वही पुराना "दिल से" वाला अंदाज़ वापस आ गया है। एक धीमी लय वाला, कोमल और सोलफ़ुल गीत। पियानो की लगातार बजने वाली ध्वनियाँ गीत के ऒरकेस्ट्रेशन का मुख्य आकर्षण है। थोड़ा सा ग़मगीन अंदाज़ का गाना है लेकिन सोनू ने जिस पैशन के साथ इसे निभाया है, यह इस ऐल्बम का एक महत्वपूर्ण ट्रैक बन गया है यकीनन। दूसरा भावप्रधान गीत जो मैं चुन रहा हूँ, वह है फ़िल्म 'अंजाना अंजानी' का "तुझे भुला दिया ओ"। इस गीत की ख़ासियत है कि इसे दो गीतकारों ने लिखा है। विशाल दादलानी ने भी लिखा है, और क़व्वाली वाला हिस्सा लिखा है गीतकार कुमार ने।

सुजॊय - मैं इस कैटगरी के लिए दो भक्तिमूलक गीत चुन रहा हूँ। इस साल यह देखा गया है कि कई फ़िल्मों में सूफ़ी गीतों के अलावा भी भक्ति रस के गीत आये हैं। मेरी नज़र में जो दो श्रेष्ठ रचनाएँ हैं, वो हैं जगजीत सिंह की आवाज़ में "फूल खिला दे शाखों पर", फ़िल्म 'लाइफ़ एक्सप्रेस' का यह गीत, तथा 'माइ नेम इज़ ख़ान' का "अल्लाह ही रहम" जिसे राशिद खान ने गाया है। इन दोनों गीतों के बारे में ज़्यादा कुछ नहीं कहना चाहिए, बल्कि सिर्फ़ सुन कर महसूस करना चाहिए। चलिए बढ़ते हैं आगे और चुनते हैं 'सर्वश्रेष्ठ गीतकार' के लिए दो दावेदार। मैं इस साल दो वरिष्ठ गीतकारों को ही चुन रहा हूँ, जिनके बारे में अलग से कुछ कहने की कोई ज़रूरत ही नहीं है। बस गानें बता रहा हूँ, गुलज़ार ("दिल तो बच्चा है जी" - 'इश्क़िया') तथा जावेद अख़्तर ("ये देस है मेरा" - 'खेलें हम जी जान से')।

सजीव - गीतकारों में गुज़ारिश के दो नवोदित गीतकारों ने मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया है. इस फिल्म से पहले मैंने इनके नाम भी नहीं सुने थे पर "सौ ग्राम जिंदगी" लिख कर विभु पुरी और "जाने किसके ख्वाब" जैसे गीत लिख कर ए एम् तुराज़ ने इंडस्ट्री में नए और काबिल गीतकारों की सूची में अपना नाम दर्ज करा लिया है।

विश्व दीपक - मैं तीन नाम चुन रहा हूँ - गुलज़ार ("तुमसे क्या कहना है" - दस तोला, "कान्हा" - वीर), अमिताभ भट्टाचार्य ("आज़ादियाँ" - उड़ान, "तरक़ीबें" - बैण्ड बाजा बारात) एवं इरशाद कामिल ("सौदेबाज़ी", "इसक से मीठा" - आक्रोश, "पी लूँ" - वन्स अपोन ए टाइम इन मुंबई)। तीन इसलिए क्योंकि सुजॉय जी गुलज़ार साहब को पहले हीं चुन चुके हैं। इरशाद कामिल ऐसे गीतकार हैं जो सीधे-सादे शब्दों से सौदेबाजी करके सीधे दिल की नसों को पकड़ लेते है। एक हीं गीतकार ऐसा है, जिसने पिछले साल प्यार में डूबे पंछियों को "तेरा होने लगा हूँ" जैसा एंथम दिया था.. और इस बार "पी लूँ" या फिर "भींगी-सी भागी-सी" जैसे नशीले तोहफ़े दिए। मैं इरशाद साहब की लेखनी का कायल हूँ, इसलिए जब गुलज़ार साहब और जावेद साहब का नामांकन हो चुका था, तो मुझे सीधे इनकी याद हुई। जहाँ इरशाद साहब नर्मोनाजुक शब्दों से गीतों का जाल बुनते हैं, वहीं एक गीतकार ऐसा है, जो आज की पीढी को ध्यान में रखकर शब्दों का तानाबाना गढता है। मैंने जब "बैंड बाजा बारात" और "नो वन किल्ड जेसिका" की समीक्षाएँ लिखी थीं, तो इन महानुभाव, जिनका नाम अमिताभ है, का ज़िक्र विशेष तौर पर किया था।

सुजॊय - गीतकार के बाद अब 'सर्वश्रेष्ठ संगीतकार' की बारी। मैं अपने वोट 'मिस्टर सिंह ऐण्ड मिसेस मेहता' तथा 'रावण' को दे रहा हूँ। वैसे तो और भी बहुत से फ़िल्मों में कामयाब गीत आये हैं, लेकिन अगर पूरे ऐल्बम की बात करें तो मुझे ये दो ऐल्बम ठीक लगे, वैसे 'पीपलि लाइव' और 'माइ नेम इज़ ख़ान' भी इसके हक़दार हैं। लेकिन क्योंकि मुझे दो ही नाम चुनने हैं, इसलिए उस्ताद शुजात हुसैन ख़ान और ए. आर. रहमान को ही मैं अपना वोट दे रहा हूँ। विश्वदीपक जी, आपने किन दो संगीतकारों को चुना है?

विश्व दीपक - मैं दो ऐसे संगीतकारों को चुन रहा हूँ जिन्होंने जितनी भी फ़िल्मों में संगीत दिया इस वर्ष, कामयाब दिया। ये हैं अमित त्रिवेदी ('उड़ान', 'आयशा') तथा विशाल-शेखर ('आइ हेट लव स्टोरीज़', 'अंजाना अंजानी', 'ब्रेक के बाद')। सजीव जी, अब आपकी बारी, आपकी राय में कौन हैं सर्वश्रेष्ठ संगीतकार २०१० के?

सजीव - 'गुज़ारिश' के ही "तेरा ज़िक्र" गीत के लिए और "खेले हम जी जान से" के शीर्षक गीत के लिए मेरा नामांकन संजय लीला भंसाली और सोहैल सेन को जाता है संगीतकार श्रेणी में। संजय ने सीमित साजों का इस्तेमाल कर जहाँ संगीत को माधुर्य और शब्द गरिमा दी है वहीं सोहैल ने किशोर लड़कों के लिए बने गीत में परफेक्ट टोन और ओर्केस्टएशन देकर उसे एक यादगार गीत बना दिया है। और अब आख़िरी कैटगरी की बारी, और यह है 'सर्वश्रेष्ठ फ़िल्मांकन'। यानी बेस्ट कोरीओग्राफ़्ड सॊंग। फिल्मांकन की बात करें तो 'गुज़ारिश' के "उडी" का कोई जवाब नहीं। एश्वर्या की सुंदरता और उनका नृत्य दोनों ही किसी जादू से कम नहीं है इस गीत में। "तेरे मस्त मस्त दो नैन" का फिल्मांकन शानदार है। सामान्य सड़क पर चलते हुए, रोज़मर्रा के चेहरों की भीड़ में कैसे कोई व्यक्ति सपनों में पहुँच जाता है जहाँ वही आस पास की दुनिया, वही लोग उसके साथ होते है उसकी खुशी में, बेहद दिलचस्प है सब पर्दे पर देखना।

सुजॊय - पता नहीं इस विभाग में मैं न्याय कर पाऊँगा कि नहीं क्योंकि मैंने इस साल पर्दे पर ज़्यादा फ़िल्में देखी नहीं है, हाँ कुछ गानें टीवी पर ज़रूर देखे हैं। उन्हीं में से मैं दो गीत सुझाता हूँ। एक तो है 'कार्तिक कॊलिंग कार्तिक' का "उफ़ तेरी अदा" और दूसरा है 'हाउसफ़ुल' फ़िल्म का "वाल्युम कम कर पप्पा जग जाएगा"। और विश्व दीपक जी, आप भी बताइए कि आपके हिसाब से कौन से गानों की शानदार फ़िल्मांकन हुआ है।

विश्व दीपक - पहला गीत है "छान के मोहल्ला", फ़िल्म 'ऐक्शन रीप्ले' का, और दूसरा है 'रोबोट' फ़िल्म का "नैना मिले"। "छान के मोहल्ला" एक पारंपरिक होली गीत की तरह पिक्चराईज़ न होकर अलग हीं रंग और ढंग से फिल्मांकित हुआ लगता है। इस गाने में कई सारे डांसरों का इस्तेमाल किया गया है, जो पूरी तरह "सिंक" में हैं। इसलिए मुझे यह गीत बहुत पसंद है। जहाँ तक "रोबोट" की बात है तो इस फिल्म और इस फिल्म से जुड़े हर दृश्य की बात हीं निराली है। बस "नैना मिले हीं क्यों", इस फिल्म में ऐसा कौन-सा गाना है जो किसी खास अंदाज में न फिल्माया गया हो। रजनीकांत और ऐश्वर्या की जोड़ी हर गाने में कमाल की नज़र आई है, लेकिन इस गाने में ऐश्वर्या ने तो "डांस" के अपने पुराने रिकार्ड्स पीछे छोड़ दिए हैं। इसलिए सारे गानों में से मैंने इसे प्राथमिकता दी है। आप दोनों ने शायद यब बात गौर की होगी कि जिन छ: गानों को हमने नामांकित किया है, उनमें से तीन में ऐश्वर्या है। फिर न जाने क्यों लोग ऐश्वर्या की काबिलियत पर ऊंगली उठाते हैं!! चलिए आगे बढते हैं।

सजीव - तो हमें मिल गये हैं इन सभी श्रेणियों के लिए ६ ६ नामांकन, अब हम ज़िम्मा अपने श्रोताओं व पाठकों पर ही छोड़ते हैं कि हर श्रेणी में अपना वोट किसे दें। आपको ऊपर दिए हुए पूल बॉक्स में जाकर अपना मत देना है.

सुजॊय - तो इसी के साथ आज का यह चर्चा हम समाप्त कर सकते हैं, लेकिन आज एक ऐसा गीत ज़रूर सुन सकते हैं जिसकी चर्चा उपर नहीं हुई है। बहुत ही स्पेशल है यह गीत इस लिहाज़ से कि इसे लता मंगेशकर ने गाया है, और हाल ही में रिलीज़ हुई 'डोन्नो व्हाई न जाने क्यों' फ़िल्म का यह गीत है। फ़िल्म के ना चलने से इस गीत की तरफ़ बहुत कम लोगों का ही ध्यान गया है। लता जी का नाम आज के दौर के कलाकारों के साथ नामांकित करना हमें शोभा नहीं देता, इसलिए उन्हें हमने इस चर्चा से अलग ही रखा है। लेकिन इस विशेषांक को समाप्त करते हुए उनका गाया यह गीत ज़रूर सुन सकते हैं।

गीत - डोन्नो व्हाई न जाने क्यों


सजीव - चलिए अब सब हम अपने दोस्तों पर छोड़ते हैं, आपके वोटों का नतीजा हम लेकर उपस्थित होंगें ३१ तारीख़ को टी एस टी के विशेष एपिसोड में, आपके पास वोट करने के लिए २९ तारीख़ रात ११.४५ तक का टाइम है. एक बात और हम आपको बता दें कि अगले साल से टी एस टी संवाद रूप में नहीं होगा, इसे मैं या वी डी आपके लिए लेकर आयेगें एकल प्रस्तुति के रूप में. सुजॉय जी अगले वर्ष से हर रविवार लेकर आयेंगें शास्त्रीय संगीत पर आधारित एक नयी शृंखला. आशा है आप इस नयी शृंखला को भी भरपूर स्नेह देंगें.

संग्रहालय

25 नई सुरांगिनियाँ