एक रात में सौ बार जला और बुझा हूँ...नए संगीत के तीसरे सत्र की शुरूआत, नजीर बनारसी के कलाम और रफीक की आवाज़ से
Season 3 of new Music, Song # 01
दोस्तो, कहते है किसी काम को अगर फिर से शुरू करना हो, तो उसे वहीं से शुरू करना चाहिए जहाँ पर उसे छोड़ा गया था. आज आवाज़ के लिए ख़ास दिन है. 29 दिसंबर को हमने जिस सम्मानजनक रूप से नए संगीत को दूसरे सत्र को अलविदा कहा था, उसी नायाब अंदाज़ में आज हम स्वागत करने जा रहे हैं नए संगीत के तीसरे सत्र का. हमने आपको छोड़ा था रफीक भाई की सुरीली आवाज़ पर महकती एक ग़ज़ल पर, तो आज एक बार फिर संगीत के नए उभरते हुए योद्धाओं के आगमन का बिगुल बजाया जा रहा हैं उसी दमदार मखमली आवाज़ से. जी हाँ दोस्तों, सीज़न 3 आरंभ हो रहा है नजीर बनारसी के कलाम और रफीक शेख की जादू भरी अदायगी के साथ. रफीक हमारे पिछले सत्र के विजेता रहे हैं जिनकी 3 ग़ज़लें हमारे टॉप 10 गीतों में शामिल रहीं, और जिन्हें आवाज़ की तरफ से 6000 रूपए का नकद पुरस्कार भी प्राप्त हुआ था, इस बार भी रफीक इस शानदार ग़ज़ल के साथ अपनी जबरदस्त शुरूआत करने जा रहे हैं नए सत्र में। नजीर बनारसी की ये ग़ज़ल उन्हें उनके एक मित्र के माध्यम से प्राप्त हुई है, नजीर साहब वो उस्ताद शायर हैं जिनके बोलों को जगजीत सिंह और अन्य नामी फनकारों ने कई-कई बार अपने स्वरों से सजाया है, याद कीजिये "कभी खामोश बैठोगे, कभी कुछ गुनगुनाओगे..." या फिर "एक दीवाने को ये आये हैं समझाने..." जैसी उत्कृष्ट ग़ज़लें. दुर्भाग्यवश नजीर साहब के बारे बहुत अधिक जानकारी हमारे पास उपलब्ध नहीं हैं, हम गुजारिश करेंगें कि यदि आप में से कोई श्रोता उनके बारे कोई जानकारी हमें दे सकतें हैं तो अवश्य दें. हालाँकि ये ग़ज़ल उनकी अनुमति के बिना ही संगीतबद्ध हो कर यहाँ प्रसारित हो रही है, पर हमें पूरा यकीन है कि इस ग़ज़ल को सुनने के बाद नजीर साहब या उनके चाहने वालों को इस गुस्ताखी पर शिकायत की बजाय ख़ुशी अधिक होगी। तो पेश है दोस्तों, ये ग़ज़ल "एक रात में ...."
ग़ज़ल के बोल -
एक रात में सौ बार जला और बुझा हूँ, मुफलिस का दीया हूँ मगर आंधी से लड़ा हूँ.
वो आईना हूँ कभी कमरे में सजा था, अब गिर के जो टूटा हूँ तो रस्ते में पड़ा हूँ.
मिल जाऊँगा दरिया में तो हो जाऊँगा दरिया, सिर्फ इसलिए कतरा हूँ, समुन्दर से जुदा हूँ.
दुनिया से निराली है 'नजीर' अपनी कहानी, अंगारों से बच निकला हूँ फूलों से जला हूँ.
मेकिंग ऑफ़ "एक रात में..." - रफीक शेख (गायक/संगीतकार) के शब्दों में मुझे ये ग़ज़ल रफीक सागर जी , जो रजा हसन के पिताजी हैं, उन्होंने दी थी. ये इतनी प्यारी ग़ज़ल है और बहुत ही सीधी भाषा में है जो सबको समझ में आएगी, इसके हर शेर ऐसा है कि सबको लगता है कि बस मेरी ही कहानी बोली जा रही है. कामियाबी पाना इतना आसान नहीं है, फिर भी जब हम किसी कामियाब इंसान को देखते हैं तो बड़ी आसानी से कहते हैं, कि 'भाई साहब आपके तो मजे हैं, गाडी बंगला सब कुछ है आपके पास', मगर हम ये नहीं जानते हैं कि उन चीजों को हासिल करने के लिए उस शख्स को क्या क्या करना पड़ा होगा....उसी को शायर इस अंदाज़ में कहता है कि "एक रात में सौ बार जला और बुझा हूँ, मुफलिस का दिया हूँ मगर आंधी से लड़ा हूँ...". इस ग़ज़ल का हर शेर लाजावाब तो है ही, मगर जो मक्ता है उसका क्या कहना...बड़ी सीधी भाषा में शायर कहता है कि "दुनिया से निराली है 'नजीर' अपनी कहानी, अंगारों से बच निकला हूँ फूलों से जला हूँ...", उम्मीद करता हूँ कि आप सब को ये पेशकश पसंद आएगी...."
असल में ये गाने किसी एल्बम का हिस्सा नहीं है। ये बिलकुल नये-ताज़े गीत हैं, जिन्हें एक-एक करके हम रीलिज कर रहे हैं। असल में हिन्द-युग्म नये कलाकारों को मौका देने के लिए हर साल संगीत के सत्र आयोजित करता है। यह संगीता का तीसरा सत्र है।
आईना हूँ कभी कमरे में सजा था,
ReplyDeleteअब गिर के जो टूटा हूँ तो रस्ते में पड़ा हूँ.
बेहद ही खुबसूरत प्रस्तुती, शुभकामनाये.
regards
बहुत ही कमाल की आवाज़ है और ग़ज़ल का जवाब नहीं
ReplyDeleteआवाज़ और ग़ज़ल दोनों बहुत पसन्द आए ..बधाई हो |
ReplyDeleteहाय कोई साबुत बचा हो तो बताये
उसी राह का मुसाफिर हूँ रकीबों से मिला हूँ
Wow... great voice,heart touching poetry and melodious music...congrats
ReplyDeleteमिल जाऊँगा दरिया में तो हो जाऊँगा दरिया,
ReplyDeleteसिर्फ इसलिए कतरा हूँ, समुन्दर से जुदा हूँ....
waahhh.. wat a gazal... Ruhaani awaaz... dilkash sangeet, maza aa gaya...
iski cd kaha milengi ?
बहुत मोहक प्रस्तुति .......
ReplyDeleteप्रीति जी,
ReplyDeleteअसल में ये गाने किसी एल्बम का हिस्सा नहीं है। ये बिलकुल नये-ताज़े गीत हैं, जिन्हें एक-एक करके हम रीलिज कर रहे हैं। असल में हिन्द-युग्म नये कलाकारों को मौका देने के लिए हर साल संगीत के सत्र आयोजित करता है। यह संगीता का तीसरा सत्र है।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDelete- कुहू
पता नहीं अब तक क्यों नहीं सुनी थी ये गजल मैंने...लेकिन आज सुनते ही मन को हिला सी गयी...बहुत ही खूबसूरत आवाज़ और शब्द भी...
ReplyDeleteमुझे लगता है कि इस गजल की एक- लाइन...यूं कहें एक एक अल्फाज पर अगर सौ-सौ बार भी दाद दें तो कम होगा.......लाजवाब पैकेज...पूरी टीम को बहुत बहुत साधुवाद
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