ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 749/2011/189
रागदारी संगीत में प्रचलित थाट प्रणाली पर परिचयात्मक श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की नौवीं कड़ी में, मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आपका स्वागत करता हूँ। आज बारी है थाट ‘तोड़ी’ से परिचय प्राप्त करने की। श्रृंखला की अभी तक की कड़ियों में हमने उत्तर भारतीय संगीत में प्रचलित थाट प्रणाली को रेखांकित करने का प्रयास किया है। आज की कड़ी में हम दक्षिण भारतीय संगीत में प्रचलित प्राचीन थाट व्यवस्था पर चर्चा करेंगे।
दक्षिण भारतीय संगीत पद्यति के विद्वान पण्डित व्यंकटमखी ने थाटों की संख्या निश्चित करने के लिए गणित को आधार बनाया और पूर्णरूप से गणना कर थाटों की कुल संख्या ७२ निर्धारित की। इनमें से उन्होने १९ व्यावहारिक थाटों का चयन किया। व्यंकटमखी की थाट संख्या को दक्षिण भारतीय संगीतज्ञों ने तो अपनाया, किन्तु उत्तर भारत के संगीत पर इसका विशेष प्रभाव नहीं हुआ। उत्तर भारतीय संगीत के विद्वान पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे ने रागों के वर्गीकरण के लिए १० थाट प्रणाली को अपनाया और रागों का वर्गीकरण किया, जो आज तक प्रचलित है। थाट का उद्देश्य मात्र राग के शुद्ध और विकृत स्वरों को चिन्हित करना है। चूँकि एक थाट के गठन के लिए सप्तक के सातों स्वरों का होना आवश्यक है, अतः यह भी आवश्यक है कि थाट सम्पूर्ण हो।
आइए आज आपका परिचय ‘तोड़ी’ थाट से कराते हैं। इस थाट में प्रयोग होने वाले स्वर हैं- सा, रे॒, ग॒, म॑, प, ध॒, नि अर्थात ऋषभ, गांधार और धैवत स्वर कोमल, मध्यम तीव्र तथा शेष स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते है। इस थाट का आश्रय राग ‘तोड़ी’ ही कहलाता है। तोड़ी के अलावा इस थाट का एक अन्य प्रमुख राग है- मुलतानी। राग ‘तोड़ी’ एक सम्पूर्ण राग है, जिसके आरोह में- सा, रे॒, ग॒, म॑प, ध॒, निसां स्वरों का तथा अवरोह में- सांनिध॒प, म॑ग, रे॒, सा स्वरों का प्रयोग होता है। इस राग का वादी स्वर धैवत और संवादी स्वर गांधार होता है तथा राग के गायन-वादन का समय दिन का दूसरा प्रहर माना जाता है।
आज की कड़ी में हम आपको राग तोड़ी पर आधारित एक मोहक गीत सुनवाएँगे, जिसके बोल हैं- ‘जागो रे जागो प्रभात आया...’। यह गीत हमने १९६४ में प्रदर्शित फिल्म ‘सन्त ज्ञानेश्वर’ से लिया है, जिसके संगीतकार लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल हैं। फिल्म ‘सन्त ज्ञानेश्वर’ इस संगीतकार जोड़ी की प्रारम्भिक फिल्मों में से एक थी। इस दौर में लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल ने राग आधारित कई अच्छे गीतों को संगीतबद्ध किया था। शास्त्रीयता को सुगम धुनों में ढालने की कला में कुशल इस संगीतकर जोड़ी ने फिल्म ‘सन्त ज्ञानेश्वर’ में राग शिवरंजिनी, भैरवी और तोड़ी रागों पर आधारित अच्छे गीतों की रचना की थी, इन्हीं में एक राग तोड़ी पर आधारित यह गीत भी सम्मिलित है। गायक मन्ना डे के स्वरों में यह गीत अधिक भावपूर्ण बन गया है। एकताल में निबद्ध इस गीत के गीतकार भरत व्यास हैं। आइए सुना जाये, राग ‘तोड़ी’ पर आधारित यह गीत-
और अब एक विशेष सूचना:
२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।
इन तीन सूत्रों से पहचानिये अगला गीत -
१. स्वयं संगीतकार ने इसे स्वर दिया है.
२. फिल्मकार हैं बी आर चोपडा.
३. एक अंतरे का अंतिम शब्द है - "गली".
अब बताएं -
किस राग आधारित है गीत - ३ अंक
गीतकार का नाम बताएं - २ अंक
संगीतकार एवं गायक कौन हैं - २ अंक
सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.
पिछली पहेली का परिणाम-
आजकल अमित जी को काफी समय मिल जाता है, काश कि उन्हें कोई सही टक्कर दे...
खोज व आलेख- कृष्ण मोहन मिश्र
नए साल के जश्न के साथ साथ आज तीन हिंदी फिल्म जगत के सितारे अपना जन्मदिन मन रहे हैं.ये नाना पाटेकर,सोनाली बेंद्रे और गायिक कविता कृष्णमूर्ति.
नाना पाटेकर उर्फ विश्वनाथ पाटेकर का जन्म १९५१ में हुआ था.नाना पाटेकर का नाम उन अभिनेताओं की सूची में दर्ज है जिन्होंने अभिनय की अपनी विधा स्वयं बनायी.गंभीर और संवेदनशील अभिनेता नाना पाटेकर ने यूं तो अपने फिल्मी कैरियर की शुरूआत १९७८ में गमन से की थी,पर अंकुश में व्यवस्था से जूझते युवक की भूमिका ने उन्हें दर्शकों के बीच व्यापक पहचान दिलायी.समानांतर फिल्मों में दर्शकों को अपने बेहतरीन अभिनय से प्रभावित करने वाले नाना पाटेकर ने धीरे-धीरे मुख्य धारा की फिल्मों की ओर रूख किया.क्रांतिवीर और तिरंगा जैसी फिल्मों में केंद्रीय भूमिका निभाकर उन्होंने समकालीन अभिनेताओं को चुनौती दी.फिल्म क्रांतिवीर के लिए उन्हें १९९५ में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरष्कार मिला था.इस पुरष्कार को उन्होंने तीन बार प्राप्त करा.पहली बार फिल्म परिंदा के लिए १९९० में सपोर्टिंग एक्टर का और फिर १९९७ में अग्निसाक्षी फिल्म के लिए १९९७ में सपोर्टिंग एक्टर का.४ बार उन्हें फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला.एक एक बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और सपोर्टिंग एक्टर का और दो बार सर्वश्रेष्ठ खलनायक का.
सोनाली बेंद्रे का जन्म १९७५ में हुआ.सोनाली बेंद्रे ने अपने करियर की शुरूआत १९९४ से की.दुबली-पतली और सुंदर चेहरे वाली सोनाली ज्यादातर फिल्मों में ग्लैमर गर्ल के रूप में नजर आई. प्रतिभाशाली होने के बावजूद सोनाली को बॉलीवुड में ज्यादा अवसर नहीं मिल पाए.सोनाली आमिर और शाहरूख खान जैसे सितारों की नायिका भी बनीं.उन्हें ११९४ में श्रेष्ठ नये कलाकार का फिल्मफेअर अवॉर्ड मिला.
सन १९५८ में जन्मी कविता कृष्णमूर्ति ने शुरुआत करी लता मंगेशकर के गानों को डब करके.हिंदी गानों को अपनी आवाज से उन्होंने एक नयी पहचान दी. उन्हें ४ बार सर्वश्रेष्ठ हिंदी गायिका का फिल्मफेयर पुरष्कार मिल चूका है. २००५ में उन्हें भारत सरकार से पद्मश्री सम्मान मिला.
इन तीनो को इन पर फिल्माए और गाये दस गानों के माध्यम से रेडियो प्लेबैक इंडिया के ओर से जन्मदिन की शुभकामनायें.



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3 श्रोताओं का कहना है :
9 thath to ho chuke. ab to bas ek hi thath bacha hai---bhairavi
Geetkar: Majrooh Sultanpuri
क्षिती जी बधाई हो.आज आपने मैदान मार लिया है.कृष्ण मोहन जी इस समय मैं मीटिंग्स में रहता हूँ इसलिए चाहकर भी समय पर उपस्तिथ नहीं. हो पाता हों.
क्षिति और अमित भैया मैदान मार गए जी.
अपने पास तो अब एक ही रास्ता बचा है कि ......बोल दूँ हेमंत कुमार साहब.
गलत हुआ तो भाग जाऊंगी .क्या करू?
ऐसिच हूँ मैं तो हा हा हा
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