ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 59
यूं तो ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड के बारे में हम सभी को जानकारी है, लेकिन ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड की सटीक परिभाषा क्या है? विकिपीडिआ में इसकी परिभाषा कुछ इस तरह से दी गई है - "A gramophone record, also known as a phonograph record, is an analogue sound storage medium consisting of a flat disc with an inscribed modulated spiral groove starting near the periphery and ending near the center of the disc." ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड के कई प्रकार हैं जैसे कि एल.पी रेकॉर्ड (LP, 33, or 33-1/3 RPM), ई.पी रेकॉर्ड (EP, 16-2/3 RPM), 45 RPM रेकॉर्ड और 78 RPM रेकॉर्ड। 78 RPM रेकॉर्ड वह रेकॉर्ड है जो प्रति मिनट ७८ बार अपनी धूरी पर घूमती है। एल.पी का अर्थ है 'लॉंग प्ले' तथा ई.पी का अर्थ है 'एक्स्टेण्डेड प्ले'। एल.पी, 16 और 45 RPM रेकॉर्डों का निर्माण पॉलीविनाइल क्लोराइड (PVC) से होता था, जिस वजह से इन्हें विनाइल रेकॉर्ड भी कहते हैं। 'सोसायटी ऑफ़ इण्डियन रेकॉर्ड कलेक्टर्स मुंबई' के सुरेश चंदावरकर नें बहुत अच्छी तरह से भारत में ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड के विकास को अपने लेख 'इण्डियन ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड्स - दि फ़र्स्ट १०० यीअर्स' में क़ैद किया है। थॉमस आल्वा एडिसन (जिन्होंने ईलेक्ट्रिक बल्ब का भी आविष्कार किया था) नें १८७७ में 'सीलिंडर फ़ोनोग्राफ़' का आविष्कार किया, जिसका भारत में पहला डेमो अगले ही साल १८७८ में दिया गया। रेकॉर्डिंग्कंपनियों में 'दि ग्रामोफ़ोन कंपनी' प्राचीनतम कंपनियों में से थीं, तथा इसका एक मुख्य लेबल था 'हिस मास्टर्स वॉयस', जिसे हम HMV के नाम से जानते हैं। भारत में इसकी स्थापना हुई १८९५ में। HMV के पहले डीलर थे दिल्ली के 'महाराजा लाल ऐण्ड को'। उन दिनों यह डीलर सीलिंडर रेकॉर्ड्स बेचा करते थे, जो मार्केट में चली तकरीबन १९१० के आसपास तक। आज ये रेकॉर्ड्स नष्ट हो चुकी हैं, बस एक रेकॉर्ड अभी ज़िंदा है और वह है कविगुरु रबीन्द्रनाथ ठाकुर की आवाज़ में "वन्देमातरम" का।
हैनोवर, जर्मनी के एमिल बर्लिनर नें सीलिंडर की जगह एक फ़्लैट ज़िंक-डिस्क के इस्तमाल से फ़ोनोग्राफ से बहतर एक मशीन का निर्माण किया। मास्टर डिस्क से असंख्य प्रतियाँ रेकॉर्ड करने का यह आसान ज़रिया साबित हुआ जिसकी बाज़ार में व्यावसायिक मूल्य बहुत अधिक थी। इस तरह की ७ इंच डायमीटर वाली सिंगल-साइड डिस्क पर १८९९ में लंदन में पहले भारतीय की आवाज़ रेकॉर्ड हुई। ये 44 RPM की रेकॉर्ड्स थीं जिनमें आवाज़ें थीं कैप्टन भोलानाथ, डॉ. हरनामदास और अहमद की, जिन्होंने अलग अलग भाषाओं में कविता-पाठ या गीत रेकॉर्ड करवाये। सन्१९०१ में जे. डब्ल्यु. हॉड कलकत्ता आये और अपनी एक ब्रांच-ऑफ़िस खोली। १९०२ में एफ़. डब्ल्यु. गैज़बर्ग आये अपनी पहली रेकॉर्डिंग्अभियान पर, और भारत की धरती से करीब करीब ५०० गीत रेकॉर्ड करके ले गये। इन्हें फिर हैनोवर के बर्लिनर के प्रेसिंग् फ़ैक्टरी में ले जा कर इनकी प्रतियाँ बनाई गईं। इनमें से ज़्यादातर रेकॉर्डिंग्स कोठों में जा कर रेकॉर्ड किये गये थे क्योंकि उस ज़माने में अच्छे घर की औरतों का गाना-बजाना अच्छा नहीं माना जाता था। लेकिन धीरे धीरे वक़्त बदला, और कई नामचीन कलाकारों नें रेकॉर्ड कंपनियों के लिये अपनी आवाज़ें दी। इनमें शामिल थे कलकत्ते की गौहर जान, इलाहाबाद की जानकीबाई, पियारा साहिब आदि। इसके बाद दो और रेकॉर्डिंग अभियान हुए और करीब ३००० वाक्स रेकॉर्ड्स बनें, जिन्हें जर्मनी में प्रेस कर वापस भारत में लाया गया बेचने के लिये। अब तक रेकॉर्ड्स ज़िंक से बदल कर वाक्स यानी मोम और शेलैक (shellac) के बनने लगे थे।
पहले विश्वयुद्ध (१९१४-१९१९) के दौरान ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड उद्योग शेलैक की सप्लाई के लिये भारत पर बुरी तरह से निर्भर थी। भारत ७५ सालों तक शेलैक का एकमात्र सप्लायर था और यहाँ से भारी तादाद में शेलैक निर्यात होता था। १९१६ तक करीब करीब ७५ अलग रेकॉर्ड कंपनियों नें भारत में अपने क़दम जमाये, जिनमें प्रमुख थे Nicole, Universal, Neophone, Elephone, H. Bose, Beka, Kamla, Binapani, Royal, Ram-a-Phone (Ramagraph), James Opera, Singer, Sun, Odeon, और Pathe। समय के साथ साथ ये तमाम कंपनियाँ या तो ग़ायब हो गईं या फिर 'दि ग्रामोफ़ोन कंपनी' के साथ मिल गईं। HMV लेबल नें भारतीय बाज़ार में एकतरफ़ा अधिकार जमा लिया। ध्वनि-मूद्रण तकनीकी दृष्टि से निरंतर बदलती चली जा रही थी। शुरु शुरु में सब कुछ मेकनिकली होता था और उस काल को 'ऐकोस्टिक ईरा' भी कहा जाता है। सन्१९२५ के आसपास यह रेकॉर्डिंग्की तकनीक मेकनिकल से बदलकर हो गई ईलेक्ट्रिकल, और कार्बन माइक्रोफ़ोन का आगमन हुआ। द्वितीय विश्वयुद्ध के आसपास चुम्बकीय तकनीक लिये टेप-रेकॉर्डर्स आ गये। १९३१ में 'दि ग्रामोफ़ोन कंपनी' और 'कोलम्बिआ ग्रामोफ़ोन कंपनी' एक जुट हो गईं और स्थापना हुई 'ईलेक्ट्रिकल ऐण्ड म्युज़िकल इन्ड्रस्ट्रीस लिमिटेड' (EMI) की। और इस तरह से HMV भी आ गई EMI में।
आलेख - सुजॉय चटर्जी
संदर्भ -
१. "Gramophone Record" (URL: http://en.wikipedia.org/wiki/Gramophone_record)
२. "Indian Gramophone Records - The First 100 Years", Suresh Chandavarkar, Society of Indian Record Collectors, Mumbai (URL: http://www.mustrad.org.uk/articles/indcent.htm)
नए साल के जश्न के साथ साथ आज तीन हिंदी फिल्म जगत के सितारे अपना जन्मदिन मन रहे हैं.ये नाना पाटेकर,सोनाली बेंद्रे और गायिक कविता कृष्णमूर्ति.
नाना पाटेकर उर्फ विश्वनाथ पाटेकर का जन्म १९५१ में हुआ था.नाना पाटेकर का नाम उन अभिनेताओं की सूची में दर्ज है जिन्होंने अभिनय की अपनी विधा स्वयं बनायी.गंभीर और संवेदनशील अभिनेता नाना पाटेकर ने यूं तो अपने फिल्मी कैरियर की शुरूआत १९७८ में गमन से की थी,पर अंकुश में व्यवस्था से जूझते युवक की भूमिका ने उन्हें दर्शकों के बीच व्यापक पहचान दिलायी.समानांतर फिल्मों में दर्शकों को अपने बेहतरीन अभिनय से प्रभावित करने वाले नाना पाटेकर ने धीरे-धीरे मुख्य धारा की फिल्मों की ओर रूख किया.क्रांतिवीर और तिरंगा जैसी फिल्मों में केंद्रीय भूमिका निभाकर उन्होंने समकालीन अभिनेताओं को चुनौती दी.फिल्म क्रांतिवीर के लिए उन्हें १९९५ में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरष्कार मिला था.इस पुरष्कार को उन्होंने तीन बार प्राप्त करा.पहली बार फिल्म परिंदा के लिए १९९० में सपोर्टिंग एक्टर का और फिर १९९७ में अग्निसाक्षी फिल्म के लिए १९९७ में सपोर्टिंग एक्टर का.४ बार उन्हें फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला.एक एक बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और सपोर्टिंग एक्टर का और दो बार सर्वश्रेष्ठ खलनायक का.
सोनाली बेंद्रे का जन्म १९७५ में हुआ.सोनाली बेंद्रे ने अपने करियर की शुरूआत १९९४ से की.दुबली-पतली और सुंदर चेहरे वाली सोनाली ज्यादातर फिल्मों में ग्लैमर गर्ल के रूप में नजर आई. प्रतिभाशाली होने के बावजूद सोनाली को बॉलीवुड में ज्यादा अवसर नहीं मिल पाए.सोनाली आमिर और शाहरूख खान जैसे सितारों की नायिका भी बनीं.उन्हें ११९४ में श्रेष्ठ नये कलाकार का फिल्मफेअर अवॉर्ड मिला.
सन १९५८ में जन्मी कविता कृष्णमूर्ति ने शुरुआत करी लता मंगेशकर के गानों को डब करके.हिंदी गानों को अपनी आवाज से उन्होंने एक नयी पहचान दी. उन्हें ४ बार सर्वश्रेष्ठ हिंदी गायिका का फिल्मफेयर पुरष्कार मिल चूका है. २००५ में उन्हें भारत सरकार से पद्मश्री सम्मान मिला.
इन तीनो को इन पर फिल्माए और गाये दस गानों के माध्यम से रेडियो प्लेबैक इंडिया के ओर से जन्मदिन की शुभकामनायें.



आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
3 श्रोताओं का कहना है :
बहुत ही रोचक और ज्ञानवर्धक सूचनाओं से परिपूर्ण आलेख है, सुजाय जी को इस दुर्लभ जानकारी देने के लिए धन्यवाद।
बहुत बढ़िया जानकारी. मेरे पास जो EP रेकॉर्ड्स हैं वे ३३.१/३ के हैं जिसमे एक तरफ दो गाने होते थे. SP अलबत्ता ४५ RPM की होती थी. ७८ RPM में शेलैक से बने रेकॉर्ड्स दो साइज़ में आते थे. विदेशी रेकॉर्ड्स ही बड़े साइज़ के होते थे.
सुजॉय जी मानना पड़ेगा इतनी अच्छी अच्छी जानकारियों के लिए. सबसे बड़ी बात समय निकाल कर पोस्ट करने के लिए.
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)