सप्ताह की संगीत सुर्खियाँ (५)
साहित्य और संगीत एक एल्बम में
"सॉरी भाई" ये मेरा गाना है...
प्रसून एक गायक भी
मैं ऐक्टर तो नही....मगर...
| प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां |
डॉक्टर मृदुल कीर्ति |
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मैं एक निर्धन अध्यापक हूँ...मेरे जीवन मैं ऐसा क्या ख़ास है जो मैं किसी से कहूं ~ मुंशी प्रेमचंद (१८८०-१९३६) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनिए प्रेमचंद की एक नयी कहानी रजिया को साड़ी की उतनी चाह न थी जितनी रामू और दसिया के आनन्द में विघ्न डालने की। बोली, "रूपये नहीं थे, तो कल अपनी चहेती के लिए चुंदरी क्यों लाये? चुंदरी के बदले उसी दाम में दो साड़ियां लाते, तो एक मेरे काम न आ जाती?" (प्रेमचंद की "सौत" से एक अंश) |
मैं एक निर्धन अध्यापक हूँ...मेरे जीवन मैं ऐसा क्या ख़ास है जो मैं किसी से कहूं ~ मुंशी प्रेमचंद (१८८०-१९३६) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनिए प्रेमचंद की एक नयी कहानी उसकी शरारतें शुरू हो गईं। कभी कलम पर हाथ बढ़ाया, कभी कागज पर। मैंने गोद से उतार दिया। वह मेज का पाया पकड़े खड़ा रहा। घर में न गया। दरवाजा खुला हुआ था। (प्रेमचंद की "बंद दरवाजा" से) |
मैं एक निर्धन अध्यापक हूँ...मेरे जीवन मैं ऐसा क्या ख़ास है जो मैं किसी से कहूं ~ मुंशी प्रेमचंद (१८८०-१९३६) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनिए प्रेमचंद की एक नयी कहानी देवी ने बात काटते हुए कहा, "अजी वह क्या बात थी, मुझे वह नोट पड़ा मिल गया था, मेरे किस काम का था।" (प्रेमचंद की "देवी" से एक अंश) |
कृष्णमोहन मिश्र | function newPopup(url) { popupWindow = window.open(url,'popUpWindow','height=700,width=1300,left=10,top=10,resizable=yes,scrollbars=yes,toolbar=yes,menubar=no,location=no,directories=no,status=yes') } |
अनुराग शर्मा | function newPopup(url) { popupWindow = window.open(url,'popUpWindow','height=700,width=1300,left=10,top=10,resizable=yes,scrollbars=yes,toolbar=yes,menubar=no,location=no,directories=no,status=yes') } |
सुजॉय चटर्जी | function newPopup(url) { popupWindow = window.open(url,'popUpWindow','height=700,width=1300,left=10,top=10,resizable=yes,scrollbars=yes,toolbar=yes,menubar=no,location=no,directories=no,status=yes') } |
विश्व दीपक | function newPopup(url) { popupWindow = window.open(url,'popUpWindow','height=700,width=1300,left=10,top=10,resizable=yes,scrollbars=yes,toolbar=yes,menubar=no,location=no,directories=no,status=yes') } |
सजीव सारथी | function newPopup(url) { popupWindow = window.open(url,'popUpWindow','height=700,width=1300,left=10,top=10,resizable=yes,scrollbars=yes,toolbar=yes,menubar=no,location=no,directories=no,status=yes') } |
अमित तिवारी | function newPopup(url) { popupWindow = window.open(url,'popUpWindow','height=700,width=1300,left=10,top=10,resizable=yes,scrollbars=yes,toolbar=yes,menubar=no,location=no,directories=no,status=yes') } |