रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित
प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां
भारत पर्व प्रधान देश है। बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में इन दिनों छठ पूजा की धूम है। इस अवसर हम आपके लिए गीत-संगीत से सजा आलेख लेकर आये हैं। छठ गीत की पारम्परिक धुन इतनी मधुर है कि जिसे भोजपुरी बोली समझ में न भी आती हो तो भी गीत सुंदर लगता है। यही कारण है कि इस पारम्परिक धुन का इस्तेमाल सैकड़ों गीतों में हुआ है, जिसपर लिखे बोलों को बहुत से गायक और गायिकाओं ने अपनी आवाज़ दी है। आलेख की शुरूआत पहले हम इसी पारम्परिक धुन पर पद्मश्री शारदा सिंहा द्वारा गाये एक गीत 'ओ दीनानाथ' को सुना कर करना चाहेंगे। पद्मश्री शारदा सिंहा को बिहार की कोकिला भी कहा जाता है। यह मशहूर लोकगायिका विंध्यवासिनी देवी की शिष्या थीं।
सुख-समृद्धि और और सूर्य उपासना का पर्व है 'छठ'
सूर्य नमन
इस वर्ष ४ नवम्बर को मनाई जा रही सूर्य षष्ठी गायत्री साधको के लिए अनुदानों का अक्षय कोष है। गायत्री महामंत्र के अधिष्ठाता भगवन सूर्य प्रत्यक्ष देव हैं। सूर्य देव की आराधना एवं उपासना से शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक शान्ति एवं अध्यात्मिक अनुदान-वरदान की उपलब्धि होती है। सूर्योपासना के लिए निर्धारित तिथि को सूर्यषष्ठी के रूप में जाना जाता है। कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि सूर्यषष्ठी कहलाती है। सूर्यषष्ठी व्रत मुख्यतः रोग मुक्ति, पुत्र प्राप्ति तथा दीर्घायु की कामना के लिए किया जाता है। श्रद्धा एवं भावना के साथ किया गया छठ या सूर्यषष्ठी व्रत अत्यंत लाभदायक एवं फलदायक होता है। छठ शब्द का प्रादुर्भाव षष्ठी यानी षष्ठ से हुआ है। यह सूर्य उपासना की विशिष्ठ एवं खास तिथि है। सूर्योपासना को सूर्योपस्थान भी कहते हैं, इसमें सूर्य भगवान को भाव भरा अर्घ्य भी चढ़ाया जाता है। इस अर्घ्य दान में वैज्ञानिकता के साथ-साथ आध्यात्मिकता का गहन एवं गूढ़ रहस्य भी भरा पड़ा है, जिसका वेद, उपनिषदों एवं पुराणों में विस्तार से उल्लेख किया गया है।
शारदा सिंहा के स्वर में कुछ प्रसिद्ध छठ गीत
वैदिक साहित्य में सूर्य देव की महिमा का भाव भरा गायन किया गया है। इनमें सर्वसुलभ सूर्य देव के सूक्ष्म एवं दिव्य आध्यात्मिक तुल्य का प्रतिपादन करते हुए सविता को सूर्य की आत्मा कहा गया है। गायत्री महामंत्र का सूर्य से गहरा तादातम्य है, इस तथ्य के पीछे तीन कारण है- १-गायत्री महामंत्र का देवता सविता है। २-सूर्योपासना सार्वभौमिक है। ३-सूर्य की उपासना-आराधना से होने वाला प्रभाव सर्वथा वैज्ञानिक एवं तथ्यपूर्ण है।
आर्ष साहित्य में इस तथ्य को प्रमाणितत करते हुए उल्लेख किया गया है। इस कथानक के अनुसार "गायत्री वरदां देवीं सावत्रीं वेदमातरम्", प्रजापति बोले, हे देवताओ! यह जो अनेक प्रकार के वरदान देने वाली गायत्री है उसे तुम सावित्री अर्थात सूर्य से उद्भाषित होने वाला ज्ञान जानो। इसके अतिरिक्त गोपथ ब्राह्मण ५/३ में तेजो वै गायत्री, के रूप में इसका निरूपण किया गया है। इसके अतिरिक्त ज्योतिर्वे गायत्री छंद साम् ज्योतिर्वे गायत्री, दविद्युतती वैगायत्री गायत्र्यैव भर्ग, तेजसा वेगायत्रीपथमं त्रिरात्रं दाधार पदै द्वितीयं त्र्यक्षरै स्तृतीयम् के रूप में सूर्य और गायत्री के सम्बन्ध को दर्शाया गया है। गायत्री मन्त्र के सवितुः पद में इसी एकात्मकता का संकेत है। गायत्री मन्त्र सविता देव से आपको एकात्म करने की गुह्य तकनीक है। गायत्री का देवता सविता सूर्य संसार के जीवन के ज्ञान-विज्ञान का केन्द्र है। यह अन्य समस्त देव शक्तियों का मुख्य केन्द्र भी है। चारों वेदों में भी जो कुछ है वो सब भी सविता सूर्य शक्ति का विवेचन-विश्लेषण मात्र है। शतपथ ब्राहमण में असौ व आदित्यो देवः सविता, कहकर सूर्य की प्रतिष्ठा की गई है। भविष्योत्तर पुराण में कृष्ण और अर्जुन संवाद में सूर्य को त्रिदेवों के गुणों से विभूषित किया गया है। इस संवाद के अनुसार सूर्य उदयकाल में ब्रह्म, मध्याह्न काल में महेश और संध्या काल में विष्णु के रूप हैं। अन्य शास्त्रों में सूर्य देव को इस तरह अलंकृत किया गया है, सूर्यो वै सर्वेषा देवानामात्मा अर्थात् सूर्य ही समस्त देवों की आत्मा है, सर्वदेवामय रविः अर्थात् सूर्य सर्वदेवमय है। मनुस्मृति का वचन है, सूर्य से वर्षा, वर्षा से अन्न और अन्न से प्रजा (प्राणी) का जन्म होता है। पौराणिक कथानकों के अनुसार सूर्य महर्षि कश्यप के पुत्र होने के कारण काश्यप कहलाये। उमका लोकावतरण महर्षि की पत्नी अदिति के गर्भ से हुआ था अतः उनका एक नाम आदित्य भी लोकविख्यात और प्रसिद्ध हुआ।
एक व्रती
उपनिषदों में आदित्य को ब्रह्मा के प्रतीक के रूप में दर्शाया गया है। छान्दोपनिषद् आदित्यो ब्रह्म कहता है तो तैत्तिरीयारण्यक असावादिव्यो ब्रह्म की उपमा देता है। अथर्ववेद की भी यही मान्यता है। इसके मतानुसार आदित्य ही ब्रह्म का साकार स्वरूप है। ऋग्वेद में सर्व्यापक ब्रह्म और सूर्य में समानता का स्पष्ट बोध होता है। यजुर्वेद सूर्य और भगवान में फर्क नहीं करता। कपिला तंत्र में, सूर्य को ब्रह्माण्ड में मूलभूत पंचतत्वों में से वायु का अधिपति घोषित किया गया है। हठ योग के अंतर्गत श्वास (वायु) को प्राण माना गया है। और सूर्य इन प्राणों का मूलाधार है। अतः आदित्यो वै प्राणः कहा गया है। योग साधना में प्रतिपादित मणि पूरक चक्र को सूर्य चक्र भी कहते हैं। हमारा नाभिकेंद्र (सूर्यचक्र) प्राणों का उद्गम स्थल ही नहीं, अपितु अचेतन मन के संस्कारों तथा चेतना का संप्रेषण केन्द्र भी है। सूर्यदेव इस चराचर जगत में प्राणों का प्रबल संचार करते हैं-"प्राणः प्रजानामुदयप्येषंषम सूर्यः"। सूर्य भगवान को मार्तंड भी कहते हैं, क्योंकि ये जगत को अपनी ऊष्मा और प्रकाश से ओत-प्रोत कर जीवन प्रदान करते हैं। सूर्यदेव कल्याण के उद्गम स्थान होने के कारण शम्भु भी कहलाते हैं। भक्तों का दुःख दूर करने अथवा जगत का संहार करने के कारण इन्हें त्वष्टा भी कहते हैं। किरण को धारण करने वाले सूर्यदेव अन्शुमान भी जाने जाते हैं। योग शास्त्र में पतंजलि उल्लेख करते हैं कि "भुवनज्ञानं सूर्य संयमात्" अर्थात् सूर्य के ध्यान एवं उपासना से समस्त संसार को ज्ञान प्राप्त हो जाता है।
बिहार के एक गाँव में पारम्परिक छठ-पर्व का दृश्य
सूर्य कालचक्र के महाप्रणेता हैं। सूर्य से ही दिन-रात्रि, मास, अयन एवं संवत्सर का निर्माण होता है। भारतीय संस्कृति में किसी वार का प्रारम्भ सूर्योदय से ही होता है। भारतीय सुर्योपासना के मूल में आध्यात्मिक लाभ के आलावा शारीरिक स्वास्थ्य एवं भौतिक लाभ का भाव निहित होता है। यह कई प्रकार के रोगों से रक्षा करता है। सूर्य की दिव्य किरणों में कुष्ठ तथ अन्य प्रकार के चर्म रोगों के किटाणुओं को नष्ट करने की अपार क्षमता एवं शक्ति सन्निहित है। इसी करण ऋग्वेद में कहा गया है " आदित्योऽसौजगप्स्याद् देवा विश्वस्य भुवनस्य गौपाः" अर्थात् सूर्य की किरणें सारे चराचर संसार की रक्षा करती हैं। ऋग्वेद में सूर्य की रश्मियों को हृदय रोग तथा पीलिया की चिकित्सा में लाभकारी बताया गया है। कुष्ठ रोग का शमन भी सूर्यदेव की कृपा से हो जाता है। श्री कृष्ण एवं जाबवंती के पुत्र सांब सूर्यदेव की उपासना से ही रोगमुक्त हुए थे। कृष्ण यजुर्वेदीय चाक्षुषोपनिषद् में सभी प्रकार के नेत्र रोगों से मुक्ति का उपाय सूर्य को बताया गया है। तंत्र शास्त्र की मान्यता है कि नित्य सूर्य नमस्कार करने से सात पीढ़ियों से चली आ रही महा दरिद्रता दूर हो जाती है। सूर्य नमस्कार स्वयं में सूर्य आराधना भी है और स्वास्थ्य का व्यायाम भी। इसमें अनेक प्रकार की बीमारियों एवं विकृतियों का शमन होता है। इन्हीं कारणों से सूर्य को आरोग्य का देवता कहा गया है और उसकी किरणों को पवित्र, तेजस्वी एवं अक्षत माना गया है। सूर्य रश्मियाँ नदी की निर्मल धारा के सामान पावन हैं, जो अपने सानिध्य में आने वाले हर एक व्यक्ति को तेजस्विता, प्रखरता एवं पवित्रता से भर देती हैं। सूर्योपासना आरोग्य की रक्षा करने के आलावा अंतःकरण की चट्टानी मलिनता एवं कषाय-कलभषों को धोकर रख देती हैं। आरोग्य भास्करादिच्छेत् से स्वतः ही विदित होता है की सूर्य आरोग्य प्रदान करने वाले देवता है। यह आरोग्य केवल शरीर के धरातल तक ही सीमित नहीं है, वरन् मानसिक एवं आत्मिक स्तर पर प्रभाव छोड़ने में समर्थ एवं सक्षम है। अतः सूर्योपासना सभी रूपों में अनादिकाल से भारतवर्ष में ही नहीं, बल्कि समस्त विश्व के विभिन्न भागों में श्रद्धापूर्वक सूर्य की भक्ति की जाती रही है।
अनुराधा पौडवाल के स्वर में छठ गीत
यद्यपि कालचक्र के दुष्प्रभाव से वर्त्तमान समय में सूर्योपासना कि परम्परा का अत्यन्त ह्रास हो गया है, परन्तु फिर भी धर्म प्रधान भारतवर्ष में सनातन धर्मोजनता आज भी किसी न किसी रूप में सूर्य को देवता मानकर उनकी पूजा-आराधना करती है। इसी क्रम में सूर्यषष्ठी व्रत को मनाया जाता है। बिहार एवं झारखण्ड की जनता इस पावन तिथि को छठ पूजा के रूप में अत्यन्त श्रद्धा, उत्साह एवं उमंग के साथ मनाती है। वाराणसी एवं पूर्वांचल में इसे डालछठ कहा जाता है। कार्तिक शुल्क चतुर्थी के दिन नियम-स्नानादि से निवृत हो कर फलाहार किया जाता है। पंचमी में दिन भर उपवास करके किसी नदी या सरोवर में स्नान करके अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इसके पश्चात् अस्वाद भोजन किया जाता है। गायत्री महामंत्र का भाव भरा उच्चारण कर विविध पूजोपहार वस्तुओं से सूर्य अर्घ्यदान दिया जाता है। तथा मनोकामना की जाती है। छठ, पुत्र प्राप्ति की कामना को पूर्ति करता है। अतः इसका सम्बन्ध षष्ठी माता से जोड़ दिया गया है। षष्ठी देवी दुर्गा की ही प्रतिरूप हैं। इसीलिए छठ व्रत के अवसर पर सूर्यदेव और षष्ठी माता के प्रति समान भक्ति भावना के दर्शन होते हैं। इस व्रत को सर्वप्रथम यवन मुनि की पुत्नी सुकन्या ने अपने जराजीर्ण अधिपति के आरोग्य के निमित्त किया था। व्रत के सफल अनुष्ठान के सुप्रभाव से ऋषि को नेत्र ज्योति प्राप्त हुई और वे जराजीर्ण वृद्ध से युवा हो गये। ऐसी मान्यता है कि आज भी गायत्री महामंत्र का जप करते हुए नियमपूर्वक १२ वर्षों तक जो भी यह व्रत करता है, उसकी इच्छित मनोकामना की पूर्ति होती है। सूर्य षष्ठी में गायत्री मन्त्र के जप एवं सुर्यध्यान करने से सहज ही आतंरिक चेतना परिष्कृत होती है, साथ ही पवित्रता, प्रखरता में अभिवृद्धि होती है।
लेखक- सिद्धार्थ शंकर (साभार 'साधना-पथः नवम्बर २००८ अंक) प्रस्तुति- शैलेश भारतवासी प्रस्तुति- दीपाली मिश्रा और अमिताभ मीत कविता पौडवाल के स्वर में छठ गीत
१ जनवरी - आज के कलाकार - नाना पाटेकर, सोनाली बेन्द्रे और कविता कृष्णमूर्ति - जन्मदिन मुबारक
नए साल के जश्न के साथ साथ आज तीन हिंदी फिल्म जगत के सितारे अपना जन्मदिन मन रहे हैं.ये नाना पाटेकर,सोनाली बेंद्रे और गायिक कविता कृष्णमूर्ति.
नाना पाटेकर उर्फ विश्वनाथ पाटेकर का जन्म १९५१ में हुआ था.नाना पाटेकर का नाम उन अभिनेताओं की सूची में दर्ज है जिन्होंने अभिनय की अपनी विधा स्वयं बनायी.गंभीर और संवेदनशील अभिनेता नाना पाटेकर ने यूं तो अपने फिल्मी कैरियर की शुरूआत १९७८ में गमन से की थी,पर अंकुश में व्यवस्था से जूझते युवक की भूमिका ने उन्हें दर्शकों के बीच व्यापक पहचान दिलायी.समानांतर फिल्मों में दर्शकों को अपने बेहतरीन अभिनय से प्रभावित करने वाले नाना पाटेकर ने धीरे-धीरे मुख्य धारा की फिल्मों की ओर रूख किया.क्रांतिवीर और तिरंगा जैसी फिल्मों में केंद्रीय भूमिका निभाकर उन्होंने समकालीन अभिनेताओं को चुनौती दी.फिल्म क्रांतिवीर के लिए उन्हें १९९५ में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरष्कार मिला था.इस पुरष्कार को उन्होंने तीन बार प्राप्त करा.पहली बार फिल्म परिंदा के लिए १९९० में सपोर्टिंग एक्टर का और फिर १९९७ में अग्निसाक्षी फिल्म के लिए १९९७ में सपोर्टिंग एक्टर का.४ बार उन्हें फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला.एक एक बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और सपोर्टिंग एक्टर का और दो बार सर्वश्रेष्ठ खलनायक का.
सोनाली बेंद्रे का जन्म १९७५ में हुआ.सोनाली बेंद्रे ने अपने करियर की शुरूआत १९९४ से की.दुबली-पतली और सुंदर चेहरे वाली सोनाली ज्यादातर फिल्मों में ग्लैमर गर्ल के रूप में नजर आई. प्रतिभाशाली होने के बावजूद सोनाली को बॉलीवुड में ज्यादा अवसर नहीं मिल पाए.सोनाली आमिर और शाहरूख खान जैसे सितारों की नायिका भी बनीं.उन्हें ११९४ में श्रेष्ठ नये कलाकार का फिल्मफेअर अवॉर्ड मिला.
सन १९५८ में जन्मी कविता कृष्णमूर्ति ने शुरुआत करी लता मंगेशकर के गानों को डब करके.हिंदी गानों को अपनी आवाज से उन्होंने एक नयी पहचान दी. उन्हें ४ बार सर्वश्रेष्ठ हिंदी गायिका का फिल्मफेयर पुरष्कार मिल चूका है. २००५ में उन्हें भारत सरकार से पद्मश्री सम्मान मिला.
इन तीनो को इन पर फिल्माए और गाये दस गानों के माध्यम से रेडियो प्लेबैक इंडिया के ओर से जन्मदिन की शुभकामनायें.
रेडियो प्लेबैक में खोजें
Loading
बोलती कहानियाँ
बोलती कहानियाँ - टार्च बेचने वाले - हरिशंकर परसाई--आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार हरिशंकर परसाई की कहानी "टॉर्च बेचने वाले", जिसको स्वर दिया है अमित तिवारी ने।
जहाँ अंधकार है, वहीं प्रकाश है.प्रकाश बाहर नहीं है, उसे अंतर में खोजो.अंतर में बुझी उस ज्योति को जगाओ.
(हरिशंकर परसाई की "टार्च बेचने वाले" से एक अंश)
भारतीय शास्त्रीय संगीत - मोहन वीणा
पं. विश्वमोहन भट्ट ने गिटार इस स्वरुप में परिवर्तन कर इसे भारतीय संगीत वादन के अनुकूल बनाया.उन्होंने एक सामान्य गिटार में 6 तारों के स्थान पर 19 तारों का प्रयोग किया.यह अतिरिक्त तार 'तरब' और 'चिकारी' के हैं जिनका उपयोग स्वरों में अनुगूँज के लिए किया जाता है.आप सुनिए अमेरिकी गिटार वादक रे कूडर और पं. विश्वमोहन भट्ट की गिटार और मोहन वीणा पर जुगलबंदी और फिल्म दुनिया न माने के गाने में इस्तेमाल हुआ हवाइयन गिटार, पियानो तथा वायलिन के प्रयोग वाला गाना.
Radio Playback Artist of the month
रेडियो प्लेबैक की टीम के साथ के निरन ने अपने गायन और संगीत निर्देशन का सफर शुरू किया था. हाल ही में प्रदर्शित डेम 999 उनकी आवाज़ महकी है. सुनते हैं उनका बॉलीवुड डेब्यू गीत
महफ़िल-ए-ग़ज़ल
ये महीना है अजीम शायर असद अली खां उर्फ मिर्ज़ा ग़ालिब को याद करने का. १० मुक्तलिफ़ फनकारों ने अपने अपने अंदाज़ में ढाला गालिब को अपनी मौसिकी में, आईये करें अदब के इस शहंशाह को सलाम इन नायाब ग़ज़लों को सुनकर.
भजन सम्राट अनूप जलोटा - दस भजन
हिन्दी भजनों का जिक्र हो और अनूप जलोटा का नाम न आये ऐसा संभव ही नहीं है. हम आपके लिए लाये हैं भजन सम्राट अनूप जलोटा के गाये १० बेहतरीन भजन.
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
श्रोता का कहना है :
छठ पर्व के बारे में तमाम जानकारी बहुत हीं रोचक है, आपके द्वारा पोस्ट गीतों ने तो हमें कुछ देर के लिए झारखंड के मेरे गांव में ही पहुंचा दिया।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)