ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # १६
आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड रिवाइवल' पर पेश है फ़िल्म 'मिली' का एक गीत। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की २३२ वीं कड़ी में, १३ अक्तुबर के दिन (जो किशोर दा की पुण्य तिथि और दादामुनि अशोक कुमार की जयंती है), हमने इस फ़िल्म से "आए तुम याद मुझे" गीत सुनवाया था। आज उसी फ़िल्म से किशोर दा का गाया दूसरा गीत "बड़ी सूनी सूनी है ज़िंदगी" हम सुनवा रहे हैं। तो उसी आलेख से हम आज आपको फिर एक बार बता रहे हैं फ़िल्म 'मिली' के बारे में। फ़िल्म 'मिली' की कहानी कुछ इस तरह की थी कि मिली (जया बच्चन) एक बहुत ही हँसमुख और ज़िंदादिल लड़की है, जो अपने पिता (अशोक कुमार) के साथ एक हाउसिंग् कॊम्प्लेक्स में रहती है। उसे उस कॊम्प्लेक्स के बच्चों से बहुत लगाव है और वो उन्ही के दल में भिड़ कर दिन भर सारी शैतानियाँ करती रहती हैं। याद है ना लता जी का गाया "मैने कहा फूलों से" गीत? तो साहब, ऐसे में उस बिल्डिंग में आ बसते हैं हमारे अमिताभ बच्चन साहब (किरदार का नाम मुझे याद नहीं), जो एक निहायती गम्भीर, बद-मिज़ाज नौजवान है जिसके चेहरे पर शायद ही कभी मुस्कुराहट आयी हो! किस तरह से मिली उसका दिल जीत लेती है, और उसके दिल पर क्या असर होता है जब उसे पता चलता है कि मिली को कैन्सर है, यही है इस फ़िल्म की कहानी। कहानी के अंत में मिली को अपने पिता के साथ चिकित्सा के लिए अमेरिका जाते हुए दिखाया जाता है, और वहीं पर फ़िल्म समाप्त हो जाती है। एक पिता को जब पता चलता है कि उसकी एकलौती बेटी को कैन्सर है, तो उन पर क्या बीतती है, दादामुनि के सशक्त अभिनय प्रतिभा ने उस किरदार में जान डाल दी है। नैचरल ऐक्टिंग् की जब बात आती है, तो दादामुनि का नाम शुरूआती नामों में ही लिया जाता है। और इस फ़िल्म में गुरुगम्भीर अमिताभ बच्चन के चरित्र के अनुसार किशोर दा ने दो गीत ऐसे गाए हैं कि बस पूछिए मत। अपने हास्य गीतों और मैनरिज़्म्स से गुदगुदानेवाले किशोर दा जब भी ऐसे संजीदे गीत गाते थे तब उनका रूप ही बिल्कुल बदल जाता था। यकीन ही नहीं होता कि ये दोनों रूप एक ही इंसान के हैं। "बड़ी सूनी सूनी है ज़िंदगी" ना केवल इस फ़िल्म के चरित्र को जीवंत करता है, बल्कि किशोर दा के निजी ज़िंदगी में भी जो सूनापन उन्होने हमेशा महसूस किया है (उनकी माँ की मृत्यु के बाद से), उसका दर्द भी उनकी आवाज़ में उभर आया है।
ओल्ड इस गोल्ड एक ऐसी शृंखला जिसने अंतरजाल पर ४०० शानदार एपिसोड पूरे कर एक नया रिकॉर्ड बनाया. हिंदी फिल्मों के ये सदाबहार ओल्ड गोल्ड नगमें जब भी रेडियो/ टेलीविज़न या फिर ओल्ड इस गोल्ड जैसे मंचों से आपके कानों तक पहुँचते हैं तो इनका जादू आपके दिलो जेहन पर चढ कर बोलने लगता है. आपका भी मन कर उठता है न कुछ गुनगुनाने को ?, कुछ लोग बाथरूम तक सीमित रह जाते हैं तो कुछ माईक उठा कर गाने की हिम्मत जुटा लेते हैं, गुजरे दिनों के उन महान फनकारों की कलात्मक ऊर्जा को स्वरांजली दे रहे हैं, आज के युग के कुछ अमेच्युर तो कुछ सधे हुए कलाकार. तो सुनिए आज का कवर संस्करण
गीत - बड़ी सूनी सूनी है...
कवर गायन - बिस्वजीत नंदा
ये कवर संस्करण आपको कैसा लगा ? अपनी राय टिप्पणियों के माध्यम से हम तक और इस युवा कलाकार तक अवश्य पहुंचाएं
बिस्वजीत
बिस्वजीत युग्म पर पिछले लगभग १८ महीनों से सक्रिय हैं। हिन्द-युग्म के दूसरे सत्र में इनके 5 गीत (जीत के गीत, मेरे सरकार, ओ साहिबा, रूबरू और वन अर्थ-हमारी एक सभ्यता) ज़ारी हो चुके हैं। ओडिसा की मिट्टी में जन्मे बिस्वजीत शौकिया तौर पर गाने में दिलचस्पी रखते हैं। वर्तमान में लंदन (यूके) में सॉफ्टवेयर इंजीनियर की नौकरी कर रहे हैं। इनका एक और गीत जो माँ को समर्पित है, उसे हमने विश्व माँ दिवस पर रीलिज किया था।
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड के ४०० शानदार एपिसोड आप सब के सहयोग और निरंतर मिलती प्रेरणा से संभव हुए. इस लंबे सफर में कुछ साथी व्यस्तता के चलते कभी साथ नहीं चल पाए तो कुछ हमसे जुड़े बहुत आगे चलकर. इन दिनों हम इन्हीं बीते ४०० एपिसोडों के कुछ चर्चित अंश आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं इस रीवायिवल सीरीस में, ताकि आप सब जो किन्हीं कारणों वश इस आयोजन के कुछ अंश मिस कर गए वो इस मिनी केप्सूल में उनका आनंद उठा सकें. नयी कड़ियों के साथ हम जल्द ही वापस लौटेंगें
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
3 श्रोताओं का कहना है :
अच्छा लगा ये गीत विस्वजीत जी से.
उम्दा सार्थक लेख के लिए धन्यवाद /
बिस्वजीत ने खूब मधुर गीत चुना ...बर्मन दादा की अत्याधिक मर्म्स्पर्शीय धुन पर किशोर दा ने भी इसे बहुत ही ख़ूबसूरती से गया था ! अभी तक जितने भी लोगों से यह गीत सुना लगभग सभी इसे किशोर दा के ही अंदाज़ में गाने की कोशिश करते नज़र आये ! बिस्वजीत के गायन में यह बात अच्छी लगी कि इन्होने कहीं भी किशोर दा जैसे महान कलाकार की नक़ल नही की और बिलकुल अपने ही अंदाज़ में गाया ! ...और अच्छा गया ...इसके लिए बिस्वजीत निश्चय ही बधाई पात्र हैं ! लेकिन एक बात बिस्वजीत से भी कि भाई तुम अगर अच्छा गाते ही हो तो रेकार्डिंग में इतने ज्यादा रेवर्ब की क्या ज़रुरत थी ? इससे गीत की आत्मा पे फर्क पड़ता है ...!
बाकी..मेरी शुभकामना अपने गायक के लिए !!!
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)