ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # २०
'ओल्ड इज़ गोल्ड' में आज रिवाइवल उमा देवी की गाई उस शानदार यादगार गाने की जिसे आपने इसी महफ़िल में कमचर्चित गायिकाओं पर केन्द्रित शृंखला 'हमारी याद आएगी' में कड़ी नं ३३२ में सुना था। उत्तर प्रदेश के एक खत्री परिवार में जन्मीं उमा देवी को अभिनय से ज़्यादा गायकी का शौक था। लेकिन एक रूढ़ीवादी पंजाबी परिवार में होने की वजह से उनको अपने परिवार से कोई बढ़ावा ना मिल सका। उन्होने अपनी मेहनत से हिंदी, उर्दू और अंग्रेज़ी में शिक्षा प्राप्त की और महज़ १३ वर्ष की उम्र में ही बम्बई आ पहुँचीं। सन् १९४७ में उमा देवी को अपना पहला एकल गीत गाने का मौका मिला जिसके लिए उन्हे २०० रुपय का मेहनताना मिला। उन्हे नौशाद साहब का संगीत इतना पसंद था कि उनके बार बार अनुरोध करने पर आख़िरकार नौशाद साहब ऒडिशन के लिए तैयार हो ही गए। और उनकी गायन से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके। और फ़िल्म 'दर्द' में पहली बार उमा देवी ने गानें गाए और पहला गीत ही सुपर डुपर हिट। आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में इसी गीत की बारी। नौशाद साहब उन दिनों जिन जिन फ़िल्मों में संगीत दे रहे थे, उन सब में उन्होने उमा देवी को कम से कम एक गीत गाने का मौका ज़रूर दिया। पर यह सिलसिला बहुत ज़्यादा दिनों तक नहीं चला. धीरे धीरे उन्हे गानें मिलने बंद हो गए। इसका एक कारण था दूसरी गायिकाओं का और ज़्यादा प्रतिभाशाली होना जो ऊँची आवाज़ में गा सकते थे। उमा देवी को अपनी सीमाओं का पूरा अहसास था। दूसरे, उनका मोटापा भी उन्हे चुभ रहा था जो उनकी गायकी पर असर डाल रहा था। ऐसे में उनके राखी भाई नौशाद साहब ने उन्हे फ़िल्मों में हास्य चरित्रों के रूप में काम करने का सुझाव दिया, और इस प्रकार आरंभ हुई उमा देवी की दूसरी पारी, जिन्हे हम टुनटुन के नाम से जानते हैं। उनकी यह दूसरी पारी सब को इतना पसंद आया कि उमा देवी सब के दिल में आज तक टुनटुन के नाम से ही बसी हुईं हैं और हमेशा रहेंगी। दोस्तों, आज उमा जी को श्रद्धांजली अर्पित करते हुए हमने उनका गाया सब से हिट गीत चुना है, १९४७ की फ़िल्म 'दर्द' का - "अफ़साना लिख रही हूँ दिल-ए-बेक़रार का, आँखो में रंग भर के तेरे इंतज़ार का"। दोस्तों, फ़िल्म 'दर्द' का यह गीत एक और दृष्टि से भी बेहद ख़ास है कि इस गीत से ही शुरु हुआ था गीतकार शक़ील बदायूनी और संगीतकार नौशाद का साथ, जिस जोड़ी ने इतिहास कायम किया सदाबहार नग़मों की दुनिया में। शक़ील बदायूनी पर केन्द्रित विविध भारती के एक कार्यक्रम में यूनुस ख़ास कहते हैं कि "दिलचस्प बात यह है कि शायरी की दुनिया से आने के बावजूद शक़ील ने फ़िल्मी गीतों के व्याकरण को फ़ौरन समझ लिया था। उनकी पहली ही फ़िल्म के गाने एक तरफ़ सरल और सीधे सादे हैं तो दूसरी तरफ़ उनमें शायरी की ऊँचाई भी है। इसी गाने में शक़ील साहब ने लिखा है कि "आजा के अब तो आँख में आँसू भी आ गए, सागर छलक उठा है मेरे सब्र-ओ-क़रार का, अफ़साना लिख रही हूँ दिल-ए-बेक़रार का"। किसी के इंतज़ार को जितने शिद्दत भरे अलफ़ाज़ शक़ील ने दिए, शायद किसी और गीतकार ने नहीं दिए।"
ओल्ड इस गोल्ड एक ऐसी शृंखला जिसने अंतरजाल पर ४०० शानदार एपिसोड पूरे कर एक नया रिकॉर्ड बनाया. हिंदी फिल्मों के ये सदाबहार ओल्ड गोल्ड नगमें जब भी रेडियो/ टेलीविज़न या फिर ओल्ड इस गोल्ड जैसे मंचों से आपके कानों तक पहुँचते हैं तो इनका जादू आपके दिलो जेहन पर चढ कर बोलने लगता है. आपका भी मन कर उठता है न कुछ गुनगुनाने को ?, कुछ लोग बाथरूम तक सीमित रह जाते हैं तो कुछ माईक उठा कर गाने की हिम्मत जुटा लेते हैं, गुजरे दिनों के उन महान फनकारों की कलात्मक ऊर्जा को स्वरांजली दे रहे हैं, आज के युग के कुछ अमेच्युर तो कुछ सधे हुए कलाकार. तो सुनिए आज का कवर संस्करण
गीत - अफसाना लिख रही हूँ...
कवर गायन - डाक्टर पारसमणी आचार्य
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डाक्टर पारसमणी आचार्य
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
नए साल के जश्न के साथ साथ आज तीन हिंदी फिल्म जगत के सितारे अपना जन्मदिन मन रहे हैं.ये नाना पाटेकर,सोनाली बेंद्रे और गायिक कविता कृष्णमूर्ति.
नाना पाटेकर उर्फ विश्वनाथ पाटेकर का जन्म १९५१ में हुआ था.नाना पाटेकर का नाम उन अभिनेताओं की सूची में दर्ज है जिन्होंने अभिनय की अपनी विधा स्वयं बनायी.गंभीर और संवेदनशील अभिनेता नाना पाटेकर ने यूं तो अपने फिल्मी कैरियर की शुरूआत १९७८ में गमन से की थी,पर अंकुश में व्यवस्था से जूझते युवक की भूमिका ने उन्हें दर्शकों के बीच व्यापक पहचान दिलायी.समानांतर फिल्मों में दर्शकों को अपने बेहतरीन अभिनय से प्रभावित करने वाले नाना पाटेकर ने धीरे-धीरे मुख्य धारा की फिल्मों की ओर रूख किया.क्रांतिवीर और तिरंगा जैसी फिल्मों में केंद्रीय भूमिका निभाकर उन्होंने समकालीन अभिनेताओं को चुनौती दी.फिल्म क्रांतिवीर के लिए उन्हें १९९५ में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरष्कार मिला था.इस पुरष्कार को उन्होंने तीन बार प्राप्त करा.पहली बार फिल्म परिंदा के लिए १९९० में सपोर्टिंग एक्टर का और फिर १९९७ में अग्निसाक्षी फिल्म के लिए १९९७ में सपोर्टिंग एक्टर का.४ बार उन्हें फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला.एक एक बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और सपोर्टिंग एक्टर का और दो बार सर्वश्रेष्ठ खलनायक का.
सोनाली बेंद्रे का जन्म १९७५ में हुआ.सोनाली बेंद्रे ने अपने करियर की शुरूआत १९९४ से की.दुबली-पतली और सुंदर चेहरे वाली सोनाली ज्यादातर फिल्मों में ग्लैमर गर्ल के रूप में नजर आई. प्रतिभाशाली होने के बावजूद सोनाली को बॉलीवुड में ज्यादा अवसर नहीं मिल पाए.सोनाली आमिर और शाहरूख खान जैसे सितारों की नायिका भी बनीं.उन्हें ११९४ में श्रेष्ठ नये कलाकार का फिल्मफेअर अवॉर्ड मिला.
सन १९५८ में जन्मी कविता कृष्णमूर्ति ने शुरुआत करी लता मंगेशकर के गानों को डब करके.हिंदी गानों को अपनी आवाज से उन्होंने एक नयी पहचान दी. उन्हें ४ बार सर्वश्रेष्ठ हिंदी गायिका का फिल्मफेयर पुरष्कार मिल चूका है. २००५ में उन्हें भारत सरकार से पद्मश्री सम्मान मिला.
इन तीनो को इन पर फिल्माए और गाये दस गानों के माध्यम से रेडियो प्लेबैक इंडिया के ओर से जन्मदिन की शुभकामनायें.



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2 श्रोताओं का कहना है :
डॊ.पारसमणि जी
पुरानी यादों को ताज़ा करने के लिए एवं उमा देवी जी एक अच्छे मशहूर गीत के चयन के लिए बधाई ।
cool song !
Thanks
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