सुर संगम- 38 – उस्ताद अमजद अली खान साहब को जन्मदिवस (9 अक्तूबर) की हार्दिक शुभकामनाएँ
आज ‘सुर संगम’ के इस नये अंक में, आप सब संगीत-रसिकों का, कृष्णमोहन मिश्र की ओर से हार्दिक स्वागत है। आज देश के जाने-माने संगीतज्ञ और सरोद-वादक उस्ताद अमजद अली खाँ का जन्मदिन है। इस अवसर पर हम 'सुर-संगम' परिवार और देश-विदेश के करोड़ों संगीत-प्रेमियों की ओर से उस्ताद का हार्दिक अभिनन्दन करते हैं। वर्तमान में उस्ताद अमजद अली खाँ सरोद-वादकों में शिखर पर हैं और ‘सरोद-सम्राट’ की उपाधि से विभूषित हैं।
९ अक्तूबर, १९४५ को ग्वालियर में संगीत के सेनिया बंगश घराने की छठी पीढ़ी में जन्म लेने वाले अमजद अली खाँ को संगीत विरासत में प्राप्त हुआ था। इनके पिता उस्ताद हाफ़िज़ अली खाँ ग्वालियर राज-दरबार में प्रतिष्ठित संगीतज्ञ थे। इस घराने के संगीतज्ञों ने ही ईरान के लोकवाद्य ‘रबाब’ को भारतीय संगीत के अनुकूल परिवर्द्धित कर ‘सरोद’ नामकरण किया। अमजद अली अपने पिता हाफ़िज़ अली के सबसे छोटे पुत्र हैं। उस्ताद हाफ़िज़ अली खाँ ने परिवार के सबसे छोटे और सर्वप्रिय सन्तान को बहुत छोटी उम्र में ही संगीत-शिक्षा देना आरम्भ कर दिया था। मात्र बारह वर्ष की आयु में एकल सरोद-वादन का पहला सार्वजनिक प्रदर्शन किया था। एक छोटे से बालक की सरोद पर अनूठी लयकारी और तंत्रकारी सुन कर दिग्गज संगीतज्ञ दंग रह गए। उस्ताद अमजद अली खाँ और उनके सरोद पर चर्चा जारी रखेंगे। यहाँ थोड़ा रुक कर आइए उस्ताद के सरोद-वादन का आनन्द लेते हैं।
उस्ताद अमजद अली खाँ : राग – श्याम कल्याण : तीनताल मध्य लय
अमजद अली खाँ को बचपन में ही सरोद से ऐसा लगाव हुआ कि युवावस्था तक आते-आते एक श्रेष्ठ सरोद-वादक के रूप में पहचाने जाने लगे। उन्होने सरोद-वादन की शैली में विकास के लिए कई प्रयोग किये। उनका एक महत्त्वपूर्ण प्रयोग यह है कि सरोद के तारों को उँगलियों के सिरे से बजाने के स्थान पर नाखून से बजाना। सितार की भाँति सरोद में स्वरों के पर्दे नहीं होते, इसीलिए जब उँगलियों के सिरे के स्थान पर नाखूनों से इसे बजाया जाता है तब स्वरों की स्पष्टता और मधुरता बढ़ जाती है।
उस्ताद अमजद अली खाँ ने अनेक नये रागों की रचना भी की है। ये नवसृजित राग हैं- किरण रंजिनी, हरिप्रिया कान्हड़ा, शिवांजलि, श्यामश्री, सुहाग भैरव, ललितध्वनि, अमीरी तोड़ी, जवाहर मंजरी, और बापू कौंस। वर्तमान में उस्ताद अमजद अली खाँ संगीत जगत के सर्वश्रेष्ठ सरोद-वादक हैं। उनके वादन में इकहरी तानें, गमक, खयाल की बढ़त का काम अत्यंत आकर्षक होता है। आइए, यहाँ थोड़ा रुक कर सरोद पर खाँ साहब का बजाया एक और मोहक राग- कामोद का आनन्द लेते हैं। यह प्रस्तुति चौदह मात्रा की चाँचर ताल में है। तबला संगति उस्ताद शफ़ात अहमद खाँ ने की थी।
उस्ताद अमजद अली खाँ : राग – कामोद : चाँचर ताल
युवावस्था में ही उस्ताद अमजद अली खाँ ने सरोद-वादन में अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर ली थी। १९७१ में उन्होने द्वितीय एशियाई अन्तर्राष्ट्रीय संगीत-सम्मेलन में भाग लेकर ‘रोस्टम पुरस्कार’ प्राप्त किया था। यह सम्मेलन यूनेस्को की ओर से पेरिस में आयोजित किया गया था, जिसमें उन्होने ‘आकाशवाणी’ के प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया था। अमजद अली ने यह पुरस्कार मात्र २६ वर्ष की आयु में प्रपट किया था, जबकि इससे पूर्व १९६९ में यही ‘रोस्टम पुरस्कार’ उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ को शहनाई-वादन के लिए प्राप्त हो चुका था। १९६३ में मात्र १८ वर्ष की आयु में उन्होने पहली अमेरिका यात्रा की थी। इस यात्रा में पण्डित बिरजू महाराज के नृत्य-दल की प्रस्तुति के साथ अमजद अली खाँ का सरोद-वादन भी हुआ था। इस यात्रा का सबसे उल्लेखनीय पक्ष यह था कि खाँ साहब के सरोद-वादन में पण्डित बिरजू महाराज ने तबला संगति की थी और खाँ साहब ने कथक संरचनाओं में सरोद की संगति की थी।
उस्ताद अमजद अली खाँ ने देश-विदेश के अनेक महत्त्वपूर्ण संगीत केन्द्रों में प्रदर्शन कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया है। इनमें कुछ प्रमुख हैं- रायल अल्बर्ट हाल, रायल फेस्टिवल हाल, केनेडी सेंटर, हाउस ऑफ कामन्स, फ़्रंकफ़र्ट का मोजर्ट हाल, शिकागो सिंफनी सेंटर, आस्ट्रेलिया के सेंट जेम्स पैलेस और ओपेरा हाउस आदि। खाँ साहब अनेकानेक पुरस्कारों और सम्मानों से अलंकृत किये जा चुके हैं। इनमें कुछ प्रमुख सम्मान हैं- भारत सरकार द्वारा प्रदत्त ‘पद्मश्री’ और ‘पद्मभूषण’ सम्मान, संगीत नाटक अकादेमी पुरस्कार, तानसेन सम्मान, यूनेस्को पुरस्कार, यूनिसेफ का राष्ट्रीय राजदूत सम्मान आदि। वर्तमान में उस्ताद अमजद अली खाँ के दो पुत्र- अमान और अयान सहित देश-विदेश के अनेक शिष्य सरोद वादन की पताका फहरा रहे हैं। ‘हिंदयुग्म’ और ‘सुर संगम’ की ओर से आज उस्ताद अमजद अली खाँ को जन्म-दिन के अवसर पर शत-शत बधाई अर्पित करते हुए अपने पाठकों को सुनवाते हैं, उस्ताद अमजद अली खाँ द्वारा सरोद पर प्रस्तुत राग ‘भैरवी’ में एक दादरा।
उस्ताद अमजद अली खाँ : राग – भैरवी : दादरा ताल
अब समय आ चला है आज के 'सुर-संगम' के अंक को यहीं पर विराम देने का। अगले रविवार को हम एक और शास्त्रीय अथवा लोक कलासाधक के साथ पुनः उपस्थित होंगे। आशा है आपको यह प्रस्तुति पसन्द आई होगी। हमें बताइये कि किस प्रकार हम इस स्तम्भ को और रोचक बना सकते हैं! आप अपने विचार व सुझाव हमें लिख भेजिए oig@hindyugm.com के ई-मेल पते पर। शाम ६:३० 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल में पधारना न भूलिएगा, नमस्कार!
खोज व आलेख - कृष्णमोहन मिश्र
आवाज़ की कोशिश है कि हम इस माध्यम से न सिर्फ नए कलाकारों को एक विश्वव्यापी मंच प्रदान करें बल्कि संगीत की हर विधा पर जानकारियों को समेटें और सहेजें ताकि आज की पीढ़ी और आने वाली पीढ़ी हमारे संगीत धरोहरों के बारे में अधिक जान पायें. "ओल्ड इस गोल्ड" के जरिये फिल्म संगीत और "महफ़िल-ए-ग़ज़ल" के माध्यम से गैर फ़िल्मी संगीत की दुनिया से जानकारियाँ बटोरने के बाद अब शास्त्रीय संगीत के कुछ सूक्ष्म पक्षों को एक तार में पिरोने की एक कोशिश है शृंखला "सुर संगम". होस्ट हैं एक बार फिर आपके प्रिय सुजॉय जी.
नए साल के जश्न के साथ साथ आज तीन हिंदी फिल्म जगत के सितारे अपना जन्मदिन मन रहे हैं.ये नाना पाटेकर,सोनाली बेंद्रे और गायिक कविता कृष्णमूर्ति.
नाना पाटेकर उर्फ विश्वनाथ पाटेकर का जन्म १९५१ में हुआ था.नाना पाटेकर का नाम उन अभिनेताओं की सूची में दर्ज है जिन्होंने अभिनय की अपनी विधा स्वयं बनायी.गंभीर और संवेदनशील अभिनेता नाना पाटेकर ने यूं तो अपने फिल्मी कैरियर की शुरूआत १९७८ में गमन से की थी,पर अंकुश में व्यवस्था से जूझते युवक की भूमिका ने उन्हें दर्शकों के बीच व्यापक पहचान दिलायी.समानांतर फिल्मों में दर्शकों को अपने बेहतरीन अभिनय से प्रभावित करने वाले नाना पाटेकर ने धीरे-धीरे मुख्य धारा की फिल्मों की ओर रूख किया.क्रांतिवीर और तिरंगा जैसी फिल्मों में केंद्रीय भूमिका निभाकर उन्होंने समकालीन अभिनेताओं को चुनौती दी.फिल्म क्रांतिवीर के लिए उन्हें १९९५ में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरष्कार मिला था.इस पुरष्कार को उन्होंने तीन बार प्राप्त करा.पहली बार फिल्म परिंदा के लिए १९९० में सपोर्टिंग एक्टर का और फिर १९९७ में अग्निसाक्षी फिल्म के लिए १९९७ में सपोर्टिंग एक्टर का.४ बार उन्हें फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला.एक एक बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और सपोर्टिंग एक्टर का और दो बार सर्वश्रेष्ठ खलनायक का.
सोनाली बेंद्रे का जन्म १९७५ में हुआ.सोनाली बेंद्रे ने अपने करियर की शुरूआत १९९४ से की.दुबली-पतली और सुंदर चेहरे वाली सोनाली ज्यादातर फिल्मों में ग्लैमर गर्ल के रूप में नजर आई. प्रतिभाशाली होने के बावजूद सोनाली को बॉलीवुड में ज्यादा अवसर नहीं मिल पाए.सोनाली आमिर और शाहरूख खान जैसे सितारों की नायिका भी बनीं.उन्हें ११९४ में श्रेष्ठ नये कलाकार का फिल्मफेअर अवॉर्ड मिला.
सन १९५८ में जन्मी कविता कृष्णमूर्ति ने शुरुआत करी लता मंगेशकर के गानों को डब करके.हिंदी गानों को अपनी आवाज से उन्होंने एक नयी पहचान दी. उन्हें ४ बार सर्वश्रेष्ठ हिंदी गायिका का फिल्मफेयर पुरष्कार मिल चूका है. २००५ में उन्हें भारत सरकार से पद्मश्री सम्मान मिला.
इन तीनो को इन पर फिल्माए और गाये दस गानों के माध्यम से रेडियो प्लेबैक इंडिया के ओर से जन्मदिन की शुभकामनायें.



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2 श्रोताओं का कहना है :
उस्ताद को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ
अमजद अली साहब का जन्मदिन है.उन्हें बहुत बहुत शुभकामनाये और बधाई. हिन्दुस्तानी वाद्य सरोद के वो मास्टर है इसमें कोई शक नही.उन्ही से मैंने इस वाद्य यंत्र का नाम जाना और सुनना शुरू किया.अब बिना देखे मैं बता देती हूँ कि यह सरोद कौन बजा रहा है.उनकी अपनी एक शैली सी है जैसे.
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