ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 762/2011/202
'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार, और बहुत बहुत स्वागत है आप सभी का इस सुरीली महफ़िल में। कल से हमने शुरु की है पूर्वी और पुर्वोत्तर भारत के लोक गीतों पर आधारित हिन्दी फ़िल्मी गीतों से सजी लघु शृंखला 'पुरवाई'। कल पहली कड़ी में आपनें सुनी अनिल बिस्वास के संगीत में मेघालय के खासी जनजाति के एक लोक धुन पर आधारित मीना कपूर की गाई फ़िल्म 'राही' की एक लोरी। आज जो गीत हम लेकर आये हैं उसके संगीतकार भी अनिल बिस्वास ही हैं और गायिका भी मीना कपूर ही हैं। पर साथ में मन्ना डे की आवाज़ भी शामिल है। पर यह गीत किसी खासी लोक धुन पर नहीं बल्कि असम की सबसे ज़्यादा लोकप्रिय लोक-गीत 'बिहु' पर आधारित है। बिहु में गीत, संगीत और नृत्य, तीनों की समान रूप से प्रधानता होती है। इनमें से कोई भी एक अगर कमज़ोर पड़ जाए, तो बात नहीं बनती। बिहु असम का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार भी है और बिहु गीत व बिहु नृत्य इस त्योहार का प्रतीक स्वरूप है। 'बिहु' शब्द 'दिमसा कछारी' जनजाति के भाषा से आया है। ये लोग मुख्यत: कृषि प्रधान होते हैं और ये ब्राई शिबराई यानि बाबा शिबराई की पूजा करते हैं। मौसम के पहली फसल को ये लोग ब्राई शिबराई को समर्पित करते हैं और उनसे शान्ति और ख़ुशहाली की दुआ माँगते हैं। इस तरह से "बि" का अर्थ है "माँगना" और "शु" का अर्थ है "शान्ति और ख़ुशहाली"। यहीं से आया है "बिशु", और क्योंकि असमीया में "श" का उच्चारण "ह" भी होता है, इस तरह से "बिशु" बन गया है "बिहु"। यूं तो बिहु साल में कई बार आता है अलग अलग रूप लेकर, लेकिन गीत-संगीत वाले बिहु की बात करें तो यह अप्रैल के महीने में बैसाखी के समय आता है जिसे 'रंगाली बिहु' या "बहाग (बैसाख) बिहु" कहा जाता है। 'रंगाली बिहु' का त्योहार उपजाऊ धरती का प्रतीक है, जिसमें बिहु नृत्य के माध्यम से स्त्री-पुरुष उत्तेजक अंग भंगिमाओं से अपनी उर्वरक होने का आहवान करते हैं। बिहु गीत-संगीत में जिन वाद्यों का प्रयोग होता है, उनमें मुख्य रूप से शामिल हैं ढोल, ताल, पेपा, टोका, बांसुरी, ख़ुतुली और गोगोना। ये सभी असम के पारम्परिक वाद्य हैं।
मीना कपूर, मन्ना डे और साथियों के गाए अनिल बिस्वास के संगीत पर हमने जिस गीत को चुना है वह है १९६२ की फ़िल्म 'सौतेला भाई' का। इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे गुरु दत्त, प्रनोती घोष और बेला बोस। किसी भी बिहु गीत में रीदम के साथ मुख्य गीत शुरु होने से पहले बिना ताल के दो तीन लाइनें होती हैं, यानि जैसे कि मुखड़े के पहले का शेर। इसी तरह से प्रस्तुत गीत में भी मुख्य गीत शुरु होने से पहले के बोल हैं "फूले बन बगिया, खिली कली कली, आई ॠतु अलबेली, संग की सहेलियाँ गईं पिया घर, रह गई दैया मैं अकेली"। फिर इसके बाद बिहु रीदम के साथ मुखड़ा शुरु होता है "काह्हा करूँ, आह्हा जिया, मोह्ह गई, देखो जिया रे"। शैलेन्द्र का लिखा यह गीत है और मूल बिहु गीत के बोल हैं "पाह गिसा साह कोरी नेह लागी....."। बिहु के रीदम पर हिन्दी के बोलों को बिठाना, इसमें जो शब्दों की कटिंग् है, वह आसान काम नहीं था, इस बारे में जानिये अनिल बिस्वास से ही। "बहुत मुश्किल हुई थी। मेरे जैसे शैलेन्द्र जो थे न, वो भी चैलेन्ज उनको कर दो तो वो भी सर खपा देते थे। उन्होंने मुझसे कहा कि 'दादा, मैं अब हिन्दी शब्द को इसके जैसे कैसे तोड़ूं जो आसामी लोग तोड़ गए?' मैंने कहा कि यह गाना मुझे चाहिए, अब तुम्हारे सिवा कौन लिखेगा मुझे पता नहीं। फिर कहने लगे कि हम ज़रा समुन्दर किनारे होकर आते हैं। गए और लिख के ले आए "काह करूँ आह जिया मोह गई रे। मैंने बोला यह तो वैसा नहीं लग रहा है। तो बोले कि इसको आप ऐसे गाओ "काह्ह करूँ आह्ह जिया मोह्ह गई देखो जिया रे"। मैं क्या बताऊँ, 'हैट्स ऑफ़ टू दैट मैन"! तो लीजिए दोस्तों, बिहु पर आधारित फ़िल्म 'सौतेला भाई' का यह गीत सुनिए मीना कपूर, मन्ना डे और साथियों की आवाज़ों में।
चलिए आज से खेलते हैं एक "गेस गेम" यानी सिर्फ एक हिंट मिलेगा, आपने अंदाजा लगाना है उसी एक हिंट से अगले गीत का. जाहिर है एक हिंट वाले कई गीत हो सकते हैं, तो यहाँ आपका ज्ञान और भाग्य दोनों की आजमाईश है, और हाँ एक आई डी से आप जितने चाहें "गेस" मार सकते हैं - आज का हिंट है -
मुखड़े में शब्द है "बंसी" और "हरजाई"
पिछले अंक में
वाह अमित भाई
खोज व आलेख- सुजॉय चट्टर्जी
नए साल के जश्न के साथ साथ आज तीन हिंदी फिल्म जगत के सितारे अपना जन्मदिन मन रहे हैं.ये नाना पाटेकर,सोनाली बेंद्रे और गायिक कविता कृष्णमूर्ति.
नाना पाटेकर उर्फ विश्वनाथ पाटेकर का जन्म १९५१ में हुआ था.नाना पाटेकर का नाम उन अभिनेताओं की सूची में दर्ज है जिन्होंने अभिनय की अपनी विधा स्वयं बनायी.गंभीर और संवेदनशील अभिनेता नाना पाटेकर ने यूं तो अपने फिल्मी कैरियर की शुरूआत १९७८ में गमन से की थी,पर अंकुश में व्यवस्था से जूझते युवक की भूमिका ने उन्हें दर्शकों के बीच व्यापक पहचान दिलायी.समानांतर फिल्मों में दर्शकों को अपने बेहतरीन अभिनय से प्रभावित करने वाले नाना पाटेकर ने धीरे-धीरे मुख्य धारा की फिल्मों की ओर रूख किया.क्रांतिवीर और तिरंगा जैसी फिल्मों में केंद्रीय भूमिका निभाकर उन्होंने समकालीन अभिनेताओं को चुनौती दी.फिल्म क्रांतिवीर के लिए उन्हें १९९५ में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरष्कार मिला था.इस पुरष्कार को उन्होंने तीन बार प्राप्त करा.पहली बार फिल्म परिंदा के लिए १९९० में सपोर्टिंग एक्टर का और फिर १९९७ में अग्निसाक्षी फिल्म के लिए १९९७ में सपोर्टिंग एक्टर का.४ बार उन्हें फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला.एक एक बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और सपोर्टिंग एक्टर का और दो बार सर्वश्रेष्ठ खलनायक का.
सोनाली बेंद्रे का जन्म १९७५ में हुआ.सोनाली बेंद्रे ने अपने करियर की शुरूआत १९९४ से की.दुबली-पतली और सुंदर चेहरे वाली सोनाली ज्यादातर फिल्मों में ग्लैमर गर्ल के रूप में नजर आई. प्रतिभाशाली होने के बावजूद सोनाली को बॉलीवुड में ज्यादा अवसर नहीं मिल पाए.सोनाली आमिर और शाहरूख खान जैसे सितारों की नायिका भी बनीं.उन्हें ११९४ में श्रेष्ठ नये कलाकार का फिल्मफेअर अवॉर्ड मिला.
सन १९५८ में जन्मी कविता कृष्णमूर्ति ने शुरुआत करी लता मंगेशकर के गानों को डब करके.हिंदी गानों को अपनी आवाज से उन्होंने एक नयी पहचान दी. उन्हें ४ बार सर्वश्रेष्ठ हिंदी गायिका का फिल्मफेयर पुरष्कार मिल चूका है. २००५ में उन्हें भारत सरकार से पद्मश्री सम्मान मिला.
इन तीनो को इन पर फिल्माए और गाये दस गानों के माध्यम से रेडियो प्लेबैक इंडिया के ओर से जन्मदिन की शुभकामनायें.



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4 श्रोताओं का कहना है :
मैं तो गाना पहचान गया. पर बताऊँगा नहीं. देखें बाकी लोग पहचान पाते हैं या नहीं.
ये गाना गाया है 'लक्ष्मी शंकर' ने और संगीतबद्ध करा है 'भूपेन हजारिका' ने.
एक और हिंट: यू ट्यूब पर यह गाना उपलब्ध है
अब आप लोग मुझ पर जो चाहे आरोप लगाओ
ऐसिच हूँ मैं तो
सायरा बानो जी से कम हूँ न विनोद खन्ना जी से न माया गोविन्द जी से.हा हा हा लाखों में एक हूँ
न रे शब्द भूल गई थी बंसी नही निंदिया चुराई
जब से तूने बंसी चुराई बैरन निंदिया चुराई ओ रे ओ हरजाई
.........
हा हा हा मैं भी नही बताऊंगी
जीत का सेहरा अमित जी को ही जाना चाहिए बस
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