रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


ComScore
प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Friday, February 19, 2010

तू मेरा चाँद मैं तेरी चाँदनी...ये गीत समर्पित है हमारे श्रोताओं को जिनकी बदौलत ओल्ड इस गोल्ड ने पूरा किया एक वर्ष का सफर



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 350/2010/50

'प्योर गोल्ड' की अंतिम कड़ी के साथ हम हाज़िर हैं। १९४० से शुरु कर साल दर साल आगे बढ़ते हुए आज हम आ पहुँचे हैं इस दशक के अंतिम साल १९४९ पर। फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर की अगर हम बात करें तो सही मायने में इस दौर की शुरुआत १९४८-४९ के आसपास से मानी जानी चाहिए। यही वह समय था जब फ़िल्म संगीत ने एक बार फिर से नयी करवट ली और नए नए प्रयोग इसमें हुए, नई नई आवाज़ों ने क़दम रखा जिनसे यह सुनहरा दौर चमक उठा। 'बरसात', 'अंदाज़', 'महल', 'शायर', 'जीत', 'लाहौर', 'एक थी लड़की', 'लाडली', 'दिल्लगी', 'दुलारी', 'पतंगा', और 'बड़ी बहन' जैसी सुपर हिट म्युज़िकल फ़िल्मों ने एक साथ एक ऐसी सुरीली बारिश की कि जिसकी बूंदें आज तक हमें भीगो रही है। दोस्तों, हम चाहते तो इन फ़िल्मों से चुनकर लता मंगेशकर या मुकेश या मोहम्मद रफ़ी या फिर शमशाद बेग़म या गीता रॊय का गाया कोई गीत आज सुनवा सकते थे। लेकिन इस शृंखला में हमने कोशिश यही की है कि उन कलाकारों को ज़्यादा बढ़ावा दिया जाए जो सही अर्थ में ४० के दशक को रिप्रेज़ेंट करते हैं। इसलिए हमने चुना है एक ऐसी आवाज़ जिसके ज़िक्र के बग़ैर यह शृंखला अधूरी ही रह जाएगी। जी हाँ, ४० के दशक को समर्पित इस शृंखला की अंतिम कड़ी में पेश-ए-ख़िदमत है गायिका सुरैय्या की आवाज़ का जादू। फ़िल्म 'दिल्लगी', और इस गीत में सुरैय्या का साथ दिया है अभिनेता व गायक श्याम ने। याद है ना वह हिट गीत "तू मेरा चांद मैं तेरी चांदनी"? शक़ील बदायूनी के बोल और नौशाद साहब की तर्ज़। यह अब्दुल रशीद कारदार की फ़िल्म थी, जिन्होने इसी साल फ़िल्म 'दुलारी' का निर्माण भी किया था।

आज अगर फ़िल्म 'दिल्लगी' याद की जाती है तो केवल इसके सुरीले गीतों की वजह से। हम आपको बता दें कि आज के इस गीत के दो वर्ज़न बने थे, एक तो सुरैय्या और श्याम ने गाए, दूसरा वर्ज़न गाया श्याम और गीता रॊय ने। जी हाँ। सुरैय्या वाले गीत में नौशाद साहब ने बांसुरी का सुरीला इस्तेमाल किया है प्रिल्युड और इंटरल्युड में। दोनों गीतों के ऒर्केस्ट्रेशन में ही ना केवल फ़र्क है, बल्कि मेल-फ़ीमेल पोर्शन में भी काफ़ी फ़र्क है। जहाँ एक तरफ़ सुरैय्या और श्याम बारी बारी से और कभी कभी साथ में गाते हैं, वहीं दूसरी तरफ़ गीता-श्याम वाले वर्ज़न में श्याम गीत की शुरुआत करते हैं जब कि गीता जी रिले रेस की तरह उनसे गीत अपने हाथ ले लेती है और अंत तक वोही गातीं हैं। जहाँ एक तरफ़ सुरैय्या की वज़नदार और परिपक्कव आवाज़, वहीं दूसरी तरफ़ कमसिन गीता रॊय का मोडुलेशन और रवानी भरा अंदाज़। वाक़ई यह बताना मुश्किल है कि कौन किससे बेहतर! नूरजहाँ के पाक़िस्तान चले जाने के बाद सुरैय्या फ़िल्म जगत की सब से ज़्यादा पारिश्रमिक पाने वाली नायिका बन गईं थीं। यह अलग बत है कि बहुत जल्द ही वो फ़िल्मी दुनिया को अलविदा कह दिया, कुछ अपने व्यक्तिगत कारणों से और कुछ बदलते दौर की वजह से जिसमें उन्हे दूसरी नायिकाओं के लिए प्लेबैक करना गवारा नहीं हुआ। फ़िल्म 'दिल्लगी' में प्रस्तुत गीत के अलावा सुरैय्या के गाए कुछ और बेहद हिट गानें थे जैसे कि "मुरलीवाले मुरली बजा सुन सुन मुरली को नाचे जिया" और "तेरा ख़याल दिल से भुलाया ना जाएगा, उल्फ़त की ज़िंदगी को मिटाया ना जाएगा"। और भी गाने थे उनके गाए हुए इस फ़िल्म में जैसे कि "चार दिन की चांदनी थी फिर अंधेरी रात है", "निराला मोहब्बत का दस्तूर देखा", "लेके दिल चुपके से किया मजबूर हाए" और "दुनिया क्या जाने मेरा अफ़साना क्यों गाए दिल उल्फ़त का तराना"। हर गीत में उनका अलग अंदाज़ सुनने को मिला। मोहम्मद रफ़ी ने भी इस फ़िल्म में एक ग़मज़दा नग़मा गाया था "इस दुनिया में ऐ दिलवालों दिल का लगाना खेल नहीं"। तो दोस्तों, यह थी ४० के दशक के हर साल से चुन कर एक एक गीत इस ख़ास शृंखला 'प्योर गोल्ड' के अंतर्गत। हमें आशा है आपको पसंद आई होगी। और इसी के साथ 'ओल्ड इज़ गोल्ड' ने पूरे किए ३५० अंक और साथ ही आज पूरा हुआ इस शृंखला का एक साल। २० फ़रवरी २००९ में शुरु हुई इस शृंखला को यहाँ तक लेकर आने में आप सब ने जो हमारी हौसला अफ़ज़ाई की है, उसके लिए हम आप के तहे दिल से शुक्रगुज़ार हैं। आगे भी इसी तरह का साथ बनाए रखिएगा, क्योंकि हमारा साथ चांद और चांदनी का है, राग और रागिनी का है। सुनते हैं "तू मेरा चांद मैं तेरी चांदनी, तू मेरा राग मैं तेरी रागिनी"।



चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम रोज आपको देंगें ४ पंक्तियाँ और हर पंक्ति में कोई एक शब्द होगा जो होगा आपका सूत्र. यानी कुल चार शब्द आपको मिलेंगें जो अगले गीत के किसी एक अंतरे में इस्तेमाल हुए होंगें, जो शब्द बोल्ड दिख रहे हैं वो आपके सूत्र हैं बाकी शब्द बची हुई पंक्तियों में से चुनकर आपने पहेली सुलझानी है, और बूझना है वो अगला गीत. साथ ही जवाब देना है उन सवालों का जो नीचे दिए गए हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रही आज की पंक्तियाँ-

उम्मीद बुझ गयी सभी,
लेकिन ये कम तो नहीं,
हासिल हैं तेरी सोहबतें,
जीने को है आसरा तेरा...

1. बताईये इस गीत की पहली पंक्ति कौन सी है - सही जवाब को मिलेंगें ३ अंक.
2. इस खूबसूरत ग़ज़ल को किस शायर/गीतकार ने लिखा है - सही जवाब को मिलेंगें २ अंक.
3. ग़ज़ल गायिकी के सरताज तलत साहब की इस ग़ज़ल को किसने स्वरबद्ध किया है- २ अंक.
4. तलत साहब ने अपने बांगला गीत किस नाम से गाये हैं - सही जवाब के मिलेंगें २ अंक.

पिछली पहेली का परिणाम-
शरद जी का स्कोर २० अंकों पर पहुँच चुका है. इंदु जी पहेली के नए संस्करण में पहली बार आई और उनका खाता खुला है २ अंकों से. बधाई...सही है इंदु जी आपकी बात. देखते हैं अभी कुछ समय और....

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
पहेली रचना -सजीव सारथी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

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3 श्रोताओं का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

4. tapan kumar

ROHIT RAJPUT

निर्मला कपिला का कहना है कि -

बहुत दिन से अनुपस्थित हूँ क्षमा चाहती हूँ शायद ये गीत बहुत ही दिल के करीब है इसी लिये अचानक नज़र पड गयी धन्यवाद।

indu puri का कहना है कि -

teri umid per jeene se hasil kuch nahi lekin
agar yunhi na dil ko aasra dete to kya hota bharam teri wafao ka .......

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