ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 333/2010/33
फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर की कमचर्चित पार्श्वगायिकाओं को समर्पित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की ख़ास लघु शृंखला 'हमारी याद आएगी' की तीसरी कड़ी में आज बातें गायिका मीना कपूर की। जी हाँ, वही मीना कपूर जो एक सुरीली गायिका होने के साथ साथ सुप्रसिद्ध संगीतकार अनिल बिस्वास जी की धर्मपत्नी भी हैं। अनिल दा तो नहीं रहे, मीना जी आजकल दिल्ली में रहती हैं। दोस्तों, आप में से कई पाठक हर मंदिर सिंह 'हमराज़' के नाम से वाकिफ होंगे जिन्होने फ़िल्मी गीत कोश का प्रकाशन किया एक लम्बे समय से शोध कार्य करने के बाद। इस शोध कार्य के दौरान वे फ़िल्म जगत के तमाम कलाकारों से ख़ुद जा कर मिले और तमाम जानकारियाँ बटोरे। उनकी निष्ठा और लगन का ही नतीजा है कि १९३१ से लेकर ८० के दशक तक के सभी फ़िल्मों के सभी गीतों के डिटेल्स उनके बनाए गीत कोश में दर्ज है। तो एक बार वे दिल्ली में अनिल दा के घर भी गए थे। आइए उन्ही की ज़बानी में सुनें उस मुलाक़ात के बारे में जिसमें अनिल दा के साथ साथ मीना जी से भी उनकी भेंट हुई और मीना जी के गाए शुरु शुर के गीतों के बारे में कुछ दुर्लभ बातें पता चली। 'हमराज़' जी 'लिस्नर्स बुलेटिन' पत्रिका के सम्पादक भी हैं और उस मुलाक़ात को उन्होने इस पत्रिका के ६८-वें अंक में सन् १९८७ में प्रकाशित किया था, प्रस्तुत है। "२५ नवंबर १९८६ को दिल्ली में अनिल दा के घर पर उनकी १९३५ से १९४० तक हिंदी फ़िल्मों के गीतों के गयकों की जानकारी प्राप्त करने के लिए जब मेरी बातचीत चल रही थी तो एकाएक गायिका मीना कपूर जी आ गईं। तब उनके गाए गीतों की बात चल पड़ी। मीना जी ने बताया कि सब से पहला गीत उन्होने संगीतकार नीनू मजुमदार के निर्देशन में फ़िल्म 'पुल' में सन् १९४७ में गाया था - "नाथ तुम जानत हो सब गट की"। इसके बाद की २-३ फ़िल्मों के लिए भी नीनू मजुमदार जी ने ही उनसे गीत गवाए थे - जेलयात्रा ('४७), गड़िया ('४७ - "सुंदर सुंदर प्यारे प्यारे", "रात की गोदी में" , "निंदिया देश चलो री"), कुछ नया ('४८) इत्यादि।"
मीना कपूर ने अनिल दा के संगीत निर्देशन में भी बहुत से फ़िल्मों में गानें गाए हैं, लेकिन बहुत बार ऐसा हुआ कि फ़िल्म के पर्दे पर तो उनकी आवाज़ रही, लेकिन ग्रामोफ़ोन रिकार्ड के लिए उन्ही गीतों को लता जी से गवाया गया। और क्योंकि रिकार्ड वाले वर्ज़न ही श्रोताओं को सुनने को मिलता है, इस तरह से मीना जी के गाए तमाम गानों से उनके चाहने वाले वंचित रह गए। १९४८ की एक ऐसी ही फ़िल्म थी 'अनोखा प्यार', जिसमें अनिल दा ने नरगिस के लिए मीना जी की आवाज़ को चुना था। लेकिन बाद में जब रिकर्ड पर लता जी की आवाज़ सुनाई दी तो ऐसा कहा गया कि उस वक़्त मीना जी बीमार थीं जिसकी वजह से लता जी ने रिकार्ड के लिए वो गीत गाएँ। वैसे लता जी ने इस फ़िल्म में नलिनी जयवंत के लिए पार्श्वगायन किया था। मीना जी के गाए हिट गीतों में चितलकर के साथ उनका गाया "आना मेरी जान संडे के संडे" ख़ासा लोकप्रिय हुआ था। ५० के दशक में भी अनिल दा के कुछ फ़िल्मों में उनके गाए गीत ख़ूब पसंद किए गए जैसे कि फ़िल्म 'परदेसी', 'छोटी छोटी बातें', और 'चार दिल चार राहें'। आज के लिए हमने चुना है १९५७ की फ़िल्म 'परदेसी' का एक बड़ा ही दिल को छू लेने वाला गीत, "रसिया रे, मन बसिया रे, तेरे बिना जिया मोरा लागे ना"। यह फ़िल्म पहली इंडो रशियन को-प्रोडक्शन फ़िल्म थी, जिसका निर्माण रूस में हुआ था। कहानी ख्वाजा अहमद अब्बास व मारिया स्मिर्नोवा की थी, तथा निर्देशन अब्बास साहब और वसिलि प्रोनिन का था। फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे डेविड अब्राहम, इया अरेपिना, विताली बेलियाकोव, पी. जयराज, पृथ्वीराज कपूर, श्तीफ़न कायुकोव, मनमोहन कृष्णा, नरगिस, वरवरा ओबुखोवा, पद्मिनी, अचला सचदेव, बलराज साहनी, ओलेग स्ट्रिज़ेनोव प्रमुख। उस साल के फ़िमफ़ेयर पुरस्कार में सर्वश्रेष्ठ कला निर्देशन के लिए एम. आर. आचरेकर को पुरस्कार मिला था इस फ़िल्म के लिए। जहाँ तक संगीत पक्ष का सवाल है, अनिल दा का संगीत था और प्रेम धवन के बोल। दोस्तों, आज अनिल दा हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी जीवन संगिनी मीना जी का गाया हुआ यह गीत जैसे आज पुकार पुकार कर उन्हे आवाज़ दे रहा है कि "तेरे बिना जिया मोरा लागे ना"। जानेवाले तो कभी वापस नहीं आते, लेकिन ऐसे कलाकार जाकर भी नहीं जाते। गुज़रे ज़माने के ये अनमोल तराने हमेशा हमेशा उन्हे हमारे बीच मौजूद रखेंगे। मीना कपूर जी को उत्तम स्वास्थ्य और लम्बी आयु के लिए शुभकामनाएँ देते हुए आइए सुनते हैं उनका गाया यह सुरीला नग़मा।
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम रोज आपको देंगें ४ पंक्तियाँ और हर पंक्ति में कोई एक शब्द होगा जो होगा आपका सूत्र. यानी कुल चार शब्द आपको मिलेंगें जो अगले गीत के किसी एक अंतरे में इस्तेमाल हुए होंगें, जो शब्द बोल्ड दिख रहे हैं वो आपके सूत्र हैं बाकी शब्द बची हुई पंक्तियों में से चुनकर आपने पहेली सुलझानी है, और बूझना है वो अगला गीत. तो लीजिए ये रही आज की पंक्तियाँ-
इबादत में उठे हैं आज फिर हाथ मेरे,
ऐ खुदा मिटा दे उसके दिल से हर गिला,
वो मेरा सनम जो दूर हो गया नज़रों से,
है जुस्तजू जिसकी उससे दे मुझे मिला...
अतिरिक्त सूत्र- साहिर लुधियानवीं का लिखा है ये गीत
पिछली पहेली का परिणाम-
जी शरद जी आपने हमारी गलती पर सही ध्यान दिलाया. पर आपको बधाई...क्या वाकई आपको ये सभी गाने जुबानी याद हैं :), ग्रेट
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
पहेली रचना -सजीव सारथी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
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4 श्रोताओं का कहना है :
सलाम-ए- हसरत कबूल मर लो.
सुधा मल्होत्रा
तुम्हीं निगाहों की जुस्तजू हो.
तुम्हीं ख्यालों का मुद्दा हो.
तुम्हीं मेरे वास्ते सनम हो.
तुम्हीं मेरे वास्ते खुदा हो.
मेरी इबादत कबूल कर लो.
सलाम-ए-हसरत कबूल कर लो.
फिल्म- बाबर
क्या मधुर संगीत था रोशन साहेब का. हर गीत एक से बढ़ कर एक
अवध लाल
अरे यह क्या हो गया?
बहुत बड़ी भूल हो गयी.
'कर' की जगह 'मर' लिख गया.
इसीलिए कहते हैं जल्दी का काम शैतान का. :-))
सुधीजन और गुणीजन कृपया क्षमा करें और त्रुटि परिमार्जन का अवसर दें.
सलाम-ए-हसरत कबूल कर लो,
मेरी मोहब्बत कबूल कर लो.
अवध लाल
आपका किन शब्दों में धन्यवाद करूं हिंदी युग्म
कितना दर्द भरा है इस गीत में रसिया रे जी कर इस गीत को गाया है
बहुत ही गुनगुनाते थी
गुड्डो दादी चिकागो से
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