ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 427/2010/127
दिल लूटने वाले जादूगर कल्याणजी-आनंदजी के स्वरबद्ध गीतों से सजी 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस लघु शृंखला की सातवीं कड़ी में हम फिर एक बार सन् १९७० की ही एक फ़िल्म का गीत सुनने जा रहे हैं। देव आनंद-हेमा मालिनी अभिनीत सुपर डुपर हिट फ़िल्म 'जॊनी मेरा नाम'। एक फ़िल्म को सफल बनाने के लिए जिन जिन साज़ो सामान की ज़रूरत पड़ती है, वो सब मौजूद थी इस फ़िल्म में। बताने की ज़रूरत नहीं कि फ़िल्म के गीत संगीत ने भी एक बेहद महत्वपूर्ण पक्ष निभाया। फ़िल्म का हर एक गीत सुपरहिट हुआ, चाहे वह आशा-किशोर का गाया "ओ मेरे राजा" हो या किशोर की एकल आवाज़ में "नफ़रत करने वालों के सीने में प्यार भर दूँ", उषा खन्ना के साथ किशोर दा का गाया "पल भर के लिए कोई हमें प्यार कर ले" हो, आशा जी की मादक आवाज़-ओ-अंदाज़ में "हुस्न के लाखों रंग" हो, या लता जी के गाए दो गीत "मोसे मोरा श्याम रूठा" और "ओ बाबुल प्यारे"। इंदीवर और अनजान के लिखे इस फ़िल्म के ये सारे गीत गली गली गूंजे। अब इस फ़िल्म से किसी एक गीत को आज यहाँ पर सुनवाने की बात आई तो हम कुछ दुविधा में पड़ गए कि किस गीत को बजाया जाए। फिर शब्दों के स्तर पे अगर ग़ौर करें, तो "ओ बाबुल प्यारे" गीत को ही फ़िल्म का सर्वश्रेष्ठ गीत माना जाना चाहिए, ऐसा हमारा विचार है। और इसीलिए हमने इसी गीत को चुना है। सिचुएशन कुछ ऐसा है कि नायिका के बूढ़े पिता को क़ैद कर रखा गया है, और क़ैदख़ाने के ठीक बाहर नायिका यह गीत गा रही है, इस बात से बिल्कुल बेख़बर कि उनके और उनके पिता के बीच का फ़ासला बहुत ही कम है। गीत के बोलों में अनजान साहब ने जान डाल दी है कि गीत को सुनते हुए जैसे कलेजा कांप उठता है। मुखड़े में "ओ" का इस्तेमाल इस तरह का शायद ही किसी और गाने में किसी ने किया होगा! "ओ बाबुल प्यारे, ओ रोये पायल की छमछम, ओ सिसके सांसों की सरगम, ओ निसदिन तुझे पुकारे मन हो"। पिता-पुत्री के रिश्ते पर बने गीतों में यह एक बेहद महत्वपूर्ण गीत रहा है। गीत के तीसरे अंतरे में राजा जनक और सीता का उल्लेख करते हुए नायिका गाती हैं - "जनक ने कैसे त्याग दिया है अपनी ही जानकी को, बेटी भटके राहों में, माता डूबी आहों में, तरसे तेरे दरस को नयन"। और कल्याणजी-आनंदजी ने इस गीत की धुन भी कुछ ऐसी बनाई है कि बताना मुश्किल है कि गीतकार, गायिका और संगीतकार में किसे नम्बर एक माना जाए इस गीत के लिए!
फ़ारूख़ क़ैसर, आनंद बक्शी, इंदीवर और राजेन्द्र कृष्ण के बाद आज हम अनजान साहब की रचना सुन रहे हैं, और बताना ज़रूरी है कि अनजान साहब ने कल्याणजी-आनंदजी के साथ एक लम्बा सफ़र तय किया है। तो क्यों ना आज आनंदजी के 'उजाले उनकी यादों के' वाली मुलाक़ात से उस अंश को यहाँ प्रस्तुत किया जाए जिसमें उनसे पूछा गया था कि उनके हिसाब से उनका सब से अच्छा काम किस गीतकार के साथ हुआ है। सवाल पूछ रहे हैं विविध भारती के वरिष्ठ उद्घोषक श्री कमल शर्मा।
प्र: आनंदजी, आपको लगता है कि आपका जो 'best work' है, वो इंदीवर जी के साथ में हुआ है या आनंद बक्शी साहब के साथ में हुआ है?
उ: नहीं, हमने, क्या हुआ, जब अनजान जी आए न, अनजान जी से एक बात कही मैंने। तो स्ट्रगल के दिनों में जब आनजान जी आए, तो अनजान जी से कहा कि काम, बडे सीधे आदमी थे, बड़े सीधे सच्चे आदमी थे, उनसे कहा कि काम तो ईश्वर दिलाएगा, लेकिन ये जो स्ट्रगल पीरियड चला है आपका, इसमें एक ही काम कर लीजिए आप, कि तीन 'म्युज़िक डिरेक्टर्स' चल रहे हैं - कल्याणजी-आनंदजी, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल और आर.डी. बर्मन - इन तीनों के पास जाओ कि पुरिया क्या बेचनी है, माल क्या देना है। बोले हर जगह तो गाना ही लिखूँगा। मैंने कहा कि ऐसा नही होता है, हर किसी का एक अलग लिखवाने का अंदाज़ होता है। तो बोले कि वह क्या होता है? मैंने कहा कि वो सोचो आप और फिर दो दिन के बाद आइए आप, ज़रा सोच के आइए कि क्या करना है। तो दूसरे तीसरे दिन आए तो बोले कि थोड़ी बात समझ में आई, कि आपके गानों में मैंने देखा कि फ़िलोसोफ़ी चाहिए। मैंने कहा कि सही कहा आपने, हमारे गीतों में फ़िलोसोफ़ी चाहिए कहीं ना कहीं, डायरेक्टली या इनडायरेक्टली। कि अपने हाथों से हवाओं को गिरफ़्तार ना कर, कि पहले पेट पूजा, फिर काम करो कोई दूजा, कुछ ना कुछ तो आएगा ही। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के वहाँ थोड़ा गिरा गाना लाना पड़ेगा, क़व्वाली का रंग, थोड़ा ठेका लाना पड़ेगा, और आर.डी के पास जाएँगे तो लास्ट नोट जो होगी वह लम्बी होगी, तो ऊ, ई नहीं चलेगा वहाँ पे। तो बाद मे अनजान जी जब मिले, बहुत काम करने लगे थे, बोले 'गुरु, वह पुरिया बहुत काम आ रही है, जहाँ भी जाओ फ़टाफ़ट काम हो जाता है, कि उसके वहाँ जाना है तो क्या देना है'।
प्र: गुरु मंत्र तो आप ही से मिला था! (हँसते हुए)
उ: अब क्या हुआ था कि एक गाना था हमारा, फ़िल्म लाइन में चलता है ना, जुमले चलते हैं, कभी कुछ चलता है, कभी कुछ, बीच में जानू, जानेमन, जानेजिगर, ये सब चलने लगा था। मैंने अनजान जी को बोला कि अनजान जी, एक काम कीजिए ना, सारे के सारे एक में डाल देते हैं हम लोग, जानू, जानम, जानेमन, जानेवफ़ा, जानेजहाँ। अनजान जी बोले 'जान छूटे इनसे'।
तो दोस्तों, कुछ हँसी मज़ाक की बातें हो गईं, लेकिन अब वापस आते हैं आज के गीत के मूड पर, जो कि दर्द भरा है। लता जी के दर्दीले अंदाज़ में एक बेटी का अपने पिता को आहवान! सुनते हैं....
क्या आप जानते हैं...
कि कमल बारोट से कल्याणजी-आनंदजी ने कुछ बड़े सुंदर ग़ैर-फ़िल्मी गीत गवाए हैं और आज भी "पिया रे प्यार", "पास आओ कि मेरी" जैसे गीतों का अपना अलग आकर्षण है।
पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)
१. ये एक एक्शन पैक फिल्म का हिट गीत है, जिसके नए संस्करण को इस फिल्म की लेखक जोड़ी में से एक के सुपुत्र ने निर्देशित किया था, फिल्म बताएं -२ अंक.
२. इस गीत को उसके संगीत संयोजन के लिए खास याद किया जाता है, किस गायिका की आवाज़ है इसमें - २ अंक.
३. मूल फिल्म के निर्देशक कौन थे - ३ अंक.
४. किस मशहूर अभिनेत्री पर फिल्माया गया था ये डांस नंबर- २ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
अरे अवध जी किसी सवाल को जवाब तो दिए होते, कम से कम दो अंक ही मिल जाते, खैर इस सही जवाब के साथ ३ अंक लिए शरद जी ने और आपसे आगे निकल आये, इंदु जी अपने व्यस्तता के बीच भी oig में आना नहीं भूलती यही उनका प्यार है...
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
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6 श्रोताओं का कहना है :
मूल फ़िल्म के निर्देशक : चन्द्रा बारोट
फिल्म डॉँन
हेमा मालिनी हो
लक्ष्मी या लक्ष्मी छाया
नंदा हो या मीना कुमारी सब अच्छी है जी
जब भी इस गीत को सुनती हूँ मन भर आता है। लाजवाब प्रस्तुति। धन्यवाद्
लाजवाब 'हेलन'.
(इंदु बहिन का इशारा तो समझो)
सुजॉय जी, आपकी सलाह बिलकुल उचित है. जानते बूझते हुए पिछली बार की गलती की दो वजहें:
१. गुरु पर अविश्वास, और
२. लालच - ३ अंकों के चक्कर में २ अंक गंवाना.
चलो इस बार तो शायद भूल नहीं होनी चाहिए. ठीक है ना?
अवध लाल
बहुत सुंदर गीत .. अच्छी प्रस्तुति !!
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