रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


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प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Wednesday, February 17, 2010

मार कटारी मर जाना ये अखियाँ किसी से मिलाना न....अमीरबाई कर्नाटकी की आवाज़ में एक अनूठा गाना



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 348/2010/48

१९४७ का साल भारत के इतिहास का शायद सब से महत्वपूर्ण साल रहा होगा। इस साल के महत्व से हम सभी वाकिफ हैं। १५ अगस्त १९४७ को इस देश ने पराधीनता की सारी ज़ंजीरों को तोड़ कर एक स्वाधीन वातावरण में सांस लेना शुरु किया था। एक नए भारत की शुरुआत हुई थी इस साल। हालाँकि आज़ादी की ख़ुशी १५ अगस्त के दिन आई थी, लेकिन इस साल की शुरुआत एक बेहद दुखद घटना से हुई थी। और यह दुखद घटना थी हिंदी सिनेमा के पहले सिंगिंग् सुपरस्टार कुंदन लाल सहगल का निधन। १८ जनवरी १९४७ को वो चल बसे और एक पूरा का पूरा युग उनके साथ समाप्त हो गया। उनके अकाल निधन से फ़िल्म संगीत को जो क्षति पहुँची, उसकी भरपाई हो सकता है कि अगली पीढ़ी ने कर दी हो, लेकिन दूसरा सहगल फिर कभी नहीं जन्मा। एक तरफ़ सहगल का सितारा डूब गया, तो दूसरी तरफ़ से एक ऐसी गायिका का उदय हुआ इस साल जो फ़िल्म संगीत का सब से उज्वल सितारा बनीं और ६ दशकों तक इस इंडस्ट्री पर राज करती रहीं। लता मंगेशकर। जी हाँ, १९४७ में ही लता जी का गाया पहला एकल प्लेबैक्ड सॊंग् "पा लागूँ कर जोरी रे" फ़िल्म 'आप की सेवा में' में सुनाई दी थी। १९४७ में ही देश का बंटवारा हो गया और यह देश हिंदुस्तान और पाक़िस्तान में विभाजित हो गया। लाखों की तादाद में लाशें गिरी, सरहद के दोनों तरफ़ साम्प्रदायिक दंगे, मार काट और लूट मच गई, पाक़िस्तान से हिंदू भाग कर हिंदुस्तान आने लगे, तो यहाँ से मुसलमान अपनी जान बचाकर उधर को दौड़ पड़े। फ़िल्म इंडस्ट्री भी इस अफ़रा-तफ़री से बच नहीं पाई। नतीजा यह हुआ कि यहाँ के कई बड़े बड़े कलाकार हमेशा के लिए पाक़िस्तान चले गए, और लाहौर फ़िल्म उद्योग के कई कलाकार भारत आ गए। जानेवालों में शामिल थे नूरजहाँ, ख़ुरशीद, मास्टर ग़ुलाम हैदर, फ़िरोज़ निज़ामी, उस्ताद अमानत अली ख़ान, रोशनारा बेग़म, जी. ए. चिश्ती, वगेरह। एक तरफ़ इन कलाकारों का इस देश को छोड़ कर जाना, और दूसरी तरफ़ नई पीढ़ी के कलाकारों का आगमन, इन दोनों के एक साथ घटने से फ़िल्म संगीत ने करवट लिया और ४० के दशक के आख़िर से फ़िल्मी गीतों के स्वरूप में, गायकी में, ऒर्केस्ट्रेशन में बहुत से बदलाव आए, और ५० के दशक के आते आते फ़िल्म संगीत पर जैसे उसका यौवन आ गया।

५० के दशक की बातें तो 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर चलती ही रहती है, आज केवल १९४७ की बातें होंगी। दोस्तों, क्यों ना १९४७ के साल को रिप्रेज़ेंट करने के लिए एक ऐसे किसी फ़िल्म के गीत को चुना जाए जो १५ अगस्त के दिन ही रिलीज़ हुई थी! जी हाँ, फ़िल्म 'शहनाई' १५ अगस्त १९४७ को बम्बई के 'नोवेल्टी थिएटर' में रिलीज़ हुई थी जब पूरा देश आज़ादी के जश्न मना रहा था। शहनाई की मंगल ध्वनियाँ इस देश की हवाओं में मिठास घोल रही थी और साथ ही शामिल था इस फ़िल्म का शीर्षक गीत "हमारे अंगना आज बजे शहनाई"। पी. एल. संतोषी निर्देशित और रेहाना, नज़ीर ख़ान, इंदुमती, मुमताज़ अली, दुलारी अभिनीत यह फ़िल्म असल में एक म्युज़िकल कॊमेडी फ़िल्म थी, जो एक ट्रेरंडसेटर फ़िल्म साबित हुई। निर्देशक-गीतकार पी. एल. संतोषी और संगीतकार सी. रामचन्द्र की जोड़ी ने फ़िल्मी गीतों का एक नया ट्रेंड चालू किया इस फ़िल्म से जो बाद के कई सालों तक चलती रही। "आना मेरी जान मेरी जान सण्डे के सण्डे" गीत ख़ूब बजा, जिसे हम भी 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर बहुत पहले ही सुनवा चुके हैं। इसी फ़िल्म में गायिका अमीरबाई कर्नाटकी की आवाज़ में एक गीत था जिसने भी शोहरत की बुलंदियों को छुआ। आज इसी गीत को हम यहाँ बजा रहे हैं और गीत है "मार कटारी मर जाना, ये अखियाँ किसी से मिलाना ना"। अमीरबाई के सब से ज़्यादा लोकप्रिय गीतों में इस गीत का शुमार होता है। मशहूर अदाकारा गौहर कर्नाटकी की बहन अमीरबाई 'कन्नड़ कोकिला' के नाम से जानी जाती थीं। १९ फ़रवरी १९१९ को कर्नाटक के बीजापुर ज़िले के बिल्गी गाँव में एक निम्न मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मीं अमीरबाई ने माध्यमिक की परीक्षा उत्तीर्ण की और १५ वर्ष की आयु में ही बम्बई आ गईं। उनकी किसी क़व्वाली से प्रभावित होकर एच. एम. वी ने उस क़व्वाली का ग्रामोफ़ोन रिकार्ड निकाला। गौहर की मदद से उन्हे ओरिएंटल टॊकीज़ की फ़िल्म 'विष्णु भक्ति' में काम करने का मौका मिला सन् १९३४ में। उसके बाद अनिल बिस्वास ने उन्हे नोटिस किया और ईस्टर्ण आर्ट्स व दर्यानी प्रोडक्शन्स की फ़िल्मों में मौके दिलवाए। १९३७ के आते आते अमीरबाई ने कई फ़िल्मों में अभिनय व गायन कर ली, जिनमें शामिल थे 'भारत की बेटी', 'यासमीन', 'फ़िदा-ए-वतन', 'प्रतिमा', 'प्रेम बंधन', 'दुखियारी', 'जेन्टलमैन डाकू', और 'ईंसाफ़'। इन सभी फ़िल्मों में अनिल दा का ही संगीत था। आगे की दास्तान हम फिर किसी दिन बताएँगे, आइए अब आज का गीत सुना जाए जिसमे अखियाँ ना मिलाने की सलाह दे रही हैं अमीरबाई कर्नाटकी।



चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम रोज आपको देंगें ४ पंक्तियाँ और हर पंक्ति में कोई एक शब्द होगा जो होगा आपका सूत्र. यानी कुल चार शब्द आपको मिलेंगें जो अगले गीत के किसी एक अंतरे में इस्तेमाल हुए होंगें, जो शब्द बोल्ड दिख रहे हैं वो आपके सूत्र हैं बाकी शब्द बची हुई पंक्तियों में से चुनकर आपने पहेली सुलझानी है, और बूझना है वो अगला गीत. साथ ही जवाब देना है उन सवालों का जो नीचे दिए गए हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रही आज की पंक्तियाँ-

बिक गए बिन मोल ही,
चले सब बीते दिन बिसार,
कोई जादू था जीवन,
जिसके सम्मोहन में, बीत गए जन्म हज़ार...

1. बताईये इस गीत की पहली पंक्ति कौन सी है - सही जवाब को मिलेंगें ३ अंक.
2. एक कमचर्चित गायिका ने इस गीत में रफ़ी साहब का साथ दिया था, उनका नाम ?- सही जवाब को मिलेंगें 3 अंक.
3. ये फिल्म का शीर्षक गीत है, फिल्म का नाम बताएं - १ अंक.
4. इस गीत के गीतकार कौन हैं - सही जवाब के मिलेंगें २ अंक.

पिछली पहेली का परिणाम-
मनु जी, बहुत दिनों बाद आपकी आमद हुई, बेहद अच्छा लगा
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
पहेली रचना -सजीव सारथी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

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3 श्रोताओं का कहना है :

शरद तैलंग का कहना है कि -

गायिका : ललिता देबूलकर

गुड्डोदादी का कहना है कि -

शैलेश जी
जीते रहो
आपकी बहुत ही आभारी हूँ इन गीतों को सुन कर
बीता जामाना आँखों के सम्मन आ गया खूब गाते थे
.रतन,१९४४४ का ,राजकुमारीआदि
धन्यवाद
गुड्डो दादी

RAJ SINH का कहना है कि -

सुजोय दा और संजीव जी ,
कभी कभी आप सब से गुफ्तगू हो जाती है .अमीर बाई कर्नाटकी के इस गीत ने एक पुरानी अभिलाषा जगा दी है .

साल पता नहीं पर फिल्म आयी थी राजा भरथरी .उसमे सहगलजी और अमीर बाई का एक युगल गीत था ........

दया न आयी वो निर्मोही छोड़ दिया घर बार राजा भरथरी .....
और भी .....
भिक्छा दे दे मैय्या पिंगला जोगी खड़ा रे द्वार राजा भरथरी .........

न जाने कब से तलाश है इसे सुनने की.पिछली बार रेडियो सीलोन पर करीब १९६१ में सुना था .कहीं अता पता लग सकता है ? किससे पूछूं ? आप सब के अलावा तो किसी और को नहीं जनता जो यह आनंद दे सके .

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