रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


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प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Monday, March 15, 2010

सांझ ढले गगन तले....एक उदास अकेली शाम की पीड़ा वसंत देसाई के शब्दों में



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 374/2010/74

स्सी के दशक के फ़िल्मी गीतों के ज़िक्र से कुछ लोग अपना नाक सिकुड़ लेते हैं। यह सच है कि ८० के दशक में फ़िल्म संगीत के स्तर में काफ़ी गिरावट आ गई थी, लेकिन कई अच्छे गीत भी बने थे। पूरे के पूरे दशक को बदनाम करने से इन अच्छे गीतों के साथ नाइंसाफ़ी वाली बात हो जाएगी। और किसी भी गीत के स्तर को उसके बनने वाले समय से जोड़ा नहीं जाना चाहिए। जो चीज़ वाक़ई अच्छी है, हमें उसके बनने वाले समय से क्या! और दोस्तों, ८० का दशक एक ऐसा भी दशक रहा जिसमें सब से ज़्यादा आर्ट फ़िल्में बनीं। सिनेमा के इस विधा को हम पैरलेल सिनेमा या आर्ट फ़िल्मों के नाम से जानते हैं। युं तो कलात्मक फ़िल्मों में बहुत ज़्यादा गीत संगीत की गुंजाइश नहीं होती है, लेकिन किसी किसी फ़िल्म के लिए कुछ गानें भी बने हैं। आर्ट फ़िल्मों में संगीत देने वाले संगीतकारों में अजीत वर्मन और वनराज भाटिया का नाम सब से पहले ज़हन में आता है। लेकिन आज हम एक ऐसी फ़िल्म का गीत सुनने जा रहे हैं जिसके संगीतकार हैं लक्ष्मीकांत प्यारेलाल। यह फ़िल्म है 'उत्सव', जो बनी थी सन् १९८४ में। वैसे इस फ़िल्म को पूरी तरह से कलात्मक फ़िल्म तो नहीं कह सकते, लेकिन पूरी तरह से व्यावसायिक भी नहीं मान सकते। इस फ़िल्म के गानें लिखे थे वसंत देव ने। जी हाँ, वही वसंत देव जिन्होने 'सारांश', 'राजा रानी को चाहिए पसीना', 'कोन्दुरा', 'आक्रोश', 'वास्ता', और 'भूमिका' जैसी कलात्मक फ़िल्मों में गानें लिखे। आज '१० गीत समानांतर सिनेमा के' शृंखला में हम फ़िल्म 'उत्सव' से सुनने जा रहे हैं सुरेश वाडकर की आवाज़ में एक बड़ा ही ख़ूबसूरत गीत, "सांझ ढले गगन तले हम कितने एकाकी"। ख़ूबसूरत हर लिहाज से, इसके बोल जितने सुंदर हैं, धुन उतना ही मनमोहक, और सुरेश वाडकर की कोमल सुरीली आवाज़ के तो क्या कहने! वैसे हम यह बात बता दें कि आज सुरेश वाडकर की आवाज़ 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर पहली बार सुनाई दे रही है। सुरेश जी बहुत ही अंडर-रेटेड रहे हैं। उनकी जो प्रतिभा है, शास्त्रीय संगीत में उनका जो महारथ है, उसे संगीतकारों ने सही तरीके से इस्तेमाल नहीं कर सके हैं। इसका एक कारण तो यही है कि सुरेश जी का जो दौर था, उस दौर में हिंदी फ़िल्मों से मासूमीयत ख़तम हो चुकी थी, और उनके अंदाज़ के गानों की गुंजाइश फ़िल्मों में कम ही होती थी। लेकिन समय समय पर उन्होने जितने भी गीत गाए, लोगों ने हाथों हाथ स्वीकारा, और आज वो एक सम्माननीय मुक़ाम पर विराजमान हैं।

फ़िल्म 'उत्सव' का निर्माण किया था शशि कपूर ने और सह-निर्माता थे धर्मप्रिय दास। निर्देशन गिरीश करनाड का था।फ़िल्म की पटकथा लिखी गिरीश करनाड और कृष्ण बसरूर ने तथा संवाद लिखे शरद जोशी ने। यह फ़िल्म छठी शताब्दी के सुप्रसिद्ध नाटककार भासा द्वारा लिखित संस्कृत नाटक 'दि गोल्डन टॊय चैरियट' पर आधारित थी। कहानी कुछ इस तरह की थी कि वसंतसेना (रेखा) राजा पलाका के दरबार में नर्तकी होती है। लेकिन राजा के साले संस्थानक की गंदी नज़र से अपने आप को बचते बचाते वो चित्रकार चारुदत्त (शेखर सुमन) के घर में आश्रय लेती है। यह जानते हुए भी कि चारुदत्त विवाहित हैं अदिती (अनुराधा पटेल) से और उनके पास कोई रोज़गार नहीं है, वसंतसेना उससे प्यार कर बैठती है, और उनका प्रेम संबंध शुरु हो जाता है। उधर राजा पलाका के भाई, जो राजगद्दी के सही हक़दार हैं, जेल से फ़रार हो जाता है। जब पलाका के सिपाही उन्हे पकड़ने की कोशिश करते हैं, ऐसे में चारुदत्त उनकी मदद करता है। उधर संस्थानक वसंतसेना की हत्या कर देता है। जब चरुदत्त वसंतसेना के शव से गहनों को उतारने की कोशिश करता है तो सिपाही उसे गिरफ़्तार कर लेते हैं और उसी को हत्यारा क़रार दिया जाता है। क्या अंत होता है कहानी का, यह तो आपको फ़िल्म देख कर ही पता चलेगा। इस फ़िल्म में अमजद ख़ान, कुलभूषण खरबंदा, शंकर नाग, कुणाल कपूर, अनुपम खेर, नीना गुप्ता और शशि कपूर ने भी अभिनय किया था। इस फ़िल्म को उस साल दो पुरस्कार मिले, पहला सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार वसंत देव को "मन क्यों बहका रे बहका" गीत के लिए, तथा दूसरा गायिका अनुराधा पौडवाल को "मेरे मन बजे मृदंग" गीत के लिए। जहाँ तक आज के गीत का सवाल है, उसे भले कोई पुरस्कार ना मिला हो, लेकिन जो सब से महत्वपूर्ण पुरस्कार होता है, यानी कि लोगों का प्यार, वो इस गीत को भरपूर मिला और आज भी मिल रहा है। तो आइए राग विभास पर आधारित यह सुमधुर रचना सुनते हैं।



क्या आप जानते हैं...
कि फ़िल्म 'उत्सव' के दो गीत "सांझ ढले गगन तले" एवं "नीलम के नभ छाए" राग विभास पर आधारित हैं।

चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रहे आज के सवाल-

1. एक अंतरा सी शब्द से शुरू होता है -"बांसुरी", गीत पहचानें-३ अंक.
2. सर्वश्रेष्ठ संगीत का सम्मान मिला था इस फिल्म के लिए संगीतकार को, नाम बताएं- २ अंक.
3. लीक से हटकर सिनेमा निर्माण में इस निर्देशक का नाम बेहद सम्मानीय है, कौन हैं ये-२ अंक.
4. स्मिता पाटिल हैं परदे पर, पार्श्व गायिका कौन हैं-२ अंक.

विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।

पिछली पहेली का परिणाम-
अनुपम जी और संगीता जी के रूप में हमें दो नए विजेता मिले, इंदु जी तो सदाबहार हैं ही :)
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
पहेली रचना -सजीव सारथी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

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6 श्रोताओं का कहना है :

शरद तैलंग का कहना है कि -

गीत के बोल हैं :
आप की याद आती रही रात भर
चश्मे नम मुस्कराती रही रात भर ।

दो तीन दिन जयपुर यात्रा के कारण उपस्थित नहीं हो सका ।

Sujoy Chatterjee का कहना है कि -

Dear Pankaj ji,

I am sorry for the Sharaabi song. I always thought all 3 versions (Asha, Kishore & Runa) are part of this film.

Regarding Agnipath, there is one song "alibaba mil gaye" by Runa Laila & Aadesh Shrivastava.

In Ghar Dwar, Runa Laila sang "o mera babu chhail chhabila main to naachoongi" (picturized on Shoma Anand).

Regards,
Sujoy

indu puri का कहना है कि -

jaidev verma

padm singh का कहना है कि -

छाया गांगुली जी ने इस गाने को गाया था

sangeeta sethi का कहना है कि -

film ka naam hai GAMAN

Atul Sharma का कहना है कि -

सुंदर प्रस्तुति। आप नाटक का नाम अंग्रेज़ी में क्यों लिखा है? वैसे फ़िल्म संस्कृत रचनाकार भास द्वारा रचित नाटक 'मृच्छकटिकम्' अर्थात् 'मिट्टी की गाड़ी' पर आधारित है।

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