रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


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प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Sunday, September 26, 2010

मैं तो प्यार से तेरे पिया मांग सजाऊँगी....नौशाद का रचा ये शृंगार रस से भरपूर गीत है सभी भारतीय नारियों के लिए खास



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 491/2010/191

भाव या जज़्बात वह महत्वपूर्ण विशेषता है जो जीव जंतुओं को उद्‍भीद जगत से अलग करती है। संस्कृत में 'रस' शब्द का अर्थ भले ही स्वाद, जल, सुगंध या फलों के रस के इर्द-गिर्द घूमता हो, लेकिन 'रस' शब्द को जीव जगत के नौ भावों या जज़्बात के लिए भी प्रयोग किया जाता है। ये वो नौ रस हैं जो हमारे मन का हाल बयान करते हैं। अगर हम इन नौ रसों के महत्व को अच्छी तरह समझ लें और किस रस को किस तरह से अपने में नियंत्रित रखना है, उस पर सिद्धहस्थ हो जाएँ, तो जीवन में सच्चे सुख की अनुभूति कर सकते हैं और हमारा जीवन सही मार्ग पर चल सकता है। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार और बहुत बहुत स्वागत आप सब का फिर एक बार इस महफ़िल में। आप सोच रहे होंगे कि मैं फ़िल्मी गीतों को छोड़ कर अचानक रस की बातें क्यों करने लगा। दरअसल, हमारे जो फ़िल्मी गीत हैं, वो ज़्यादातर कहानी के सिचुएशन के हिसाब से बनते हैं। और अगर कहानी है तो उसमें किरदार भी हैं, घटनाएँ भी हैं ज़िंदगी से जुड़े हुए, और तभी तो हर फ़िल्मी गीत में भी किसी ना किसी भाव का, किसी ना किसी जज़्बात का, किसी ना किसी रस का संचार होता ही है। इसलिए हमने सोचा कि क्यों ना एक ऐसी शृंखला चलाई जाए जिसमें इन नौ रसों पर आधारित एक एक गीत सुनवाकर इन रसों से जुड़े कुछ तथ्यों से भी आपका परिचय करवाया जाए! क्या ख़याल है आपका! आइए शुरु करें नौ रसों पर आधारित नौ फ़िल्मी गीतों से सजी लघु शृंखला 'रस माधुरी'! वेदिक काल से जो नौ रस निर्दिष्ट किए गए हैं, उनके नाम हैं शृंगार, हास्य, अद्‍भुत, शांत, रौद्र, वीर, करुण, भयानक, विभत्स। आइए शुरुआत करते हैं शृंगार रस से। शृंगार रस ही वह रस है जिस पर सब से ज़्यादा गीत बनते हैं, क्योंकि यह वह रस है जिसमें है प्यार, पूजा, कला, सौंदर्य और आकर्षण। इसे रसों का राजा (या रानी) माना जाता है और इसी रस पर यह दुनिया टिकी हुई है ऐसी धारणा है। शृंगार शब्द का शाब्दिक अर्थ है सजना सँवरना, लेकिन जब शृंगार रस की बात करें तो इसका अर्थ काफ़ी विशाल हो जाता है और उपर लिखे तमाम भाव इससे जुड़ जाते हैं। यहाँ तक कि भक्ति भी शृंगार रस का ही अंग होता है। शृंगार के भाव के भी दो पहलू हैं - एक है संभोग शृंगार (मिलन) और एक है विप्रलम्भ शृंगार (विरह)।

दोस्तों, १२ सितंबर से 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर लगातार आप लता मंगेशकर के गाए गानें सुनते चले आ रहे हैं। आज २६ सितंबर है और दो दिन बाद ही लता जी का जन्मदिन है। ऐसे में उनके गाए गीतों की इस लड़ी को भला हम कैसे टूटने दे सकते हैं! इसलिए हमने यह निर्णय लिया कि २८ सितंबर तक लता जी की आवाज़ ही छायी रहेगी 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल में। और वैसे भी शृंगार रस की बात हो, आदर्श भारतीय नारी और शृंगार की बात हो, ऐसे में लता जी की आवाज़-ओ-अंदाज़ से बेहतर इस रस के लिए और क्या हो सकती है। युं तो लता जी के गाए असंख्य शृंगार रस के गानें हैं जिनकी लिस्ट बनाने बैठें तो पता नहीं कितने दिन लग जाएँगे, लेकिन हमने इस कड़ी के लिए एक ऐसा गीत चुना है जो हमारे ख़याल इस रस की व्याख्या करने के लिए एक बेहद असरदार गीत है। और यह हम नहीं बल्कि महिलाएँ ख़ुद कह रही हैं। जी हाँ, नौशाद साहब ने ख़ुद इस गीत का ज़िक्र करते हुए ऐसा कहा था। इस गीत के बारे में जानिए ख़ुद नौशाद साहब के ही शब्दों में जिन्होंने इस गीत की रचना की थी। "मद्रास के वीनस कृष्णमूर्ती ने अपनी फ़िल्म 'साथी' के लिए मुझे म्युज़िक डिरेक्टर लिया और मजरूह सुल्तानपुरी को गीतकार। मैंने उनसे कह दिया कि आप मुझे स्टोरी, सिचुएशन समझा दीजिए, मैं उसे डायजेस्ट कर लूँगा, फिर मेरा काम शुरु होगा, शायर मेरे साथ बैठेगा, और मैं गानें बनाकर आपको दे दूँगा, यही मेरे काम करने का स्टाइल है। तो पहला गाना रेकॊर्ड करके मद्रास भेज दिया। फिर मुझे मद्रास बुलाया गया। वहाँ पहुँचा तो पता चला कि गाना सभी को बहुत अच्छा लगा है लेकिन डायरेक्टर श्रीधर साहब चाहते हैं कि गाना थोड़ा सा मॊडर्ण हो। मैंने उनसे कहा कि तब आप सीन भी बदल दीजिए। लगन मंडप और कृष्ण की मूर्ती की जगह चर्च में शूट कर लीजिए, फिर मैं सितार के बदले सैक्सोफ़ोन डाल दूँगा। फिर मैंने दूसरा गाना कॊंगो, बॊंगो वगेरह के साथ मॊडर्ण टाइप का बनाकर मद्रास ले गया। यह गाना भी सभी को पसंद आ गया और यह सवाल खड़ा हो गया कि कौन सा गाना रखा जाए। मैंने उनको यह सजेस्ट किया कि अगर हिंदी समझने वाले लेडीज़ हैं तो उन्हें प्रिव्यू थिएटर में सिचुएशन समझाकर दोनों गानें सुनवाया जाए और फिर उनकी राय ली जाए, उन्हीं को डिसाइड करने दीजिए कि कौन सा गाना अच्छा लगेगा क्योंकि यह गाना एक आम भारतीय स्त्री की भावनाओं से जुड़ी हुई है। सब को यह सुझाव पसंद आया और प्रिव्यू थिएटर में लेडीज़ को बुलाया गया और दोनों गानें बजाए गए। पहला गाना था "मैं तो प्यार से तेरे पिया माँग सजाउँगी" और दूसरा गाना था "मेरे जीवन साथी कली थी मैं तो प्यासी"। तो लेडीज़ जिन्हें हिंदी आती थी, बोलीं कि पहला गाना हमें दे दीजिए, हम हर सुबह अपने शौहर को इसी गाने से जगाया करेंगे।" तो लीजिए, शृंगार रस से भरा हुआ लता जी की मीठी आवाज़ में सुनिए फ़िल्म 'साथी' का यह गीत, मजरूह - नौशाद की रचना, इस फ़िल्म से संबंधित जानकारी हम फिर कभी देंगे जब इस फ़िल्म का कोई और गीत इस महफ़िल में शामिल होगा।



क्या आप जानते हैं...
कि नौशाद साहब शिकार और मछली पकड़ने का बड़ा शौक रखते थे। शक़ील और मजरूह के साथ पवई झील में मछली पकड़ा करते थे। बाद में वे 'महाराष्ट्र स्टेट ऐंगलिंग एसोसिएशन' के अध्यक्ष भी रहे।

पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)

१. अद्‍भुत रस पर आधारित है यह गीत और गीत के मुखड़े का पहला शब्द भी "अद्‍भुत" का ही पर्यायवाची शब्द है। गीतकार का नाम बताएँ। ४ अंक।
२. इस गीत के मुखड़े के पहले चंद शब्द एक दूसरी फ़िल्म का शीर्षक है जो बनी थी १९९७ में और जिसके निर्देशक थे अजय गोयल। गीत के बोल बताएँ। १ अंक।
३. इस फ़िल्म का जो शीर्षक है उससे प्रेरीत हो कर हमने अभी हाल ही में 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक लघु शृंखला चलाई थी। फ़िल्म का नाम बताएँ। २ अंक।
४. संगीतकार बताएँ। ३ अंक।

पिछली पहेली का परिणाम -
पवन जी, प्रतिभा जी और नवीन जी को तो हम बधाई देते ही हैं, पर आज का दिन तो खास है अवध जी के नाम. अवध जी पहले भी कई बार लक्ष्य के करीब आ आकर चूक गए हैं पर इस बार उन्होंने सफलता पूर्वक इस लक्ष्य को साध लिया है. सभी दोस्तों से अनुरोध है कि वो हमारे अवध भाई को संगीतमयी बधाई देन....अवध जी ओल्ड इस गोल्ड और पूरे आवाज़ परिवार की तरफ़ से भी आपको इस शतक के लिए शत शत बधाई

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

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7 श्रोताओं का कहना है :

singhSDM का कहना है कि -

गीतकार का नाम shailendra
*****
PAWAN KUMAR

AVADH का कहना है कि -

प्रिय सुजॉय जी,
बहुत बहुत धन्यवाद.
इज्ज़त अफ़ज़ाई के लिए शुक्रिया आपका और अपने सब संगीतप्रिय मित्रों का.
अब नियमों के अनुसार मैं केवल रोज़ हाज़िरी लगाऊँगा .आप सब को शुभ कामनाओं सहित,
अवध लाल

इंदु पुरी गोस्वामी का कहना है कि -

Music Director: Shankar-Jaikishan

इंदु पुरी गोस्वामी का कहना है कि -

अवध सर! बधाई.
हा हा हा अब तो आपके पसंद के गाने सुनने को मिलेंगे.इंतज़ार करेंगे.
आशा है घर पर सब राजी खुशी होंगे.

शरद तैलंग का कहना है कि -

बधाई हो अवध जी ! अभी थोडे दिन आपको भी वनवास झेलना पडेगा ।

manu का कहना है कि -

पहला गाना था "मैं तो प्यार से तेरे पिया माँग सजाउँगी" और दूसरा गाना था "मेरे जीवन साथी कली थी मैं तो प्यासी"। तो लेडीज़ जिन्हें हिंदी आती थी, बोलीं कि पहला गाना हमें दे दीजिए, हम हर सुबह अपने शौहर को इसी गाने से जगाया करेंगे।"...


bechaare mazrooh saahib...

निर्मला कपिला का कहना है कि -

बहुत दिन से सपीकर खराब होने से कुछ भी नही सुन सकी । कल ही ठीक हुये हैं तो आज हाजिर हूँ। आपकी प्र्स्तुति तो हमेशा ही ग्यानवर्द्धक और लाजवाब होती है। धन्यवाद।

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