रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


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प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Thursday, February 17, 2011

धीरे धीरे मचल ए दिले बेकरार कोई आता है....सन्देश दे रही हैं नायिका को पियानो की स्वरलहरियां



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 595/2010/295

पियानो के निरंतर विकास की दास्तान पिछले चार दिनों से आप पढ़ते आये हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल में। यह दास्तान इतनी लम्बी है कि अगर हम इसके हर पहलु पर नज़र डालने जायें तो पूरे पूरे दस अंक इसी में निकल जाएँगे। इसलिए आज से हम पियानो संबंधित कुच अन्य बातें बताएँगे। दोस्तों नमस्कार, 'पियानो साज़ पर फ़िल्मी परवाज़' लघु शृंखला में आप सभी का फिर एक बार बहुत बहुत स्वागत है। आइए आज बात करें पियानो के प्रकारों की। मूलत: पियानो के दो प्रकार हैं - ग्रैण्ड पियानो तथा अप-राइट पियानो। ग्रैण्ड पियानो में फ़्रेम और स्ट्रिंग्स होरिज़ोण्टल होते हैं और स्ट्रिंग्स की-बोर्ड से बाहर की तरफ़ निकलते हुए नज़र आते हैं। ध्वनि जो उत्पन्न होती है, वह कार्य स्ट्रिंग्स के नीचे होता है और मध्याकर्षण की तकनीक से स्ट्रिंग्स अपने रेस्ट पोज़िशन पर वापस आते हैं। उधर दूसरी तरफ़ अप-राइट पियानो, जिन्हें वर्टिकल पियानो भी कहते हैं, आकार में छोटे होते हैं क्योंकि फ़्रेम और स्ट्रिंग्स वर्टिकल होते हैं। हैमर्स होरिज़ोण्टली अपनी जगह से हिलते हैं और स्प्रिंग्स के ज़रिए अपने रेस्ट पोज़िशन पर वापस आते हैं। १९-वीं सदी में पियानो में कई और अन्य प्रकार के पियानो भी बनें, जिनमे टॊय पियानो (toy piano) उल्लेखनीय है। १८६३ में हेनरी फ़ूरनेउ ने 'प्लेयर पियानो' का आविष्कार किया, जो बिना किसी पियानिस्ट के एक पियानो रोल के ज़रिए ख़ुद ब ख़ुद बज सकता है। 'साइलेण्ट पियानो' एक तरह का ऐकोस्टिक पियानो है जिसमें व्यवस्था है स्ट्रिंग्स को साइलेण्ट करने की एक इण्टरपोज़िंग हैमर बार के द्वारा। एडवार्ड राइली ने १८०१ में 'ट्रांसपोज़िंग पियानो' का आविष्कार किया, जिसके की-बोर्ड के नीचे एक लीवर है जो की-बोर्ड को अपनी जगह से हिला सकता है ताकि पियानिस्ट एक परिचित 'की' को प्ले कर उस ध्वनि को उत्पन्न कर सके जो दरअसल किसी और 'की' द्वारा उत्पन्न होती है। एक और प्रकार का पियानो है 'प्रिपेयर्ड पियानो' जिसके अंदर कुछ ऐसे सामान रखे जाते हैं जो उत्पन्न होने वाली ध्वनियों को बदल सके। रबर, कागज़, धातु या फिर वाशर के इस्तमाल से अलग अलग किस्म की ध्वनियाँ उत्पन्न की जा सकती है इस पियानो में। 'ईलेकट्रिक पियानो' में 'Electro-magnetic Pick-up' के माध्यम से स्ट्रिंग्स में उत्पन्न ध्वनियों को ऐम्प्लिफ़ाई किया जा सकता है। हाल ही में 'डिजिटल पियानो' भी आ गये हैं और आजकल तो पियानो में भी कम्प्युटर और सॊफ़्टवेयर तकनीक इस्तमाल की जाने लगी है। सी.डी और MP3 प्लेयर्स भी पियानो में जोड़ा गया है। पियानो डिस्क की मदद से पियानो ख़ुद ब ख़ुद बज सकता है। जिस तरह से औद्योगिकी के हर क्षेत्र में तकनीकी उन्नति हुई है, पियानो का इतिहास भी उतना ही दिलचस्प और उल्लेखनीय रहा है।

और अब बारी आज के गाने की। आज हम क़दम रख रहे हैं ६० के दशक में। इस दशक में बहुत सारे पियानो गीत बनें और हम सोच में पड़ गये कि किस गीत को चुनें और किसे छोड़ दें। कई दिनों तक इस असमंजस में रहने के बाद हमने इस दशक से दो गीत चुनें, जिन्हें अब हम दो अंकों में सुनवाएँगे। आज का गीत प्रस्तुत कर रही हैं लता मंगेशकर, फ़िल्म 'अनुपमा' का गीत, कैफ़ी आज़्मी के बोल, हेमन्त कुमार का संगीत, और गीत के बोल - "धीरे-धीरे मचल ऐ दिल-ए-बेक़रार, कोई आता है"। 'अनुपमा' फ़िल्म के मुख्य किरदार हैं धर्मेन्द्र और शर्मिला टैगोर। अब तक मैं यही समझता रहा कि यह गीत ज़रूर शर्मीला जी पर ही फ़िल्माया गया होगा, लेकिन आज ही इस गीत को य़ु-ट्युब में देखा तो पाया कि दरसल यह तो सुरेखा पर फ़िल्माया हुआ गाना है। इस फ़िल्म का अन्य गीत "कुछ दिल ने कहा, कुछ भी नहीं" शर्मीला जी पर फ़िल्माया गया है, जबकि दो अन्य गीत "भीगी भीगी फ़ज़ां" और "क्यों मुझे इतनी ख़ुशी दे दी" शशिकला जी पर फ़िल्माया गया है। "धीरे धीरे मचल" गीत बड़ा ही दिलचस्प गीत है अगर हम इसके एक अंतरे के बोलों पर जाएँ तो। इस गीत का एक अंतरा कुछ इस तरह का है -

"उसके दामन की ख़ुशबू हवाओं में है,
उसके क़दमों की आहट फ़ज़ाओं में है,
मुझको करने दे करने दे सोलह सिंगार, कोई आता है।"

'अनुपमा' १९६६ की फ़िल्म थी और १९५५ में आयी थी एक फ़िल्म 'मुनिमजी', जिसमें लता जी का ही गाया हुआ एक कमसुना सा गीत था "आँख खुलते ही तुम छुप गये हो कहाँ, तुम अभी थे यहाँ"। इस गीत का एक अंतरा कुछ इस तरह का था -

"अभी सांसों की ख़ुशबू हवाओं में है,
अभी क़दमों की आहट फ़िज़ाओं में है,
अभी शाख़ों में है उंगलियों के निशाँ, तुम अभी थे यहाँ।"

अब इन दोनों गीतों के इन दो अंतरों में कितनी समानता है, है न? क्या कैफ़ी साहब ने शैलेन्द्र जी के लिखे गीत से इन्स्पायर् होकर ही 'अनुपमा' के इस गीत का वह अंतरा लिखा था? ख़ैर, यह तो बस एक ऒबज़र्वेशन थी, हक़ीक़त तो यही है कि ये दोनों गीत ही अपनी अपनी जगह लाजवाब हैं। तो आइए पियानो पर रचा फ़िल्म 'अनुपमा' का यह सदाबहार गीत सुनते हैं।



क्या आप जानते हैं...
कि अमेरीकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकॊन व्हाइट हाउस में "चिकरिंग् ग्रैण्ड पियानो" का इसतमाल करते थे।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली 06/शृंखला 10
गीत का ये हिस्सा सुनें-


अतिरिक्त सूत्र - बेहद आसान.

सवाल १ - किस अभिनेता पर है ये गीत फिल्माया - २ अंक
सवाल २ - गीतकार बताएं - ३ अंक
सवाल ३ - संगीतकार कौन हैं - १ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
शृंखला का आधा पड़ाव आ चुका है और अमित जी २ अंकों से आगे हैं अंजना जी से, कल हमारे अंजाना जी जाने कैसे चुका गए, खैर विजय जी भी जमे हैं हिन्दुस्तानी जी और शरद जी से साथ मैदान में...

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
विशेष सहयोग: सुमित चक्रवर्ती


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

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6 श्रोताओं का कहना है :

शरद तैलंग का कहना है कि -

shammi kapoor

अमित तिवारी का कहना है कि -

गीतकार-हसरत जयपुरी

Anjaana का कहना है कि -

Lyrics : Hasrat Jaipuri

इंदु पुरी गोस्वामी का कहना है कि -

shankar jaikishan ji

AVADH का कहना है कि -

भाई हम तो चारों उत्तर देनेवालों को बधाई देंगे.
बाकी गीत में तो नायक नायिका को दिल के झरोखे में बिठाने का वायदा कर ही रहा है.
अवध लाल

Sumit Chakravarty का कहना है कि -

ये नग़मा सुनकर गला भर आता है... साथ ही किसी के आने के एहसास पे दिल खिल सा उठता है... वो चले गये थे जब हमसे कुछ दिनों के लिए दूर, मानो बेचैनी का आलम छा गया था दिल पर... उनके आने की आहट आते ही दिल मचल उठा... जीवन फिर से रंगीन हो उठा...

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