रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


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प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Tuesday, April 5, 2011

दीया जलाओ, जगमग जगमग....बैजू बावरा की आवाज़ बने थे सहगल



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 628/2010/328

ल्ड इज़ गोल्ड' में कुंदन लाल सहगल साहब के संगीत यात्रा की चर्चा करते हुए कल की कड़ी में हम आ पहुँचे थे वर्ष १९४२ में जब कलकत्ते के न्यु थिएटर्स को छोड़ सहगल साहब बम्बई के रणजीत मूवीटोन से जुड़ गये और यहाँ उनकी पहली फ़िल्म आयी 'भक्त सूरदास'। आइए आगे बढ़ते हैं और आज इस शृंखला की आठवीं कड़ी में चर्चा करते हैं रणजीत की ही एक और बेहद चर्चित फ़िल्म 'तानसेन' की जो बनी थी वर्ष १९४३ में। ज्ञान दत्त के जगह आ गये संगीतकार खेमचंद प्रकाश, जिन्होंने इस फ़िल्म के ज़रिये फ़िल्म संगीत जगत में हलचल पैदा कर दी। सहगल और ख़ुर्शीद अभिनीत इस फ़िल्म के गीत-संगीत नें न केवल खेमचंद प्रकाश की प्रतिभा का लोहा मनवाया, बल्कि संगीत सम्राट तानसेन के चरित्र को साकार करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। खेमचंद साहब नें ध्रुपद गायकी और राजस्थानी लोक संगीत, इन दोनों का ही इस्तेमाल कर और राग रागिनियों के प्रयोग से इस फ़िल्म के गीतों का ऐसा समा बांधा कि इस फ़िल्म के गीत फ़िल्म-संगीत धरोहर के अनमोल नगीने बन गये। शंकरा, मेघ मल्हार, दीपक, सारंग, दरबारी, तिलक कामोद और मिया मल्हार जैसी रागों का प्रयोग सुना जा सकता है इन गीतों में। और सहगल साहब की भी क्या गायकी थी! हर एक गीत लाजवाब, हर एक गीत २४ कैरट का खरा सोना। इस फ़िल्म से आज के अंक के लिए हमनें चुना है राग दीपक पर आधारित "दीया जलाओ, जगमग जगमग"। ऐसा कहा जाता है कि तानसेन जब राग दीपक गाते थे तो दीये ख़ुद ब ख़ुद जल उठते थे। पता नहीं इस बात में कितनी सच्चाई है, लेकिन हम कम से कम इतना ज़रूर कह सकते हैं कि सहगल साहब की आवाज़ में इस गीत से आज हमारे इस महफ़िल की शमा ज़रूर रोशन हो गई है। इस गीत को लिखा है इंद्र चंद्र नें।

संगीतकार नौशाद खेमचंद प्रकाश को अपना गुरु मानते थे, और एक बार उन्होंने ऐसा कहा था कि उन्होंने १९५२ की अपनी फ़िल्म 'बैजु बावरा' में वही जादू उत्पन्न करने की कोशिश की थी जो जादू खेमचंद साहब नें 'तानसेन' में किया था, लेकिन वो उस मुकाम तक 'बैजु बावरा' को नहीं पहुँचा सके जिस मुक़ाम तक 'तानसेन' का संगीत पहँचा था। सहगल साहब के लिए नौशाद साहब के उद्‍गार हम कल की कड़ी में शामिल करेंगे, आइए आज पढ़ें सोहराब मोदी के विचार इस अज़ीम फ़नकार के लिए - "हज़ारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है, बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा। फ़िल्म संगीत में तो क्या, बल्कि मैं तो कहता हूँ कि जहान-ए-फ़ानी में ऐसे लोग मुश्किल से होते हैं जो अपनी राह में वो नक्श-ए-क़दम छोड़ कर चले जाते हैं जो कभी नहीं मिटते। संगीत की दुनिया में ऐसे एक थे के. एल. सहगल, जिन्हें हम कभी नहीं भूल सकते।" तो दोस्तों, सुनिए एक ऐसा ही गीत जिसे भी भुला पाना नामुमकिन है।



क्या आप जानते हैं...
कि कुंदन लाल सहगल नें कुल ३६ फ़िल्मों में अभिनय किया, जिनमें २८ हिंदी, ७ बंगला और १ तमिल है।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली 9/शृंखला 13
गीत का ये हिस्सा सुनें-


अतिरिक्त सूत्र - सहगल साहब का गाया एक और क्लास्सिक गीत.

सवाल १ - संगीतकार कौन हैं इस बेहद मशहूर गीत के - २ अंक
सवाल २ - गीतकार बताएं - ३ अंक
सवाल ३ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
अमित जी जहाँ तक हमारी जानकारी है ये गीत राग दीपक पर आधारित है, इसलिए फिलहाल हम ३ अंक प्रतीक जी के खाते में डाल रहे हैं. हम कृष्ण मोहन जी अनुरोध करेंगें कि मार्ग दर्शन करें.

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी



इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

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10 श्रोताओं का कहना है :

अमित तिवारी का कहना है कि -

Majrooh Sultanpuri

Anjaana का कहना है कि -

Lyrics:Majrooh Sultanpuri

शरद तैलंग का कहना है कि -

music Director : Noushad

शरद तैलंग का कहना है कि -

aaj bahut dino baad mumbai yatra ke baad louta hoon.haziree lagaa rahaa hoon.

AVADH का कहना है कि -

धुरंधर लोगों की राय के विरुद्ध जाने की ग़लती जानबूझ कर रहा हूँ.
मुझे लगता है कि गीत है: 'ऐ दिले बेकरार झूम'.
और अगर यह ठीक है तो गीतकार हैं: खुमार बाराबंकवी
अवध लाल

AVADH का कहना है कि -

माफ कीजिये जल्दबाज़ी में शायद गीत ग़लत लिख गया. शायद गीत है: 'चाह बर्बाद करेगी हमें मालूम न था'.
लेकिन इससे जवाब में कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि इस गीत के भी गीतकार खुमार साहेब ही थे.
अवध लाल

सागर नाहर का कहना है कि -

राग बागेश्री
गीतकार मजरूह
संगीतकार नौशाद साहब
फिल्म शाहजहाँ
गीत: चाह बरबाद करेगी हमें मालूम न था।

सागर नाहर का कहना है कि -

और हाँ उत्‍तर वाली टिप्प्णी में गायक का नाम छूट गया था और वह है स्व. कुन्दन लाल सहगल।

सागर नाहर का कहना है कि -

एक सुझाव देना चाहूंगा
टिप्प्णी को मॉडरेशन में रखा जाना चाहिए था। गलत उत्तर को जाँच कर प्रकाशीत कर देना चाहिए था और जो सही जवाब है उसे समय सीमा तक रोकना चाहिए था।
जैसा सी एम क्विज में होता है।

CG स्वर का कहना है कि -

सवाल १ - संगीतकार कौन हैं इस गीत के - नौशाद
सवाल २ - गीतकार बताएं - मजरूह सुल्‍तानपुरी
सवाल ३ - फिल्म का नाम बताएं- शाहजहां(1946)

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