ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 431/2010/131
नमस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी चाहने वालों का एक बार फिर से हार्दिक स्वागत है इस स्तंभ में। अगर आप हम से आज जुड़ रहे हैं, तो आपको बता दें कि आप इस वक़्त शामिल हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल में। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' स्तंभ है 'हिंद-युग्म' के साज़-ओ-आवाज़ विभाग, यानी कि 'आवाज़' का एक हिस्सा। हर हफ़्ते रविवार से लेकर गुरुवार तक 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल सजती है और हर अंक में हम आपको सुनवाते हैं हिंदी सिनेमा के गुज़रे ज़माने का एक अनमोल नग़मा। कभी ये नग़में कालजयी होते हैं तो कभी भूले बिसरे, कभी सुपर हिट तो कभी कमचर्चित। लेकिन हर एक नग़मा बेमिसाल, हर एक गीत नायाब। तभी तो इस स्तंभ को हम कहते हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड'। तो उन सभी भाइयों और बहनों का, जो हम से आज जुड़ रहे हैं, हम एक बार फिर से इस महफ़िल में हार्दिक स्वागत करते हैं। दोस्तों, भारत में इस साल के मानसून का आगमन हो चुका है। देश के कई हिस्सों में बरखा रानी छम छम बरस रही हैं इन दिनों, तो कई प्रांत ऐसे भी हैं जो अभी भी भीषण गरमी से जूझ रहे हैं। उनके लिए तो हम यही कामना करते हैं कि आपके वहाँ भी जल्द से जल्द फुहारें आरंभ हो। दोस्तों, बारिश के ये दिन, सावन का यह महीना, रिमझिम की ये फुहारें, काले बादलों की गर्जन करती हुई फ़ौज, नई कोंपलें, चारों तरफ़ हरियाली ही हरियाली, किसे नहीं अच्छा लगता होगा। प्रकृति के इस अनुपम वातावरण का मानव हृदय पर असर होना लाजमी है। तभी तो सावन की ॠतु पर असंख्य कविताएँ और गीत लिखे जा चुके हैं और अब भी लिखे जाते हैं। सावन को मिलन का मौसम भी कहा जाता है। जो प्रेमी अपनी प्रेमिका से इस समय दूर होते हैं, उनके लिए यह मौसम बड़ा कष्ट दायक बन जाता है। तभी तो जुदाई के दर्द को और भी ज़्यादा पुर असर तरीके से चित्रित करने के लिए हमारे फ़िल्मकार बरसात का सहारा लेते हैं। "सावन के झूले पड़े तुम चले आओ", "अब के सजन सावन में, आग लगेगी बदन में", "सावन आया बादल छाए, आने वाले सब आए हैं बोलो तुम कब आओगे", और भी न जाने कितने ऐसे गीत हैं जिनमें सावन के साथ जुदाई के दर्द को मिलाया गया है। ख़ैर, यह तो एक पहलु था। सावन और बरसात का आज हमने इसलिए ज़िक्र छेड़ा क्योंकि आज से 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर हम शुरु कर रहे हैं इसी सुहाने मौसम को समर्पित हमारी नई लघु शृंखला 'रिमझिम के तराने'। यानी कि इस भीगे भीगे मौसम को और भी ज़्यादा रोमांटिक, और भी ज़्यादा सुहावना बनाने के लिए अगले दस कड़ियों में सुनिए बारिश के नग़में, कभी टिप टिप, कभी रिमझिम, तो कभी टापुर टुपुर के ताल पर सवार हो कर।
इस शृंखला की शुरुआत किसी ऐसे गीत से होनी चाहिए जो हमारे इतिहास से जुड़ा हुआ हो, हमारी प्राचीन संस्कृति से जुड़ी हुई हो। तो फिर ऐसे में कालीदास रचित 'मेघदूत' से बेहतर शुरुआत और क्या हो सकती है भला! 'मेघदूत' कालीदास की सुविख्यात काव्य कृति है। यह एक लिरिकल पोएम है जिसका ना केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्व है, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी बेहद महत्व रखता है। इसमें मानसून का वर्णन मिलता है और मध्य भारत में मानसून के गति पथ और दिशाओं का भी उल्लेख मिलता है जो आज के वैज्ञानिकों के शोध कार्य के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। कालीदास के अन्य महत्वपूर्ण कृतियों में शामिल हैं 'शकुंतला', 'विक्रम-उर्वषी', 'कुमारसंभवा', 'रघुवंशम' आदि। इन सभी पर फ़िल्में बन चुकी हैं। 'मेघदूत' पर सन् १९४५ में देबकी बोस ने इसी शीर्षक से फ़िल्म निर्देशित की जिसका निर्माण कीर्ति पिक्चर्स के बैनर तले हुआ था। ऐतिहासिक व काव्यिक होने की वजह से इस फ़िल्म के संगीतकार के रूप में किसी विशिष्ट संगीतकार को ही चुनना ज़रूरी था। ऐसे में कमल दासगुप्ता को चुना गया जो उन दिनों ग़ैर फ़िल्मी गीतों को मनमोहक धुनों में प्रस्तुत करने के लिए जाने जाते थे। गायक जगमोहन ने भी इस फ़िल्म के गीतों में महत्वपूर्ण योगदान दिया, ख़ास कर आज का प्रस्तुत गीत "ओ वर्षा के पहले बादल, मेरा संदेसा ले जा वहाँ"। जगमोहन उन गिने चुने कलाकारों में से थे जिन्होने रबीन्द्र संगीत शैली को फ़िल्म संगीत में लाने की कोशिश की। ६ सितंबर १९१८ को जनमे जगन्मय मित्र (जगमोहन) कलकत्ते के एक ज़मीनदार परिवार से तालुख़ रखते थे। उन्होने शास्त्रीय संगीत और सुगम संगीत की तालीम पॊण्डिचेरी के दिलीप कुमार राय से प्राप्त की। मैट्रिक की परीक्षा के बाद वो रेडियो पर गाने लगे। हालाँकि उन्होने हिंदी फ़िल्मों के लिए ज़्यादा नहीं गाए, उनके ग़ैर फ़िल्मी रचनाएँ बहुत लोकप्रिय हुआ करते थे उस ज़माने में। और उनका गाया सब से लोकप्रिय ग़ैर फ़िल्मी गीत है "यह ना बता सकूँगा मैं तुमसे है मुझे प्यार क्यों"। जगमोहन की तरह कमल दासगुप्ता भी हिंदी फ़िल्मों में कम ही नज़र आए। उपलब्ध जानकारी के अनुसार कमल बाबू ने हिंदी की जिन १६ फ़िल्मों में संगीत दिया था उनके नाम हैं - जवाब ('४२), हास्पिटल ('४३), रानी ('४३), मेघदूत ('४५), अरेबियन नाइट्स ('४६), बिंदिया ('४६), कृष्ण लीला ('४६), पहचान ('४६), ज़मीन आसमान ('४६), फ़ैसला ('४७ - अनुपम घटक के साथ), गिरिबाला ('४७), मनमानी ('४७), चन्द्रशेखर ('४८), विजय-यात्रा ('४८), ईरान की एक रात ('४९), फुलवारी ('५१)। और आइए दोस्तों, अब इस साल के मानसून का स्वागत-सत्कार किया जाए 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर जगमोहन के गाए फ़िल्म 'मेघदूत' के इस गाने से। गीत लिखा है फ़ैय्याज़ हाशमी ने। जी हाँ, वोही फ़य्याज़ हशमी जिन्होने कमल दासगुप्ता के लिए तलत महमूद का पहला पहला मशहूर गीत "तस्वीर तेरी दिल मेरा बहला ना सकेगी" लिखा था। इस गीत को हम कभी आपको संभव हुआ तो ज़रूर सुनवाएँगे, फ़िल्हाल सुनते हैं फ़िल्म 'मेघदूत' का गीत, जिसकी अवधि है कुल ६ मिनट और ६ सेकण्ड्स, जो कि उस ज़माने के हिसाब से बहुत ही लम्बा था।
क्या आप जानते हैं...
कि संगीतकार कमल दासगुप्ता धुन बनाते समय हारमोनियम या पियानो के बजाय कलम लेकर बैठते थे। जैसे जैसे उनके दिमाग में सुर आकार लेते थे, वे सीधे उसके नोटेशन्स कापी में लिखते जाते थे।
पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)
१. कल इस गीतकार की पुण्यतिथि है, नाम बताएं -३ अंक.
२. इस गीतकार संगीतकार जोड़ी ने एक से बढ़कर एक नगमें दिए हैं हमें, संगीतकार बताएं - २ अंक.
३. लता के गाये सावन के इस गीत को हमने किस फिल्म से लिया है - १ अंक.
४. १९६७ में आई थी ये फिल्म, किस राग पर आधारित है ये गीत - ३ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
क्या बात है कोई शरद जी और अवध जी को टक्कर देने मैदान में नहीं उतर रहा, अरे भाई मैदान छोड़ के भागिए मत, चार सवाल हैं...कोशिश कीजिये
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
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4 श्रोताओं का कहना है :
Geetkaar: Bharat Vyas
Avadh Lal
(Dar Laage Garaje Badariya)
(saavan Ki Ritu Kajara Re Kaari)
(chamake Matavaari Bijuriya)
ab Kaha Karoon Kit Jaaoon
mohe Chhod Gae Saanvariya
dar Laage Garaje Badariya
ये गाना फिल्म 'राम राज्य' का है.
और भैया जी
ओ वर्षा के पहले बादल हमने इतनी व्यस्तता के बावजूद उत्तर भी दिया था. जरा चेक कीजिये.
नम्बर ना देना हो ना दो पर ये ना कहो कि अवध भैया और शरद जी मैदान में अकेले हैं.
Rag : Sur malhar
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