रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


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प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Sunday, July 18, 2010

लहरों पे लहर, उल्फत है जवाँ....हेमंत दा इस गीत में इतनी भारतीयता भरी है कि शायद ही कोई कह पाए ये गीत "इंस्पायर्ड" है



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 441/2010/141

मस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक नई सप्ताह के साथ हम फिर एक बार हाज़िर हैं। दोस्तों, हमारे देश का संगीत विश्व का सब से पुराना व स्तरीय संगीत रहा है। प्राचीन काल से चली आ रही भारतीय शास्त्रीय संगीत पूर्णत: वैज्ञानिक भी है और यही कारण है कि आज पूरा विश्व हमारे इसी संगीत पर शोध कर रही है। जब फ़िल्म संगीत का जन्म हुआ, तब फ़िल्मी गीत इसी शास्त्रीय संगीत को आधार बनाकर तैयार किए जाने लगे। फिर सुगम संगीत का आगमन हुआ और फ़िल्मी गीतों में शास्त्रीय राग तो प्रयोग होते रहे लेकिन हल्के फुल्के अंदाज़ में। लोकप्रियता को देखते हुए मूल शास्त्रीय संगीत धीरे धीरे फ़िल्मी गीतों से ग़ायब होता चला गया। फिर पश्चिमी संगीत ने भी फ़िल्मी गीतों में अपनी जगह बना ली। इस तरह से कई परिवर्तनों से होते हुए फ़िल्म संगीत ने अपना लोकप्रिय पोशाक धारण किया। पश्चिमी असर की बात करें तो हमारे संगीतकारों ने ना केवल पश्चिमी साज़ों का इस्तेमाल किया, बल्कि समय समय पर विदेशी धुनों को भी अपने गीतों का आधार बनाया। ऐसे गीतों को हम सभ्य भाषा में 'इन्स्पायर्ड सॊंग्‍स' कहते हैं, जब कि कुछ लोग इन्हे 'कॊपीड सॊंग्स' भी कहते हैं। ख़ैर, यहाँ हम इस नैतिक मूल्यों वाली वितर्क में नहीं जाएँगे, बल्कि आपको यह बताना चाहेंगे कि आज से हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर शुरु कर रहे हैं अपनी नई लघु शृंखला 'गीत अपना धुन पराई' जिसके तहत आप दस ऐसे गीत सुन पाएँगे जिनकी धुन किसी विदेशी मूल धुन या गीत से प्रेरित है। धुन चाहे इन्स्पायर्ड हो या कॊपीड, अहम बात यह है कि इस तरह के ज़्यादातर गानें ही मक़बूल हुए हैं, और हमारे यहाँ तो यही रवायत है कि जो हिट है वही फ़िट है। गाना अगर पब्लिक को पसंद आ गया, तो हर गुनाह माफ़ हो जाता है। वैसे आपको बता दें कि हम ज़्यादातर दो चार गिने चुने संगीतकारों पर ही धुनों की चोरी का आरोप लगाते आए हैं, जब कि हक़ीक़त यह है कि फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर में भी बहुत से संगीतकारों ने विदेशी धुनों का सहारा लिया। हमारे यहाँ हिपोक्रिसी भी ख़ूब है कि अगर किसी महान संगीतकार ने किसी पश्चिमी धुन का सहारा लिया तो उन्हे कुछ नहीं कहा गया, उनके गीत को "इन्स्पायर्ड" की श्रेणी में डाल दिया गया; लेकिन अगर किसी नए या छोटे संगीतकार ने ऐसा किया तो उन पर चोरी का इल्ज़ाम लगा दिया गया। ख़ैर, जैसा कि हमने कहा कि हम इस वितर्क की ओर नहीं जाएँगे, बल्कि केवल इन गीतों का आनंद लेंगे।

'गीत अपना धुन पराई' शृंखला की पहली कड़ी के लिए हमने चुना है वह गीत जो आधारित है गीत "The main who plays the mandolino" की धुन पर। इस अंग्रेज़ी गीत को गाया था डीन मारटिन ने। कुछ याद आया दोस्तों कि किस तरह का था यह धुन? इस धुन पर आधारित जो आज का प्रस्तुत गीत है, वह है "लहरों पे लहर, उलफ़त है जवाँ, रातों के सहर, चली आओ यहाँ"। हेमन्त कुमार और नूतन की आवाज़ों में यह फ़िल्म 'छबिली' का गीत है जो आई थी सन्‍ १९६० में। इस गीत के संगीतकार हैं स्नेहल भाटकर। आज जब नूतन और स्नेहल का ज़िक्र एक साथ आ ही गया है तो आपको बता दें कि शोभना समर्थ, जो अपने ज़माने की जानीमानी अभिनेत्री रही हैं, वो फ़िल्में भी बनाती थीं, निर्मात्री भी थीं। और उन्होने जब अपनी बेटी नूतन को फ़िल्मों में लौंच करने के बारे में सोचा तो एक फ़िल्म प्लान की 'हमारी बेटी'। यह बात है सन्‍ १९५० की। और इस फ़िल्म के लिए संगीतकार उन्होने चुना स्नेहल भाटकर को। आगे चलकर, इसके १० साल बाद, जब शोभना जी अपनी छोटी बेटी तनुजा को लौंच करने के लिए 'छबिली' फ़िल्म का निर्माण किया १९६० में, तो एक बार फिर से उन्होने स्नेहल के नाम का ही चुनाव किया। तो ये बात होती है विश्वास की, भरोसे की, और यह बात होती है संगीत को जानने की, समझने की, और उससे लगाव की। बात करते हैं आज के गीत की, तो इस गीत की धुन के बारे में हेमन्त दा का क्या कहना है, आइए जान लेते हैं उन्ही के शब्दों में, जो उन्होने कहे थे विविध भारती के सम्भवत: 'जयमाला' कार्यक्रम में - "बहुत साल पहले की बात है, मेरा एक दोस्त विदेश से बहुत सारे रेकॊर्ड्स लेकर आया था। मैंने उनमें से एक रेकॊर्ड सीलेक्ट कर लिया। फिर मुझे नूतन का फ़ोन आया कि 'छबिली' का एक गाना आपको गाना है। मैं गया। स्नेहल भाटकर म्युज़िक डिरेक्टर थे। जब मैं वहाँ पहुँचा तो मैं हैरान हो गया यह देख कर कि गाने का ट्यून वही था जिसे घर में मैंने सीलेक्ट किया था। लेकिन सुनिए स्नेहल ने इस धुन को कितने अच्छे से सजाया है इस गीत में।" और दोस्तों, चलते चलते लगे हाथ डीन मारटिन से जुड़ी कुछ तथ्य भी आपको देना चाहेंगे। डीन मारटिन का पूरा नाम था डीनो पौल क्रौसेटी। उनका जन्म ७ जून १९१७ को ओहियो, अमेरिका में हुआ था। वो बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। एक गायक होने के साथ साथ वो एक फ़िल्म अभिनेता, कॊमेडीयन, टी.वी कलाकार व स्टेज आरटिस्ट भी थे। उनके हिट एकल गीतों में शामिल है "Memories Are Made of This", "That's Amore", "Everybody Loves Somebody", "Mambo Italiano", "Sway", "Volare" और "Ain't That a Kick in the Head?" उन्हे उनके चाहने वाले 'King of Cool' के नाम से बुलाते थे। उनका २५ दिसम्बर १९९५ को ७८ वर्ष की आयु में कैलिफ़ोर्निया में निधन हो गया।



क्या आप जानते हैं...
कि इसी डीन मारटिन की "The main who plays the mandolino" की धुन से प्रेरीत हो कर एक और गीत बना था बॊलीवुड में, फ़िल्म 'बाज़ीगर' का गीत "ये काली काली आँखें", जिसके संगीतकार थे अनु मलिक।

पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)

१. डॊरिस डे का मशहूर गीत से प्रेरित है ये गीत, संगीतकार बताएं - ३ अंक.
२. इस दार्शनिक गीत के गीतकार बताएं - २ अंक.
३. ग़ज़ल किंग कहे जाते हैं इस गीत के गायक, नाम बताएं - १ अंक.
४. १९५७ में आई इस लो बजेट फिल्म का नाम बताएं - २ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी आपको मान गए हुज़ूर. अवध जी कुछ बहके जरूर पर आखिर मामला पकड़ ही लिया, इंदु जी, कब तक सावन के गाने बजायेंगें हम.....इतना काहे सोचती हैं आप :) किश जी ओटावा से हमारे साथ जुड़े, पर शायद सवाल नहीं समझ पाए, इस बार कोशिश कीजियेगा

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

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5 श्रोताओं का कहना है :

indu puri goswami का कहना है कि -

अरे! प्रश्न कितने कठिन पूछते हो आज कल. पी.एचडी. की डिग्री दोगे क्या?
सिर चकराय जाता है.एक तो वर्क लोड आज कल इतना उपर से कठिन प्रश्न.भाग जाऊंगी मैं .
क्यों?
ऐसिच हूं मैं सच्ची.

शरद तैलंग का कहना है कि -

आज तो मैं भी गच्चा खा गया फ़िर भी एक तुक्का लगा देता हूँ । संगीतकार : सलिल चौधरी

उज्ज्वल कुमार का कहना है कि -

मै कुछ दिनों के लिए अपने गाँव चला गया था इस लिए आवाज़ से नहीं जुड़ सका आते हीं पहले आवाज़ पढ़ा.बेहद सराहनीय श्रंखला की सुरुआत हुई है.मगर सवाल बहुत कठिन पूछे जा रहे हैं.
मै तो बस गायक का नाम हीं गेस कर पा रहन हू. मुझे लगता है गायक तलत महमूद होंगे

इंदु पुरी गोस्वामी का कहना है कि -

गज़ल किंग कहा जाता है जिन्हें. उनका शामे गम की कसम आज गमगी है हम गीत डोरिस दे से 'इंस्पायर्ड' मिला है जो फिल्म 'फुटपाथ का है. अब आप जानो और मेरा ये उत्तर.

शरद तैलंग का कहना है कि -

इन्दु जी
फुट्पाथ तो शायद १९५३ की फ़िल्म है पर प्रश्न में तो १९५७ की फ़िल्म पूछ रहे हैंं ।

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