रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


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प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Monday, July 19, 2010

जीवन है मधुबन....इस गीत की प्रेरणा है मशहूर के सरा सरा गीत की धुन



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 442/2010/142

अंग्रेज़ी में एक कहावत है - "1% inspiration and 99% perspiration makes a man successful". अर्थात् परिश्रम के मुक़ाबले प्रेरणा को बहुत कम महत्व दिया गया है। यह कहावत दूसरे क्षेत्रों में भले ही कारगर साबित हो, लेकिन जहाँ तक फ़िल्म संगीत के क्षेत्र में ज़्यादातर ऐसा देखा गया है कि विदेशी धुनों से प्रेरीत गीत जल्दी ही लोगों की ज़ुबान पर चढ़ जाते हैं, यानी कामयाब हो जाते हैं। इन गीतों में उपर्युक्त कहावत की सार्थकता दूर दूर तक नज़र नहीं आता। लेकिन हमारे फ़िल्म जगत में कुछ बहुत ही गुणी संगीतकार भी हुए हैं, जिन्होने अपने संगीत सफ़र में विदेशी धुनों का ना के बराबर सहारा लिया और अगर एक आध गीतों में लिया भी है तो उनमें उन्होने अपना भी भरपूर योगदान दिया और उसका पूरी तरह से भारतीयकरण कर दिया, जिससे कि गीत बिलकुल देसी बन गया। ऐसे ही एक बेहद प्रतिभावान संगीतकार रहे अनिल बिस्वास, जिन्हे फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर के संगीतकारों का भीष्म पितामह भी कहा जाता है। युं तो अनिल दा के गानें मुख्य रूप से भारतीय शास्त्रीय संगीत और देश के विभिन्न प्रांतों के लोक संगीत पर आधारित रहा है, लेकिन कम से कम एक गीत उनका ऐसा ज़रूर है जिसमें उन्होने भी एक विदेशी मूल धुन का सहारा लिया। आज 'गीत अपना धुन पराई' शृंखला में अनिल दा के उसी गीत की बारी। यह गीत है फ़िल्म 'जासूस' का, जिसके बोल हैं "जीवन है मधुबन, तू इसमें फूल खिला, कांटों से ना भर दामन, अब मान भी जा"। तलत महमूद की मख़मली आवाज़ और गीतकार हैं इंदीवर। और जिस विदेशी धुन से यह गीत प्रेरीत है वह है डॊरिस डे का मशहूर गीत "के सरा सरा सरा सरा व्हाटेवर विल बी विल बी (que sera sera sera sera whatever will be will be)"| अमीन सायानी साहब ने एक बार इस गीत के बारे में यह कहा था कि अनिल बिस्वास ने अपनी एक धुन एक वेस्टर्ण हिट गीत की धुन के आधार पर ज़रूर बनाई थी फ़िल्मी दुनिया को यह बताने के लिए कि किसी और धुन से प्रेरणा पाना चाहो तो भई पाओ मगर सीधी कॊपी ना करो, जैसे कि आज खुले-आम हो रहा है। फ़िल्म 'जासूस' सन् १९५७ की एक कम बजट की फ़िल्म थी जिसके मुख्य कलाकार थे कामरान, नीरू और कुमकुम, और फ़िल्म के निर्देशक थे आर. डी. राजपूत।

आइए आपको "के सरा सरा" गीत के बारे में कुछ बताया जाए। यह गीत पहली बार पब्लिश हुआ था सन् १९५६ में जिसे लिखा था जे लिविंग्स्टन और रे ईवान्स की टीम ने। इस गीत को पहली बार इस्तेमाल किया गया था १९५६ की ही ऐल्फ़्रेड हिचकॊक की फ़िल्म 'दि मैन हू न्यु टू मच' में जिसके मुख्य कलाकार थे डॊरिस डे और जेम्स स्टीवार्ट। डॊरिस ने यह गीत गाया था जिसे कोलम्बिआ रेकार्ड्स ने जारी किया था। यह गीत बेहद मक़बूल हुआ, अमेरिका में भी और इंगलैण्ड में भी। इस गीत को १९५६ में सर्वश्रेष्ठ मौलिक गीत का 'अकाडेमी अवार्ड', यानी कि ऒस्कर मिला था। इस धुन का इस्तेमाल १९६८ से लेकर १९७३ तक डॊरिस डे की कॊमेडी शो 'दि डॊरिस डे शो' के थीम सॊंग् के रूप में किया गया था। लिविंग्स्टन और ईवान्स का यह तीसरा ऒस्कर था, इससे पहले इन्होने १९४८ और १९५० में यह पुरस्कार जीता था। इस फ्रेज़ "के सरा सरा" की मूल भाषा को लेकर थोड़ा सा संशय है। वैसे तो ये स्पैनिश बोल हैं, लेकिन व्याकरण के लिहाज से स्पैनिश नहीं हो सकते। कहते हैं कि लिविंग्स्टन ने १९५४ की फ़िल्म 'दि बेयरफ़ूट कण्टेसा' देखी, जिसमें एक इटालियन परिवार का मोटो होता है "Che sarà sarà" जो एक पत्थर पर खुदाई किया रहता है उनकी पुरानी पूर्वजों की हवेली में। तभी लिविंग्स्टन ने यह फ़्रेज़ नोट कर लिया था और फिर स्पैनिश के अक्षरों में इसे परिवर्तित कर दिया। तो दोस्तों, ये तो थी "के सरा सरा" के बारे में जानकारी। आपको फ़िल्म 'पुकार' में माधुरी दीक्षित और प्रभुदेवा पर फ़िल्माया गीत भी याद आ ही गया होगा अब तक! उस गीत में और अनिल दा के इस गीत में ज़मीन आसमान का अंतर है। लीजिए आप ख़ुद ही सुनिए और महसूस कीजिए।



क्या आप जानते हैं...
कि अभी हाल ही में, साल २००९ में, एक थाई लाइफ़ इन्श्योरैंस कंपनी ने अपने विज्ञापन में "के सरा सरा" के मूल गीत का इस्तेमाल किया था जिसे कुछ विकलांग बच्चों द्वारा गाते हुए दिखाया गया था उस विज्ञापन में।

पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)

१. खुद गायिका के भाई हैं इस "प्रेरित" गीत के संगीतकार, नाम बताएं- ३ अंक.
२. प्रदीप कुमार और माला सिन्हा अभिनीत इस फिल्म का नाम बताएं - १ अंक.
३. हैरी बेलाफ़ोण्ट के "जमाइकन फ़ेयरवेल" पर आधारित ये गीत किसने लिखा है - २ अंक.
४. कौन है गायिका इस दर्द भरे गीत की - २ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
हा हा हा ...सच बहुत दिनों बाद इतना मज़ा आया, हाँ गाना वाकई बहुत मुश्किल था, उज्जवल जी को सही गायक पहचानने के लिए हम १ अंक अवश्य देंगें, खैर दिग्गजों को आज की पहेली के लिए शुभकामनाएं :)

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

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4 श्रोताओं का कहना है :

शरद तैलंग का कहना है कि -

Music Director : Mukul Roy

AVADH का कहना है कि -

गायिका: गीता रॉय (तब तक उनकी गुरु दत्त से शादी नहीं हुई थी ).
अवध लाल

शरद तैलंग का कहना है कि -

कल की पहेली में ’जीवन है मधुबन” गीत की फ़िल्म जासूस का वर्ष मैनें जहाँ भी देखा है १९५५ दे रखा है जबकि आप ने पहेली में १९५७ की फ़िल्म बताया। सही क्या है ? शायद इसीलिए जवाब खोजने में दिक्कत हुई

indu puri का कहना है कि -

Do Chamakti Aankhon Mein Kal Khwaab Sunehra Tha - Detective (1958 )

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