ताज़ा सुर ताल २५/२०१०
सुजॊय - सजीव, बहुत दिनों के बाद आप से इस 'टी.एस.टी' के स्तंभ में मुलाक़ात हो रही है। और बताइए, हाल में आपने कौन कौन सी नई फ़िल्में देखीं और आपके क्या विचार हैं उनके बारे में?
सजीव - सुजॉय मैंने "काईट्स", "रावण" और "राजनीति" देखी. रावण और राजनीति मुझे पैसा वसूल लगी तो काईट्स उबाऊ. रावण बेशक चली नहीं पर जहाँ तक मेरा सवाल है मैं फिल्मों को सिर्फ कहानी के लिए नहीं देखता हूँ, मैं जिस मणि का कायल हूँ निर्देशन के लिए वही मणि "युवा" और "दिल से" के बाद मुझे यहाँ दिखे....जबरदस्त संगीत और छायाकारी है फिल्म की. राजनीति भी रणबीर और कंपनी के शानदार अभिनय के लिए देखी जा सकती है, बस मुझे कर्ण के पास कुंती के जाने वाला एपिसोड निरर्थक लगा, नाना पाटेकर हमेशा की तरह....सोलिड....खैर छोडो ये सब....आज का मेनू बताओ...
सुजॊय - जैसे कि इस साल का सातवाँ महीना शुरु हो गया है, तो ऐसे में अगर हम पिछले ६ महीनों की तरफ़ अपनी नज़र घुमाएँ, तो आपको क्या लगता है कौन कौन से गीत उपरी पायदानों पर चल रहे हैं इस साल? मेरे सीलेक्शन कुछ इस तरह के हैं - सर्वर्श्रेष्ठ गीत - "दिल तो बच्चा है जी" (इश्क़िया), सर्वश्रेष्ठ गायक - के.के ("ज़िंदगी दो पल की" - काइट्स), सर्वश्रेष्ठ गायिका - रेखा भारद्वाज ("कान्हा" - वीर), सर्वश्रेष्ठ गीतकार - गुलज़ार ("दिल तो बच्चा है जी" - इश्क़िया), सर्वश्रेष्ठ संगीतकार - उस्ताद शुजात हुसैन ख़ान (मिस्टर सिंह ऐण्ड मिसेस मेहरा)।
सजीव - अरे वाह सुजॉय, बिलकुल यही सूची मेरी भी है, बस श्रेष्ठ गायिका के लिए मेरा नामांकन रिचा शर्मा के लिए होगा, "फ़रियाद है शिकायत है" गाने के लिए....बहुत ही अच्छा गाया गया है ये.
सुजॊय - सजीव, अभी पिछले ही हफ़्ते मैं विश्व दीपक जी को बता रहा था कि आजकल समानांतर सिनेमा और व्यावसायिक सिनेमा के बीच की दूरी बहुत कम सी हो गई है। आजकल पारम्परिक फ़ॊरमुला फ़िल्में बहुत कम ही बन रही है और फ़िल्मकार नए नए और विविध विषयों पर फ़िल्में बना रहे हैं।
सजीव - बिलकुल सही बात है, पश्चिमी सिनेमा की तरह हमारे देश में भी अब फ़ॊरमुला से हट के फ़िल्में आ रही हैं, जिसके लिए इस पीढ़ी के फ़िल्म निर्माताओं को दाद देनी ही पड़ेगी। तो बताओ कि आज हम किस फ़िल्म के गानें सुनने जा रहे हैं?
सुजॊय - आज हम लेकर आए हैं फ़िल्म 'वन्स अपॊन अ टाइम इन मुंबई' के गीतों को। जैसा कि सुनने में आया है कि यह फ़िल्म रजत अरोड़ा की लिखी कहानी है जो ७० के दशक की पृष्ठभूमि पर आधारित है। इसलिए ज़ाहिर है कि इस फ़िल्म का संगीत भी उसी दौर के मुताबिक़ होनी चाहिए।
सजीव - संगीतकार प्रीतम को इस फ़िल्म के संगीत का ज़िम्मा सौंपा गया था और अब देखना यह है कि उन्होने कितना न्याय किया है फ़िल्म की ज़रूरत के हिसाब से। बातचीत आगे बढ़ाने से पहले सुन लेते हैं फ़िल्म का पहला गीत मोहित चौहान की आवाज़ में। गीत लिखा है इरशाद कामिल ने।
गीत:पी लूँ होठों की सरगम
सुजॊय - यह गीत आजकल ख़ूब बज रहा है एफ़.एम चैनल्स पर। और सुनते सुनते गीत जैसे ज़हन में चढ़ सा गया है इन दिनों। मोहित की आवाज़ में यह रोमांटिक गीत सुनने में अच्छा लगता है। कोरस का इस्तेमाल सूफ़ी और क़व्वाली के अंदाज़ में किया गया है। प्रीतम धीरे धीरे ऐसे संगीतकार बनते जा रहे हैं जिनके गीतों से कुछ ना कुछ उम्मीदें हम ज़रूर रख सकते हैं, और वो निराश नहीं करते। उनके गीतों की लोकप्रियता का मुझे सब से बड़ा कारण यह लगता है कि वो अपनी धुनों में मेलोडी भी बरक़रार रखते हैं और आज की पीढ़ी को पसंद आने वाली मॊडर्ण अंदाज़ भी मिलाते हैं।
सजीव - और दूसरा गीत भी क़व्वाली शैली का ही है जिसे राहत फ़तेह अली ख़ान, तुल्सी कुमार और साथियों ने गाया है। गीत इरशाद कामिल का ही है। इसमें भी वही रूमानीयत भरा अंदाज़, जो पहले गीत के मुक़ाबले और परवान चढ़ती है।
सुजॊय - इस गीत को सुनने से पहले हम बता दें कि 'वन्स अपॊन अ टाइम इन मुंबई' एकता कपूर - शोभा कपूर की फ़िल्म है जिसे निर्देशित किया है मिलन लुथरिया ने। फ़िल्म के मुख्य कलाकार हैं अजय देवगन, ईमरान हाशमी, कंगना रनौत, प्राची देसाई, और रणदीप हूडा। क्योंकि यह फ़िल्म दो पीढ़ी के दो गैंगस्टर की कहानी है, इसमें अजय का नाम है हाजी मस्तान, और ईमरान हाशमी का नाम है दावूद इब्राहिम। और अब सुनिए यह गीत।
गीत: तुम जो आए
सजीव - इस रोमांटिक समा को और भी ज़्यादा पुख़्ता बनाता हुआ अब आ रहा है फ़िल्म का तीसरा गीत "आइ एम इन लव" कार्तिक की आवाज़ में। यह वही कार्तिक हैं जिनकी आवाज़ का इस्तेमाल ए. आर. रहमान भी कर चुके हैं। ख़ैर, इस गीत को लिखा है नीलेश मिश्रा ने। सुना है इस गीत के दो और वर्ज़न हैं, एक के.के. की आवाज़ में और दूसरा एक डान्स वर्ज़न है।
सुजॊय - कार्तिक की आवाज़ में प्लेबैक वाली बात है, अच्छी आवाज़ है लेकिन पता नहीं क्यों उनके गानें ज़्यादा नहीं आते। अगर उनका ट्रैक रिकार्ड देखा जाए तो उन्होने कई हिट गीत गाए हैं जैसे कि फ़िल्म 'गजनी' का "बहका मैं बहका", फ़िल्म 'युवराज' का "शन्नो शन्नो", '१३-बी' का "बड़े से शहर में", 'दिल्ली-६' का "हे काला बंदर" और अभी हाल ही में फ़िल्म 'रावण' में उनका गाया "बहने दे मुझे बहने दे" ख़ूब पसंद किया जा रहा है।
सजीव - दरअसल कार्तिक दक्षिण में आज के दौर अग्रणी गायकों में से एक हैं। भले ही उनके हिंदी गानें ज़्यादा नहीं आए हैं, लेकिन दक्षिण में उनके गानें बेशुमार आ रहे हैं। तो चलो फिर कार्तिक की आवाज़ में यह गीत सुन लेते हैं।
गीत: आइ एम इन लव
सुजॊय - वाह! अच्छी मेलोडी थी इस गाने में। शुरुआती संगीत में पियानो जैसे नोट्स एक मूड बना देता है, और उसके बाद कार्तिक की सूदिंग् आवाज़ में ये नर्मोनाज़ुक बोल, क्या बात है! फिर से वही बात दोहराउँगा कि प्रीतम मेलोडी को बरकरार रखते हुए जो आज की यूथ अपील डालते हैम अपने गानों में, वही बात उनके गीतों को मक़बूल कर देती है। वैसे सजीव, इस गीत को सुनते हुए मुझे के.के. की आवाज़ की भी याद आ रही थी। ऐसा लग रहा था कि जैसे यह के.के टाइप का गीत है।
सजीव - शायद तभी के.के. की आवाज़ में भी यह गीत साउंड ट्रैक में रखा गया है। इस वर्ज़न को हम आज यहाँ तो नहीं सुनेंगे लेकिन उम्मीद है के.के ने भी बढ़िया ही निभाया होगा इस गीत को। चलो अब आगे बढ़ते हैं और एक बिलकुल ही अलग अंदाज़ का गीत सुनते हैं। यह दरअसल एक रीमिक्स नंबर है। ७० के दशक के दो ज़रबरदस्त राहुल देब बर्मन हिट्स "दुनिया में लोगों को" और "मोनिका ओ माइ डारलिंग" को मिलाकर इस गीत का आधार तैयार किया गया है और उसमें नए बोल डाले गए हैं "परदा परदा अपनों से कैसा परदा"।
गीत: परदा परदा
सुजॊय - हम्म्म्म.... वैसे कोई नई चीज़ तो नहीं, लेकिन एक तरह से ट्रिब्यूट सॊंग् माना जा सकता है उस पूरे दशक के नाम। सुनिधि चौहान इस तरह के गीतों को तो ख़ूब अंजाम देती है ही है, लेकिन आर. डी. बर्मन जैसी आवाज़ निकालने वाले गायक राना मजुमदार को भी दाद देनी ही पड़ेगी। सुनिधि गीत में "वो आ गया, देखो वो आ गया" जिस तरह से गाती हैं, हमें यकायक आशा जी वाली अंदाज़ याद आ जाती है।
सजीव - और अब अंतिम गीत अमिताभ भट्टाचार्य की कलम से। मिका की आवाज़ में है यह गीत "बाबूराव मस्त है", जो बाबू राव की शख़सीयत बताता है। शरारती अंदाज़ में लिखा हुआ यह एक तरह से हास्य गीत है।
सुजॊय - इस गीत को ध्यान से सुनिएगा क्योंकि इस गीत की ख़ासीयत ही है इसके बोल। मामला मस्त है!!!!
गीत: बाबूराव
"वंस अपोन अ टाइम इन मुंबई" के संगीत को आवाज़ रेटिंग ***१/२
सुजॊय - हाँ तो क्या ख़याल है सजीव? शुरु में हमने कहा था कि फ़िल्म ७० के दशक की कहानी है। तो क्या संगीत में उसकी छाप नज़र आई? भई, मेरा ख़याल तो यही है कि गानें अच्छे हैं लेकिन ७० के दशक का स्टाइल तो सिवाय "परदा परदा" के किसी और गीत में नज़र नहीं आया। "पी लूँ" और "आइ एम इन लव" मेरे पसंदीदा गानें हैं इस फ़िल्म के। और मेरी तरफ़ से इस ऐल्बम को ३.५ की रेटिंग्।
सजीव - सहमत हूँ आपसे एक बार फिर, बढ़िया गाने हैं....पी लूं अपने फिल्मांकन के लिए चर्चित होगा, और भीगे होंठ तेरे जैसा एक हिट गीत साबित होगा आने वाले दिनों में. पर्दा भी सुनने में कम और देखने में ज्यादा अच्छा होगा ऐसी उम्मीद है, "आई ऍम इन लव" और "तुम आये" मुझे बेहद अच्छे लगे...बाबु राव भी मस्त है :)
और अब आज के ३ सवाल
TST ट्रिविया # ७३- गायक कार्तिक ने सन् २००२ में आशा भोसले के साथ एक गीत गाया था। बताइए फ़िल्म का नाम और गीत के बोल।
TST ट्रिविया # ७४- 'वन्स अपॊन अ टाइम इन मुंबई', 'ये दिल आशिक़ाना' तथा 'धड़कन' फ़िल्मों में एक गीत ऐसा है जिनमें कम से कम एक समानता है। बताइए क्या समानता है।
TST ट्रिविया # ७५- ईमरान हाशमी अभिनीत वह कौन सी फ़िल्म है जिसमें के.के की आवाज़ में एक बेहद मक़बूल गीत आया था जिसके एक अंतरे में पंक्ति है "कैसे कटे ज़िंदगी मायूसियाँ बेबसी"।
TST ट्रिविया में अब तक -
कमाल है, क्या सवाल बहुत मुश्किल हैं, या फिर हमारे श्रोताओं ने नए संगीत को सुनना छोड़ दिया है....सीमा जी आपकी कमी खल रही है
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3 श्रोताओं का कहना है :
1) film Saathiya
song: chori pe chori,..
regards
3) The Killer (2006)
song : phirta rahoon dar badar
milta nahi tera nishaan
regards
2) " i am in love"
ye phrase in teno filmo ke songs me gaya gya hai.
regards
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