रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


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प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Friday, December 4, 2009

मेरा दिल जो मेरा होता....गीता जी की आवाज़ और गुलज़ार के शब्द, जैसे कविता में घुल जाए अमृत



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 280

गीता दत्त जी के गाए गीतों को सुनते हुए आज हम आ पहुँचे हैं इस ख़ास लघु शृंखला 'गीतांजली' की अंतिम कड़ी पर। पराग सांकला जी के सहयोग से इस पूरे शृंखला में आप ने ना केवल गीता जी के गाए अलग अलग अभिनेत्रियों पर फ़िल्माए हुए गीत सुनें, बल्कि उन अभिनेत्रियों और उन गीतों से संबंधित तमाम जानकारियों से भी अवगत हो सके। अब तक प्रसारित सभी गीत ५० के दशक के थे, लेकिन आज इस शृंखला का समापन हो रहा है ७० के दशक के उस फ़िल्म के गीत से जिसमें गीता जी की आवाज़ आख़िरी बार सुनाई दी थी। यह गीत है १९७१ की फ़िल्म 'अनुभव' का, "मेरा दिल जो मेरा होता"। और यह गीत फ़िल्माया गया था तनुजा पर। इस फ़िल्म के गीतों पर और चर्चा आगे बढ़ाने से पहले आइए कुछ बातें तनुजा जी की हो जाए! तनुजा का जन्म बम्बई के एक मराठी परिवार में हुआ था। उनके पिता कुमारसेन समर्थ एक कवि थे और माँ शोभना समर्थ ३० और ४० के दशकों की एक मशहूर फ़िल्म अभिनेत्री। जहाँ शोभना जी ने अपनी बेटी नूतन को लौंच किया १९५० की फ़िल्म 'हमारी बेटी' में, ठीक वैसे ही उन्होने अपनी छोटी बेटी तनुजा को बतौर बाल कलाकार कास्ट किया था उसी फ़िल्म में। उसके बाद तनुजा को पढ़ाई लिखाई के लिए विदेश भेजा गया जहाँ पर उन्होने अंग्रेज़ी, फ़्रेंच और जर्मन भाषाओं की तालीम प्राप्त की। वापस आकर १९६० की फ़िल्म 'छबिली' में अपनी बड़ी बहन नूतन के साथ उन्होने अभिनय किया, जिसका निर्देशन उनकी माँ ने ही किया था। इस फ़िल्म में गीता दत्त ने नूतन के साथ अपना एक्लौता डुएट गाया था। इसके एक दशक बाद बासु भट्टाचार्य की फ़िल्म 'अनुभव' में तनुजा का किरदार बहुत सराहा गया। तनुजा ने इस फ़िल्म की शूटिंग् के लिए अपना अपार्टमेंट बासु दा को दे रखा था, जिसके बदले बासु दा ने उन्हे दी एक यादगार भूमिका।

'अनुभव' फ़िल्म के गीतों की अगर बात करें तो वह एक ऐसा दौर था जब गीता दत्त बीमार हो चुकीं थीं। उनके पति गुरु दत्त का स्वर्गवास हो चुका था और उन पर अपने तीन छोटे छोटे बच्चों को बड़ा करने और 'गुरु दत्त फ़िल्म्स' के कर्ज़ों को चुकाने की ज़िम्मीदारी आन पड़ी थी। ऐसी स्थिति में फ़िल्म 'अनुभव' उनके जीवन में एक रोशनी की तरह आई और फिर बार फिर उन्होने यह साबित किया कि अब भी उनकी आवाज़ में वही अनूठा अंदाज़ बरक़रार है जो ५० और ६० के दशकों में हुआ करती थी। 'अनुभव' के गानें बेहद लोकप्रिय हुए और आज जब भी गीता जी के गाए गीतों की कोई सी.डी रिलीज़ होती है तो इस फ़िल्म का एक गीत उसमें ज़रूर शामिल किया जाता है। गीता दत्त के गाए 'अनुभव' फ़िल्म के तीनों गानें अपने आप में मास्टरपीस हैं और इन गीतों की चर्चा घंटों तक की जा सकती है। हमें याद रखनी चाहिए कि उस समय बाक़ी सभी संगीतकार उनसे मुँह मोड़ चुके थे। इसमें कोई संदेह नहीं कि गीता जी ने इन गीतों में जान डाल दी थी और वह भी उस समय जब कि उनकी अपनी तबीयत बहुत ख़राब थी और ख़ुद अपनी ज़िंदगी की तमाम परेशानियों से झूझ रही थीं। किसी तरह का नाटकीय या बहुत ज़्यादा जज़्बाती ना होते हुए भी उन्होने इन गीतों में वो अहसासात भरे हैं कि तनुजा के किरदार के साथ पूरा पूरा न्याय हुआ है। "मुझे जाँ ना कहो मेरी जाँ" गीत के अंत में उनकी हँसी कितनी नैचरल लगती है, है न? इस फ़िल्म में संगीत था कमचर्चित संगीतकार कानु रॉय का, जिनके संगीत निर्देशन में गीता जी की ही आवाज़ में फ़िल्म 'उसकी कहानी' का गीत "आज की काली घटा" हमने आपको गीता जी की पुण्य तिथि २० जुलाई को सुनवाया था। दुर्भाग्यवश 'अनुभव' की कामयाबी उस दीपक की तरह थी जो बुझने से पहले दमक उठती है। गीता जी जल्द ही इस दुनिया-ए-फ़ानी को छोड़ कर चली गईं अपनी अनंत यात्रा पर, और पीछे छोड़ गईं वो असंख्य मीठी सुरीली यादें जिनके सहारे आज हम कभी थिरक उठते हैं, कभी मचल जाते हैं, कभी उनकी रोमांटिक कॉमेडी हमें गुदगुदा जाती हैं, तो कभी उनके भक्ति रस वाले गीतों में डूब कर हम ईश्वर को अपने ही अंदर महसूस करने लगते हैं, और कभी उनके दुख भरे गीतों को सुनते हुए दर्द से दिल भर उठता है यह सोचते हुए कि क्यों इस महान और बेमिसाल गायिका को इतने दुख ज़िंदगी ने दिए! दोस्तों, गीता जी पर केन्द्रित यह शृंखला समाप्त करते हुए आइए सुनते हैं 'अनुभव' फ़िल्म का यह गीत, और चलते चलते एक बार फिर से हम आभार व्यक्त करते हैं पराग सांकला जी का इस पूरे शृंखला के लिए गानें और तथ्य संग्रहित करने के लिए। इस शृंखला के बारे में आप अपने विचार हमें टिप्पणी के अलावा hindyugm@gmail.com की ई-मेल पते पर भी भेज सकते हैं। धन्यवाद!



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (अब तक के चार गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी (दो बार), स्वप्न मंजूषा जी, पूर्वी एस जी और पराग सांकला जी)"गेस्ट होस्ट".अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

१. कल से शुरू होगी उस महान गीतकार/कवि पर हमारी लघु शृंखला, जिनकी आज से १० दिनों बाद पुण्यतिथि है.
२. यूं तो फिल्म का नाम ही मुख्य अभिनेत्री के स्क्रीन नाम पर था, पर इस फिल्म में बलराज सहानी की भी प्रमुख भूमिका रही.
३. एक अंतरा शुरू होता है इस शब्द से -"घायल".

पिछली पहेली का परिणाम -
पाबला जी ८ अंकों के लिए बधाई, और इंदु जी सेहत का ध्यान रखें ज़रा आप भी....

खोज - पराग सांकला
आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

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5 श्रोताओं का कहना है :

बी एस पाबला का कहना है कि -

हाज़िरी लगे हुज़ूर, वापसी पता नहीं, ब्रेक के बाद, कब हो!

बी एस पाबला

indu puri का कहना है कि -

tu pyar ka sagar hai teri ek boond ke pyase hm .....ghayal mn ka pagal panchhi udne ko beqaraar
nutan ne seema ka patr nibhaya tha aur film ka naam bhi seema hi hai
shalendra geetkar the
server bahut rota rota chl rha hai bhaiya ji

indu puri का कहना है कि -

dec 14, 1966 ko unki punyatithi hai . baki jyada jankari mujhe nhi hai .
sujoyji ,parag ji tbiyat ke liye chinta prakat karne ke liye .
kl se hi insulin inject karanaa shuru kar diya hai doctor ne teen baaar lena hai din men .
pr fikr ki koi baat nhi.apun ekdm MMMMMMMMMST,BINDAAAAAS,PABLAJI KI BAHIN HUN ..SHERNI,LIONESS LIONESS
O.K. GOD BLESS U

indu puri का कहना है कि -

Thanks nhi likha jaan bujh kar .....kyon? ye to aticates ki baat hai,hai na ?
jaldi jaldi me likhna bhool gai thi baba , abhi to jhooth bol rahi hun pure.
par apne-se lagne lage hain aap sbhi,isliye .....s..o...r...r...y
thanks pabla veerji ,sujoyji n paragji

indu puri का कहना है कि -

he bhagwan ! jane kis ghode par swar rahti hun main .likhna kya tha likha kya hai. main ,mera school aur usme padhne wale bchchon ka bhavishya to sbko samne hi dikh raha hai .
punya tithi 14 dec.ko hai shailendraji ki.
unki mrityu dec.14 sn 1966 men hui thi. veerji! dekh lo intelligent bhai ki bhont bahin ke akl ka namuna .ab bhi gdbd kar diya ho to
sudhar dena ya padhne wale swayam edit kar ke padh len

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