रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


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प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Wednesday, December 23, 2009

कैसे दिन बीते कैसे बीती रतिया....पंडित रवि शंकर और शैलेन्द्र की जुगलबंदी



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 299

'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर इन दिनों आप सुन रहे हैं शरद तैलंग जी के पसंद के पाँच गानें बिल्कुल बैक टू बैक। आज है उनके चुने हुए चौथे गाने की बारी। फ़िल्म 'अनुराधा' से यह है लता जी का गाया "कैसे दिन बीते कैसे बीती रतिया, पिया जाने ना"। इस फ़िल्म का एक गीत हमने 'दस राग दस रंग' शृंखला के दौरान आपको सुनवाया था। याद है ना आपको राग जनसम्मोहिनी पर आधारित गीत "हाए रे वो दिन क्यों ना आए"? फ़िल्म 'अनुराधा' के संगीतकार थे सुविख्यात सितार वादक पंडित रविशंकर, जिन्होने इस फ़िल्म के सभी गीतों में शास्त्रीय संगीत की वो छटा बिखेरी कि हर गीत लाजवाब है, उत्कृष्ट है। इस फ़िल्म में उन्होने राग मंज खमाज को आधार बनाकर दो गानें बनाए। एक है "जाने कैसे सपनों में खो गई अखियाँ" और दूसरा गीत है "कैसे दिन बीते कैसे बीती रतिया", और यही दूसरा गीत पसंद है शरद जी का। शैलेन्द्र की गीत रचना है और लता जी की सुरीली आवाज़। वैसे हम इस फ़िल्म के बारे में सब कुछ "हाए रे वो दिन..." गीत के वक़्त ही बता चुके हैं। यहाँ तक कि फ़िल्म की कहानी का सारांश भी बताया जा चुका है। तो आज बस इतना ही कहेंगे कि इस राग पर एक और गीत जो लोकप्रिय हुआ है वह है फ़िल्म 'शागिर्द' का भजन "कान्हा आन पड़ी मैं तेरे द्वार"।

आइए आज जब मौका हाथ लगा है तो आपको पंडित रविशंकर जी के बारे में कुछ बातें बताई जाए। पंडित जी का जन्म ७ अप्रैल १९२० में वारानसी में हुआ था। उस समय उनका नाम रखा गया था रबीन्द्र शंकर चौधरी। उन्होने अपनी जवानी अपने भाई उदय शंकर के डांस ग्रूप के साथ पूरे भारत और यूरोप के टूर करते हुए गुज़ार दी। १८ वर्ष की अयु में, यानी कि १९३८ में उन्होने नृत्य छोड़ दिया और अल्लाउद्दिन ख़ान के पास चले गए सितार सीखने के लिए। १९४४ में पढ़ाई ख़त्म कर वो बन गए एक संगीतकार और सत्यजीत रे की बंगला फ़िल्मों में संगीत देने लगे। इनमें शामिल है कालजयी बंगला फ़िल्म 'अपुर संसार'। १९४९ से लेकर १९५६ तक पंडित जी आकाशवाणी दिल्ली में संगीतकार रहे। १९५६ से उन्होने भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रचार प्रसार के लिए अमरीका व यूरोप के टूर शुरु किए। सितार और भारतीय शास्त्रीय संगीत को दुनिया में लोकप्रिय बनाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है और इस प्रयास के लिए उन्हे समय समय पर बहुत सारे सम्मानों से सम्मानित भी किया गया है। १९९९ में उन्हे देश के सर्वोच्च सम्मान 'भारत रत्न' से समानित किया गया, जिसके बाद और किसी पुरस्कार का ज़िक्र फीका सा लगेगा। २००० के दशक में वो अपनी बेटी अनूष्का के साथ पर्फ़ॊर्म करते हुए देखे और सुने गए। आज वो ८९ वर्ष के हैं। हम हिंद युग्म की तरफ़ से उनके उत्तम स्वास्थ्य और दीर्घायु की ईश्वर से कामना करते हैं और उनके द्वारा बनाए इस सुमधुर गीत का आनंद उठाते हैं। आइए सुनें...



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (अब तक के चार गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी (दो बार), स्वप्न मंजूषा जी, पूर्वी एस जी और पराग सांकला जी)"गेस्ट होस्ट".अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

१. कल होगा हमारा एतिहासिक ३०० वां एपिसोड जो समर्पित होगा हमारे वीर जांबाज़ जवानों के नाम.
२. मन्ना डे हैं गायक.
३. मख़्दूम मोहिउद्दिन के रचे इस गीत के मुखड़े में शब्द है-"पूछो", और हाँ कल ज़रा कमर कस कर आईएगा, क्योंकि कल होगी आपके संगीत ज्ञान की अब तक की सबसे कठिन परीक्षा...

पिछली पहेली का परिणाम -
इंदु जी, हमें खुशी है कि ३०० तक पहुचते पहुँचते हमें आपके रूप में एक जबरदस्त विजेता मिल गया है, आपने ये दूरी रिकॉर्ड टाइम में पूरी की है, शरद जी तो अपने उदगार व्यक्त कर चुके ही हैं, दो बार विजेता बने शरद जी के मूह से निकले ये शब्द बहुत कुछ कह जाते हैं, तो ढोल नगाड़े बज रहे हैं और तालियाँ भी खूब जोरों शोरों से बज रही हैं आशा है आप भी सुन पा रही होंगीं, एक बार फिर से बधाई, पाबला जी और अवध जी भी शामिल हैं इस सत्कार में, राज जी, गोदान फिल्म के गीत शैलेन्द्र ने नहीं लिखे थे, पर मैंने और सुजॉय ने आज तक इस फिल्म का कोई गीत नहीं सुना है, यदि आपके पास उपलब्ध हों तो हमें अवश्य भेजने का कष्ट करें, और हाँ कल होगी हमारे सभी अब तक के धुरंधरों की सबसे बड़ी टक्कर, तैयार हैं न आप सब ?

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

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5 श्रोताओं का कहना है :

indu puri का कहना है कि -

jaane wale sipahi se puchho
film -usne kaha tha
sunil dutt,nanda

शरद तैलंग का कहना है कि -

सुजॊय जी
बहुत बहुत धन्यवाद आपने मेरी पसन्द के गीतों को सुनवाकर मुझे अविभूत कर दिया । समझ में नहीं आ रहा है कि हिन्दयुग्म का किस तरह शुक्रिया अदा करूं । पुन: बहुत आभारी हूँ । सभी को क्रिसमस पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं ।

RAJ SINH का कहना है कि -

इंदु जी मेरी भी बधाई .
बहुत खुशी होती है की हम जैसे ' ओल्ड ' का ' गोल्ड ' नयी पीढी का भी है.

दादा मैंने यह नहीं कहा की ' गोदान ' के गीत शैलेन्द्र के थे.संगीत रवि शंकर जी का था . गीत तो ' अनजान ' जी के थे .जिनके सुपुत्र समीर जी फ़िल्मी गीत लेखन के नए प्रतिमान गढ़ रहे हैं .
गोदान के वैसे तो सभी गीत सुन्दर थे पर मुकेश जी के गाये ' जिया जरत रहत दिन रैन हो रामा , जरत रहत दिन रैन ..... ' गजब का था . ' लोक रंग ' की ' चैती पर आधारित और अभिनेता राजकुमार पर फिल्माया ,उस किसान ' होरी ' का सब दर्द कह गया था यह गीत .
त्रिलोक कपूर निर्देशित इस फिल्म के कलाकार , राजकुमार , कामिनी कौशल, महमूद, शुभा खोटे , नाना पलसीकर ,शशिकला वगैरह थे.
इतने विस्तृत कैनवाज़ के प्रेमचंद जी के इस उपन्यास को फिल्म में समेटना बहुत बड़ा चैलेन्ज था और पटकथा इसे समेट नहीं पाई और पूरी फिल्म बिखरी बिखरी रह गयी .हिन्दी के सब से शसक्त उपन्यास की यह नियति फिल्म विधा की एक ट्रेजडी ही कहूँगा .संगीत पक्छ छोड़ .
देखता हूँ की इसके गीत उपलब्ध होते हों तो .

' अनजान ' जी मेरे चाचा जी के मित्र भी थे और जब यह फिल्म बन रही थी तो उसकी प्रगति पर सुनने का मौका भी मिलता था .
' धर्मयुग ' साप्ताहिक ने भी उस वक्त इसे चर्चा में काफी स्थान दिया था .

ये ना सोचियेगा की आपकी महफ़िल से नदारत रहता हूँ .टिप्पणियां नहीं कर पाता अक्सर . बस ये कि.......

दुनियां भी तेरी याद ना बेगाना कर सकी
गो तुझसे दिलफरेब हैं गम रोज़गार के .

( चचा ' ग़ालिब ' के मशहूर शेर का मेरा अपना वर्जन :) .)

RAJ SINH का कहना है कि -

और इंदु जी , शायद आप गलत समझ गयीं मेरी टिप्पणी को पिछले एपिसोड में , मैंने कोई प्रश्न कहाँ किया था . सिर्फ बताना चाहा था की रविशंकर जी ने ' गोदान ' में भी संगीत दिया था .
और मैं आपसे प्रश्न करूंगा ?
ऐसा कौन सा सवाल है की जिसका जबाब आपके पास नहीं ,और वह भी सबसे पहले !
मैं तो आपको गुरु ही मानूंगा .साबित तो आपने रिकार्ड समय में कर दिया .
सुजोय दा , गलत तो नहीं कह गया ?..... :)

indu puri का कहना है कि -

भई ,अपन तो जा रहे है बाहर दो चार दिन के लिए
इसलिए आपकी महफिल में शामिल नही हो पाएंगे
हाँ ,आके जरुर कहेंगे ' हम आपकी महफिल में भूले से चले आये
हो माफ़ खता अपनी गर्दिश के ठुकराए .......''
गाना अपनी पसंद का है जी
वरना इंदु का दूसरा नाम है जोश,उमंग,लतीफे,कोमेडी,गाने और जिंदगी
क्रिसमस की ढेरो शुभकामनायें
उत्तर दीजिये ,इंजॉय कीजिये ,आप सभी को बहुत मिस करुँगी
सुजोय,सजीव राज जी ने एकदम सही लिखा था 'गोदान' के गीत भी शैलेन्द्रजी ने ही लिखे थे
शैलेन्द्र+गोदान लिख कर इंटर मारो,सब सामने आ जायेगा ,raj sir godan ke geet shailendraji ne hee likhe the ,(hmaraforum,authersubcontinent web sites pr sb mil jayega) music salil chaudhri ji ka tha.
naraz? indu ? jana hi nhi mujhe aap logo ne. fir bhi kahi dil dukhaya ho to maaf kr dijiye please
main yhan injoy krne,khushiyan baantne aai hun,dil dukhane nhi,na hi bdo ka apmaan krne.
maaf kr diya sir aapne mujhe ?

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