रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


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प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Monday, June 7, 2010

रब्बा लक़ बरसा.... अपनी फ़िल्म "कजरारे" के लिए इसी किस्मत की माँग कर रहे हैं हिमेश भाई



ताज़ा सुर ताल २१/२०१०

सुजॊय - 'ताज़ा सुर ताल' की एक और ताज़े अंक के साथ हम हाज़िर हैं। विश्व दीपक जी, इस शुक्रवार को 'राजनीति' प्रदर्शित हो चुकी हैं, और फ़िल्म की ओपनिंग अच्छी रही है ऐसा सुनने में आया है, हालाँकि मैंने यह फ़िल्म अभी तक देखी नहीं है। 'काइट्स' को आशानुरूप सफलता ना मिलने के बाद अब देखना है कि 'राजनीति' को दर्शक किस तरह से ग्रहण करते हैं। ख़ैर, यह बताइए आज हम किस फ़िल्म के संगीत की चर्चा करने जा रहे हैं।

विश्व दीपक - आज हम सुनेंगे आने वाली फ़िल्म 'कजरारे' के गानें।

सुजॊय - यानी कि हिमेश इज़ बैक!

विश्व दीपक - बिल्कुल! पिछले साल 'रेडियो - लव ऑन एयर' के बाद इस साल का उनका यह पहला क़दम है। 'रेडियो' के गानें भले ही पसंद किए गए हों, लेकिन फ़िल्म को कुछ ख़ास सफलता नहीं मिली थी। देखते हैं कि क्या हिमेश फिर एक बार कमर कस कर मैदान में उतरे हैं!

सुजॊय - 'कजरारे' को पूजा भट्ट ने निर्देशित किया है, जिसके निर्माता हैं भूषण कुमार और जॉनी बक्शी। फ़िल्म के नायक हैं, जी हाँ, हिमेश रेशम्मिया, और उनके साथ हैं मोना लायज़ा, अमृता सिंह, नताशा सिन्हा, गौरव चनाना और गुल्शन ग्रोवर। संगीत हिमेश भाई का है और गानें लिखे हैं हिमेश के पसंदीदा गीतकार समीर ने। तो विश्व दीपक जी, शुरु करते हैं गीतों का सिलसिला। पहला गीत हिमेश रेशम्मिया और सुनिधि चौहान की आवाज़ों में। इस गीत को आप एक टिपिकल हिमेश नंबर कह सकते हैं। भारतीय और पाश्चात्य साज़ों का इस्तेमाल हुआ है। हिमेश भाई के चाहनेवालों को ख़ूब रास आएगा यह गीत।

गीत: कजरा कजरा कजरारे


विश्व दीपक - सुजॊय जी, इस गाने की शुरुआत मुझे पसंद आई। जिस तरह से "सुनिधि चौहान" ने "कजरा कजरा कजरारे" गाया है, वह दिल के किसी कोने में एक नटखटपन जगा देता है और साथ हीं सुनिधि के साथ गाने को बाध्य भी करता है। मुझे आगे भी सुनिधि का यही रूप देखने की इच्छा थी, लेकिन हिमेश ने अंतरा में सुनिधि को बस "चियर लिडर" बना कर रख दिया है और गाने की बागडोर पूरी तरह से अपने हाथ में ले ली है। हिमेश की आवाज़ इस तरह के गानों में फबती है, लेकिन शब्दों का सही उच्चारण न कर पाना और अनचाही जगहों पर हद से ज्यादा जोर देना गाने के लिए हानिकारक साबित होते हैं। हिमेश "उच्चारण" संभाल लें तो कुछ बात बने। खैर अब हम दूसरे गाने की ओर बढते हैं।

सुजॊय - अब दूसरा गीत भी उसी हिमेश अंदाज़ का गाना है। उनकी एकल आवाज़ में सुनिए "रब्बा लक बरसा"। इस गीत में महेश भट्ट साहब ने वायस ओवर किया है। गाना बुरा नहीं है, लेकिन फिर एक बार वही बात कहना चाहूँगा कि अगर आप हिमेश फ़ैन हैं तो आपको यह गीत ज़रूर पसंद आएगा।

विश्व दीपक - जी आप सही कह रहे हैं। एक हिमेश फ़ैन हीं किसी शब्द का बारंबार इस्तेमाल बरदाश्त कर सकता है। आप मेरा इशारा समझ गए होंगे। हिमेश/समीर ने "लक लक लक लक" इतनी बार गाने में डाला है... कि "शक लक बूम बूम" की याद आने लगती है और दिमाग से यह उतर जाता है कि इस "लक़" का कुछ अर्थ भी होता है। एक तो यह बात मुझे समझ नहीं आई कि जब पूरा गाना हिन्दी/उर्दू में है तो एक अंग्रेजी का शब्द डालने की क्या जरूरत थी। मिश्र के पिरामिडों के बीच घूमते हुए कोई "लक लक" बरसा कैसे गा सकता है। खैर इसका जवाब तो "समीर" हीं दे सकते हैं। हाँ इतना कहूँगा कि इस गाने में संगीत मनोरम है, इसलिए खामियों के बावजूद सुनने को दिल करता है। विश्वास न हो तो आप भी सुनिए।

गीत: रब्बा लक़ बरसा


सुजॊय - अब इस एल्बम का तीसरा गीत और मेरे हिसाब से शायद यह इस फ़िल्म का सब से अच्छा गीत है। हिमेश रेशम्मिया के साथ इस गीत में आवाज़ है हर्षदीप कौर की। एक ठहराव भरा गीत है "आफ़रीन", जिसमें पारम्परिक साज़ों का इस्तेमाल किया गया है। ख़ास कर ढोलक का सुंदर प्रयोग सुनने को मिलता है गीत में। भले ही हर्षदीप की आवाज़ मौजूद हो गीत के आख़िर में, इसे एक हिमेश रेशम्मिया नंबर भी कहा जा सकता है।

विश्व दीपक - जी यह शांत-सा, सीधा-सादा गाना है और इसलिए दिल को छू जाता है। इस गाने के संगीत को सुनकर "तेरे नाम" के गानों की याद आ जाती है। हर्षदीप ने हिमेश का अच्छा साथ दिया है। हिमेश कहीं-कहीं अपने "नेजल" से अलग हटने की कोशिश करते नज़र आते हैं ,लेकिन "तोसे" में उनकी पोल खुल जाती है। अगर हिमेश ऐसी गलतियाँ न करें तो गीतकार भी खुश होगा कि उसके शब्दों के साथ छेड़छाड़ नहीं की गई है। फिर भी इतना कहा जा सकता है कि यह गाना एल्बम के बाकी गानों से बढिया है। तो लीजिए पेश है यह गाना।

गीत: आफ़रीन


सुजॊय - फ़िल्म का चौथा गीत भी एक युगल गीत है, इस बार हिमेश का साथ दे रहीं हैं श्रेया घोषाल। गीत के बोल हैं "तुझे देख के अरमान जागे"। आपको याद होगा अभी हाल ही में फ़िल्म 'हाउसफ़ुल' में एक गीत आया था "वाल्युम कम कर पप्पा जग जाएगा"। तो भई हम तो यहाँ पर यही कहेंगे कि वाल्युम कम कर नहीं तो पूरा मोहल्ला जग जाएगा। जी हाँ, "तुझे देख के अरमान जागे" के शुरु में हिमेश साहब कुछ ऐसी ऊँची आवाज़ लगाते हैं कि जिस तरह से उनके "झलक दिखला जा" गीत को सुन कर गुजरात के किसी गाँव में भूतों का उपद्रव शुरु हो गया था, अब की बार तो शायद मुर्दे कब्र खोद कर बाहर ही निकल पड़ें! ख़ैर, मज़ाक को अलग रखते हुए यह बता दूँ कि आगे चलकर हिमेश ने इस गीत को नर्म अंदाज़ में गाया है और श्रेया के आवाज़ की मिठास के तो कहने ही क्या। वो जिस गीत को भी गाती हैं, उसमें मिश्री और शहद घोल देती हैं।

विश्व दीपक - सुजॊय जी, क्यों न लगे हाथों पांचवाँ गीत भी सुन लिया जाए| क्योंकि यह गीत भी हिमेश रेशम्मिया और श्रेया घोषाल की आवाजों में हीं है, और अब की बार बोल हैं "तेरीयाँ मेरीयाँ"। दोस्तों, जिस गीत में "ँ" का इस्तेमाल हो और अगर उस गाने में आवाज़ हिमेश रेशम्मिया की हो, तो फिर तो वही सोने पे सुहागा वाली बात होगी ना! नहीं समझे? अरे भई, मैं हिमेश रेशम्मिया के नैज़ल अंदाज़ की बात कर रहा हूँ। इस गीत में उन्हे भरपूर मौका मिला है अपनी उस मनपसंद शैली में गाने का, जिस शैली के लिए वो जाने भी जाते हैं और जिस शैली की वजह से वो एकाधिक बार विवादों से भी घिर चुके हैं। जहाँ तक इस गीत का सवाल है, संतूर की ध्वनियों का सुमधुर इस्तेमाल हुआ है। वैसे यह मैं नहीं बता सकता कि क्या असल में संतूर का प्रयोग हुआ है या उसकी ध्वनियों को सीन्थेसाइज़र के ज़रिये पैदा किया गया है। जो भी है, सुरीला गीत है, लेकिन श्रेया को हिस्सा कम मिला है इस गानें में।

गीत: तुझे देख के अरमान जागे


गीत: तेरीयां मेरीयां


सुजॊय - विश्व दीपक जी, मुझे ऐसा लगता है कि हिमेश रेशम्मिया जब भी कोई फ़िल्म करते हैं, तो अपने आप को ही सब से ज़्यादा सामने रखते हैं। बाके सब कुछ और बाकी सब लोग जैसे पार्श्व में चले जाते हैं। यह अच्छी बात नहीं है। अब आप उनकी कोई भी फ़िल्म ले लीजिए। वो ख़ुद इतने ज़्यादा प्रोमिनेन्स में रहते हैं कि वो फ़िल्म कम और हिमेश रेशम्मिया का प्राइवेट ऐल्बम ज़्यादा लगने लगता है। दूसरी फ़िल्मों की तो बात ही छोड़िए, 'कर्ज़', जो कि एक पुनर्जन्म की कहानी पर बनी कामयाब फ़िल्म का रीमेक है, उसका भी यही हाल हुआ है। ख़ैर, शायद यही उनका ऐटिट्युड है। आइए अब इस फ़िल्म का अगला गीत सुनते हैं "वो लम्हा फिर से जीना है"। हिमेश और हर्षदीप कौर की आवाज़ें, फिर से वही हिमेश अंदाज़। एक वक़्त था जब हिमेश के इस तरह के गानें ख़ूब चला करते थे, देखना है कि क्या बदलते दौर के साथ साथ लोगों का टेस्ट भी बदला है या फिर इस गीत को लोग ग्रहण करते हैं।

विश्व दीपक - सुजॊय जी, इस गाने के साथ हीं क्यों न हम फ़िल्म का अंतिम गाना भी सुन लें| हिमेश और सुनिधि की आवाज़ें, और एक बार फिर से हिमेश का नैज़ल अंदाज़। ढोलक के तालों पर आधारित इस लोक शैली वाले गीत को सुन कर आपको अच्छा लगेगा। जैसा कि अभी अभी आपने कहा कि आजकल हिमेश जिस फ़िल्म में काम करते हैं, बस वो ही छाए रहते हैं, तो इस फ़िल्म में भी वही बात है। हर गीत में उनकी आवाज़, हर गाना वही हिमेश छाप। अपना स्टाइल होना कोई बुरी बात नहीं है, लेकिन अगर विविधता के लिए थोड़ा सा अलग हट के किया जाए तो उसमें बुराई क्या है? ख़ैर, मैं अपना वक्तव्य यही कहते हुए समाप्त करूँगा कि 'कजरारे' पूर्णत: हिमेश रेशम्मिया की फ़िल्म होगी।

गीत: वो लम्हा फिर से जीना है


गीत: सानु गुज़रा ज़माना याद आ गया


"कजरारे" के संगीत को आवाज़ रेटिंग ***

सुजॊय - हिमेश के चाहने वालों को पसंद आएँगे फ़िल्म के गानें, और जिन्हे हिमेश भाई का गीत-संगीत अभी तक पसंद नहीं आया है, उन्हें इस फिल्म से ज्यादा उम्मीदें नहीं रखनी चाहिए, मैं तो ये कहूँगा की उन्हें इस एल्बम से दूर ही रहना चाहिए|

विश्व दीपक - सुजॊय जी, मुझे यह लगता है कि हमें इस एल्बम को सिरे से नहीं नकार देना चाहिए, क्योंकि संगीत बढ़िया है और कुछ गाने जैसे कि "रब्बा लक़ बरसा", "कजरारे" और "आफरीन" खूबसूरत बन पड़े हैं| हाँ इतना है कि अगर हिमेश ने अपने अलावा दूसरों को भी मौक़ा दिया होता तो शायद इस एल्बम का रंग ही कुछ और होता| लेकिन हम कर भी क्या सकते हैं, हिमेश भाई और पूजा भट्ट को जो पसंद हो, हमें तो वही सुनना है| मैं बस यही उम्मीद करता हूँ कि आगे चलकर कभी हमें "नमस्ते लन्दन" जैसे गाने सुनने को मिलेंगे... तब तक के लिए "मिलेंगे मिलेंगे" :)

और अब आज के ३ सवाल

TST ट्रिविया # ६१- "शाम-ए-ग़म की क़सम आज ग़मगीं हैं हम", इस गीत के साथ हिमेश रेशम्मिया का क्या ताल्लुख़ है?

TST ट्रिविया # ६२- "आपको कैसा लगेगा अगर मैं आपको नए ज़माने का एक गीत सुनाऊँ जिसमें ना कोई ख़त, ना इंतेज़ार, ना झिझक, ना कोई दर्द, बस फ़ैसला है, जिसमें हीरो हीरोइन को सीधे सीधे पूछ लेता है कि मुझसे शादी करोगी?" दोस्तॊम, ये अल्फ़ाज़ थे हिमेश रेशम्मिया के जो उन्होने विविध भारती पर जयमाला पेश करते हुए कहे थे। तो बताइए कि उनका इशारा किस गाने की तरफ़ था?

TST ट्रिविया # ६३- गीतकार समीर के साथ जोड़ी बनाने से पहले हिमेश रेशम्मिया की जोड़ी एक और गीतकार के साथ ख़ूब जमी थी जब उनके चुनरिया वाले गानें एक के बाद एक आ रहे थे और छा रहे थे। बताइए उस गीतकार का नाम।


TST ट्रिविया में अब तक -
पिछले हफ़्ते के सवालों के जवाब:

१. पेण्टाग्राम
२. सोना महापात्रा
३. "give me some sunshine, give me some rain, give me another chance, I wanna grow up once again".

आलोक, आपने तीनों सवालों के सही जवाब दिए, इसलिए आपको पुरे अंक मिलते हैं| सीमा जी, इस बार आप पीछे रह गईं| खैर कोई बात नहीं, अगली बार......

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2 श्रोताओं का कहना है :

seema gupta का कहना है कि -

3) Anand Raj Anand
regards

seema gupta का कहना है कि -

2)रात को आऊंगा मैं तुझे ले जाऊंगा मैं
filmदिखाऊंगा मैं सैर कराऊंगा मैं
चोरी से आना चुपके से जाना अच्छी नहीं दिल्लगी
मुझसे शादी करोगी मुझसे शादी करोगी
"film Dulhan Hum Le Jaayenge "
regards

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