सुर संगम - 29 - सुर-बहार
दुर्भाग्यपूर्वक, कई कारणों से सुर-बहार अन्य तंत्र वाद्यों की तरह लोकप्रिय नहीं हो सका। इसका सबसे प्रमुख कारण है इसकी विशाल बनावट जिसके कारण इसे संभालना व इसके यातायात में बाधा आती है।
शास्त्रीय तथा लोक संगीत को समर्पित साप्ताहिक स्तम्भ 'सुर-संगम' के सभी श्रोता- पाठकों का मैं, सुमित चक्रवर्ती हार्दिक स्वागत करता हूँ हमारे २९वें अंक में। हम सबने कहीं न कहीं, कभी न कभी, किसी न किसी को यह कहते अवश्य सुना होगा कि "परिवर्तन संसार का नियम है।" इस जगत में ईश्वर की शायद ही कोई ऐसी रचना हो जिसमें कभी परिवर्तन न आया हो। इसी प्रकार संगीत भी कई प्रकार के परिवर्तनों से होकर ग़ुज़रता रहा है तथा आज भी कहीं न कहीं किसी रूप में परिवर्तित किया जा रहा है तथा भारतीय शास्त्रीय संगीत भी इस परिवर्तन से अछूता नहीं रहा है। न केवल गायन में बल्कि शास्त्रीय वाद्यों में भी कई इम्प्रोवाइज़ेशन्स होते आए हैं। सुर-संगम के आज के अंक में हम चर्चा करेंगे ऐसे ही परिवर्तन की जिसने भारतीय वाद्यों में सबसे लोकप्रिय वाद्य 'सितार' से जन्म दिया 'सुर बहार' को।

यूँ तो माना जाता है कि सुर-बहार की रचना वर्ष १८२५ में सुप्रसिद्ध संगीतज्ञ उस्ताद इम्दाद ख़ाँ के पिता उस्ताद साहेबदाद ख़ाँ ने की थी; परंतु कई जगहों पर इसके सृजक के रूप में लखनऊ के सितार वादक उस्ताद ग़ुलाम मुहम्मद का भी उल्लेख पाया जाता है। इसमें तथा सितार में मूल अंतर यह है कि सुर-बहार को नीचे के नोट्स पर बजाया जाता है। इसी कारण इसे 'बेस सितार' (bass sitar) भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त सितार के मुक़ाबले इसका तल भाग थोड़ा चपटा होता है तथा इसकी तारें भी सितार से भिन्न थोड़ी मोटी होती हैं। अपनी इसी बनावट के कारण इससे निकलने वाली ध्वनि का वज़न अधिक होता है। सुर-बहार की रचना के पीछे मूल लक्ष्य था पारंपरिक रूद्र-वीणा जैसी ध्रुपद शैली के आलाप को प्रस्तुत करना। चलिए सुर-बहार के बारे में जानकारी आगे बढ़ाने से पहले क्यों न इस प्रस्तुति को सुना जाए जिसमें आप सुनेंगे पं. रवि शंकर की प्रथम पत्नी अन्नपूर्णा देवी को सुर-बहार पर राग खमाज प्रस्तुत करते हुए|
अन्नपूर्णा देवी - सुर-बहार - राग खमाज
सुर-बहार को दो शैलियों में बजाया जाता है - पारंपरिक ध्रुपद शैली और, सितार शैली। पारंपरिक ध्रुपद शैली में सुर-बहार के सबसे उत्कृष्ट वादक माना जाता है सेनिया घराने के उस्ताद मुश्ताक़ ख़ाँ को। उनका सुर-बहार वादन सुनने वालों लगभग रूद्र-वीणा जैसा ही जान पड़ता है। सितार शैली में इसके दिग्गज माना जाता है उस्ताद इम्दाद ख़ाँ(१८४८-१९२०) को जो कि आज के दौर के सुप्रसिद्ध सितार वादक उस्ताद विलायत ख़ाँ के दादा थे। दुर्भाग्यपूर्वक, कई कारणों से सुर-बहार अन्य तंत्र वाद्यों की तरह लोकप्रिय नहीं हो सका। इसका सबसे प्रमुख कारण है इसकी विशाल बनावट जिसके कारण इसे संभालना व इसके यातायात में बाधा आती है। आइये आज की चर्चा को समाप्त करने से पहले हम सुनें एक और प्रस्तुति जिसमें सुर-बहार पर राग यमन प्रस्तुत कर रहे हैं इटावा घराने के सुप्रसिद्ध सितार एवं सुर-बहार वादक उस्ताद इमरात अली ख़ान साहब|
उस्ताद इमरात अली ख़ान - राग यमन
और अब बारी है इस कड़ी की पहेली की जिसका आपको देना होगा उत्तर तीन दिनों के अंदर इसी प्रस्तुति की टिप्पणी में। प्रत्येक सही उत्तर के आपको मिलेंगे ५ अंक। 'सुर-संगम' की ५०-वीं कड़ी तक जिस श्रोता-पाठक के हो जायेंगे सब से अधिक अंक, उन्हें मिलेगा एक ख़ास सम्मान हमारी ओर से।
पहेली: सुनिए और पहचानिए इस आवाज़ को जो है एक सुप्रसिद्ध हिन्दुस्तानी शास्त्रीय शैली के दिग्गज की|
पिछ्ली पहेली का परिणाम: क्षिति जी को बधाई!
अब समय आ चला है आज के 'सुर-संगम' के अंक को यहीं पर विराम देने का। आशा है आपको यह प्रस्तुति पसन्द आई। हमें बताइये कि किस प्रकार हम इस स्तंभ को और रोचक बना सकते हैं!आप अपने विचार व सुझाव हमें लिख भेजिए oig@hindyugm.com के ई-मेल पते पर। शाम ६:३० बजे कृष्णमोहन जी के साथ 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल में पधारना न भूलिएगा, नमस्कार!
प्रस्तुति - सुमित चक्रवर्ती
आवाज़ की कोशिश है कि हम इस माध्यम से न सिर्फ नए कलाकारों को एक विश्वव्यापी मंच प्रदान करें बल्कि संगीत की हर विधा पर जानकारियों को समेटें और सहेजें ताकि आज की पीढ़ी और आने वाली पीढ़ी हमारे संगीत धरोहरों के बारे में अधिक जान पायें. "ओल्ड इस गोल्ड" के जरिये फिल्म संगीत और "महफ़िल-ए-ग़ज़ल" के माध्यम से गैर फ़िल्मी संगीत की दुनिया से जानकारियाँ बटोरने के बाद अब शास्त्रीय संगीत के कुछ सूक्ष्म पक्षों को एक तार में पिरोने की एक कोशिश है शृंखला "सुर संगम". होस्ट हैं एक बार फिर आपके प्रिय सुजॉय जी.


नए साल के जश्न के साथ साथ आज तीन हिंदी फिल्म जगत के सितारे अपना जन्मदिन मन रहे हैं.ये नाना पाटेकर,सोनाली बेंद्रे और गायिक कविता कृष्णमूर्ति.
नाना पाटेकर उर्फ विश्वनाथ पाटेकर का जन्म १९५१ में हुआ था.नाना पाटेकर का नाम उन अभिनेताओं की सूची में दर्ज है जिन्होंने अभिनय की अपनी विधा स्वयं बनायी.गंभीर और संवेदनशील अभिनेता नाना पाटेकर ने यूं तो अपने फिल्मी कैरियर की शुरूआत १९७८ में गमन से की थी,पर अंकुश में व्यवस्था से जूझते युवक की भूमिका ने उन्हें दर्शकों के बीच व्यापक पहचान दिलायी.समानांतर फिल्मों में दर्शकों को अपने बेहतरीन अभिनय से प्रभावित करने वाले नाना पाटेकर ने धीरे-धीरे मुख्य धारा की फिल्मों की ओर रूख किया.क्रांतिवीर और तिरंगा जैसी फिल्मों में केंद्रीय भूमिका निभाकर उन्होंने समकालीन अभिनेताओं को चुनौती दी.फिल्म क्रांतिवीर के लिए उन्हें १९९५ में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरष्कार मिला था.इस पुरष्कार को उन्होंने तीन बार प्राप्त करा.पहली बार फिल्म परिंदा के लिए १९९० में सपोर्टिंग एक्टर का और फिर १९९७ में अग्निसाक्षी फिल्म के लिए १९९७ में सपोर्टिंग एक्टर का.४ बार उन्हें फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला.एक एक बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और सपोर्टिंग एक्टर का और दो बार सर्वश्रेष्ठ खलनायक का.
सोनाली बेंद्रे का जन्म १९७५ में हुआ.सोनाली बेंद्रे ने अपने करियर की शुरूआत १९९४ से की.दुबली-पतली और सुंदर चेहरे वाली सोनाली ज्यादातर फिल्मों में ग्लैमर गर्ल के रूप में नजर आई. प्रतिभाशाली होने के बावजूद सोनाली को बॉलीवुड में ज्यादा अवसर नहीं मिल पाए.सोनाली आमिर और शाहरूख खान जैसे सितारों की नायिका भी बनीं.उन्हें ११९४ में श्रेष्ठ नये कलाकार का फिल्मफेअर अवॉर्ड मिला.
सन १९५८ में जन्मी कविता कृष्णमूर्ति ने शुरुआत करी लता मंगेशकर के गानों को डब करके.हिंदी गानों को अपनी आवाज से उन्होंने एक नयी पहचान दी. उन्हें ४ बार सर्वश्रेष्ठ हिंदी गायिका का फिल्मफेयर पुरष्कार मिल चूका है. २००५ में उन्हें भारत सरकार से पद्मश्री सम्मान मिला.
इन तीनो को इन पर फिल्माए और गाये दस गानों के माध्यम से रेडियो प्लेबैक इंडिया के ओर से जन्मदिन की शुभकामनायें.








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2 श्रोताओं का कहना है :
Kumar Gandharva
surbahr ke bare me kahi kuch to lika ja raha hai ye jan kar achha laga ma annapurna ji ne jo raag bajaya hia wo majh khamaj hai.jise janhan tak mujhe pata hai baba alludiin khan sahab ne banaya hai.surbahar ki tonal quality muje bahut achha lagta hai. bahut bahut dhyanavad
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