ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 331/2010/31
संगीत रसिकों, 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक और महफ़िल में आप सभी का हम हार्दिक स्वागत करते हैं। दोस्तों, यह सच है कि आकाश की सुंदरता सूरज और चांद से है, लेकिन सिर्फ़ ये ही दो काफ़ी नहीं। इनके अलावा भी जो असंख्य झिलमिलाते और टिमटिमाते सितारे हैं, जिनमें से कुछ उज्जवल हैं तो कुछ धुंधले, इन सभी को एक साथ लेकर ही आकाश की सुंदरता पूरी होती है। कुदरत का यही नमूना फ़िल्म संगीत के आकाश पर भी लागू होता है। जहाँ एक तरफ़ लता मंगेशकर और आशा भोसले एक लम्बे समय से सूरज और चांद की तरह फ़िल्म जगत में अपनी रोशनी बिखेर रहीं हैं, वहीं दूसरी तरफ़ बहुत सारी ऐसी गायिकाएँ भी समय समय पर उभरीं हैं जिनका नाम ज़रा कम हुआ, या फिर युं कहिए कि प्रतिभाशाली होते हुए भी जिन्हे गायन के बहुत ज़्यादा मौके नहीं मिले। लेकिन इन सभी कमचर्चित गायिकाएँ कुछ ऐसे ऐसे गानें गाकर गईं हैं कि ना केवल ये गानें उनकी पहचान बन गई बल्कि उनका नाम भी फ़िल्म संगीत के इतिहास में सम्माननीय स्तर पर दर्ज करवा दिया। आज फ़िल्म संगीत का आकाश इन सभी सितारों के गाए गीतों से झिलमिला रही हैं। इन कमचर्चित गायिकाओं के योगदान को अगर अलग कर दिया जाए, फ़िल्म संगीत के ख़ज़ाने से निकाल दिया जाए, तो शायद इस ख़ज़ाने की विविधता ही ख़तम हो जाएगी। ऐसीं ही कुछ कमचर्चित पार्श्वगायिकाएँ, जिन्होने श्रोताओं के दिलों में अमिट छाप छोड़ीं हैं, आज से अगले दस दिनों तक 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल को रोशन करेंगी अपने गाए सुमधुर गीतों से। प्रस्तुत है सुनहरे दौर की १० कमचर्चित पार्श्वगायिकाओं को समर्पित हमारी विशेष लघु शृंखला 'हमारी याद आएगी'। और आज इस ख़ास शृंखला की पहली कड़ी में ज़िक्र सुलोचना कदम की। जी हाँ, वही सुलोचना कदम जिन्होने किसी ज़माने में सुनने वालों के दिलों में चोरी चोरी आग लगा दी थी। आप समझ गए होंगे हमारा इशारा। जी हाँ, पेश है आज सुलोचना जी का गाया बेहद मशहूर गीत "चोरी चोरी आग सी दिल में लगाकर चल दिए, हम तड़पते रह गए वो मुस्कुराकर चल दिए"। १९५० की फ़िल्म 'ढोलक', गीतकार श्याम लाल शम्स, संगीतकार श्याम सुंदर।
संगीतकार श्याम सुंदर द्वारा स्वरबद्ध फ़िल्म 'ढोलक' के इसी गीत ने रातों रात गायिका सुलोचना कदम को लोकप्रिय पार्श्वगायिकाओं की कतार में ला खड़ा किया था। 'ढोलक' रूप शोरे की फ़िल्म थी। उन दिनों वो अपने फ़िल्मों के लिए संगीतकार विनोद को मौका दिया करते थे। लेकिन इस फ़िल्म के लिए उन्होने चुना श्याम सुंदर का नाम। अजीत, मीना शोरे, मंजु और मनमोहन कृष्णा अभिनीत इस फ़िल्म के गीतों ने काफ़ी धूम मचाया। उस ज़माने में गायिका सुलोचना कदम का नाम मराठी फ़िल्मों और ख़ास कर लावणी के साथ जुड़ा हुआ था। फ़िल्म 'ढोलक' में उनके गाए हुए तमाम गीतों ने उन्हे हिंदी फ़िल्म संगीत संसार में भी मशहूर बना दिया। आज जब भी कभी सुलोचना जी का नाम चर्चा में आता है, तो सब से पहले लोग इसी गीत को याद करते हैं। इसी फ़िल्म में सतीश बत्रा के साथ उनका गाया "मौसम आया है रंगीन" गीत भी ख़ूब लोकप्रिय हुआ था। दोस्तों, युं तो हिंदी फ़िल्म संगीत में श्याम सुंदर के इस फ़िल्म से सुलोचना कदम मशहूर हुईं थीं, लेकिन सर्वप्रथम संगीतकार श्याम बाबू पाठक ने इस गायिका को मात्र १४-१५ वर्ष की आयु में ढ़ूंढ निकाला था। १७-१८ साल की अवस्था में सन् १९४८ में संगीतकार ज्ञान दत्त के लिए उन्होने तीन फ़िल्मों में गाने गाए, ये फ़िल्में थीं 'दुखियारी', 'लाल दुपट्टा' और 'नाव'। ज्ञान दत्त साहब के अलावा सुलोचना जी अब भी अपनी सफलता का श्रेय मराठी लावणी तथा संगीतकार श्याम सुंदर और मराठी फ़िल्मो के संगीतकार वसन्त पवार को देती हैं। तो दोस्तों, आइए अब गीत सुना जाए, ज़रा सुनिए तो इस गीत को, जिसे आप ने एक लम्बे अरसे से नहीं सुना होगा, और हमें पूरी उम्मीद है कि सुलोचना जी का गाया यह गीत आप के भी दिल में चोरी चोरी आग लगा ही देगी।
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम रोज आपको देंगें ४ पंक्तियाँ और हर पंक्ति में कोई एक शब्द होगा जो होगा आपका सूत्र. यानी कुल चार शब्द आपको मिलेंगें जो अगले गीत के किसी एक अंतरे में इस्तेमाल हुए होंगें, जो शब्द बोल्ड दिख रहे हैं वो आपके सूत्र हैं बाकी शब्द बची हुई पंक्तियों में से चुनकर आपने पहेली सुलझानी है, और बूझना है वो अगला गीत. तो लीजिए ये रही आज की पंक्तियाँ-
आँख भर न आये तो क्या,
सागर छलक न जाए तो क्या,
आजा कि डूब चला है दिल,
गम को करार न आये तो क्या...
अतिरिक्त सूत्र- इस गायिका को एक अन्य नाम से इंडस्ट्री में अधिक जाना जाता है
पिछली पहेली का परिणाम-
शरद जी बहुत बढ़िया आप का स्कोर है १८ जो अवध जी और इंदु जी के स्कोरों का जोड़ भी है :), बधाई...
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
पहेली रचना -सजीव सारथी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
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3 श्रोताओं का कहना है :
आ जा कि अब तो आँख में आंसू भी आ गए .
अफसाना लिख रही हूँ दिले बेकरार का.
आँखों में रंग भर के तेरे इन्तेज़ार का.
उमा देवी जी याने टुनटुन.
अवध लाल
सागर छलक उटठा मेरे सब्र-ओ-करार का.
अवध लाल
बहुत सुन्दर प्रस्तुति धन्यवाद्
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