ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 309/2010/09
'ओल्ड इज़ गोल्ड' में 'पंचम के दस रंग' शृंखला में अब तक आप ने जिन ८ रंगों का आनंद उठाया वो रंग थे भारतीय शास्त्रीय संगीत, पाश्चात्य संगीत, लोक संगीत, भक्ति संगीत, हास्य रस, रोमांटिसिज़्म, क़व्वाली और कल का रंग कुछ दर्द भरा सा था जुदाई के रंग से रंगा हुआ। आज हम जिस जौनर की बात करेंगे उसके बारे में सिर्फ़ यही कह सकते हैं कि यह जौनर है गुलज़ार और पंचम की जोड़ी का जौनर। अब इस जौनर को और क्या नाम दें? गुलज़ार साहब, जिनके ग़ैर पारंपरिक बोल हमेशा गीत को एक अलग ही मुक़ाम पर ले जाया करती है, और उस पर अगर उनके चहेते दोस्त और संगीतकार पंचम के संगीत का रंग चढ़े तो फिर कहना ही क्या! इसलिए हमने सोचा कि इस जोड़ी के नाम एक गीत तो होना ही चाहिए और एक ऐसा गीत जिसमें गुलज़ार साहब के अनोखे शब्द हों, जो आम तौर पर फ़िल्मी गीतों में सुनाई नहीं देते हों। ऐसे तो उनके अनेकों गानें हैं, लेकिन हमने आज के लिए चुना है लता मंगेशकर और किशोर कुमार की आवाज़ों में फ़िल्म 'आंधी' का गीत "इस मोड़ से जाते हैं, कुछ सुस्त क़दम रस्ते, कुछ तेज़ क़दम राहें"। इसके मुखड़े में एक शब्द आता है "नशेमन"। इसे अक्सर लोग "नशे मन" समझ बैठने की भूल कर बैठते हैं, जब कि इसका अर्थ है चिड़िया का घोसला। यही है गुलज़ार साहब की शख्सियत! गुलज़ार साहब अक्सर शब्दों के जाल में श्रोताओं को उलझाते हैं लेकिन बड़ी ही ख़ूबसूरती के साथ। अब इस गीत के दूसरे अंतरे को ही लीजिए। गुलज़ार साहब लिखते हैं "एक दूर से आती है, पास आके पलटती है, एक राह अकेली सी, रुकती है ना चलती है"। इन्हे समझ पाने के लिए दिमाग़ पर काफ़ी ज़ोर डालना पड़ता है। और इन बोलों को पंचम ने क्या ख़ूब धुनें दी हैं कि सीधे दिल पर चोट करती है। और लता जी और किशोर दा के आवाज़ पा कर तो जैसे गीत जी उठा हो!
दोस्तों, पंचम दा के निधन के बाद गुलज़ार साहब ने अपने इस अज़ीज़ दोस्त को याद करते हुए काफ़ी कुछ कहा हैं समय समय पर। यहाँ पे हम उन्ही में से कुछ अंश पेश कर रहे हैं। इन्हे विविध भारती पर प्रसारित किया गया था विशेष कार्यक्रम 'पंचम के बनाए गुलज़ार के मन चाहे गीत' के अन्तर्गत। "याद है बारिशों के वो दिन थे पंचम? पहाड़ियों के नीचे वादियों में धुंध से झाँक कर रेल की पटरियाँ गुज़रती थीं, और हम दोनों रेल की पटरियों पर बैठे, जैसे धुंध में दो पौधें हों पास पास! उस दिन हम पटरी पर बैठे उस मुसाफ़िर का इंतज़ार कर रहे थे, जिसे आना था पिछली शब लेकिन उसकी आमद का वक्त टलता रहा, हम ट्रेन का इंतज़ार करते रहे, पर ना ट्रेन आई और ना वो मुसाफ़िर। तुम युं ही धुंध में पाँव रख कर गुम हो गए। मैं अकेला हूँ धुंध में पचम! वो प्यास नहीं थी जब तुम संगीत उड़ेल देते थे और हम सब उसे अपनी मुंह में लेने की कोशिश किया करते थे। प्यास अब लगी है जब कतरा कतरा जमा कर रहा हूँ तुम्हारी यादों का। क्या तुम्हे पता था पंचम कि तुम चुप हो जाओगे और मैं तुम्हे ढ़ूंढता फिरूँगा? गाना बनाते वक़्त तुम ज़बान से ज़्यादा साउंड पर ध्यान देते थे। किसी शब्द का साउंड अच्छा लग जाए तो झट से ले लेते थे। और उस शब्द का माने? जैसे तुमने पूछा था मुझसे कि ये "नशेमन" कौन सा शहर है यार?" तो दोस्तो, आइए अब उसी नशेमन वाले गीत को सुना जाए, गुलज़ार साहब का शायराना अंदाज़ और पंचम दा की महकती धुनें!
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम रोज आपको देंगें ४ पंक्तियाँ और हर पंक्ति में कोई एक शब्द होगा जो होगा आपका सूत्र. यानी कुल चार शब्द आपको मिलेंगें जो अगले गीत के किसी एक अंतरे में इस्तेमाल हुए होंगें, जो शब्द बोल्ड दिख रहे हैं वो आपके सूत्र हैं बाकी शब्द बची हुई पंक्तियों में से चुनकर आपने पहेली सुलझानी है, और बूझना है वो अगला गीत. तो लीजिए ये रही आज की पंक्तियाँ-
बहारों में छुप के हँसता है कौन,
वो पीछे से चाँद के झांकता है कौन,
सूरज तो फिर किसी साहिल पे डूबा ही होगा,
ये सितारों की बारात लेकर निकला है कौन....
पिछली पहेली का परिणाम-
शरद जी और इंदु जी क्या बात है एक समय पर एक साथ सही जवाब. आज तो २ अंक आप दोनों को ही बांटे जायेगें. शरद जी पहुंचे ७ अंकों पर तो इंदु जी ने खाता खोला २ अंकों के साथ. बधाई, याद रहे आज की पहेली के सही जवाब पर आप दोनों को ही एक एक अंक ही मिलेगा. देखते हैं आप जवाब लेकर आयेंगें या फिर कोई नया खिलाडी मिलेगा...
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
पहेली रचना -सजीव सारथी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
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3 श्रोताओं का कहना है :
mehbooba mehbooba gulshan me gul khilte hai .....phool baharon se nikla chand sitaron se nikla dil dooba ''
pr bhaiya yadi is stupid,bkwas gaane ko old is gold me mante ho to bde afsos ki baat hai.
इंदु जी, आपने गीत तो सबसे पहले पहचान कर जवाब भी दिया. बधाई. मैं आपका कारण भी समझ सकता हूँ कि क्यों यह गाना आपका पसंदीदा नहीं है. अब सच बात तो यह है कि यह गीत ३५ वर्ष पुराना है शोले १९७५ की फिल्म थी इसलिए इसे ओल्ड मानने में तो कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए. रही बात गोल्ड की तो मैं समझता हूँ कि अपने जॉनर में यह गीत एक अलग मुकाम रखता है अतः मेरी राय में तो बेशक यह गोल्ड का अधिकारी है. ज़रा ध्यान कीजिये परदे पर जलाल आगा और हेलेन का जादू और सबसे बड़ी बात पंचम की अनोखी आवाज़ और अंदाज़.
क्षमा करें मैं आपकी बात पर सवाल नहीं उठा रहा हूँ. सच है पसंद अपनी अपनी. केवल यह कहने की आज्ञा चाहता हूँ कि अगर हम केवल यह सोचें कि केवल गंभीर और ग़मज़दा गीत ही ओल्ड इज गोल्ड में शामिल हों और हलके फुल्के गानों की कोई जगह नहीं है तो क्या यह उचित होगा?
सादर
अवध लाल
ha ha ha ha
ab is baat ka kya jwab dun ,kahte hain bdo se bahs nhi karni chahiye warna mayke ka muhn nhi dikhate.
so aapki baat sahi........
mast aankhon me sharart kbhi aisi to na thi''
ya beqrar karke hme yun na jaiye
khoya chand khula aasman, chedo na meri zulfen ,kya gambhi,ghamzadaa gaane hain ,pr gold hai na aur old bhi hai
kahen to aise mst mst purane ganon ki list pahunchadu ,jo gambhir nhi,mst aur pyare pyare hain ,sooooooooorry
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