ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 325/2010/25
इंदु जी के पसंद के गीतों को सुनते हुए आज हम आ पहुँचे हैं उनके चुने हुए पाँचवे और फ़िल्हाल अंतिम गीत पर। पिछले चार गीतों की तरह यह भी एक सदाबहार नग़मा है। इन सभी गीतों में एक समानता यह रही कि इन गीतों का संगीत जितना सुरीला है, इनके बोल भी उतने ही ख़ूबसूरत। आज का गीत है "कहीं बेख़याल होकर युं ही छू लिया किसी ने, कई ख़्वाब देख डाले यहाँ मेरी बेख़ुदी ने"। अब बताइए कि भाव तो बहुत ही साधारण और रोज़ मर्रा की ज़िंदगी वाला है कि बेख़याली में किसी ने छू लिया। लेकिन इस साधारण भाव को लेकर एक असाधारण गीत की रचना कर डाली है मजरूह साहब, दादा बर्मन और रफ़ी साहब की तिकड़ी ने। हालाँकि मजरूह साहब का कहना है कि दरसल इस गीत को कॊम्पोज़ जयदेव जी ने किया था जो उन दिनों दादा के सहायक हुआ करते थे। ख़ैर, हम इस वितर्क में नहीं पड़ना चाहते, बल्कि आज तो सिर्फ़ इस गीत का आनंद ही उठाएँगे। फ़िल्म 'तीन देवियाँ' का यह गीत है जो देव आनंद पर फ़िल्माया गया था जो कश्मीर में किसी महफ़िल में इसे गाते हैं। थोड़ा सुफ़ीयाना अंदाज़ भी झलकता है इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल में, और इसके संगीत संयोजन में रबाब की ध्वनियाँ हमें जैसे कश्मीर के दर्शन करा लाते हैं। देव आनंद ने जब अपने करीयर की शुरुआत की थी, तब हेमंत कुमार और फिर किशोर कुमार उनकी आवाज़ बनें। फिर एक वक़्त आया जब रफ़ी साहब की आवाज़ पर उन्होने एक से एक सुपरहिट गीत गाए। 'तीन देवियाँ' वह फ़िल्म थी जिसमें एक बार फिर से किशोर दा की वापसी हुई देव साहब के गीतों के लिए। लेकिन रफ़ी साहब के गाए इस गीत की नाज़ुकी और मदहोश कर देने वाली अंदाज़ को शायद कोई और कलाकार बाहर न ला पाता!
'तीन देवियाँ' १९६५ की फ़िल्म थी जिसका निर्माण व निर्देशन अमरजीत ने किया था। देव साहब की तीन देवियाँ थीं नंदा, कल्पना और सिमी गरेवाल। इस फ़िल्म में जयदेव के साथ साथ राहुल देव बर्मन और बासुदेव चक्रबर्ती (जो बाद में बासु-मनोहारी की जोड़ी में कुछ फ़िल्मों में संगीत दिया) भी बर्मन दादा के सहायक थे। अब आपको शायद पता हो कि राहुल देव बर्मन बहुत अच्छा रबाब बजाते थे, तो हो सकता है कि इस गीत में जो रबाब सुनने को मिलता है, वो उन्ही ने बजाया हो! इस फ़िल्म की कहानी से अब आपको थोड़ा सा परिचित करवाया जाए! फ़िल्म का शीर्षक ही कौतुहल पैदा करती है कि आख़िर किस तरह की होगी इसकी कहानी! तो साहब, कहानी कुछ ऐसी है कि देव आनंद एक साज़ बेचने वाली कंपनी में काम करते हैं, जो हमेशा काम पर देर से पहुँचते हैं। उनके बॊस (आइ. एस. जोहर) उनसे चिढ़े रहे हैं। लेकिन जब जोहर को पता चलता है कि देव एक बहुत अच्छा शायर हैं, तो वो उनसे शायरी लिखवाते हैं और प्रकाशित भी करते हैं। इससे देव साहब दुनिया के सामने आ जाते हैं और जोहर का व्यापार भी ज़बरदस्त चल पड़ता है। एक दिन देव की मुलाक़ात नंदा से होती है जो कि उनके नए पड़ोसी हैं। दोनों एक दूसरे की तरफ़ आकृष्ट होते हैं। फिर एक दिन देव साहब अभिनेत्री कल्पना की गाड़ी ख़राब हो जाने पर उनकी मदद करते हैं, तो कल्पना जी को जब पता चलता है कि देव साहब एक शायर हैं, तो वो उनसे एक मुलाक़ात का आयोजन करती हैं। इस तरह से दोनों एक दूसरे की तरफ़ आकृष्ट हो जाते हैं। इतना ही काफ़ी नहीं था, एक दिन देव साहब को एक अमीर औरत (सिमी गरेवाल) के घर एक पियानो डेलिवर करने जाना था। सिमी जी भी उनसे प्रभावित हो जाती हैं और उनके घर में आयोजित पार्टी में उन्हे इनवाइट भी कर देती हैं। (प्रस्तुत गीत शायद इसी पार्टी में गाया गया था)। फिर एक बार दोनों में संबंध बढ़ने लगते हैं। यह समझते हुए कि एक साथ तीन तीन देवियों से शादी नहीं हो सकती, देव साहब को अब यह तय करना है कि जीवन संगिनी के रूप में उन्हे किसे चुनना है। तो दोस्तों, यह निर्णय हम देव साहब पर ही छोड़ते हुए, अब जल्दी से इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल का मज़ा उठाते हैं, और चलते चलते इंदु जी का तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करते हैं इन सुरीले और अर्थपूर्ण गीतों को हम सब के साथ बाँटने के लिए।
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम रोज आपको देंगें ४ पंक्तियाँ और हर पंक्ति में कोई एक शब्द होगा जो होगा आपका सूत्र. यानी कुल चार शब्द आपको मिलेंगें जो अगले गीत के किसी एक अंतरे में इस्तेमाल हुए होंगें, जो शब्द बोल्ड दिख रहे हैं वो आपके सूत्र हैं बाकी शब्द बची हुई पंक्तियों में से चुनकर आपने पहेली सुलझानी है, और बूझना है वो अगला गीत. तो लीजिए ये रही आज की पंक्तियाँ-
दुनिया के बाज़ार में कीमत है,
हर चीज़ की मगर,
इंसान के जज़्बात बिकते,
टकों के मोल से ज्यादा नहीं...
अतिरिक्त सूत्र -शैलेन्द्र का लिखा एक मशहूर गीत है ये
पिछली पहेली का परिणाम-
शरद जी एक और अंक आपके खाते में जुड़ा...बधाई
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
पहेली रचना -सजीव सारथी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
8 श्रोताओं का कहना है :
सुजॊय जी
आज भी सूत्र गायब हैं
शरद जी पेज रिफ्रेश कीजिये
इस गीत को तो मैनें भी अपनी पसंद के गीतॊं में भी शामिल किया है । पहेली का हल तो मालूम हो गया पर दूसरों को थोडा दिमाग पर ज़ोर डालने के लिए रुक जाता हूँ । इतना कह सकता हूँ कि यह गीत फ़िल्म का टाइटल सोंग भी है ।
'haton pe schchai rhti hai.......hm us desh ke wasi hain jis desh me ganga bahti hai
gaane ko poora karenge pabla bhaiya jo kai dino se gayab hai nhi to....................
sharad ji to hain hi.
itti der ho gai koi aayaiiiiiich nhi ab tk
'haton pe schchai rhti hai.......hm us desh ke wasi hain jis desh me ganga bahti hai
gaane ko poora karenge pabla bhaiya jo kai dino se gayab hai nhi to....................
sharad ji to hain hi.
itti der ho gai koi aayaiiiiiich nhi ab tk
इन्दु जी
आपकी पसंद के गीतों की पहेली का आपने ही जवाब दे दिया यह तो ”बहुत बे इंसाफ़ी है”
मेरे दिल में कौन है तू..
के हुआ जहां अँधेरा..
वहीँ सौ दिए जलाए..
तेरे रुख...................
यूं ही बेखयाल होकर....
...........................
कई ख्वाब ..कई खवाब............
कई खवाब देख डाले .....
ल ला ला ड रा ड रा डा....
कई ख्वाब कई ख्वाब...................
मैं तो बस अभी आ पाया हूँ. देखता हूँ कि शरद जी ने तो पहले ही पहेली सुलझा ली थी. बधाई,
वैसे गीत का भी अवब नहीं.
अवध लाल
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)