ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 390/2010/90
आनंद बक्शी पर केन्द्रित लघु शृंखला 'मैं शायर तो नहीं' के अंतिम कड़ी पर हम आज आ पहुँचे हैं। आज जो गीत हम आप को सुनवा रहे हैं, उसका ज़िक्र छेड़ने से पहले आइए आपको बक्शी साहब के अंतिम दिनों का हाल बताते हैं। अप्रैल २००१ में एक हार्ट सर्जरी के दौरान उन्हे एक बैक्टेरियल इन्फ़ेक्शन हो गई, जो उनके पूरे शरीर में फैल गई। इस वजह से एक एक कर उनके अंगों ने काम करना बंद कर दिया। अत्यधिक पान, सिगरेट और तम्बाकू सेवन की वजह से उनका शरीर पूरी तरह से कमज़ोर हो चुका था। बक्शी साहब ने अपने आख़िरी हफ़्तों में इस बात का अफ़सोस भी ज़ाहिर किया था कि काश गीत लेखन के लिए उन्होने इन सब चीज़ों का सहारा ना लिया होता! उन्होने ४ अप्रैल २००१ को अपने दोस्त सुभाष घई साहब के साथ एक सिगरेट पी थी, और वादा किया था कि यही उनकी अंतिम सिगरेट होगी, पर वे वादा रख ना सके और इसके बाद भी सिगरेट पीते रहे। जीवन के अंतिम ७ महीने वे अस्पताल में ही रहे, और उन्हे इस बात से बेहद दुख हुआ था कि उनके ज़्यादातर नए पुराने निर्माता, दोस्त, टेक्नीशियन, संगीतकार और गायक, जिनके साथ उन्होने दशकों तक काम किया, उनसे मिलने अस्पताल नहीं आए। ७१ वर्ष की आयु में आनंद बक्शी ने मुंबई के नानावती अस्पताल में ३० मार्च २००२ के दिन दम तोड़ दिया। उनके करीबी मित्रों का यह रवैया शायद बक्शी साहब ने बरसों पहले ही अपने उस गीत में लिखा डाला था कि "नफ़रत की दुनिया को छोड़ के प्यार की दुनिया में ख़ुश रहना मेरे यार, इस झूठ की नगरी से तोड़ के नाता जा प्यारे, अमर रहे तेरा प्यार"।
गीतकार आनंद बक्शी के सीधे सरल गीत इतने असरदार हैं कि श्रोताओं के दिलों पर एक अमिट छाप छोड़े बिना नहीं रहते। ज़रा याद कीजिए पंकज उधास का गाया फ़िल्म 'नाम' का वह गाना जिसे जब भी सुना जाए तो आँखों में पानी भर ही आता हैं। इस गीत में बक्शी साहब ने अपने वतन और अपने घर की अहमियत लोगों को समझाने की कोशिश की है। अपने घर परिवार की अहमियत क्या होती है, यह उनसे बेहतर भला कौन जाने जिन्होने अपने सपनों को साकार करने के लिए घर से भाग आए थे! आज हम फ़िल्म 'नाम' के इसी कालजयी गीत को सुनने जा रहे हैं "चिट्ठी आई है वतन से", जिसके संगीतकार हैं लक्ष्मीकांत प्यारेलाल। कुछ कुछ इसी अंदाज़ पर बक्शी साहब ने 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएँगे' फ़िल्म में "घर आजा परदेसी तेरा देस बुलाए रे" गीत लिखा था, जिसे भी काफ़ी मकबूलियत हासिल हुई थी। वक़्त बदला, फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर के वो सारे संगीतकार एक एक कर बिछड़ते चले गए। इस बदलते दौर और बदलते मिज़ाज को बख़ूबी अपनाया गीतकार आनंद बक्शी ने और नए माहौल और नए संगीतकारों के साथ भी उनकी ट्युनिंग् क़ाबिल-ए-तारीफ़ रही। नदीम श्रवण, ए. आर. रहमान, अनु मलिक, उत्तम सिंह, जतिन ललित जैसे संगीतकारों की धुनों को लोकप्रिय बोलों से संवारा है बक्शी साहब ने। आज बक्शी साहब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन हमारे साथ हैं उनकी जादूई क़लम से निकले हुए बेशुमार और बेमिसाल नग़में जिनकी गूंज युगों युगों तक सुनाई देती रहेगी। आज मुझे बक्शी साहब के लिखे एक गीत के बोल याद आ रहे हैं - "फूल खिलते हैं, लोग मिलते हैं, मगर पतझड़ में जो फूल मुर्झा जाते हैं, वो बहारों के आने से खिलते नहीं, कुछ लोग एक रोज़ जो बिछड़ जाते हैं, वो हज़ारों के आने से मिलते नहीं, उम्र भर चाहे कोई पुकारा करे उनका नाम, वो फिर नही आते, वो फिर नहीं आते"। इसी के साथ 'मैं शायर तो नहीं' शृंखला को समाप्त करने की दीजिए हमें इजाज़त, और आप सुनिए फ़िल्म 'नाम' से "चिट्टी आई है वतन से"। वाकई ऐसा गीत लिख कर कोई भी गीतकार फक्र से मर सकता है.
क्या आप जानते हैं...
कि आनंद बक्शी जब अपने अंतिम दिनों में अस्पताल में थे, तब अस्पताल का एक स्वीपर ने उनकी बहुत सेवा की थी। जब बक्शी साहब की बेटी ने उस स्वीपर को टिप देनी चाही ताकि वो बक्शी साहब की तरफ़ और ज़्यादा ध्यान दे, तो उस स्वीपर ने टिप लेने से ये कहकर इंकार कर दिया कि वो यूँहीं अपने गुरु की सेवा कर खुश है
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रहे आज के सवाल-
1. मुखड़े में शब्द है -"हाथ", गीत बताएं -३ अंक.
2. दो गायिकाओं का गाया युगल गीत है ये इनमें से एक हैं शमशाद बेगम, दूसरी गायिका का नाम बताएं - ३ अंक.
3. १९४६ में आई इस फिल्म के संगीतकार कौन है -२ अंक.
4. दो बाल कलकारों पर फिल्माए इस गीत कि किसने लिखा है -२ अंक.
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
पिछली पहेली का परिणाम-
अवध जी आप २ अंक दूर हैं अर्ध शतक से, और अनीता जी भी बस २ अंक दूर हैं डबल फिगर से. इंदु जी ३ अंक कमा कर शरद जी के करीब पहुँचने की कोशिश में हैं तो पदम सिंह जी आपसे कैसे भूल हो गयी कल. चलिए ये भी हिस्सा है खेल का...अरे पूर्वी जी...कहाँ थे आप इतने दिनों....सच मानिये आपकी कमी हमें बहुत खली....चलिए अब आये हैं तो कुछ दिन रुक के जाईयेगा :),आनंद लीजिए कल से नयी शृंखला का
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.