ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 367/2010/67
गीत रंगीले' शृंखला की सातवीं कड़ी में आप सभी का स्वागत है। दोस्तों, इन दिनों हर बातें कर रहे हैं बसंत ऋतु की, फागुन के महीने की, रंगों की, फूलों की, महकती हवाओं की, पीले सरसों के खेतों की। इसी मूड को बरक़रार रखते हुए आज हमने एक ऐसा सुरीला नग़मा चुना है जिसके बोल जितने उत्कृष्ट हैं, उसका संगीत भी उतना ही सुमधुर है। लता मंगेशकर और महेन्द्र कपूर की आवाज़ों में यह है फ़िल्म 'स्त्री' का युगल गीत "आज मधुबातास डोले"। जब शुद्ध हिंदी में लिखे गीतों की बात चलती है, तो ऐसे गीतकारों में भरत व्यास का नाम शुरुआती नामों में ही शामिल किया जाता है। शुरु शुरु में फ़िल्मी गीतों में उर्दू का ज़्यादा चलन था। ऐसे में भरत ब्यास ने अपनी अलग पहचान बनाई और हिंदी का दामन थामा। कविता के ढंग में कुछ ऐसे गीत लिखे कि सुननेवाले मोहित हुए बिना नहीं रह पाए। आज का यह गीत भी एक ऐसा ही उत्कृष्टतम गीतों में से एक है। संगीत की बात करें तो सी. रामचन्द्र ने इस फ़िल्म में संगीत दिया था और शास्त्रीय संगीत की ऐसी छटा उन्होने इस फ़िल्म के गीतों में बिखेरी कि जैसे बसंत ऋतु को एक नया ही रूप दे दिया। "बसंत है आया रंगीला" और आज का प्रस्तुत गीत "आज मधुबातास डोले" इस फ़िल्म के दो ऐसे गीत हैं। इनके अलावा लता जी का गाया "ओ निर्दयी प्रीतम", और महेन्द्र कपूर का गाया "कौन हो तुम" गीत काफ़ी मशहूर हुए थे। 'नवरंग' फ़िल्म के गीतों की कामयाबी के बाद वी. शान्ताराम और सी. रामचन्द्र ने महेन्द्र कपूर को फिर एक बार इस फ़िल्म में मौका दिया और महेन्द्र कपूर ने फिर एक बार उनके उम्मीदों पर खरे उतरे। १९६१ में राजकमल कलामंदिर के बैनर तले निर्मित वी. शान्ताराम की इस फ़ैंटसी फ़िल्म में अभिनय किया था ख़ुद वी. शन्ताराम ने, और उनके साथ थे संध्या, राजश्री, केशवराव दाते और बाबूराव पेढंरकर प्रमुख।
दोस्तों, क्योंकि आज मधुबातास की बात हो रही है, तो क्यों ना इस अलबेले मौसम के नाम एक कविता की जाए जिसे लिखा है चेतन प्रकाश 'चेतन' ने, और जिसे हमने इंतरनेट पर किसी ब्लॊग में पढ़ा। सोचा कि क्यों ना आपके साथ भी इसे बांटा जाए! शीर्षक है 'आया ऋतुराज बसंत है'।
"ऋतुराज बसंत है
नभ में शोभयमान
चौदहवीं का चांद
तारे खिले हैं
अनंत ब्रह्मांड में
बौराई है धरा
ख़ुशी का उसकी अब
नहीं कोई अंत है
आया ऋतुराज बसंत है।
कुद्रत ने लुटाई है
इकट्ठी की हुई दौलत
सफ़ेद मोतियों की छटा
पत्ती पत्ती बिखराई है
सरसों के फूल हैं
हरियाली के गलिचे हैं
चौतरफ़ा प्रकृति में
आमंत्रण ही आमंत्रण है
आया ऋतुराज बसंत है।
है चिकनी चांदनी का असर
खेत खेत चल निकले
रतनारे पतनाले हैं
चुप के आधी रात के
झरना झम जह्म तोड़ रहा
जोड़ रहा दो दिलों के तार
बंदिशेंझरें नेहा के गात
पोर पोर में उसके राग अनंत हैं
आया ऋतुराज बसंत है।
फूल फूल चांदनी पसरी है
मंद पवन कान में फुसफुसा रहा
गेंदा भी हाँ में हाँ मिला रहा
नीरवता में कोई गुनगुना रहा
बासंती राग, लगाए तन बदन में आग
शायद याद कोई भूली बिसरी है
पूर्वाई मे ये टीस उभरी है
चांद हँसे और सुरभीत दिग दिगंत है
आया ऋतुराज बसंत है।
तो चलिए, हम भी इस मद मंद पवन के साथ डोलें और सुनें "आज मधुबातास डोले"।
क्या आप जानते हैं...
कि सी. रामचन्द्र ने कोल्हापुर में १९३५ में सम्राट सिनेटोन कृत मराठी में निर्मित 'नागानंद' में नायक का अभिनय किया था।
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रहे आज के सवाल-
1. इस गीत के लिए कोई शब्द का सूत्र नहीं देंगें, देशभक्ति फिल्मों के लिए मशहूर अभिनेता/निर्देशक की इस अमर फिल्म के इस गीत को आप खुद पहचानिए-३ अंक.
2. गायक, गायिकाओं की पूरी फ़ौज है इस समूह गीत में, एक अभिनेता की भी आवाज़ है बताएं उनका नाम-3 अंक.
3. बसन्त उत्सव के लिए ख़ास बने इस गीत को किसने लिखा है-२ अंक.
4. किस संगीतकार जोड़ी ने इस मदमस्त गीत को रचा है -२ अंक.
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
पिछली पहेली का परिणाम-
अवध जी चूके तो इंदु जी ने मौका झपट लिया, शरद जी भी सही जवाब लाये और पदम सिंह जी ने भी दो अंक कमाए, बधाई सभी विजेताओं को
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
पहेली रचना -सजीव सारथी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
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7 श्रोताओं का कहना है :
aai jhum ke basant jhumo sng sng me
aai jhum ke
aaj rng lo dilo ko is rng me
aai jhum ke bsnt
आज मधुबातास डोले" अद्भुत है ...ऐसे गीत कहाँ अब? ऎसी सहजता अब कहाँ ...आभार सुनवाने का
peeli peeli sarso pili ,pili ude ptng
pili pili udi chunariya pili pgdi ke sng .....aai jhoom ke basant'
Is evergreen song of film.......
'sUNDER'THE COMEDIAN/ACTOR SANG WITH ASHA BHOSLE,M.K. MANNA DEY ,SHAMSHAD BEGUM JI
संगीतकार : कल्यान जी आनंद जी
गीतकार: प्रेम धवन
अवध लाल
लेकिन अगर मुझे ठीक याद आ रहा है तो इस गीत में एक नहीं बल्कि दो हास्य अभिनेताओं की आवाज़ थी: सुन्दर और मोहन चोटी
अवध लाल
avadhji aap sahi kah rhe hain is gane men sunderji aur mohan choti ji ki aawajen hain ,kintu ek ka puchha to maine ek ka bta diya tulna ki jaye to gane ki pnktiya sunderji ne jyada gai hai.
shammi bhad me chne bhunne wali mhila aur un pr line marne wale sunderji ke do beton ki bhumika me mohan chotiji aur gulshan bavra ji the .
' meri hatti ke lakhon mn dane ,teri bhtti me bhun gaye sare' ...bdi pyari nok jhonk thi dono ki.
ek behad khoob surat film thi upkaar .hr kirdar perfect,gane madhur ,pran ji ki is film ke baad hi hm khushi khushi wo films dekhne lge jinme 'pran sahb hote the.
us se pahle pran naam sunte hi mna kr dete the film nhi dekhni isme pran hai .
ha ha ha
aapko bhi sb yaad ho shayad'
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