ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 362/2010/62
'गीत रंगीले' शृंखला की दूसरी कड़ी में आप सभी का एक बार फिर स्वागत है। दोस्तों, आप ने बचपन में अपनी दादी नानी को कहते हुए सुना होगा कि "उड़ गया पाला, आया बसंत लाला"। ऋतुराज बसंत के आते ही शीत लहर कम होने लग जाती है, और एक बड़ा ही सुहावना सा मौसम चारों तरफ़ छाने लगता है। थोड़ी थोड़ी सर्दी भी रहती है, ओस की बूँदों से रातों की नमी भी बरकरार रहती है, ऐसे मदहोश कर देने वाले मौसम में अपने साजन से जुदाई भला किसे अच्छा लगता है! तभी तो किसी ने कहा है कि "मीठी मीठी सर्दी है, भीगी भीगी रातें हैं, ऐसे में चले आओ, फागुन का महीना है"। ख़ैर, हम तो आज बात करेंगे होली की। होली फागुन महीने की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता, और आम तौर पर फागुन का महीना ग्रेगोरियन कलेण्डर के अनुसार फ़रवरी के मध्य भाग से लेकर मार्च के मध्य भाग तक पड़ता है। और यही समय होता है बसंत ऋतु का भी। दोस्तों, आज हमने जो गीत चुना है इस रंगीली शृंखला में, वह कल के गीत की ही तरह एक होली गीत है। और क्योंकि आज संगीतकार रवि जी का जनमदिन है, इसलिए हमने सोचा कि क्यों ना उन्ही का स्वरबद्ध किया हुआ वह मशहूर होली गीत सुनवा दिया जाए जिसे आशा भोसले और साथियों ने फ़िल्म 'फूल और पत्थर' के लिए गाया था, "लाई है हज़ारों रंग होली, कोई तन के लिए, कोई मन के लिए"!
'फूल और पत्थर' १९६६ की फ़िल्म थी जिसका निर्माण व निर्देशन ओ. पी. रल्हन ने किया था। मीना कुमारी, धर्मेन्द्र और शशिकला के अभिनय से सजी यह फ़िल्म बेहद सराही गई थी। इस फ़िल्म के लिए इन तीनों कलाकारों का नाम फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कारों के लिए क्रम से सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री, सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेत्री के लिए नामांकित किया गया था। लेकिन इस फ़िल्म के लिए जिन दो कलाकारों ने पुरस्कार जीते, वो थे शांति दास (सर्वश्रेष्ठ कला निर्देशन) तथा वसंत बोरकर (सर्वश्रेष्ठ एडिटिंग्)। इस फ़िल्म में शक़ील बदायूनी और रवि ने मिलकर कुछ कालजयी गानें हमें दिए हैं, जैसे कि "सुन ले पुकार आई आज तेरे द्वार", "शीशे से पी या पयमाने से पी", "ज़िंदगी में प्यार करना सीख ले" और आज का होली गीत। दोस्तों, जैसा कि हमने बताया कि यह होली गीत शक़ील साहब का लिखा हुआ है, तो मुझे एकाएक यह ख़याल आया कि शक़ील साहब ने अपने करीयर में कुछ बेहद महत्वपूर्ण होली गीत हमारी फ़िल्मों को दे गए हैं। आइए कम से कम दो ऐसे गीतों का उल्लेख यहाँ पर किया जाए। फ़िल्म 'कोहिनूर' में उन्होने लिखा था "तन रंग लो जी आज मन रंग लो", जिसका शुमार सर्वोत्तम होली गीतों में होनी चाहिए। फ़िल्म 'मदर इंडिया' में भी एक ऐसा ही मशहूर होली गीत शक़ील साहब ने लिखा था जो आज भी होली के अवसर पर उसी ताज़गी से सुनें और सराहे जाते हैं। याद है ना शम्शाद बेग़म का गाया "होली आई रे कन्हाई रंग छलके सुना दे ज़रा बांसुरी"! 'फूल और पत्थर' के अलावा शक़ील और रवि के जोड़ी की एक और महत्वपूर्ण फ़िल्म है 'चौधवीं का चाँद', 'दो बदन', 'घराना', 'घुंघट', और 'दूर की आवाज़' प्रमुख। तो दोस्तों, आइए रवि साहब को एक बार फिर से जनमदिन की शुभकानाएँ देते हैं, आप दीर्घायु हों, उत्तम स्वास्थ्य लाभ करें, और ख़ुशियों के सभी रंग आपकी ज़िंदगी को रंगीन बनाए रखे बिल्कुल आपके गीतों की तरह, और ख़ास कर के आप की बनाई हुई आज के इस प्रस्तुत होली गीत की तरह।
क्या आप जानते हैं...
कि गुरु दत्त साहब के अनुरोध पर शक़ील बदायूनी ने पहली बार नौशाद साहब के बग़ैर फ़िल्म 'चौधवीं का चाँद' में संगीतकार रवि के लिए गीत लिखे, काम शुरु करने से पहले शक़ील ने रवि से कहा था कि "मैंने बाहर कहीं काम नहीं किया है, मुझे संभाल लेना"।
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रहे आज के सवाल-
1. मुखड़े में शब्द है "उमरिया", गीत बताएं -३ अंक.
2. इस अनूठे गीत के संगीतकार का नाम बताएं - ३ अंक.
3. इस फिल्म के नाम में दो बार एक संख्या का नाम आता है, फिल्म का नाम बताएं- २ अंक.
4. मीना कपूर की आवाज़ में इस गीत के गीतकार कौन हैं -सही जवाब के मिलेंगें २ अंक.
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
पिछली पहेली का परिणाम-
शरद जी आपका जवाब तो सही है, पर बाकी दुरंधर कहाँ गए, लगता है होली का रंग उतरा नहीं अभी :)
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
पहेली रचना -सजीव सारथी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
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6 श्रोताओं का कहना है :
kachchi hai umriyaya kori hai chunariya
sujoyji/ sjivji
jara uttar dekhiye maine lk ki film ke answer diye hain ,wo bhi sahi samay pr
aur sharaafat se mere number mujhe .................
ek do teen chaar .....
ek do teen chaar ......
aage ginti nhi aati
yahan to dil bhi ek raah bhi ek
bs chlte jana hai
aur kahe deti hun smay pr jwab na aaye na to .........fir mujhe na kahna
ha ha ha
संगीतकार : अनिल विश्वास
Cnar dil char rahein
avadh lal
चार दिल चार राहें.
सच में यह गीत ही नहीं बल्कि पूरी फिल्म ही एक अनूठी फिल्म थी.
निर्माता ख्वाजा अहमद अब्बास की कहानी थी एक चौक या चौराहे की जहाँ पर चार रस्ते आ कर मिलते हैं.
हर सड़क पर एक युगल की कहानी थी जैसे राज कपूर- मीना कुमारी, अजित-निम्मी, शम्मी कपूर- कुमकुम (?) आदि और एक बहुत खास रोल में जयराज.
गायिका मीना कपूर की मधुर आवाज़ जो संगीतकार अनिल दा की धर्मपत्नी भी थीं.
अवध लाल
main kl ludhiyana ja rhi hun .
kai sa...hi ...r...r.. rhe safar
jaoongi bs
sujoyji /sajiv ji ka hi idea hai ye .
aur kaun 2 chlega?
avdhji ko naam note kra de .
khrch ki chinta na kre ,wo sharad ji utha rhe hain.
sharad ji aap kitne achchhe hain
ludhiyane wale ho jayenge apn sb .
ha ha ha
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