रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


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प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Wednesday, March 24, 2010

कुछ तो लोग कहेंगें...बख्शी साहब के मिजाज़ को भी बखूबी उभारता है ये गीत



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 383/2010/83

नंद बक्शी साहब के लिखे गीतों पर आधारित इस लघु शृंखला 'मैं शायर तो नहीं' को आगे बढ़ाते हुए हम आ पहुँचे थे १९६७ की फ़िल्म 'मिलन' पर। इसके दो साल बाद, यानी कि १९६९ में जब शक्ति सामंत ने एक बड़ी ही नई क़िस्म की फ़िल्म 'आराधना' बनाने की सोची तो उसमें उन्होने हर पक्ष के लिए नए नए प्रतिभाओं को लेना चाहा। बतौर नायक राजेश खन्ना और बतौर नायिका शर्मीला टैगोर को चुना गया। अब हुआ युं कि शुरुआत में यह तय हुआ था कि रफ़ी साहब बनेंगे राजेश खन्ना की आवाज़। लेकिन उन दिनों रफ़ी साहब एक लम्बी विदेश यात्रा पर गए हुए थे। इसलिए शक्तिदा ने किशोर कुमार का नाम सुझाया। उन दिनो किशोर देव आनंद के लिए गाया करते थे, इसलिए सचिनदा पूरी तरह से शंका-मुक्त नहीं थे कि किशोर गाने के लिए राज़ी हो जाएंगे। शक्ति दा ने किशोर को फ़ोन किया, जो उन दिनों उनके दोस्त बन चुके थे बड़े भाई अशोक कुमार के ज़रिए। किशोर ने जब गाने से इनकार कर दिया तो शक्तिदा ने कहा, "नखरे क्युँ कर रहा है, हो सकता है कि यह तुम्हारे लिए कुछ अच्छा हो जाए"। आख़िर में किशोर राज़ी हो गए। शुरु शुरु में सचिनदा बतौर गीतकार शैलेन्द्र को लेना चाह रहे थे, लेकिन यहाँ भी शक्तिदा ने सुझाव दिया कि क्युँ ना सचिनदा की जोड़ी उभरते गीतकार आनंद बक्शी के साथ बनाई जाए। और यहाँ भी उनका सुझाव रंग लाया। जब तक रफ़ी साहब अपनी विदेश यात्रा से लौटते, इस फ़िल्म के करीब करीब सभी गाने रिकार्ड हो चुके थे सिवाय दो गीतों के, जिन्हे फिर रफ़ी साहब ने गाया। इस तरह से आनंद बक्शी को पहली बार सचिन देव बर्मन के साथ काम करने का मौका मिला। 'आराधना' के बाद आई शक्ति दा की अगली फ़िल्म 'कटी पतंग' जिसमें आनंद बक्शी की जोड़ी बनी सचिन दा के बेटे पंचम यानी राहुल देव बर्मन के साथ, और इस फ़िल्म ने भी सफलता के कई झंडे गाढ़े। 'कटी पतंग' की सफलता के जशन अभी ख़तम भी नहीं हुआ था कि शक्तिदा की अगली फ़िल्म 'अमर प्रेम' आ गयी १९७१ में और एक बार फिर से वही कामयाबी की कहानी दोहरायी गई। आनंद बक्शी, राहूल देव बर्मन और किशोर कुमार की अच्छी-ख़ासी तिकड़ी बन चुकी थी और इस फ़िल्म के गाने भी ऐसे गूंजे कि अब तक उनकी गूंज सुनाई देती है। तो चलिए, आज हम 'अमर प्रेम' से सुनते हैं "कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना"।

'अमर प्रेम' की कहानी आधारित थी विभुति भुशण बंदोपाध्याय की उपन्यास पर। यह फ़िल्म १९७० की अरबिंदो मुखर्जी की बंगला फ़िल्म 'निशिपद्म' का हिंदी रीमेक था। एक अच्छे घर के नौजवान लड़के का एक वेश्या के प्रति पवित्र प्रेम की कहानी है 'अमर प्रेम' जो मानवीय मूल्यों और संबंधों की एक बार फिर से मूल्यांकन करने पर हमें मजबूर कर देती है। इस गीत में ही जैसे कहा गया है कि लोग तो बातें करते ही रहेंगे, उनकी तरफ़ ध्यान देकर हम अपनी ज़िंदगी क्यों ख़राब करें। अगर हमें लगता है कि जो हम कर रहे हैं वह सही है, तो फिर ज़माने की बातों से क्या डरना! आनंद बक्शी साहब के स्टाइल के मुताबिक़ उन्होने बड़े ही बोलचाल वाली भाषा का प्रयोग करते हुए इस गीत के अल्फ़ाज़ लिखे हैं। "कुछ रीत जगत की ऐसी है हर एक सुबह की शाम हुई, तू कौन है तेरा नाम है क्या सीता भी यहाँ बदनाम हुई, फिर क्यों संसार की बातों से भीग गए तेरे नैना"। अगर ऐसे गीत लिखने के बाद भी लोग बक्शी साहब की समालोचना करते हैं तो वो बेशक़ करते रहें, उनके लिए ख़ुद बक्शी साहब ही कह गए हैं कि "कुछ तो लोग कहेंगे"। ख़ैर, अब इस गीत के संदर्भ में हम रुख़ करेंगे विविध भारती पर प्रसारित प्यारेलाल जी के 'उजाले उनकी यादों के' कार्यक्रम की ओर, जिसमें उन्होने आनंद बक्शी साहब के बारे में बहुत सी बातें की थी और इस गीत के बारे में कुछ ऐसे विचार व्यक्त किए थे। प्यारेलाल जी से बातचीत कर रहे हैं कमल शर्मा।

प्र: प्यारे जी, क्योंकि बक्शी साहब की बात चल रही है, उनका लिखा कोई गाना जो आपको बहुत ज़्यादा अपील करता हो, म्युज़िक के पॊयण्ट ऒफ़ विउ से भी और कहानी के तरफ़ से भी।

उ: उनका तो देखिए, हर गाने में कुछ ना कुछ बात होती ही है। लेकिन जो पंचम का गाना है "कुछ तो लोग कहेंगे", मैं समझता हूँ बहुत ही बढ़िया बात कही है उन्होने। यह ऐसा बनाया है कि जैसे हम बात करते हैं, और पंचम ने भी क्या ट्युन बनाई, "कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना, छोड़ो बेकार की बातं में कहीं बीत ना जाए रैना", 'beautiful things'!

प्र: जीवन के दर्शन को बड़े आसान से शब्दों में...

उ: बिल्कुल! उसको देखिए ना "कुछ तो लोग कहेंगे", ज़रूर बक्शी जी ने पहले कहा होगा, तो उसको कैसे (गीत को गाते हुए), ये सब चीज़ें जो हैं ना, अंडर करण्ट चीज़ होती है, जो लोग समझते हैं, नहीं समझते हैं, गायकी समझिए ४०% काम करता है संगीतकार का, हम लोग काम जो करते हैं यह पूरा टीम वर्क है, ये लोग नहीं समझते हैं.




क्या आप जानते हैं...
कि आनंद बक्शी को फ़िल्म 'अमर प्रेम' के "चिंगारी कोई भड़के" गीत के लिए फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था, लेकिन उस साल यह पुरस्कार गया हसरत जयपुरी की झोली में फ़िल्म 'अंदाज़' के गीत "ज़िंदगी एक सफ़र है सुहाना" के लिए।

चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रहे आज के सवाल-

1. मुखड़े में ये शब्द एक से अधिक बार आता है अलग अलग सन्दर्भों में -"गगन", गीत बताएं-३ अंक.
2. संजीव कुमार और निवेदिता पर फ़िल्माया गाया था ये गीत, संगीतकार बताएं- २ अंक.
3. लता मंगेशकर के साथ किस गायक की आवाज़ है इस गीत में -२ अंक.
4. फिल्म का नाम बताएं -३ अंक.

विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।

पिछली पहेली का परिणाम-
इंदु जी बधाई, पाबला जी और शरद जी भी दो अंकों का इजाफा कर गए हैं खाते में, पर पदम सिंह जी चूक गए, रोमेंद्र सागर और कृष्ण मुरारी जी, आप दोनों का स्वागत है

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

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6 श्रोताओं का कहना है :

indu puri का कहना है कि -

सोच के ये गगन झूमे
अभी चाँद निकल आएगा
झिलमिल चमकेंगे तारे
चाँद जब निकल आएगा
देखेगा न कोई गगन को
चाँद को ही देखेंगे सारे
बहुत सुंदर एक प्यारा भूल बिसरा गाना याद दिला दिया,उत्तर गलत भी हो भी आज कोई अफ़सोस नही और ढेर सारा प्यार तुम दोनों को बाबा ! मेरे आंसू रोके नही रुक रहे .नही जानते आज मैंने क्या पा लिया,उत्तर कि यलाश में.मेरे अपने खजाने में था मुझे ही याद नही .

शरद तैलंग का कहना है कि -

फ़िल्म का नाम है : ज्योति

padm singh का कहना है कि -

मन्ना डे

indu puri का कहना है कि -

mujhe afsos hai ,kintu ek baar filmfare sambandhit sare blogs/sites khol kr dekhiye padm ji ne jo jankari di wo sahi hai ,maine bhi ja kr pdha .
ek baar dekho sajeevji
aapko confusion huaa hai .
avdh bhaiyaaaaaaaaaaaaaaa
pabla bhaiyaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa
sharad jiiiiiiii
arre koi to bolo

रोमेंद्र सागर का कहना है कि -

"सोच के ये गगन झूमे
अभी चाँद निकल आएगा
झिलमिल चमकेंगे तारे..."
इस प्यारे से और मधुर से गीत को कलमबद्ध किया था आनंद बक्शी ने और इस गीत के संगीतकार थे
सुरों के जादूगर दादा सचिन देव बर्मन !!!!

indu puri का कहना है कि -

प्रिय सजीव !
नमस्ते
पद्मजी ऩे जो उत्तर दिया वो एकदम सही था
आप साईट पर चेक कर सकते हैं ,मैं वहीं से लाइंस कॉपी-पेस्ट करके भेज रही हूँ
आप स्वयम एक बार फिर देखें
Filmfare Award for Best Lyricist
1973 Verma Malik - "Jai Bolo Be-Imaan Ki" from Be-Imaan#
Anand Bakshi - "Chingari Koi Bhadke" from Amar Prem

* Santosh Anand - "Ek Pyar Ka Nagma" from Shor


1972 Hasrat Jaipuri - "Zindagi Ek Safar Hai Suhana" from Andaz

* Anand Bakshi - "Na Koi Umang Hai" from Kati Patang

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