ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 388/2010/88
आनंद बक्शी साहब की बस यही सब से बड़ी खासियत रही कि जब जिस सिचुयशन के लिए उनसे गीत लिखने को कहा गया, उस पर पूरा पूरा न्याय करते हुए ना केवल उन्होने गीत लिखे बल्कि गीत को मक़बूल कर के भी दिखाया। आम सिचुयशनों से हट के जब भी कोई इस तरह की सिचुयशन आई, बक्शी साहब ने हर बार कमाल कर दिखाया। अब फ़िल्म 'चुपके चुपके' का ही वह गीत ले लीजिए, "अब के सजन सावन में, आग लगेगी बदन में"। इस फ़िल्म की कहानी से तो आप सभी वाकीफ़ हैं, और आए दिन टी.वी पे यह फ़िल्म दिखाई जाती रहती है। तो इस गाने के सिचुयशन से भी आप वाकीफ़ होंगे। एक तरफ़ नायिका (शर्मीला) के परिवार वाले उनसे एक पारिवारिक पार्टी में गीत गानें का अनुरोध करते हैं। दूसरी तरफ़ कमरे के बाहर, दरवाज़े के पीछे छुप कर ड्राइवर बने शर्मीला के पति (धर्मेन्द्र) भी इंतज़ार में है अपनी पत्नी से गीत सुनने के लिए। सिर्फ़ शर्मीला को ही पता है कि कमरे के बाहर धर्मेन्द्र खड़े हैं। तो इस सिचुयशन पर एक ऐसे गीत की ज़रूरत है कि जिसमें पार्टी में मौजूद लोगों का भी मनोरंजन हो जाए और शर्मीला अपने दिल की बात धर्मेन्द्र तक पहुँचा भी सके। यह एक हास्य रस से भरी फ़िल्म थी, इसलिए इस गीत में भी चुलबुलापन और नटखटपन की आवश्यक्ता थी। ऐसे में गीतकार आनंद बक्शी साहब की कलम चल पड़ी और देखिये क्या ख़ूब गीत लेकर आए। क्योंकि कहानी में नायक और नायिका का मिलन संभव नहीं हो पा रहा (नायक के ड्राइवर रूप धारण करने की वजह से), ऐसे में सावन के महीने में जो व्याकुलता दिल में जागने वाली है, उसी तरफ़ इशारा किया गया है। "तेरे मेरे प्यार का यह साल बुरा होगा, जब बहार आएगी तो हाल बुरा होगा, रात भर जलाएगी ये मस्त मस्त पवन, सजन मिल ना सकेंगे दो मन एक ही आंगन में"। लता मंगेशकर की आवाज़ ने जुदाई के दर्द को बड़े ही शरारत भरे अंदाज़ में क्या ख़ूब उभारा है और सचिन देव बर्मन के संगीत के तो क्या कहने। बंगाल के लोक धुन पर आधारित यह गीत दिल को जहाँ एक तरफ़ गुदगुदा जाती है, उतना ही सुकून भी देती है। वैसे इस फ़िल्म के दूसरे सभी गानें भी बेहद ख़ूबसूरत हैं, जैसे कि लता जी का ही गाया "चुपके चुपके चल री पुरवईया", लता-मुकेश का गाया "बाग़ों में कैसे ये फूल खिलते हैं" और रफ़ी-किशोर का गाया "सा रे गा मा"। तो आज 'मैं शायर तो नहीं' शृंखला में बक्शी साहब के लिखे "अब के सजन सावन में" की बारी।
क्योंकि आज आनंद बक्शी साहब के बोल सज रहे हैं लता जी के होठों पर, तो चलिए आज जान लेते हैं कि बक्शी साहब का क्या कहना है सुरों की मलिका के बारे में- "लता मंगेशकर का नाम किसी तारुफ़ का मोहताज नहीं, लेकिन जी चाहता है कि कुछ कहूँ। इतना ही कहूँगा कि हम सब ख़ुशक़िस्मत हैं कि हमारे बीच लता मंगेशकर जैसी आर्टिस्ट मौजूद हैं। उनकी आवाज़ को सुनकर जी करता है कि अच्छे अच्छे गीत लिखें और धुनें बनाएँ। वो कभी कभी पूछती हैं कि ये लफ़्ज़ कैसे कहना है, तो मैं उनसे कहता हूँ कि आप जैसे कहेंगी, वैसा ही ये कहा जाएगा! पंजाबी लफ़्ज़ भी वो इतना ख़ूबसूरत बोलती हैं कि ऐसा लगता है जैसे कोई पंजाबी लड़की हों।" देखा दोस्तों आपने कि लता जी की आवाज़ भी गीतकारों और संगीतकारों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बनी हैं। और आनंद बक्शी साहब का यह बड़प्पन ही कहना पड़ेगा कि ख़ुद इतने बड़े गीतकार होते हुए भी यह श्रेय उन्होने लता जी को दिया। यही बड़प्पन और विनम्रता तो इंसान को सफलता की बुलंदी तक पहुँचाता है, ठीक वैसे ही जैसे बक्शी साहब पहुँचे हैं। तो आइए सुनते हैं लता जी, सचिन दा और बक्शी साहब की तिकड़ी का यह सदाबहार गीत।
क्या आप जानते हैं...
कि आनंद बक्शी ने अंत तक सुभाष घई निर्देशित सभी १३ फ़िल्मों के गीत लिखे। पहली फ़िल्म थी 'गौतम गोविंदा' (१०७९) और अंतिम फ़िल्म थी 'यादें' (२००१)
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रहे आज के सवाल-
1. गीत के शुरूआती दो मिसरों में कहीं ये शब्द आता है -"चिंगारी", गीत बताएं -३ अंक.
2. इस गीत में लता का साथ दिया है एक ऐसे गायक ने जो भजन गायन के लिए अधिक जाने जाते हैं, कौन हैं ये- २ अंक.
3. इस फिल्म के अन्य गीत के लिए बख्शी साहब को फिल्म फेयर मिला था, फिल्म बताएं-२ अंक.
4. इस प्रेम कहानी के नायक नायिका कौन थे -२ अंक.
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
पिछली पहेली का परिणाम-
इंदु जी आपकी चोरी पकड़ी गयी....खैर ३ अंक हम आपको अवश्य देंगें, साथ में अनीता जी और पाबला जी को भी बधाई
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
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5 श्रोताओं का कहना है :
सोलह बरस की बाली उमर को सलाम
lata mangeshkar + anup jalota
Paheli to nahi bhoojh payi lekin aapka aalekh behad achha laga...Lataji meri poojneey daivat hain!Kya kahne us daivi aawazke..na bhooto na bhavishyati....Anand Bakshibhi behad achhe suljhe hue geetkaar rahe...!
ek dooje ke liye
kamal haasan aue rati agnihotri
induji mujhe shrimatiji ne bata diya tha ki aap unki orkut frnd hai,aapki sharart achchhi lgi .
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