ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 387/2010/87
'मैंशायर तो नहीं' - गीतकार आनंद बक्शी पर केन्द्रित इस लघु शृंखला में आज जिस गीत की बारी है वह एक दार्शनिक गीत है। इस जॉनर के गानें भी बक्शी साहब ने क्या ख़ूब लिखे हैं। कुछ की याद दिलाएँ? "ज़िंदगी के सफ़र में गुज़र जाते हैं जो मुकाम, वो फिर नहीं आते", "आदमी मुसाफ़िर है, आता है जाता है", "दो रंग दुनिया के और दो रास्ते", "इक बंजारा गाए जीवन के गीत सुनाए", "गाड़ी बुला रही है सीटी बजा रही है, चलना ही ज़िंदगी है चलती ही जा रही है", "ये जीवन है, इस जीवन का, यही है रंग रूप", "दिए जलते हैं फूल खिलते हैं, बड़ी मुश्किल से मगर दुनिया में दोस्त मिलते हैं", और भी न जाने कितने ऐसे गीत हैं जिनमें ज़िंदगी के फलसफे को समेटा था बक्शी साहब ने। आज हम आपके लिए लेकर आए हैं फ़िल्म 'मजबूर' से "आदमी जो कहता है, आदमी जो सुनता है, ज़िंदगी भर वो सदाएँ पीछा करती हैं"। बहुत ही असरदार गीत है और यह एक ऐसा गीत है जिसके साथ हर आदमी अपनी ज़िंदगी को जोड़ सकता है। क्या ख़ूब कहा है बक्शी साहब ने कि "कोई भी हो हर ख़्वाब तो सच्चा नहीं होता, बहुत ज़्यादा प्यार भी अच्छा नहीं होता, कभी दामन छुड़ाना हो तो मुश्किल हो, प्यार के रिश्ते टूटें तो, प्यार के रस्ते छूटें तो, रास्ते में फिर वफ़ाएँ पीछा करती हैं"। ग़ौर कीजिए कि कैसी बोलचाल वाली भाषा है, लेकिन कितना असरदार! और किशोर दा की वज़नदार और भावपूर्ण आवाज़ ने गीत को एक अलग ही दर्जा प्रदान किया है। फ़िल्म 'मजबूर' के संगीतकार थे लक्ष्मीकांत प्यारेलाल। यह फ़िल्म बनी थी १९७४ में, रवि टंडन का निर्देशन था, अमिताभ बच्चन, परवीन बाबी, फ़रीदा जलाल और प्राण मुख्य कलाकार थे इस फ़िल्म में। कहानी कुछ इस प्रकार थी कि रवि खन्ना अपने अपाहिज बहन, छोटे भाई और विधवा माँ के साथ रहता है। एक दिन उसे पता चलता है कि उसे ब्रेन ट्युमर है और उसके पास केवल ६ महीने का ही समय है। ऐसे में अपनी माँ और भाई-बहन के भविष्य के बारे में सोचते हुए वो एक क़त्ल का इलज़ाम अपने सर ले लेता है जिसके बदले उसे भारी रकम मिलती है अपने परिवार को सुरक्षित करने के लिए। लेकिन क़िस्मत को कुछ और ही मंज़ूर होता है। क्या होता है आगे चलकर, आप में से बहुतों को पता होगा, ना हो तो कभी इस फ़िल्म को ज़रूर देखिएगा।
आनंद बक्शी एक ऐसे गीतकार रहे जिन्होने अनेक कलाकारों को उनका पहला हिट गीत दिया उनके पहले ही फ़िल्म में, जैसे कि सनी देओल, जैकी श्रोफ़, कमल हसन, कुमार गौरव, रजनीकांत, राखी, डिम्पल कपाडिया, ऋषी कपूर, अमृता सिंह, अमृता अरोड़ा, उदय चोपड़ा, जिम्मी शेरगिल, जया प्रदा, मनिषा कोयराला, विवेक मुशरन, महिमा चौधरी, नम्रता शिरोडकर, अर्जुन रामपाल, तब्बु, संजय दत्त, ज़ीनत अमान और मीनाक्षी शेशाद्री। सिर्फ़ अभिनेता ही नहीं, बहुत सारे गायकों ने भी अपना पहला ब्रेकिंग् गीत बक्शी साहब का ही लिखा हुआ गाया। इनमें शामिल हैं शैलेन्द्र सिंह, कुमार सानू, कविता कृष्णमूर्ती, एस. पी. बालासुब्रह्मण्यम, सुखविंदर सिंह, तलत अज़ीज़, रूप कुमार राठोड़। 'आराधना' के गीतों से किशोर कुमार का एक नया स्टाइल ही आ गया, और रफ़ी साहब का भी कमबैक हुई 'अमर अक्बर ऐंथनी' और 'धरमवीर' जैसी फ़िल्मों के साथ। दोस्तों, क्योंकि आज आनंद बक्शी और लक्ष्मीकांत प्यारेलाल की तिकड़ी का गीत बज रहा है, तो क्यो ना प्यारेलाल जी से की गई मुलाक़ात से एक अंश निकाल कर यहाँ पेश किया जाए। यह मुलाक़ात की थी विविध भारती के कमल शर्मा जी ने 'उजाले उनकी यादों के' सीरीज़ के लिए।
प्र: आनंद बक्शी साहब के साथ में आपका एक बहुत अलग तरह का, बहुत अच्छा...
उ: बहुत!
प्र: उनकी ट्युनिंग् थी आपकी...
उ: और उनका क्या था कि जैसे लक्ष्मी जी, या जो भी प्रोड्युसर हैं, उनको अगर कुछ चेंज करवाना हो, मतलब मैं ऐसे बता रहा हूँ, क्योंकि कुछ भी चेंज करने को कहो तो 'अरे बहुत अच्छा है, तुम लोग समझते नहीं, ये लो लाइफ़ बन गई तुम लोगों की', ऐसा, तो कुछ भी चेंज करना हो तो मुझे बोलते थे। तो हम साथ में आते थे गाड़ी मे बान्द्रा से, तो 'बक्शी जी, ऐसे बात कह रहे थे', 'अच्छा मैं समझ गया, क्या चेंज करना है बता, क्या लाइन है बता'।
प्र: गाड़ी में बैठ के?
उ: हाँ, गाड़ी में बैठ के, जैसा बोल देता था वैसा लिख देते थे, और वहाँ पहुँच कर, 'लक्ष्मी, चल लिख ले'। तो ऐसा, मतलब, काम करने का, मतलब, अजीब था। कमाल के थे।
क्या आप जानते हैं...
कि आनंद बक्शी को पान खाने की ज़बरदस्त आदत थी, और निधन से ६-७ महीने पहले भी दिन में कम से कम २५ पान चबा जाते थे।
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रहे आज के सवाल-
1. मुखड़े में शब्द है -"आँगन" गीत बताएं -३ अंक.
2. एक मल्टी स्टारर फिल्म थी ये पर व्यावसायिक फार्मूला फिल्मों से हट कर हल्की फुल्की गुदगुदाने वाली, नाम बताएं - २ अंक.
3. कौन थे संगीत निर्देशक -२ अंक.
4. लता की आवाज़ में सजा ये छेड छाड वाला गीत किस अभिनेत्री ने निभाया है परदे पर -२ अंक.
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
पिछली पहेली का परिणाम-
पाबला जी आपने खबर देकर मन खुश किया है, यदि लेखिका प्रतिभा कटियार से आप वाकिफ हों या यदि आज वो इस एपिसोड को पढ़ रही हों तो उन्हें हम शुक्रिया कहना चाहेंगे जिस खूबसूरत अंदाज़ में उन्होंने आवाज़ के अंदाज़ का बयां किया पढ़ कर हमारा हौंसला दुगना हुआ है. साथ ही शरद जी, अनुपम जी, इंदु जी सभी को बधाई
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
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7 श्रोताओं का कहना है :
अबके सजन सावन में आग लगेगी बदन में
घटा बरसेगी, मगर तरसेगी नजर
मिल ना सकेंगे दो मन एक ही आँगन में
sharmila taigore ji pr filmaya gaya tha .sath me dharmendra ji the
ha ha ha
ise kahte hai nalayki
annu gdbd kr di maine
sorry
ab dekhiye hm jo baat krte hain danke ki chot pr karte hain aise
chupke chupke
batiyana hme to psnd nhi aur na hi hmari shrimatiji ko.hr samay sir pr sawar rhti hai ,dekhiye na hmse pahle jwab deke sir pr swar ho gai hai na? aapko hi bta rha hun ,pr........chupke chupke
कौन थे संगीत निर्देशक: सचिन देव बर्मन
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एकदम सही जवाब....
लाजवाब गीत..
मस्त फिल्म...
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