रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


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प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Friday, April 16, 2010

तुमसे मिला था प्यार....गुलज़ार का लिखा ये गीत है योगेश पाटिल को पसंद



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 406/2010/106

'पसंद अपनी अपनी' में फ़रमाइशी गीतों का सिलसिला जारी है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर। आज बारी है योगेश पाटिल के पसंद के गाने की। आप ने सुनना चाहा है फ़िल्म 'खट्टा मीठा' से "तुमसे मिला था प्यार, कुछ अच्छे नसीब थे, हम उन दिनों अमीर थे जब तुम करीब थे"। बड़ा ही ख़ूबसूरत गीत है और आम गीतों से अलग भी है। यह उन गीतों की श्रेणी में आता है जिन गीतों में गायक गायिका के आवाज़ों के साथ साथ नायक नायिका की आवाज़ें भी शामिल होती हैं। इस गीत में मुख्य आवाज़ लता मंगेशकर की है, अंत में किशोर कुमार दो पंक्तियाँ गाते हैं, गीत की शुरुआत में राकेश रोशन और बिंदिया गोस्वामी के संवाद हैं और इंटरल्युड में भी राकेश रोशन के संवाद हैं। इस गीत को लिखा है गुलज़ार ने और संगीतकार हैं राजेश रोशन। भले ही राजेश रोशन समय समय पर विवादों से घिरे रहे, लेकिन हक़ीक़त यह भी है कि उन्होने कुछ बेहद अच्छे गानें भी हमें दिए हैं। और उनके द्वारा रचे लता-किशोर के गाए सभी युगलगीत बेहद लोकप्रिय हुए हैं। आज के प्रस्तुत गीत में गुलज़ार साहब ने संवादों के साथ गीत को इस ख़ूबसूरती के साथ जोड़ा है कि जिस शब्द से संवाद ख़त्म होता है, उसी शब्द से फिर गीत का अंतरा शुरु हो जाता है। गुलज़ार साहब की शब्दों में सुनने वालों को उलझाने की अदा उन्ही दिनों शुरु हो चुकी थी; जैसे कि इस गीत के पहले अंतरे में वो लिखते हैं कि "सोचा था मय है ज़िंदगी और ज़िंदगी की मय, प्याला हटा के तेरी हथेली से पीएँगे"। सुनने वाला कुछ देर के लिए सोच में पड़ जाता है कि इसका भावार्थ क्या है!

'खट्टा मीठा' १९७७-७८ की फ़िल्म थी जिसका निर्माण किया था रोमू एन. सिप्पी और गुल आनंद ने, निर्देशक थे बासु चटर्जी तथा राकेश रोशन व बिंदिया गोस्वामी के अलावा फ़िल्म में मुख्य भूमिकाएँ निभाईं इफ्तेखार, देवेन वर्मा, अशोक कुमार, पर्ल पदमसी, डेविड, प्रीति गांगुली और केश्टो मुखर्जी ने। उस ज़माने में पार्सी परिवार के पार्श्व पर कई फ़िल्में बन रही थीं, यह उन्ही में से एक है। फ़िल्म की कहानी कुछ इस तरह की थी कि होमी मिस्त्री (अशोक कुमार) की पत्नी के गुज़रे हुए कई साल बीत चुके हैं, और उनका समय अपने चार बेटों की देखभाल, घर की देख रेख और फ़ैक्टरी के काम काज में निकलता है। उधर नरगिस सेठना (पर्ल पदमसी) भी एक विधवा है जिसके दो बेटे और एक बेटी है, और रहने के लिए एक बहुत बड़ा मकान भी है। सोली (डेविड), जो होमी और नरगिस दोनों के दोस्त हैं, वो इन दोनों को आपस में शादी कर लेने का सुझाव देते हैं ताकि कम से कम दोनों घर के बच्चों को माँ और बाप दोनों का प्यार मिल सके, और रहने के लिए एक बड़ा मकान भी मिले। शादी हो जाती है और उसके बाद कहानी एक हास्यास्पद मोड़ लेती है जब दो घरों के बच्चे आपस में और नए माहौल में ऐडज्स्ट करने की कोशिश करते हैं। यही है इस फ़िल्म की मूल कहानी और इसी कहाने में फ़ीरोज़ सेठना (राकेश रोशन) और ज़रीन (बिंदिया गोस्वामी) की प्रेम कहानी को भी ख़ूबसूरती से मिलाया गया है। इस फ़िल्म का लता-किशोर का गाया "थोड़ा है थोड़े की ज़रूरत है" गीत काफ़ी मशहूर हुआ, जिसके शीर्षक से एक लोकप्रिय टी.वी धारावाहिक भी बनी थी एक ज़माने में। किशोर कुमार व उषा मंगेशकर की आवाज़ों में फ़िल्म का शीर्षक गीत भी याद किया जाता है। तो आइए योगेश पाटिल की पसंद पर सुनते हैं "तुमसे मिला था प्यार"। योगेश जी, आप अपनी पसंद के साथ साथ मेरी पसंद भी शामिल कर लीजिए इस गीत के लिए क्योंकि मुझे भी यह गीत बेहद पसंद है। और जैसे कि इस गीत के बोलों में कहा गया है कि "हम उन दिनों अमीर थे जब तुम करीब थे", तो हम भी 'आवाज़' की तरफ़ से आप सभी से यही कहेंगे कि 'आवाज़' अमीर है आप लोगों के करीब होने से, आपके प्यार से। आप अपना प्यार 'आवाज़' पर युंही लुटाते रहिएगा ताकि हम और अमीर, और ज़्यादा अमीर होते जाएँ।



क्या आप जानते हैं...
कि गुलज़ार और राजेश रोशन ने 'खट्टा मीठा' के अलावा 'स्वयंवर' फ़िल्म में एक साथ काम किया था जिसका गीत "मुझे छू रही है तेरी गर्म सांसें" लोकप्रिय हुआ था।

चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रहे आज के सवाल-

1. फिल्म के नाम में "सपने" शब्द हैं, गीतकार बताएं -३ अंक.
2. आशा पारिख पर फिल्माए इस गीत को किस गायिका ने गाया है- २ अंक.
3. आगे चलकर इस गीत के मशहूर रीमिक्स संस्करण भी बने, संगीतकार बताएं-२ अंक.
4. फिल्म का नाम बताएं -२ अंक.

विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।

पिछली पहेली का परिणाम-
शरद जी के क्या कहने, कभी गलत होते ही नहीं...इंदु जी सुजॉय को आपने आशीर्वाद दिया, शुक्रिया

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

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5 श्रोताओं का कहना है :

anupam goel का कहना है कि -

गीतकार थे : मजरूह सुलतानपुरी साब.

अभी कुछ और कहना उचित नहीं है , जब तक सबके जवाब नहीं आते.

indu puri का कहना है कि -

baharon ke sapne

AVADH का कहना है कि -

अगर मैं सही सोच रहा हूँ तो संगीतकार होने चाहिए: पंचम दा राहुल देब बर्मन
अवध लाल

रोमेंद्र सागर का कहना है कि -

आशा पारिख पर फिल्माए इस गीत " आजा पिया तोहे प्यार दूं.." को गाया है लता मंगेशकर ने !

शरद तैलंग का कहना है कि -

गीत के बारे में पूछा तो नहीं है पर मेरे हिसाब से ’क्या जानूं सजन होती है क्या गम की शाम’ होना चाहिए । दो दिन किसी कार्यक्रम में व्यस्त होने के कारण समय पर नहीं आ सका ।

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