ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # ०२
'ओल्ड इज़ गोल्ड' रिवाइवल की दूसरी कड़ी में आज सुनिए फ़िल्म 'शालिमार' का गीत "हम बेवफ़ा हरग़िज़ ना थे, पर हम वफ़ा कर ना सके"। आनंद बक्शी का लिखा और राहुल देव बर्मन का स्वरब्द्ध किया यह गीत है जिसे किशोर कुमार और साथियों ने गाया था। क्योंकि यह गीत बक्शी साहब, पंचम दा और किशोर दा की मशहूर तिकड़ी का है, तो आज हम दोहराव कर रहे हैं उन बातों का जिनसे आप यह जान पाएँगे कि यह तिकड़ी बनी किस तरह थी। १९६९ में जब शक्ति सामंत ने एक बड़ी ही नई क़िस्म की फ़िल्म 'आराधना' बनाने की सोची तो उसमें उन्होने हर पक्ष के लिए नए नए प्रतिभाओं को लेना चाहा। बतौर नायक राजेश खन्ना और बतौर नायिका शर्मीला टैगोर को चुना गया। अब हुआ युं कि शुरुआत में यह तय हुआ था कि रफ़ी साहब बनेंगे राजेश खन्ना की आवाज़। लेकिन उन दिनों रफ़ी साहब एक लम्बी विदेश यात्रा पर गए हुए थे। इसलिए शक्तिदा ने किशोर कुमार का नाम सुझाया। शुरु शुरु में सचिनदा बतौर गीतकार शैलेन्द्र को लेना चाह रहे थे, लेकिन यहाँ भी शक्तिदा ने सुझाव दिया कि क्यों ना सचिनदा की जोड़ी उभरते गीतकार आनंद बक्शी के साथ बनाई जाए। और यहाँ भी उनका सुझाव रंग लाया। जब तक रफ़ी साहब अपनी विदेश यात्रा से लौटते, इस फ़िल्म के करीब करीब सभी गाने रिकार्ड हो चुके थे सिवाय दो गीतों के, जिन्हे फिर रफ़ी साहब ने गाया। इस तरह से आनंद बक्शी को पहली बार सचिन देव बर्मन के साथ काम करने का मौका मिला। 'आराधना' के बाद आई शक्ति दा की अगली फ़िल्म 'कटी पतंग' जिसमें आनंद बक्शी की जोड़ी बनी सचिन दा के बेटे पंचम यानी राहुल देव बर्मन के साथ, और इस फ़िल्म ने भी सफलता के कई झंडे गाढ़े। 'कटी पतंग' की सफलता के जशन अभी ख़तम भी नहीं हुए थे कि शक्तिदा की अगली फ़िल्म 'अमर प्रेम' आ गयी १९७१ में और एक बार फिर से वही कामयाबी की कहानी दोहरायी गई। आनंद बक्शी, राहूल देव बर्मन और किशोर कुमार की अच्छी-ख़ासी तिकड़ी बन चुकी थी और इस फ़िल्म के गाने भी ऐसे गूंजे कि अब तक उनकी गूंज सुनाई देती है।
ओल्ड इस गोल्ड एक ऐसी शृंखला जिसने अंतरजाल पर ४०० शानदार एपिसोड पूरे कर एक नया रिकॉर्ड बनाया. हिंदी फिल्मों के ये सदाबहार ओल्ड गोल्ड नगमें जब भी रेडियो/ टेलीविज़न या फिर ओल्ड इस गोल्ड जैसे मंचों से आपके कानों तक पहुँचते हैं तो इनका जादू आपके दिलो जेहन पर चढ कर बोलने लगता है. आपका भी मन कर उठता है न कुछ गुनगुनाने को ?, कुछ लोग बाथरूम तक सीमित रह जाते हैं तो कुछ माईक उठा कर गाने की हिम्मत जुटा लेते हैं, गुजरे दिनों के उन महान फनकारों की कलात्मक ऊर्जा को स्वरांजली दे रहे हैं, आज के युग के कुछ अमेच्युर तो कुछ सधे हुए कलाकार. तो सुनिए आज का कवर संस्करण
गीत - हम बेवफा
कवर गायन - राकेश बोरो
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राकेश बोरो
बचपन में पहली बार किशोर जी की आवाज़ सुनी तब से उनकी आवाज़ से प्यार हो गया मुझे. तब से ज्यादातर उन्हीं के गाने सुनता और गाता आ रहा हूँ. वैसे रफ़ी साहब, लता जी और आशा जी के गाने भी बहुत पसंद हैं पर किशोर जी की आवाज़ का जादू सबसे हट के लगा मुझे. नए गायकों में उदित नारायण बेहतर है.
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड के ४०० शानदार एपिसोड आप सब के सहयोग और निरंतर मिलती प्रेरणा से संभव हुए. इस लंबे सफर में कुछ साथी व्यस्तता के चलते कभी साथ नहीं चल पाए तो कुछ हमसे जुड़े बहुत आगे चलकर. इन दिनों हम इन्हीं बीते ४०० एपिसोडों के कुछ चर्चित अंश आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं इस रीवायिवल सीरीस में, ताकि आप सब जो किन्हीं कारणों वश इस आयोजन के कुछ अंश मिस कर गए वो इस मिनी केप्सूल में उनका आनंद उठा सकें. नयी कड़ियों के साथ हम जल्द ही वापस लौटेंगें
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8 श्रोताओं का कहना है :
एक बार तो सुनकर लगा कि हम किशोर कुमार कि ही आवाज़ में यह गीत सुन रहे हैं उनकी आवाज़ के बहुत करीब है राकेश बोरो जी की आवाज़ । बहुत बहुत बधाई ! एक निवेदन है कि कलाकार के परिचय के साथ यदि उसका पता एवं फोन नं. या मोबाइल भी दे दें तो कभी उनका लाभ उठाया जा सकता है ।
राकेश बोरोजी कि आवाज अच्छी है,'मेरे महबूब कयामत होगी ' या 'अजनबी तुम जाने पहचाने से लगते हो' उनकी आवाज में सुनते तो प्रोग्राम को चार चाँद लग जाते.
फिर भी आपका यह प्रयास सराहनीय है.
ओह प्रश्नों के उत्तर देने की ऐसी आदत सी हो गई थी और उसे इतना इंजॉय करती थी कि............. 'मिस' कर रही हूँ.४५ दिन तो बहुत ज्यादा होते हैं. सच्ची.
प्यार
इंदु ?????? आंटी
आंटी मत बोलो न
माँ बहुत सुंदर वर्ड है न ?
आपकी दोस्त
इंदु
राकेश जी की आवाज़ किशोर कुमार से काफी मिलती है । बहुत ही सुंदर प्रस्तुति ।
शरद जी यदि आप इनमें से किसी से भी संपर्क करना चाहें तो ओइजी के मेल पते पर लिख सकते हैं, हर कोई अपना मेल पता या नम्बर यूँ खुले आम देने में सहज महसूस नहीं कर पाता
वाकई बहुत अच्छी आवाज़.
मज़ा आ गया.
राकेश बोरो जी को उनके उज्जवल भविष्य के लिए बहुत बहुत शुभकामनाएं.
आभार सहित
अवध लाल
गीत पूरा नहीं सुन पा रहे हैं आवाज में किशोर दा सी कशिश है
मैं आशा जी और शरद जी से बिकुल भी सहमत नहीं हूँ कि राकेश जी की आवाज़ किशोर दा से मिलती जुलती है ....अलबत्ता राकेश जी की आवाज़ में एक अलग तरह का निखार है जो निश्चय ही उनकी गायकी को अपनी एक अलग ही पहचान देता है ! सुरों में खूब सधापन है जो साफ़ साफ़ महसूस होता है .......राकेश जी ने इस खूबसूरत गीत को खूब निभाहा है ....बधाई और ढेरों शुभकामनायें !
बाक़ी किशोर दा का कोई जवाब है तो वह खुद किशोर दा ही हैं ....! आवाज़ और अंदाज़ में तो स्वयं उनके बेटे अमित भी वहां तक नहीं पहुँच सके ...... ! कुछ व्यक्तित्व ऐसे होते हैं जिनके बनाने के बाद कुदरत , उनके सांचे नष्ट कर दिया करती है -किशोर दा भी ऐसे ही कुछ लोगों में से एक हैं........जो दुबारा बनते ही नहीं !
< सागर >
बहुत ही सुंदर!
शायद किशोर दा तक कोई भी नहीं पहुँच सकता, लेकिन राकेश जी ने गाने को किशोर दा की तरह ही पूरे जज़्बात के साथ गाया है.
भविष्य के लिए बहुत बहुत शुभकामनाए !
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