ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 394/2010/94
दोस्तों, इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर आप सुन रहे हैं पार्श्वगायिकाओं के गाए युगल गीतों पर आधारित हमारी लघु शृंखला 'सखी सहेली'। आज इस शृंखला की चौथी कड़ी में प्रस्तुत है गीता दत्त और सुधा मल्होत्रा की आवाज़ों में एक भक्ति रचना - "ना मैं धन चाहूँ ना रतन चाहूँ, तेरे चरणों की धूल मिल जाए"। फ़िल्म 'काला बाज़ार' की इस भजन को लिखा है शैलेन्द्र ने और सगीतबद्ध किया है सचिन देव बर्मन ने। जैसा कि हम पहले भी ज़िक्र कर चुके हैं और सब को मालूम भी है कि गीता जी की आवाज़ में कुछ ऐसी खासियत थी कि जब भी उनके गाए भक्ति गीतों को हम सुनते हैं, ऐसा लगता है कि जैसे भगवान से गिड़गिड़ाकर विनती की जा रही है बहुत ही सच्चाई व इमानदारी के साथ। और ऐसी रचनाओं को सुनते हुए जैसे मन पावन हो जाता है, ईश्वर की आराधना में लीन हो जाता है। फ़िल्म 'काला बाज़ार' के इस भजन में भी वही अंदाज़ गीता जी का रहा है। और साथ में सुधा मल्होत्रा जी की आवाज़ भी क्या ख़ूब प्यारी लगती है। इन दोनों की आवाज़ों से जो कॊन्ट्रस्ट पैदा हुआ है गीत में, वही गीत को और भी ज़्यादा कर्णप्रिय बना देता है। इस भजन में वह शक्ति है कि आज ५० साल बाद भी इसका शुमार कालजयी फ़िल्मी भक्ति रचनाओं में होता है और अनेक धार्मिक अनुष्ठानों में इसे बजाया या गाया जाता है। फ़िल्म में यह भजन फ़िल्माया गया था लीला चिटनिस और नंदा पर। गीता दत्त ने लीला जी का प्लेबैक दिया जब कि सुधा मल्होत्रा ने नंदा का। वैसे सुधा मल्होत्रा के साथ अक्सर ऐसा हुआ कि उन्हे बहुत ज़्यादा बड़े बैनर की फ़िल्मों में नायिका के लिए गाने के अवसर नहीं मिले। अगर मिले तो बच्चों पर या वयस्क भूमिकाओं पर उनके गाए गीत फ़िल्माए गए। इससे वो जल्दी ही टाइप कास्ट हो गईं, लेकिन जो भी मौके उन्हे मिले, उन्होने हर बार यह साबित किया कि वो एक वर्सेटाइल सिंगर हैं और हर तरह के गीत वो गा सकती हैं अगर मौका दिया जाए तो। आज का यह गीत इसी बात का प्रमाण है।
'काला बाज़ार' १९५९-६० की फ़िल्म थी जिसका निर्माण देव आनंद ने किया था। फ़िल्म की कहानी व निर्देशन विजय आनंद का था। देव आनंद, वहीदा रहमान, नंदा, विजय आनंद, चेतन आनंद, लीला चिटनिस अभिनीत इस फ़िल्म के गीत संगीत का पक्ष भी काफ़ी मज़बूत था। रफ़ी साहब का गाया "खोया खोया चांद खुला आसमान", "अपनी तो हर आह एक तूफ़ान है", "तेरी धूम हर कहीं"; रफ़ी-गीता का गाया "रिमझिम के तराने लेके आई बरसात"; आशा-मन्ना का गाया "सांझ ढली दिल की लगी थक चली पुकार के"; आशा भोसले का गाया "सच हुए सपने तेरे", तथा आज का प्रस्तुत गीत, सभी गानें बेहद कामयाब रहे और आज भी उतने ही प्यार से सुने जाते हैं। दोस्तों, क्योंकि आज का गीत अभिनेत्री व गायिका लीला चिटनिस पर फ़िल्माया गया है, तो क्यों ना आज उनके बारे में थोड़ी सी बातें की जाए! सन् २००३ के १५ जुलाई को लीला जी का देहांत हो जाने के बाद 'लिस्नर्स बुलेटिन' में उन पर एक छोटा सा लेख प्रकाशित हुआ था, उसी लेख से कुछ अंश यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ। ३० सितंबर १९१२ को धारवाड़ (कर्नाटक) में जन्मीं लीला नागरकर ने डॊ जी. पी. चिटनिस से बी.ए की पढ़ाई के दौरान ही विवाह कर लिया। ४-५ वर्षों बाद ही उनसे तलाक़ हो गया और जीवोकोपार्जन के लिए उन्होने फ़िल्म क्षेत्र में प्रवेश किया। सागर मूवीटोन निर्मित फ़िल्मों में एक्स्ट्रा के रूप में अभिनय के बाद सन् १९३५ में निर्मित 'धुआंधार' में नायिका बनीं। उन्होने कुल ११० हिंदी एवं १० मराठी फ़िल्मों में अभिनय किया। ३० और ४० के दशकों में प्लेबैक तकनीक के अभाव या कम प्रचलन के समय ख़ुद ही अपने पर फ़िल्माए बहुत से गीत गाए। उन्होने अन्तिम बार 'दिल तुझको दिया' (१९८५) में अभिनय किया हालाँकि उनके अभिनय की अन्तिम फ़िल्म 'रामू तो दीवाना है' २००१ में प्रदर्शित हुई थी। छठे दशक में उन्होने ममता मयी मां का अभिनय करना शुरु कर दिया था। उनकी अत्मकथा 'चन्देरी दुनियेत' १९८१ में प्रकाशित हुई थी। तो ये थी कुछ बातें लीला चिटनिस के बारे में जो हमने प्राप्त की 'लिस्नर्स बुलेटिन' अंक १२३ से जो सितंबर २००३ में प्रकाशित हुई थी। और आइए अब मन को पावन कर देने वाली इस भजन का आनंद उठाया जाए गीता दत्त व सुधा मल्होत्रा की आवाज़ों के साथ।
क्या आप जानते हैं...
कि लीला चिटनिस ने ३ फ़िल्मों ('कंचन' (१९४१), 'किसी से ना कहना' (१९४२), 'आज की बात' (१९५५)) का निर्माण भी किया था।
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रहे आज के सवाल-
1. इस गीत की जो आरंभिक धुन है वो विविध भारती पर प्रसारित होने वाले शास्त्रीय संगीत आधारित एक कार्यक्रम की सिग्नेचर धुन हुआ करती थी, गीत बताएं -३ अंक.
2. कमल बारोट और ______ ने इस गीत को गाया है, कौन है ये दूसरी गायिका- २ अंक.
3. गीत के संगीतकार बताएं-२ अंक.
4. गीतकार भी उस्ताद शायर हैं इस सवानी गीत के, नाम बताएं -२ अंक.
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
पिछली पहेली का परिणाम-
इंदु जी, आप जल्दबाजी बहुत करती हैं, ३ अंक गँवा दिए न ?, शरद जी चतुर निकले, और पाबला जी भी आये और जो पुछा नहीं गया उसका जवाब दे गए...दोनों भाई बहिन एक जैसे....क्या बात है. पदम और अनीता जी की जोड़ी बढ़िया रही. दिलीप जी ने प्रस्तुत गीत पर टिपण्णी कर जो जानकारी दी वो कमाल की लगी
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
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7 श्रोताओं का कहना है :
गरजत बरसत सावन आयो री,
लायो न संग में हमरे बिछुरे बलमवा..
१) गरजत बरसत सावन आयो री....(फ़िल्म-बरसात की रात)
२) कमल बारोट और सुमन कल्याणपुर
३)संगीतकार-रोशन
४) गीतकार- साहिर लुधियानवी
रेडीमेड आंसर
वाह वंदना जी आप तों अपनी ही बिरादरी कि निकली 'पवन वेग' सयूदने वाले घोड़े पर सवार
हा हा हा मजा आ गया
सुजॉय मैं एक ही प्रश्न का उत्तर दे रही हूँ. सुमन कल्यानपुर
मुझे मेरे नम्बर दे दे ठाकुर
हा हा हा
तुम्हारा प्यारा
गब्बर सिंह
roshan ji
३)संगीतकार-रोशन
क्या बात है...
ये तो अपने पहले वाले..मोबाइल की रिंग टोन होती थी...
आहा! अब तो मैं भी एक उत्तर चिपका दूं. :-))
गीतकार साहिर लुधियान्वी
अवध लाल
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