रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


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प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Wednesday, April 21, 2010

खय्याम का संगीत था कुछ अलग अंदाज़ का, जिसमें शायरी और बोलों का भी होता था खास स्थान



ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # 01

मस्ते दोस्तों! जैसा कि कल की कड़ी में हमने आपको यह आभास दिया था कि आज से 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर होगा कुछ अलग हट के, तो अब वह घड़ी आ गई है कि आपको इस बदलाव के बारे में बताया जाए। आज से लेकर अगले ४५ दिनों तक आपके लिए होगा 'ओल्ड इज़ गोल्ड रिवाइवल'। इसके तहत हम कुल ४५ गीत आपको सुनवाएँगे। लेकिन जो ख़ास बात है वह यह कि हम इन गीतों के ऒरिजिनल वर्ज़न नहीं सुनवाएँगे, बल्कि वो वर्ज़न जिन्हे 'हिंद युग्म' के आप ही के कुछ जाने पहचाने दोस्तों ने गाए हैं। यानी कि गानें वही पर अंदाज़ नए। दूसरे शब्दो में उन गीतों का रिवाइवल। हम आपसे बस यही निवेदन करना चाहेंगे कि आप इन गीतों का इनके ऒरिजिनल वर्ज़न के साथ तुलना ना करें। यह बस एक छोटी सी कोशिश है कि उस गुज़रे ज़माने के महान कलाकारों की कला को श्रद्धांजली अर्पित करने की। इन गीतों के साथ साथ आलेख में जो अतिरिक्त जानकारी हम आपको देंगे, उनमें से हो सकता है कि कुछ बातें हमने पहले भी किसी ना किसी गीत के साथ बताए होंगे, और कुछ जानकारी नयी भी हो सकते हैं। यानी एक तरफ़ गीतों का रिवाइवल, और दूसरी तरफ़ जानकारियों का रीकैप। हम उम्मीद करते हैं कि आपको इस स्तंभ का यह नया रूप ज़रूर पसंद आएगा। तो आइए शुरु किया जाए 'ओल्ड इज़ गोल्ड रिवाइवल' फ़िल्म 'कभी कभी' के शीर्षक गीत के साथ। साहिर लुधियानवी का लिखा और ख़य्याम साहब का स्वरबद्ध किया यह गीत मुकेश और लता मंगेशकर ने गाया था। १९४९ में शर्मा जी के नाम से ख़य्याम साहब ने पहली बार फ़िल्म 'परदा' में संगीत दिया था। इसी नाम से उन्होने १९५० की फ़िल्म 'बीवी' में भी एक गीत को स्वरबद्ध किया था। उस वक़्त के साम्प्रदायिक तनाव के चलते उन्होने अपना नाम बदलकर शर्माजी रख लिया था। लेकिन १९५३ मेरं ज़िया सरहदी की फ़िल्म 'फ़ूटपाथ' में ख़य्याम के नाम से संगीत देकर वो फ़िल्म संगीत संसार में छा गए। इसके कुछ सालों तक वो फ़िल्मों में संगीत तो देते रहे लेकिन कुछ बात नहीं बनी। १९५८ में फ़िल्म 'फिर सुबह होगी' उनके फ़िल्मी सफ़र में एक बार फिर से सुबह लेकर आई और उसके बाद उन्हे अपार शोहरत हासिल हुई। फ़िल्म 'कभी कभी' के बारे में और ख़ास कर इस प्रस्तुत गीत के बारे में पंकज राज अपनी किताब 'धुनों की यात्रा' में लिखते हैं - "सागर सरहदी के सशक्त यादगार संवादों को लिए उर्दू शायरी की तरह रूमानी और भावुक कथानक और निर्देशन के बीच अमिताभ की इंटेन्स शायराना अदाकारी लेकर आई इस फ़िल्म में शायर नायक के लिए साहिर के उस पुराने नज़्म को शामिल किया गया जिसे महेन्द्र कपूर पहले भी बी. आर. चोपड़ा की फ़िल्मी पार्टियों में गाया करते थे। पर इस बार धुन ख़य्याम की थी और इस लोकप्रिय नज़्म "कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है" को गाने वाले थे मुकेश और लता। शायराना रोमांस की नाज़ुकता को उभारने के लिए ख़य्याम ने फिर अपने पसंदीदा यमन का ही सहारा लिया और "कभी कभी मेरे दिल में..." यमन की कोमल स्वरलहरियों पर बेहद खूबसूरती से चलाया। और क्या चला था यह गीत! सालाना बिनाका की पहली पायदान और मुकेश को मरणोपरान्त सर्वश्रेष्ठ गायक के फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार दिलाने का हकदार यही गीत बना। ख़य्याम को 'कभी कभी' के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का पुरस्कार मिला।

ओल्ड इस गोल्ड एक ऐसी शृंखला जिसने अंतरजाल पर ४०० शानदार एपिसोड पूरे कर एक नया रिकॉर्ड बनाया. हिंदी फिल्मों के ये सदाबहार ओल्ड गोल्ड नगमें जब भी रेडियो/ टेलीविज़न या फिर ओल्ड इस गोल्ड जैसे मंचों से आपके कानों तक पहुँचते हैं तो इनका जादू आपके दिलो जेहन पर चढ कर बोलने लगता है. आपका भी मन कर उठता है न कुछ गुनगुनाने को ?, कुछ लोग बाथरूम तक सीमित रह जाते हैं तो कुछ माईक उठा कर गाने की हिम्मत जुटा लेते हैं, गुजरे दिनों के उन महान फनकारों की कलात्मक ऊर्जा को स्वरांजली दे रहे हैं, आज के युग के कुछ अमेच्युर तो कुछ सधे हुए कलाकार. तो सुनिए आज का कवर संस्करण

गीत - कभी कभी
कवर गायन - रश्मि नायर




ये कवर संस्करण आपको कैसा लगा ? अपनी राय टिप्पणियों के माध्यम से हम तक और इस युवा कलाकार तक अवश्य पहुंचाएं


रश्मि नायर
इन्टरनेट पर बेहद सक्रिय और चर्चित रश्मि मूलत केरल से ताल्लुक रखती हैं पर मुंबई में जन्मी, चेन्नई में पढ़ी, पुणे से कॉलेज करने वाली रश्मि इन दिनों अमेरिका में निवास कर रही हैं और हर तरह के संगीत में रूचि रखती हैं, पर पुराने फ़िल्मी गीतों से विशेष लगाव है. संगीत के अलावा इन्हें छायाकारी, घूमने फिरने और फिल्मों का भी शौक है


विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड के ४०० शानदार एपिसोड आप सब के सहयोग और निरंतर मिलती प्रेरणा से संभव हुए. इस लंबे सफर में कुछ साथी व्यस्तता के चलते कभी साथ नहीं चल पाए तो कुछ हमसे जुड़े बहुत आगे चलकर. इन दिनों हम इन्हीं बीते ४०० एपिसोडों के कुछ चर्चित अंश आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं इस रिवाइवल सीरीस में, ताकि आप सब जो किन्हीं कारणों वश इस आयोजन के कुछ अंश मिस कर गए वो इस मिनी केप्सूल में उनका आनंद उठा सकें. नयी कड़ियों के साथ हम जल्द ही वापस लौटेंगें

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6 श्रोताओं का कहना है :

शरद तैलंग का कहना है कि -

सुजॊय जी
एक नए कार्यक्रम के लिए बहुत बहुत बधाई । इस कार्यक्रम के माध्यम से हमारे जैसे बहुत से शौकिया गायकों को एक अन्तर्राष्ट्रीय मंच मिलेगा इस बात की प्रसन्नता है । कार्यक्रम की शुरुआत भी एक खूबसूरत गीत और मधुर आवाज़ के साथ हुई अत: फ़िर से बधाई ।

डॉ .अनुराग का कहना है कि -

यकीनं ख्याम साहब मेरे पसंदीदा फनकार है ..उन्होंने कई बेमिसाल अमर गीत दिए है

Anonymous का कहना है कि -

bahut hi sundar shuruwaat .. Rashmi ki aawaaz me maine bahut gaane sune hain ... ye bhi bahut accha lagaa !

- Kuhoo Gupta

आशा जोगळेकर का कहना है कि -

सुंदर गीत और मधुर प्रस्तुती । इस नये उपक्रम के लिये बहुत बधाई ।

AVADH का कहना है कि -

सुजॉय जी/ सजीव जी,
सच कहूँ तो पहले एक दम से मुझे थोड़ी निराशा हुई थी यह सोच कर कि पता नहीं कैसा लगेगा उन सुरीले गीतों को नई आवाजों में सुन कर.नए लोग क्या उन पुरानी मधुर और मंजी हुई आवाजों का अनुकरण भली भांति कर पाएंगे. एक पूर्वाग्रह भी मेरे मन में था क्योंकि आजकल जो 'रीमिक्स कल्चर' के नाम पर अच्छे गीतों का जो सत्यानाश हो रहा है उससे मैं बेहद असंतुष्ट एवं क्षुब्ध होता हूँ.
परन्तु मेरी सब चिंताएं और शंकाएं बेकार थीं.वास्तव में आवाज़ की परिष्कृत अभिरुचि के परिप्रेक्ष्य में यह सोचना भी ग़लत था.
रश्मि की आवाज़ बहुत मीठी है और गीत के साथ पूरा न्याय हुआ है. मुझे तो बहुत पसंद आया. रश्मि को ढेर सारी शुभकामनाएं.
अवध लाल

दिलीप कवठेकर का कहना है कि -

सुजॊय जी और सजीव जी,

कुछ ना कुछ अलग करने की आपकी अदम्य और जीवट कोशिशों की वजह से ही हमने पिछले दिनों में ओल्ड इज़ गोल्ड शृंखला का अमृत चखा.

अब ये प्रयास भी सराहणीय है, और आशा है कि इसे भी हम सभी सुनकारों का प्यार और आदर मिलेगा.

यह बात जो आपने खासकर लिखी है , बडी स्वागत योग्य है कि इन गीतों में कोई मूल गायक या गायकी को ना ढूंढे, क्योंकि ये रिकोर्डिंग्स शौकिया तौर पर की गयी है, सीमित संसाधनों के साथ.

इसलिये आशा है कि इसे भी वही प्यार,प्रोत्साहन और दुलार मिलेगा , जो हम अपने ही परिवार के सदस्यों को देते हैं. क्या मैं सही कह रहा हूं?

रश्मिजी की आवाज़ में एक कशिश मिली , जो मधुर होने के साथ श्रवणीय भी है.

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