रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


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प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Saturday, October 2, 2010

ई मेल के बहाने यादों के खजाने (१०) - ऐसीच हूँ मैं कहकर इंदु जी जीत लेती हैं सबका दिल



'ओल्ड इज़ गोल्ड शनिवार विशेष' में आप सभी का बहुत बहुत स्वागत है। "आज है २ अक्तुबर का दिन, आज का दिन है बड़ा महान, आज के दिन दो फूल खिले हैं, जिनसे महका हिंदुस्तान, नाम एक का बापू गांधी और एक लाल बहादुर है, एक का नारा अमन एक का जय जवान जय किसान"। समूचे 'आवाज़' परिवार की तरफ़ से हम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और महान नेता लाल बहादुर शास्त्री को उनकी जयंती पर स्नेह नमन अर्पित करते हुए आज का यह अंक शुरु कर रहे हैं। 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने', दोस्तों, यह 'आवाज़' का एक ऐसा साप्ताहिक स्तंभ है जिसमें हम आप ही की बातें करते हैं जो आप ने हमें ईमेल के माध्यम से लिख भेजा है। यह सिलसिला पिछले १० हफ़्तों से जारी है और हर हफ़्ते हम आप ही में से किसी दोस्त के ईमेल को शामिल कर आपके भेजे हुए यादों को पूरी दुनिया के साथ बाँट रहे हैं। आज के अंक के लिए हम चुन लाये हैं हमारी प्यारी इंदु जी का ईमेल और उनकी पसंद का एक निहायती ख़ूबसूरत गीत। आइए अब आगे का हाल इंदु जी से ही जानें।

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कुछ बड़े प्यारे गाने हैं, जिनको भी सुनाया, आश्चर्य! सबने कहा 'हमने इन्हें पहले नही सुने'। उस खजाने मे से अभी सिर्फ एक गीत आपको भेज रही हूँ। आप सुनिए और ओनेस्टली बताइए कि क्या आपने या सुजॉय ने इस गाने को पहले कभी सुना है? यह गाना है फ़िल्म 'दूज का चाँद' का, "चाँद तकता है इधर", मोहम्मद रफ़ी और सुमन कल्याणपुर ने गाया है। अगर मुझसे पूछोगे कि ये गाना मुझे क्यों पसंद है? क्यों बताऊँ जी? ये कोई बात हुई? वृन्दावन गई थी, सोचा बरसाना भी हो आये 'वियोगिनी राधाजी' के दर्शन ही हो जाये? यूँ अपनी कल्पना और बनाई छवि के विपरीत पाया वहाँ सब। सिवाय प्रत्येक पेड़ पर लिखे 'राधे रानी' के नाम के। वर्तमान ब्रज से आँखें मूँद मैं 'उस' ब्रज में घूमती रही। कालिंदी के तट पर जा कर हम बैठ गए। तभी बड़े बेटे ने कहा -'मम्मी ! देखो कितना प्यारा गाना बज रहा है!' वो यही गाना था। "चाँद तकता है इधर आओ कही छुप जाए, कहीं लागे ना नजर आओ कही छुप जाएँ"। गाना मधुर था। प्रेम रस में डूबा हुआ। कहीं ऐसा कुछ नही था कि कोई गम्भीर हो जाये। मैं आँखें बंद कर कालिंदी के तट पर ये गीत सुनती रही। सुन रही थी, फिल्म या नायक नायिका के नाम से तक परिचित नही थी। इसलिए आँखों के सामने कोई नही आया। आया तो सिर्फ कृष्ण....... और मैं??? जैसे राधा थी उस पल। ऐसीच हूं मैं। जाने किस दुनिया की अजीब 'प्राणी'............ इस साधारण से प्रेम गीत ने मुझे भाव विभोर कर दिया और आज भी कर देता है। और मेरे आँसू तब भी नही रुके....आज भी नही रुकते। मैं नही रहती तब आपकी इस दुनिया का हिस्सा। इसीलिए मुझे पसंद है ये गाना, मुझे एकाकार कर देता है 'उससे', फिर मुझे किसी भजन या भक्ति गीत की आवश्यकता नही रहती बाबा! ऐसिच हूं मैं।

इंदु।

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वाह इंदु जी, आपके अंदाज़-ए-बयाँ के तो कहने ही क्या! एक बेहद सुमधुर गीत की तरफ़ आपने हमारा ध्यान आकृष्ट करवाया है। सिर्फ़ हम ही नहीं, इस गीत को बहुत लोगों ने एक लम्बे अरसे से नहीं सुना होगा। यह हमारी बदक़िस्मती ही है कि ऐसे और इस तरह के न जाने कितने सुरीले गीतों पर वक़्त का धूल चढ़ चुकी है। आइए हम सब मिल कर इस तरह के गीतों पर जमी मैल को साफ़ करें और उन्हें 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का हिस्सा बनायें। साहिर लुधियानवी के बोल, रोशन की तर्ज़, और आवाज़ को बता ही चुके हैं, रफ़ी और सुमन की। सुनते हैं फ़िल्म 'दूज का चाँद' का यह बेहद सुरीला नग़मा।

गीत - चाँद तकता है इधर (दूज का चाँद)


दोस्तों, इंदु जी की तरह अगर आप भी ऐसे ही किसी गीत की तरफ़ हमारा ध्यान आकृष्ट करवाना चाहते हैं तो हमें ईमेल करें oig@hindyugm.com के पते पर। इसके अलावा आप अपने जीवन की कोई यादगार घटना, कोई संस्मरण, या कोई ऐसा गीत जिसके साथ आपकी यादें जुड़ी हुई हैं, हमें लिख भेजें इस स्तंभ के लिए। ख़ास कर हमारे उन दोस्तों से, जिन्होंने अभी तक हमें ईमेल नहीं किया है, उनसे तो हमारा ख़ास निवेदन है कि इस स्तंभ में भाग लेकर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' परिवार का हिस्सा बन जायें। साथ ही 'ओल्ड इज़ गोल्ड' को और भी बेहतर बनाने के लिए अगर आपके पास कोई सुझाव हो, तो उसे भी आप oig@hindyugm.com पर लिख सकते हैं। तो इसी उम्मीद के साथ कि आप अपना साथ युंही बनाये रखेंगे, आज के लिए हम विदा लेते हैं, 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की नियमीत कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर होंगे कल शाम भारतीय समयानुसार ६:३० बजे। नमस्कार!

प्रस्तुति: सुजॊय

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20 श्रोताओं का कहना है :

Smart Indian - स्मार्ट इंडियन का कहना है कि -

बहुत सुन्दर गीत। वाकई पहले कभी नहीं सुना था।

बी एस पाबला का कहना है कि -

शैतान की नानी इंदु जी से यहीं, इसी आवाज़ पर, भिड़ंत हुई थी! पहेलियों का सही पहला ज़वाब देने के लिए बच्चों जैसी आतुरता और झड़प के अनजान संवाद आज भाई-बहन के अटूट, भावुकता भरे रिश्ते में बदल चुके है।

ऐसीच है ये जाने किस दुनिया की अजीब 'प्राणी'! अच्छे खासे इंसान को ऐसा भाव विभोर कर देती है कि आँसू नही रुकते।

उनकी पसंद के गीत के बारे में यही कहूँगा कि
ऊँचे लोग-ऊँची पसंद

महफूज़ अली का कहना है कि -

ममा.... की बात ही अलग है....

संगीता पुरी का कहना है कि -

ऐसीच हैं ही इंदु जी !!

डॉ महेश सिन्हा का कहना है कि -

गीत - चाँद तकता है इधर (दूज का चाँद)
error बता रहा है :(

इंदु पुरी गोस्वामी का कहना है कि -

अल्ले वाह ! इत्ते जने आये हैं यहाँ!
सुजॉय सजीव जी! थेंक्स बोलू क्या? यूँ सोरी और थेंक्स मैं घर पर और अपने बच्चों को भी बेझिझक बोलती हूँ तो.....थेंक्स.मेरी पसंद को अपने कार्यक्रम में शामिल करने के लिए.
मेरे पास गीतों का खजाना है. बचपन से गानों की दीवानी हूँ.
ऐसिच हूँ मैं तो सच्ची

manu का कहना है कि -

kyaa kahein..?

AVADH का कहना है कि -

हम सब की प्यारी इंदु बहिन अपने स्वभाव के बारे में तो विस्तार से बताने का कोई मौका छोडती नहीं यह तो हम सब अब जान ही चुके हैं.उनके सरल, निश्छल और अत्यंत संवेदनशील व्यक्तित्व से सभी परिचित प्रभावित हैं. पुराने और अच्छे संगीत (विशेषकर गंभीर प्रकृति वाले गीतों) के प्रति इनकी रुझान से इनकी सुरुचि का पता चलता है.
'दूज का चाँद' स्वयं अभिनेता भारत भूषण की प्रस्तुति थी. उस समय (वर्ष १९६४ में) हम कुछ मित्रगण फ़िल्में फर्स्ट डे- फर्स्ट शो देखने में विश्वास रखते थे. फिल्म तो बॉक्स ऑफिस पर अधिक सफल नहीं हुई थी पर रोशन साहेब का संगीत हमेशा की तरह उत्तम होना ही था.
सचमुच इंदु बहिन ने बहुत मधुर गीत का चयन किया जो मैंने काफी अरसे से नहीं सुना था.
अधिकतर लोगों ने इस गीत को शायद याद ना रखा हो.
लेकिन मैं शर्त लगा सकता हूँ कि कोई ऐसा व्यक्ति नहीं होगा जिसने मन्ना दा का इसी फिल्म का वोह अमर गीत ना सुना हो और उसकी प्रशंसा ना की हो: फुल गेंदवा न मारो लगत करेजवा में चोट.
इंदु बहिन को एक बार फिर बहुत बहुत धन्यवाद इस लगभग विस्मृत गीत को याद दिलाने के लिए.
शुभेच्छु
अवध लाल

AVADH का कहना है कि -

हम सब की प्यारी इंदु बहिन अपने स्वभाव के बारे में तो विस्तार से बताने का कोई मौका छोडती नहीं यह तो हम सब अब जान ही चुके हैं.उनके सरल, निश्छल और अत्यंत संवेदनशील व्यक्तित्व से सभी परिचित प्रभावित हैं. पुराने और अच्छे संगीत (विशेषकर गंभीर प्रकृति वाले गीतों) के प्रति इनकी रुझान से इनकी सुरुचि का पता चलता है.
'दूज का चाँद' स्वयं अभिनेता भारत भूषण की प्रस्तुति थी. उस समय (वर्ष १९६४ में) हम कुछ मित्रगण फ़िल्में फर्स्ट डे- फर्स्ट शो देखने में विश्वास रखते थे. फिल्म तो बॉक्स ऑफिस पर अधिक सफल नहीं हुई थी पर रोशन साहेब का संगीत हमेशा की तरह उत्तम होना ही था.
सचमुच इंदु बहिन ने बहुत मधुर गीत का चयन किया जो मैंने काफी अरसे से नहीं सुना था.
अधिकतर लोगों ने इस गीत को शायद याद ना रखा हो.मगर रफ़ी साहेब का एक गीत इस फिल्म का बहुत चला था - महफ़िल से उठ जानेवाले तुम लोगों पर क्या इलज़ाम, मेरे साथी, मेरे साथी खाली जाम.
लेकिन मैं शर्त लगा सकता हूँ कि कोई ऐसा व्यक्ति नहीं होगा जिसने मन्ना दा का इसी फिल्म का वोह अमर गीत ना सुना हो और उसकी प्रशंसा ना की हो: फुल गेंदवा न मारो लगत करेजवा में चोट.
इंदु बहिन को एक बार फिर बहुत बहुत धन्यवाद इस लगभग विस्मृत गीत को याद दिलाने के लिए.
शुभेच्छु
अवध लाल

राज भाटिय़ा का कहना है कि -

बहुत सुंदर गीत चुना आप ने हम सब को सुनाने के लिये , आप की बातो से आप बडी भोली भाली लगती है, ओर आप के सुंदर ओर अच्छे लेख पढ कर, ओर आप की बाते सुन कर मै तो यही कहुंगा... दीवानी ऐसिच ही तो होती है सच्ची मुच्ची, आप को प्रणाम

इंदु पुरी गोस्वामी का कहना है कि -

सबको प्यार.
सजीव-सुजोय्जी !गाना किसी ने नही सुना होगा क्योंकि 'एरर' के कारन गाना'प्ले'ही नही हो रहा.कुछ करो न बाबु!
राज सर!अरे मेरी बाते सुन कर कोई भी धोखा खा जाता है सच्ची. लिखने,बोलने की कला जो दी है भगवान ने.बाकि....न भोली हूँ न अच्छी.अच्छी होती तो...क्यों आपकी इस दुनिया में होती अब तक?मुझ जैसो से तो 'वो' भी इतना घबराता है कि लिस्ट में से नाम नीचे सरकाता जाता है.... मैंने भी कह दिया 'उससे'-'कुछ ऐसा तो करवा मुझसे कि जब जाऊं तो लोग इतना सा कहे'वो सचमुच एक अच्छी औरत थी'
इस बार नही कहूँगी कि.. ऐसिच हूँ मैं.
आप लोगों की अपेक्षाओं पर खरी उतरूं बस.

सजीव सारथी का कहना है कि -

इंदु जी गाना चल रहा है और मैं इसी पृष्ठ पर कई बार सुन चुका हूँ, कई बार सर्वर की समस्या होती है रेफेश कर लिया कीजिये ऐसे में

रश्मि प्रभा... का कहना है कि -

indu ji ek alag vyaktitva hain .... bas waiseich

वन्दना अवस्थी दुबे का कहना है कि -

वाह!! बहुत सुन्दर गीत है इन्दु जी. कितना धन्यवाद दूं? मैने पहली बार सुना है इस गीत को, लेकिन लगा जैसे हमेशा से सुनती आ रही हूं. ये उसी तरह अपना सा लगा जैसे जब मैने " बस एक चुप सी लगी है....( हेमन्त कुमार/लता मंगेशकर) गीत पहली बार सुना, तो लगा ये तो हमेशा से मेरे मन में गूंज रहा था...

दिलीप कवठेकर का कहना है कि -

Ye get bahut he dino baad sunaa. Suman Kalyanpur ke awaaz kee komalataa aur bhaavpravenataa hai isame.

निर्झर'नीर का कहना है कि -

sach kaha aapne pahle kabhi nahi sunaa..

aapse kabhi mulakaat huii to aapka collection to hum jaroor lenge

दिगम्बर नासवा का कहना है कि -

'दूज का चाँद' ... समझ गये ... इस लाजवाब गीत का राज ... बहुत ही मस्त है ये गीत ... और रफ़ी जी के साथ सुमन कल्याण पूरी जी की आवाज़ है ... और इंदु जी का तो क्या कहना .... सरल हृदय, मस्त ... जिन्ददिल ... क्या कहने हैं ... इंदु जी का जवाब नही ...

Himanshu Mohan का कहना है कि -

सुमधुर, अवाक् - आभार!

निर्मला कपिला का कहना है कि -

सही मे इन्दू जी के संगीत प्रेम की दाद देनी होगी। बधाई।

ρяєєтii का कहना है कि -

waaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaah....sacchi awesome song....!

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