रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


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प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Thursday, January 7, 2010

मेरी जीवन नैय्या बीच भंवर में गुड़ गुड़ गोते खाए....कैसे रहेंगे मुस्कुराए बिना किशोर दा और पंचम दा के सदाबहार गीत को सुनकर



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 307/2010/07

'पंचम के दस रंग' शृंखला में आज है हमारी आपको गुदगुदाने की बारी। राहुल देव बर्मन ने बहुत सारी फ़िल्मों में हास्य रस के गानें बनाए हैं। इससे पहले कि हम आज के गीत पर आएँ, हम उन तमाम हिट व सुपरहिट गीतों का ज़िक्र करना चाहेंगे जिनमें पंचम ने हास्य रस के रंग भरे हैं। नीचे हम एक पूरी की पूरी फ़ेहरिस्त दे रहे हैं, ज़रा याद कीजिए इन गीतों को, इनमें से कुछ गीत आगे चलकर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में भी शामिल होंगे ऐसी हम उम्मीद करते हैं।

१. कालीराम का फट गया ढोल (बरसात की एक रात)
२. गोलमाल है भई सब गोलमाल है (गोलमाल)
३. एक दिन सपने में देखा सपना (गोलमाल)
४. मास्टर जी की आ गई चिट्ठी (किताब)
५. कायदा कायदा आख़िर फ़ायदा (ख़ूबसूरत)
६. सुन सुन सुन दीदी तेरे लिए (ख़ूबसूरत)
७. नरम नरम गरम गरम (नरम गरम)
८. एक बात सुनी है चाचाजी (नरम गरम)
९. ये लड़की ज़रा सी दीवानी लगती है (लव स्टोरी)
१०. दुक्की पे दुक्की हो (सत्ते पे सत्ता)
११. जयपुर से निकली गाड़ी (गुरुदेव)

और इन सबसे उपर, फ़िल्म 'पड़ोसन' के दो गानें - "एक चतुर नार" तथा "मेरे भोले बलम"। और भी कई गीत हो सकते हैं जो इस वक़्त मेरे ज़हन में नहीं आ रहे हैं, लेकिन फ़िल्म 'पड़ोसन' के इन दो गीतों के सामने कोई और गीत टिक नहीं सकता ऐसा मेरा विचार है। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कालजयी "एक चतुर नार" आप सुन चुके हैं और गीत के पीछे की कहानी भी हमने आपको उस दिन विस्तार से बताई थी। आज आइए सुनते हैं दूसरा गीत "मेरे भोले बलम", किशोर दा की सिर्फ़ आवाज़ ही नहीं बल्कि उनका अंदाज़-ए-बयाँ ही इस गीत की जान है, इस गीत की शान है।

राहुल देव बर्मन ने सब से ज़्यादा जिन प्रमुख गीतकारों के साथ काम किया है, वे हैं मजरूह सुल्तानपुरी, आनंद बक्शी, गुलशन बवारा और गुलज़ार। लेकिन फ़िल्म 'पड़ोसन' में ये कालजयी गीत लिखे थे राजेन्द्र कृष्ण जी ने। वैसे इस तरह के हास्य रस वाले गीतों के लिए राजेन्द्र कृष्ण साहब बहुत पहले से ही जाने जाते रहे हैं। ख़ास कर ५० के दशक में सी. रामचन्द्र के साथ कई फ़िल्मों में उन्होने इस तरह के गुदगुदाने वाले गानें लिख चुके थे। आइए आज "मेरे भोले बलम" गीत का थोड़ा सा विश्लेषण किया जाए। गीत शुरु होता है किशोर दा के सचिन देव बर्मन वाले अंदाज़ से, जिस तरह से "धीरे से जाना बगियन में" में सचिन दा का अंदाज़ था। उसके तुरंत बाद बंगाल के कीर्तन के रीदम में प्रील्युड म्युज़िक शुरु होता है और पूरे गीत में यही वैष्णव कीर्तन का अंदाज़ छाया रहता है। और साज़ भी वो ही इस्तेमाल हुए हैं जैसे कि कीर्तन में होता है, खोल, एकतारा वगेरह। मुखड़े की पंक्ति है "मेरे भोले बलम, मेरे प्यारे रे बलम, मेरा जीवन तेरे बिना, मेरे पिया, है वो दीया के जिसमें तेल ना हो..."। अजीब-ओ-ग़रीब उपमाओं का इस्तेमाल होता है जो आपको हँसाए बिना नहीं रहते। ये पंक्तियाँ दरअसल किशोर गा रहे हैं सुनिल दत्त साहब को यह समझाते हुए कि नायिका सायरा बानु इस तरह से उनके लिए गाएँगी। तो अब इसके बाद सुनिल दत्त उर्फ़ भोला किशोर दा से पूछ ही लेते हैं कि "गुरु, जब वो ऐसा कहेगी न, तब मैं जवाब क्या दूँगा?" इस पर किशोर दा जिस तरह से हँसते हैं, और जिस अंदाज़ में इस सवाल का जवाब देते हैं, बस किशोर दा ही कर सकते हैं। वो कहते हैं "कहना अनुराधा...", यह उस अंदाज़ में कहते हैं जिस अंदाज़ में १९३७ की फ़िल्म 'विद्यापति' में के. सी. डे ने "गोकुल से गए गिरिधारी" गीत में कहा था। सुनिल दत्त साहब ग़लती सुधार देते हैं कि उनकी नायिका अनुराधा नहीं बल्कि बिंदु है। तब गीत "मेरे भोले बलम" से बदल कर हो जाता है "मेरी प्यारी बिंदु" और अंत तक यही रहता है। इस गीत में गायन के अलावा किशोर दा ने अभिनय करते वक़्त जिन दो कलाकारों के नकल उतारे वो हैं संगीतकार खेमचंद प्रकाश और सचिन देव बर्मन। सचिन दा के चलने का अंदाज़ और खेमचंद जी के आँखों में सूरमा लगाने की अदा को बख़ूबी उतारा जिनीयस किशोर दा ने। गीत के आख़िर में किशोर दा बहुत ही ऊँचे सुर में बिल्कुल उसी तरह से आवाज़ लगाते हैं जिस तरह से किसी वैष्णव कीर्तन के आख़िरी हिस्से में होता है। दोस्तों, अब आप यह गीत सुनिए और गीत को सुनते हुए इन पहलुओं पर ग़ौर कीजिएगा जो अभी हमने आप को बताए, तो गाना सुनने का मज़ा और भी बढ़ जाएगा। चलते चलते राजेन्द्र कृष्ण, राहुल देव बर्मन, और किशोर कुमार को सलाम इस मास्टरपीस के लिए!



चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम रोज आपको देंगें ४ पंक्तियाँ और हर पंक्ति में कोई एक शब्द होगा जो होगा आपका सूत्र. यानी कुल चार शब्द आपको मिलेंगें जो अगले गीत के किसी एक अंतरे में इस्तेमाल हुए होंगें, जो शब्द बोल्ड दिख रहे हैं वो आपके सूत्र हैं बाकी शब्द बची हुई पंक्तियों में से चुनकर आपने पहेली सुलझानी है, और बूझना है वो अगला गीत. तो लीजिए ये रही आज की पंक्तियाँ-

वो मुलाकातें याद है क्या,
जब हवाएं और भी रेशमी हो जाया करती थी, तुम्हारा बदन चूमकर,
और फूल खिलते थे तुम्हारी मुस्कराहट देखकर,
मौसम रंग बदलता था पाकर तुम्हारी आँखों के इशारे...

पिछली पहेली का परिणाम-
शरद जी २ और अंक जुड़े आपके खाते में, अवध जी देखिये आज अच्छा मौका है, आज शायद शरद जी जवाब न दें क्योंकि उन्हें मात्र एक ही अंक मिलेगा, पर आप सही जवाब देकर २ अंक कमा सकते हैं आज. पारो जी, यूनी कवि प्रतियोगिता मासिक है, और यहाँ भी यदि कोई विजेता बन जाता है तो कम से कम अगले दो और विजेताओं के आने बाद या फिर कोई माईल स्टोन एपिसोड के बाद ही हम उन्हें दोबारा खेलने का मौका देते हैं, धुरंधरों से टकरायेंगे तभी तो आपको अपनी ताकत का अंदाजा होगा :)

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
पहेली रचना -सजीव सारथी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

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5 श्रोताओं का कहना है :

शरद तैलंग का कहना है कि -

आज की पहेली बहुत सरल है किन्तु जैसा कि आपने कहा मुझे सिर्फ़ एक अंक ही मिलेगा इसलिए आज जवाब नहीं दे रहा हूँ ।

निर्मला कपिला का कहना है कि -

धमे तो बस गीत सुन कर चले जाना है धन्यवाद्

anupam goel का कहना है कि -

पंचम दा और मुकेश जी का यादगार गीत, फिल्म मुक्ति से:
तुम्हारे रेशमी जुल्फ़ों में दिल के फूल खिलते थे
इन्हीं फूलों के मौसम में हम तुम भी मिलते थे
पुरानी वो मुलाकातें, हमें सोने नही देतीं
तुम्हारे प्यार की बातें, हमें सोने नहीं देतीं
सुहानी चाँदनी रातें ...

अनुपम गोयल

AVADH का कहना है कि -

बधाई हो, अनुपम जी,.
क्या सही पहचाना है.
अवध लाल

दिलीप कवठेकर का कहना है कि -

वाकई, निस्संदेह ये दोनों गीत मास्टरपीस हैं. एक चतुर नार और उसके बाद बिंदु.

किशोर दा के मामा भी कुछ ऐसे ही दिखते थे जैसा कि चरित्र उसमें निभाया है किशोर दा नें, इसलिये उनकी नकल की गयी थी.

एक और गीत जोडना चाहूंगा-

कहां आ गये , ये हम दोनों के नर्क में फ़ंसे, बेमौत मर गये, इधर भी भूत, ऊधर भी भूत , के जायें हम कहां से.....

फ़िल्म भूत बंगला का दोगाना खुद RD नें भी गाया था और Acting भी की थी.

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