ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # ३९
दिलीप कुमार के पार्श्वगायन की अगर बात करें तो सब से पहले उनके लिए गाया था अरुण कुमार ने उनकी पहली फ़िल्म 'ज्वार भाटा' में। उसके बाद कुछ वर्षों के लिए तलत महमूद बने थे दिलीप साहब की आवाज़। बाद में रफ़ी साहब की आवाज़ ही ज़्यादा सुनाई दी थी दिलीप साहब के होठों से। लेकिन ५० के दशक में कुछ ऐसे गीत बनें हैं जिनमें दिलीप कुमार का प्लेबैक दिया था मुकेश ने, और ख़ास बात यह कि मुकेश की आवाज़ भी उन पर बहुत जचीं और ये तमाम गानें ख़ूब चले भी, फ़िल्म 'यहूदी' का 'ये मेरा दीवानापन है" कह लीजिए या फिर फ़िल्म 'अंदाज़' का "झूम झूम के नाचो आज, गायो ख़ुशी के गीत", या फिर 'मधुमती' का "सुहाना सफ़र और ये मौसम हसीं" और "दिल तड़प तड़प के कह रहा है आ भी जा"। लेकिन कहा जाता है कि दिलीप साहब नहीं चाहते थे कि मुकेश उनके लिए गाए क्योंकि उनका ख़याल था कि मुकेश की आवाज़ उन पर फ़िट नहीं बैठती। यह बात है १९४८ की जब 'अंदाज़' बन रही थी। फ़िल्म के संगीतकार नौशाद साहब ने उन्हे समझाया कि ऐसे गीतों के लिए मुकेश की आवाज़ ही सब से ज़्यादा सही है, दिलीप साहब मान गए और गीत के सफल होने के बाद मुकेश जी को भी मान गए। आज हम दिलीप साहब और मुकेश जी की जोड़ी को सलाम करते हुए जिस गीत को आप तक पहुँचा रहे हैं वह है फ़िल्म 'मधुमती' का "सुहाना सफ़र और ये मौसम हसीं"। शैलेन्द्र के बोल और सलिल चौधरी का संगीत। यह अपने ज़माने का एक ब्लौकबस्टर फ़िल्म है। कहानी, अभिनय, संगीत, सब चीज़ों में एक नयापन लेकर आये थे बिमल राय। इस फ़िल्म का हर एक गीत हिट हुआ, और यह बताना मुश्किल है कि कौन सा गीत ज़्यादा बेहतर है।
ओल्ड इस गोल्ड एक ऐसी शृंखला जिसने अंतरजाल पर ४०० शानदार एपिसोड पूरे कर एक नया रिकॉर्ड बनाया. हिंदी फिल्मों के ये सदाबहार ओल्ड गोल्ड नगमें जब भी रेडियो/ टेलीविज़न या फिर ओल्ड इस गोल्ड जैसे मंचों से आपके कानों तक पहुँचते हैं तो इनका जादू आपके दिलो जेहन पर चढ कर बोलने लगता है. आपका भी मन कर उठता है न कुछ गुनगुनाने को ?, कुछ लोग बाथरूम तक सीमित रह जाते हैं तो कुछ माईक उठा कर गाने की हिम्मत जुटा लेते हैं, गुजरे दिनों के उन महान फनकारों की कलात्मक ऊर्जा को स्वरांजली दे रहे हैं, आज के युग के कुछ अमेच्युर तो कुछ सधे हुए कलाकार. तो सुनिए आज का कवर संस्करण
गीत -सुहाना सफर...
कवर गायन -दिलीप कवठेकर
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दिलीप कवठेकर

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खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी

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2 श्रोताओं का कहना है :
प्रिय दिलीप जी
मेरी पसन्द की फ़िल्म, मेरी पसन्द के गायक, मेरी पसन्द के संगीतकार, मेरी पसन्द के कलाकार सभी कुछ है इस गीत में , फिर आप तो मेरी पसन्द के कलाकार हैं ही । दिलीप का गाना दिलीप की आवाज़ में अच्छा लगा ।
दिलीप जी,
मैं बिलकुल अक्षरशः सहमत हूँ शरद महागुरु जी की बात से.
शरद जी स्वयं एक उत्कृष्ट कोटि के गायक हैं. इसलिए यह प्रशंसा सर्वथा सटीक है.
अवध लाल
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