रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


ComScore
प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Monday, August 25, 2008

हिंद युग्म ने मेरे सपनों को रंग और पंख दिये...



आवाज़ पर हमारे इस हफ्ते के सितारे हैं, शायरा शिवानी सिंह और संगीतकार / गायक रुपेश ऋषि. हिंद युग्म के पहला सुर एल्बम में इस जोड़ी ने मशहूर ग़ज़ल "ये जरूरी नही" का योगदान दिया था, नए सत्र में एक बार फ़िर इनकी ताज़ी ग़ज़ल "चले जाना" को श्रोताओं का भरपूर प्यार मिला... शिवानी जी दिल्ली में रह कर सक्रिय लेखन करती है, साथ ही एक NGO, जो कैंसर पीडितों के लिए काम करती है, के लिए अपना समय निकाल कर योगदान देती है, युग्म से इनका रिश्ता बहुत पुराना है, चलिए पहले जानते हैं शिवानी जी से, कि कैसा रहा हिंद युग्म में उनका अब तक का सफर -

शिवानी सिंह - नमस्कार, मेरा प्रसिद्द नाम शिखा शौकीन है, परन्तु काव्य जगत में, मैं शिवानी सिंह के नाम से जानी जाती हूँ ! अब तक मैं करीब ३७० कविताएं लिख चुकी हूँ ! मेरा ९० कविताओं का एक संग्रह `यादों के बगीचे से' नाम से छप चुका है और दूसरा `कुछ सपनो की खातिर' प्रकार्शनार्थ तैयार है ! मैंने बी.ए, एस.सी मिरांडा हाउस , दिल्ली विश्वविद्यालय से की है और बी.एड, हिन्दू कालेज सोनीपत से !


मेरी ग़ज़लों के संग्रह में से "चले जाना" मेरी पसंदीदा ग़ज़ल है ! ये ग़ज़ल मैंने १९८२ में लिखी थी, और इतने सालों बाद जब इसकी रिकार्डिंग हो रही थी तो अचानक हमारे गायक और संगीतकार रुपेश जी ने मुझसे अंतिम दो नयी लाइन लिखने को कहा ! मैं असमंजस में पड़ गयी ! मुझे लगा जैसे मैं संगीत की परीक्षा दे रही हूँ ! करीब ५ मिनट में ही मैंने इस ग़ज़ल की अंतिम लाइने लिख कर दे दी ! अपनी इस संगीत की परीक्षा का परीक्षाफल जब ग़ज़ल के रूप में मिला तो मुझे बहुत ख़ुशी हुई की शायद मैंने ये परीक्षा पास कर ली है !

मेरे सपनो को रंग और पंख हिंद युग्म से मिले ! मैं हिंद युग्म की बहुत बहुत शुक्रगुजार हूँ, क्योंकि हिन्दयुग्म के माध्यम से मुझे अपनी बात और जज़्बात दुनिया भर के श्रोताओं तक पहुंचाने का अवसर मिला है ! ये मेरा सौभाग्य है कि मेरी एक ग़ज़ल `ये ज़रूरी नहीं' हिन्दयुग्म ने अपनी पहली एल्बम `पहला सुर' में शामिल कर मुझे कृतार्थ किया है ! हिंद युग्म के अन्य क्षेत्रों में भी मैंने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है जैसे यूनिकवि प्रतियोगिता, ऑनलाइन कवि सम्मलेन तथा कहानियों के पॉडकास्ट में भाग ले कर !

कहते हैं कोई भी काम अकेले संभव नहीं होता ! मेरे शब्दों को अपनी पूरी मेहनत ,लगन ,निष्ठा, अपनी गंभीर, मधुर आवाज़ और कर्णप्रिय संगीत दे कर रुपेश जी ने ग़ज़ल को सुन्दर रूप दिया है ! रुपेश जी अपने काम के प्रति बहुत ही समर्पित हैं ,यही वजह है कि मैं अपनी समस्त गज़लें इन्हीं की आवाज़ और संगीत में स्वरबद्ध कराना पसंद करती हूँ ! मैं उनके उज्व्वल भविष्य के लिए इश्वर से प्रार्थना करती हूँ ! मैं जगजीत सिंह जी की फैन हूँ ,और तलत अज़ीज़ जी की गज़लें सुनना भी बहुत पसंद करती हूँ ! हिंद युग्म में मुझे यहाँ तक पहुंचाने में सजीव जी, निखिल जी, शैलेश जी व रंजना जी का हाथ है। अपने इन मित्रों के सहयोग देने के लिए मैं इनकी तहे दिल से शुक्र गुजार हूँ।

शुक्रिया शिवानी जी, पूछते हैं रुपेश जी से भी, कि अपनी इस ताज़ी ग़ज़ल को मिली आपर सफलता के बाद उन्हें कैसा लग रहा है, रुपेश जी दिल्ली में "सुकंठ" नाम से एक स्टूडियो चलाते हैं, और अपनी एक टीम के साथ व्यावसायिक रूप से संगीत के क्षेत्र में कार्यरत हैं. -

रुपेश ऋषि - हिंद युग्म के बारे में मुझे शिवानी जी से पता चला था, जब इन्होंने बताया कि उनकी ग़ज़ल `पहला सुर' में सम्मिलित होने जा रही है। इसी दौरान मेरी मुलाक़ात सजीव जी व शैलेश जी से हुई। उनकी बातों ने मुझे बहुत प्रभावित किया और जब उन्होंने मुझ से अपने अल्बम कि समस्त कविताओं को मेरी आवाज़ देने का निवेदन किया तो मैंने उनका ये निवेदन सहर्ष स्वीकार कर लिया !

शिवानी जी जब पहली बार मेरे पास अपने गीत व ग़ज़ल लेकर आई तो मैंने देखा कि उनकी लिखी गज़लें बहुत ही सरल और दिल से लिखी हुई थी। इनके लेखन में मुझे विविधता भी देखने को मिली। इनकी हर ग़ज़ल अपने अलग अंदाज़ में है। इनके लेखन की इसी विशेषता से मुझे इनकी ग़ज़ल तैयार करने में अलग ही आनंद आया। मैं शुक्रगुजार हूँ अपने उन सभी श्रोताओं का जिन्होंने मेरी गज़लें “ये ज़रूरी नहीं” और "चले जाना" सुनी और सराही।

अंत में ,मैं यही उम्मीद करता हूँ कि हिंद युग्म परिवार यूँ ही स्नेह बनाये रखे और नए कलाकारों की कला को इस मंच पर ला कर पूरी दुनिया को दिखाए और उनका मनोबल बढाए.

जरूर रुपेश जी, यही हिंद युग्म, आवाज़ का मकसद भी है, हम कोशिशें जारी रखेंगे, आप यूँ ही स्नेह और सहयोग बनाये रखें.
दोस्तो, आइए एक बार फ़िर सुनें और आनंद लें रुपेश जी की गाई और शिवानी जी की लिखी इस ताज़ा ग़ज़ल का -





फेसबुक-श्रोता यहाँ टिप्पणी करें
अन्य पाठक नीचे के लिंक से टिप्पणी करें-

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

6 श्रोताओं का कहना है :

हरि का कहना है कि -

बेहतर तरीके से बेहतर काम कर रहें हैं शैलेश जी आैर पूरी टीम। इस बहाने कुछ नया पढ़ने व सुनने को भी मिल रहा है। शिवानी व रूपेश को बधाई।

दीपाली का कहना है कि -

avaz ki is nayi shuruvat ke liye bahut-bahut badhayi.
shivani ji aur rupesh ji ke bare me padhakar bahut achha laga.
avaz par inke gazalo ki pratikhha rahegi.

तपन शर्मा का कहना है कि -

रूपेश जी.. आपकी आवाज़ में सच में जादू है...
और शिवानि जी.. "ये जरूरी नहीं" के शब्द हों या अब की गज़ल के...दोनों दमदार... आपकी टीम इसी तरह से श्रोताऒं को बढिया गज़लें सुनाते रहिये..

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

रूपेश जी,

आपकी आवाज़ की विविधता से मैं बहुत प्रभावित हूँ। चलिए इतने भारी रेस्पान्स के बाद ही सही, आप आये तो कम से कम आवाज़ पर। उम्मीद है, आप दोनों आगे भी आवाज़ को अपना योगदान देते रहेंगे।

सजीव सारथी का कहना है कि -

ढेरो शुभकामनायें, और क्या कहूँ, सब कुछ तो पहले ही कहा जा चुका है :)

Biswajeet का कहना है कि -

शिवानीजी चले जाना के लिए आपको बहुत बहुत बधाई. चले जाना के लिए मेरे पास शब्द नहीं है, अभी तक दस बार सुन चुका हूँ. और रुपेश जी आप सही में उसमें जान दाल दिए है. मुझे कभी कभी लगता है की हमारा देश कितना प्यारा है जहा पे हर घर में प्रतिभाये है. आपसे हमेशा ऐसे रचनाओं की प्रतिक्ष्या रहेगी.
बिस्वजीत

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

संग्रहालय

25 नई सुरांगिनियाँ