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प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Thursday, August 21, 2008

सूफ़ी संगीत: भाग दो - नुसरत फ़तेह अली ख़ान साहब की दिव्य आवाज़



कहा जाता है कि सूफ़ीवाद ईराक़ के बसरा नगर में क़रीब एक हज़ार साल पहले जन्मा. भारत में इसके पहुंचने की सही सही समयावधि के बारे में आधिकारिक रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन बारहवीं-तेरहवीं शताब्दी में ग़रीबनवाज़ ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती बाक़ायदा सूफ़ीवाद के प्रचार-प्रसार में रत थे.

चिश्तिया समुदाय के संस्थापक ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती अजमेर शरीफ़ में क़याम करते थे. उनकी मज़ार अब भारत में सूफ़ीवाद और सूफ़ी संगीत का सबसे बड़ा आस्ताना बन चुकी है.

महान सूफ़ी गायक मरहूम बाबा नुसरत फ़तेह अली ख़ान ने अपने वालिद के इन्तकाल के बाद हुए परामानवीय अनुभवों को अपने एक साक्षात्कार में याद करते हुए कहा था कि उन्हें बार-बार किसी जगह का ख़्वाब आया करता था. उन दिनों उनके वालिद फ़तेह अली ख़ान साहब का चालीसवां भी नहीं हुआ था. इस बाबत उन्होंने अपने चाचा से बात की. उनके चाचा ने उन्हें बताया कि असल में उन्हें ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह दिखाई पड़ती है. पिता के चालीसवें के तुरन्त बाद वे अजमेर आए और ग़रीबनवाज़ के दर पर मत्था टेका. यह नुसरत के नुसरत बन चुकने से बहुत पहले की बात है. उसके बाद नुसरत ने सूफ़ी संगीत को जो ऊंचाइयां बख़्शीं उन के बारे में कुछ भी कहना सूरज को चिराग दिखाने जैसा होगा.

ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती के अलावा जो तीन बड़े सूफ़ी भारत में हुए उनके नाम थे ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया, अमीर खुसरो और बाबा बुल्ले शाह. ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया भी चिश्तिया सम्प्रदाय से ताल्लुक रखते थे. फ़रीदुद्दीन गंज-ए-शकर से दीक्षा लेने वाले ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया को हजरत अमीर ख़ुसरो का गुरु बताया जाता है. उनकी मज़ार दिल्ली में मौजूद है.

अमीर ख़ुसरो को क़व्वाली का जनक माना जाता है. एक संगीतकार के रूप में ख़्याल और तराना भी उन्हीं की देन बताए जाते हैं. तबले का आविष्कार भी उन्होंने ही किया था. इसके अलावा भारत में ग़ज़ल को लोकप्रिय बनाने का काम भी उन्होंने किया.

"रामदास किते फ़ते मोहम्मद, एहो कदीमी शोर
मिट ग्या दोहां दा झगड़ा, निकल गया कोई होर"


जैसी रचनाएं करने वाले बाबा बुल्ले शाह का असली नाम अब्दुल्ला शाह था. उन्होंने पंजाब के इलाके में उन दिनों सूफ़ीवाद का प्रसार किया जब सिखों और मुस्लिमों के बीच वैमनस्य गहरा रहा था. पंजाबी और सिन्धी में लिखी उनकी रचनाएं बहुत आसान भाषा में लिखी होती थीं और जन-जन के बीच वे आज भी बहुत लोकप्रिय हैं.

आज सुनिये नुसरत फ़तेह अली ख़ान साहब की आवाज़ में बुल्ले शाह की एक क़व्वाली और गुरबानी का एक टुकड़ा:

कोई बोले राम राम:



हीरिये नी रांझा जोगी हो गया:



(...जारी)

सूफी संगीत, भाग १, झूमो रे दरवेश भी अवश्य पढ़ें

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7 श्रोताओं का कहना है :

dcpaliwal का कहना है कि -

इस जीवंत आवाज को सुनने के बाद कोई क्या कह सकता है

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

इतनी दुर्लभ जानकारी और सूफियाना संगीत इंटरनेट पर शायद ही कहीं और उपलब्ध होंगे। अशोक जी, आप बहुत बढ़िया स्तम्भ चला रहे हैं। मैं तो डूब गया संगीत में। आपने पोस्ट का शीर्षक ठीक लिखा है, सच में दिव्य आवाज़ है।

सजीव सारथी का कहना है कि -

अशोक भाई जिन दिनों मैं कॉलेज में था, हमारी पूरी मंडली जगजीत को सुनती थी दिन रात, एक दिन खालसा कॉलेज में एक दोस्त के दोस्त से मुलाकात हुई, तो वो कहने लगे की जगजीत तो कभी पंचम से उपर उठते ही नही अगर रेंज सुननी है तो ये सुनिए, और उन्होंने अपनी गाड़ी में नुसरत साहब की आवाज़ चला दी, तब का दिन है और आज तक जगजीत तो अब भी मन में हैं पर नुसरत साब को सुनना तो अब रोज की आदत हो गई है, आप बस ऑंखें बंद कर लें और सुनते जायें, उनकी आवाज़ जाने आपको किन किन खलाओं में घुमा लाये ये भी आप ख़ुद भी नही जान पाएंगे, ये आवाज़ नही गायकी नही फकत बंदगी है, ओस सी पवित्र बंदगी, अशोक भाई किन शब्दों में आपका शुक्रिया करूँ,.... बस अगली कड़ी का इंतज़ार है.....

Nitish Raj का कहना है कि -

भई वाह क्या जानकारी दी है आपने, पढ़कर अच्छा लगा-ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती से लेकर बुल्ले शाह तक का सफर भारत में।

Balwant Gurunay का कहना है कि -

Ashok bhai sahitya aur sufisam ke bare itni pukhta, sanjida aur interesting jankari dene ke lie mubarakbad.

इंदु पुरी गोस्वामी का कहना है कि -

अक्सर नुसरत साहब को सुनती हूँ.जब भी आँखें बंद कर डूबने की इच्छा होती है ऐसे ही किसी गीत को सुनती हूँ .वो किसी भी गायक का हो,फ़िल्मी या गैर फ़िल्मी.जो डूबा दे वो संगीत.
इस डूबने का अपना मजा है.आत्मा तृप्त हो जाती है जैसे.
हाँ यहाँ न आके मैंने दिव्य गायकी का और 'रस' ना ले पाने की 'गुस्ताखी' ही की है.यहाँ तो सूफी संगीत का अकूत खजाना भरा हुआ है. जियो..ये जो आप कर रहे हैं किसी इबादत से कम नही.चाह कर भी ज्यादा कुछ नही कह पाऊँगी,कहना बहुत कुछ चाहती हूँ आपके इस काम और इस संगीत के बारे में......पर क्या करूं?
ऐसिच हूँ मैं तो.कभी कभी तो मेरे आँसू भी कुछ नही कह पाते बाहर आने ही नही देती उन्हें.

Arvind Mishra का कहना है कि -

अद्भुत !

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