राजस्थान के ग्वालियर घराने के मशहूर दो ग़ज़ल गायकों की जोड़ी उस्ताद मोहम्मद हुसैन और अहमद हुसैन की ग़ज़लों से हर कोई वाकिफ है. जो लोग फिल्मी संगीत तक ही सीमित हैं उन्होंने भी उनकी कव्वाली फ़िल्म "वीर ज़ारा" में अवश्य सुनी और सराही होंगी. जब दोनों एक स्वर में किसी ग़ज़ल को अपनी आवाज़ देते हैं तो समां बाँध देते हैं, पारस्परिक ताल मेल और संयोजन इतना जबरदस्त होता है कि देखने सुनने वाले बस मन्त्र मुग्द हो रहते हैं. कहते हैं संगीत मरहम भी है. रूह से निकली स्वरलहरियों की सदा में गजब का जादू होता है, हुसैन बंधुओं ने बेहद कमियाबी से अपने इसी संगीत को कैंसर पीडितों, नेत्रहीनों और शारीरिक विकलांगता से पीडितों को शारीरिक और मानसिक रूप से सबल बनाने में इस्तेमाल किया है.
दोनों उस्ताद भाईयों ने अपने वालिद अफज़ल हुसैन जयपुरी से संगीत की तालीम ली. बहुत कम लोग जानते हैं कि ग़ज़लों के आलावा उन्होंने शास्त्रीय भजनों में भी अपने फन का ऐसा जौहर बिखेरा है कि उन्हें सुनकर तन मन और आत्मा तक आनंद से भर जाती है. आज हम आपको उनके गाये कुछ भजन सुनवायेंगे, जिन्हें सुनकर आप भी इस बात पर यकीन करने लगेंगे.
ये शायद संगीत का ऐसा आत्मीय असर है कि धरम जात पात भाषा सारे भेद मिट से जाते हैं, इसी गंगा जमुनी परम्परा का निर्वाण करते कलाकारों कि एक लम्बी परम्परा है इस देश में, बड़े गुलाम अली खान साहब से लेकर मोहम्मद रफी साहब (मन तडपत हरी दर्शन को आज) और आज के ऐ आर रहमान ( राम बसे मोरे मन में...) तक. काश इस संगीत का अमृत आज देश के जन जन में उतर जाए, काश कि हम सब झूठे भेद भावों से उपर उठकर इंसान को इंसान बन कर देख पायें.
बहरहाल हम बात कर रहे थे हुसैन बंधुओं के गाये भजनों की. तो डूब जाईये कुछ पल को इस आत्मीय सुर सागर में, और दुआयें दें इन उस्ताद बंधुओं को उनके स्वर संगीत का ये जादू ईश्वर अल्लाह प्रभु चिरस्थायी रखे.
कान्हा तोरी जोहत रह गयी बाट...
जय जय जग जननी देवी....
गाईये गणपति जग वंदना...
अब राधे रानी दे दरो बंसी...
शारदे जय हंस वाहिनी
तुम बिन मोरी...
ऑडियो साभार- टी एम् सिवरामन, मुंबई
वाह उस्ताद वाह अंक ३
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6 श्रोताओं का कहना है :
i'll think they are only gazal singer but thanks for informing us and they are really good particullar on krishna one.
हुसैन बंधुओं के गाये ये शास्त्रीय भजन सच में बहुत अनमोल हैं !चाहे वो गणपति वंदना हो या शारदा जी की वंदना !कान्हा तेरी जोहत रह गयी बाट का संगीत बहुत मधुर है !अब राधे रानी और तुम बिन मोरी में बांसुरी का स्वर मनमोहक है !आवाज़ के माध्यम से हमें हुसैन बंधुओं से रु ब रु होने का मौका मिला और उन्ही के माध्यम से मीरा के भजन भी सुनने का सौभाग्य मिला !चाहूंगी की भविष्य में उनके सुर सागर से और भी रत्न सुनने को मिलेंगे !
हुसैन बंधुओं की आवाज़ सुनकर तो दिल से बेसाख्ता निकलता है, "वाह उस्ताद वाह!" सारे ही भजन गहराई तक उतर जाने वाले हैं, प्रस्तुति के लिए धन्यवाद!
गाईये गणपति जग वंदन ,
इस भजन के प्रारंभ के आलाप कि स्वर लहरियाँ जब श्रवण इन्द्रियों के माध्यम से मन के तह तक जा पहुँची , तो आराध्य देवता गणपति के साथ साथ इस भजन के गायक द्वय करिश्माई आवाज़ के मालिक हुसैन बन्धु के लिए भी मन में आभार के भाव प्रकट होने लगे. हमारा वंदन परम पिता परमेश्वर को , और बाद में गायकों और आप को प्रेषित करते हैं, की इतने श्रद्धा और भाव से भरपूर भजन हमें सुनाये.
एक गायक की पहचान आप और हम उसके स्वर नियंत्रण , गले के माधुर्य , और अंदर से उपजे भावों से लगाते है. मगर उसके पीछे की स्वर साधना से अधिक उसके मन की संवेदनशीलता हमारे कलेजे के अन्दर चीर कर स्थान बनाती है. और ये संभव है उसके एक अच्छे मुसस्सल ईमान लिए हुए दिल का इंसान होने से.तभी तो उसके समुन्दर से गहरे पाक़ साफ़ मन में से मोती और रत्न आप उठा पाते हो और मालामाल हो जाते हो.
हुसैन बन्धु भी इसी पाये के इंसान है, जो शराफत और विनय के प्रतिमूर्ति है.
मुझे याद आ रहे है वो हसीं लम्हे , जब कुछ साल पहले मैं जयपुर उनके घर गया था उनसे मिलने.
मेरे एक Architectural project में एक electrician से मेरा वास्ता पड़ा, जिसे एक बार मैनें साईट पर काम करते करते गुनगुनाते हुए सुना. रफी साहब की आवाज़ में वह एक नगमा गुनगुना रहा था . मैं बहुत प्रभावित हुआ.
बाद में उसने बताया की उसके वालिद जयपुर के एक बेहतरीन शायर है, और हुसैन बन्धु के सगे मामूजान है.
ज़ाहिर है, मैं जब जयपुर गया तो अहमद और मोहम्मद भाइयों से मिलने का लोभ संवरण नही कर सका, और मामूजान को पकड़ उनके घर की और निकल पड़ा. हमारा सायकल रिक्शा तंग गलीयोँ से होकर एक तीन चार मंजिल के संकरे से मकान पर जा पहुंचा.सादा रहन सहन , एक आम निम्नमध्यमवर्गीय परिवेष. पता चला मोहम्मद भाई घर पर नहीं थे और घर में सिर्फ़ अहमद भाई ही थे.
दस बाई दस के छोटे से कमरे में हमें बिठाया गया , जिसमें उनके वालिद और अम्मीजान पहले ही से एक पुरानी खाट पर बैठे थे और दूसरी पर मैं और मामूजान . इतनी जगह नही बची के अहमद भाई भी बैठ सकें, तो पड़ोस से एक छोटा सा स्टूल ले आए और हमसे बतियाने लगे. किसी अंहकार का या अपने कम स्टेटस या परिवेष की शर्मिन्दगी का कोई अहसास तक नहीं. हम दो घंटे मात्र संगीत पर बोलते रहे. (वो बोलते रहे ,मैं सुनता रहा) .हालांकि तब तक वे पूरे हिन्दुस्तान में
मशहूर-ओ-म'अरूफ़ हो गए थे, और उनके दिवानों में दिन ब
दिन इज़ाफा हो रहा था.
मैंने पूछनें का साहस किया, कि माशाल्लाह, आप इतनी शोहरत के बावजूद भी इतने विनम्र और सरल कैसे है,?
तो उनकी जगह उनके वालिद साहब में अम्मीजान की तरफ़ देखकर जवाब दिया - 'इल्म पर ईमानदारी से मेहनत , बाकी सब मालिक का करम और मर्जी.
अम्मीजान नें अहमद भाई को पास बुलाया, बड़े ख़ुलूस के साथ निहारा , बोसे से नवाज़ा और मैं वहाँ से मुतास्सिर , मुतम'इन हो चुपचाप बाहर निकल गया.
इन दो प्रतिभाओं के बारे में क्या कहूँ? ऎसा लगता है जैसे कि बस सुनता हीं रहूँ, सुनता हीं रहूँ, दुआएँ लेता रहूँ, दुआएँ देता रहूँ।
इतनी बढिया टिप्पणी देने के लिए दिलीप जी का भी शुक्रिया।
नियंत्रक महोदय बधाई स्वीकारें।
Husain bandhu jaise great kalakaro ko web par
upload dekhkar achha laga. Thanks!-
OM VARMA.
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