रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


ComScore
प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Monday, October 20, 2008

उस्ताद बिस्मिल्लाह खान साहब का एक अनमोल इंटरव्यू और शहनाई वादन



"अमा तुम गाली दो बेशक पर सुर में तो दो....गुस्सा आता है बस उस पर जो बेसुरी बात करता है.....पैसा खर्च करोगे तो खत्म हो जायेगा पर सुर को खर्च करके देखिये महाराज...कभी खत्म नही होगा...." मिलिए शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खान से, मशहूर कार्टूनिस्ट इरफान को दिए गए एक ख़ास इंटरव्यू के माध्यम से और सुनिए शहनाई के अलौकिक स्वरों में राग ललित

२१ मार्च १९१६ में जन्में उस्ताद बिस्मिल्लाह खान का नाम उनके अम्मा वलीद ने कमरुद्दीन रखा था, पर जब उनके दादा ने नवजात को देखा तो दुआ में हाथ उठाकर बस यही कहा - बिस्मिल्लाह. शायद उनकी छठी इंद्री ने ये इशारा दे दिया था कि उनके घर एक कोहेनूर जन्मा है. उनके वलीद पैगम्बर खान उन दिनों भोजपुर के राजदरबार में शहनाई वादक थे. ३ साल की उम्र में जब वो बनारस अपने मामा के घर गए तो पहली बार अपने मामा और पहले गुरु अली बक्स विलायतु को वाराणसी के काशी विश्वनाथ मन्दिर में शहनाई वादन करते देख बालक हैरान रह गया. नन्हे भांजे में विलायतु साहब को जैसे उनका सबसे प्रिये शिष्य मिल गया था. १९३० से लेकर १९४० के बीच उन्होंने उस्ताद विलायतु के साथ बहुत से मंचों पर संगत की. १४ साल की उम्र में अलाहाबाद संगीत सम्मलेन में उन्होंने पहली बंदिश बजायी. उत्तर प्रदेश के बहुत से लोक संगीत परम्पराओं जैसे ठुमरी, चैती, कजरी, सावनी आदि को उन्होने एक नए रूप में श्रोताओं के सामने रखा और उनके फन के चर्चे मशहूर होने लगे.१९३७ में कलकत्ता में हुए अखिल भारतीय संगीत कांफ्रेंस में पहली बार शहनायी गूंजी इतने बड़े स्तर पर, और संगीत प्रेमी कायल हो गए उस्ताद की उस्तादगी पर.


१९३८ में लखनऊ में आल इंडिया रेडियो की शुरवात हुई. जहाँ से नियमित रूप से उस्ताद का वादन श्रोताओं तक पहुँचने लगा. १५ अगस्त १९४७ को वो पहले साजिन्दे बने जिसे आजाद भारत की अवाम को अपनी शहनाई वादन से मंत्र्मुग्द किया. ये ब्रॉडकास्ट लालकिले से हुआ था, जहाँ उन्हें सुन रहे थे ख़ुद महात्मा गाँधी भी और जहाँ उनके वादन के तुंरत बाद पंडित नेहरू ने अपना मशहूर संबोधन दिया था आजाद देश की जनता के नाम. तब से अब तक जाने कितने ही एतिहासिक समारोहों और जाने कितने ही रास्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय समारोहों में इस महान फनकार ने अपने अद्भुत हुनर से सुनने वालों सम्मोहित किया. पदम् श्री, पदमा भूषण और पद्मा विभूषण के बाद सन २००१ में उन्हें भारत रत्न से नवाजा गया. पुरस्कार तो जैसे बरसते रहे उम्र भर उनपर. बहुत कम लोग जानते होंगे कि उन्होने सत्यजित राय की फ़िल्म "जलसागर" में अभिनय भी किया था. फ़िल्म "गूँज उठी शहनायी" जिसका कि एक एक गीत एक नायाब मोती है,में भी उन्होने वाध्य बजाया (याद कीजिये लता की आवाज़ में "मेरे सुर और तेरे गीत"), ऐ आर रहमान ने "ये जो देश है तेरा..." फ़िल्म स्वदेश में जब उनसे शहनाई बजवायी तो जैसे शहनायी परदेश से स्वदेश लौट रहे नायक के लिए जैसी देश की मिट्टी का प्रतीक बन गयी.

मशहूर कार्टूनिस्ट इरफान ने उनके इन्तेकाल से कुछ वर्षों पहले उनका एक इंटरव्यू किया था जिसकी रिकॉर्डिंग आज हम आप के लिए लाये हैं. रूबरू होईये उस्ताद के कुछ अनछुए पहलुओं से -



और अब सुनते है राग ललित उस्ताद की शहनाई में -



२१ अगस्त २००६ को उस्ताद एक सादा और सूफी जीवन जीने के बाद दुनिया से विदा हुए और पीछे छोड़ गए अपने संगीत का ऐसा अनमोल खज़ाना, जिस पर हिंदुस्तान का हर संगीत प्रेमी नाज़ कर सकता है. उस्ताद को आवाज़ का सलाम.

फेसबुक-श्रोता यहाँ टिप्पणी करें
अन्य पाठक नीचे के लिंक से टिप्पणी करें-

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

7 श्रोताओं का कहना है :

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

सबसे अच्छी बात यह है कि बहुत अनौपचारिक साक्षात्कार है। ऐसा लगा कि जैसे दो दोस्त बात कर रहे हों। बहुत सुंदर प्रस्तुति।

संदीप का कहना है कि -

अच्‍छी प्रस्‍तुति है।

राज भाटिय़ा का कहना है कि -

बहुत ही सुन्दर, आप का धन्यवाद इतनी मिठ्ठी शहनाई सुनवाने के लिये, ओर शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खान जी को कोन नही जानता, इन की तारीफ़ तो चांद को चिराग दिखाना है, बहुत सुंदर
धन्यवाद

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` का कहना है कि -

सम्पूर्ण अस्तित्त्व सँगीत
व कला के प्रति समर्पित हो तभी
"बिस्मिल्लाह खाँ साहब "
जैसी शख्शियत खुदा की बँदगी - सी ,
दीखलाई देती है ..
जिनकी शहनाई गूँजती रहेगी
.सुर कभी खत्म ना होँगेँ
- लावण्या

Smart Indian - स्मार्ट इंडियन का कहना है कि -

अति सुंदर, उस्ताद की सरलता दिल को छू गयी.

निखिल आनन्द गिरि का कहना है कि -

हिन्दयुग्म पर उस्ताद साहब का साक्षात्कार एक अनमोल संग्रह है...इरफान जी का बेहद शुक्रिया...इस देश की व्यवस्था ने इस महान हिन्दुस्तानी को मौत के हवाले कर दिया, वरना अभी कुछ बरस और इनकी शहनाई हमारी रगों में जादू घोलती.....
बधाई

राज भाटिय़ा का कहना है कि -

बहुत ही सुंदर मै तो भाई इन की आवाज का दिवाना हु. आप ने विस्तार से ओर मेहनत से यह लेख लिखा धन्यवाद

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

संग्रहालय

25 नई सुरांगिनियाँ