रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


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प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Monday, October 20, 2008

पिया मेहंदी लियादा मोती झील से...जाके सायिकील से न...



मिट्टी के गीत में- कजली गीत

मिर्जापुर उत्तर प्रदेश में एक लोक कथा चलती है, कजली की कथा. ये कथा विस्थापन के दर्द की है. रोजगार की तलाश में शहर गए पति की याद में जल रही है कजली. सावन आया और विरह की पीडा असहनीय होती चली गयी. काले बादल उमड़ घुमड़ छाए. कजली के नैना भी बरसे. बिजली चमक चमक जाए तो जैसे कलेजे पर छुरी सी चले. जब सखी सहेलियां सवान में झूम झूम पिया संग झूले, कजली दूर परदेश में बसे अपने साजन को याद कर तड़प तड़प रह जाए. आह ने गीत का रूप लिया. काजमल माई के चरणों में सर रख जो गीत उसने बुने, उन्ही पीडा के तारों से बने कजरी के लोकप्रिय लोक गीत. सावन में गाये जाने वाले ये लोकगीत अमूमन औरतों द्वारा झुंड बना कर गाये जाते हैं (धुनमुनिया कजरी). कजरी गीत गावों देहातों में इतने लोकप्रिय हैं की हर बार सावन के दौरान क्षेत्रीय कलाकारों द्वारा गाये इन गीतों की cd बाज़ार में आती है और बेहद सुनी और सराही जाती है.

आसाम की वादियों और कश्मीर की घाटियों की सैर के बाद आईये चलते हैं विविधताओं से भरे पूरे प्रदेश, उत्तर प्रदेश की तरफ़. कण कण में संगीत समेटे उत्तर प्रदेश में गाये जाने वाले सावन के गीत कजरी का आनंद लीजिये आज मिटटी के गीत श्रंखला में -

बदरा घुमरी घुमरी घन गरजे... स्वर - रश्मि दत्त व् साथी



सोमा घोष कजरी की विख्यात गायिका हैं...उनकी आवाज़ में ये कजरी सुनें. जरूरी नही की सभी कजरी गीत विरहा के हों जैसे ये गीत,लौट आए पिया से की जानी वाली फरमाईशों का है - "पिया मेहंदी लियादा न मोती झील से जाके सायिकील से न...." यहाँ "सैकील" की घंटी का इस्तेमाल संगीतकार ने बहुत खूबी से किया है, सुनिए -



और अंत में सुनिए ये भोजपुरी कजरी भी "झुलाए गए झुलवा..."



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3 श्रोताओं का कहना है :

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

'पिया मेहंदी लियादा न मोती झील से' गीत से हमारे क्षेत्र का बच्चा-बच्चा परिचित है। मैंने इसे अन्य मधुर आवाज़ों में भी सुना है। नाम नहीं याद आ रहा, लेकिन इसे बहुत सी गायिकाओं ने गाया है। कभी रिकॉर्डिंग हाथ लगी तो सुनवाऊँगा। वैसे सराहनीय प्रस्तुतिकरण।

राज भाटिय़ा का कहना है कि -

बहुत ही सउंदर लगा यह गीत, इसे लोक गीत कहना ज्यादा अच्छा है
धन्यवाद

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी का कहना है कि -

बहुत-बहुत धन्यवाद, इस भोजपुरी प्रस्तुति के लिए ... आनन्द आ गया।

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