'पढ़ने' की बजाय 'सुनने' को ज्यादा प्राकृतिक मानने वाले अनुराग
दोस्तो,
पिछले २ सप्ताहों से आप एक आवाज़ को हिन्द-युग्म पर खूब सुन रहे हैं। और आवाज़ ही क्या, इंटरनेट पर हिन्दी की जहाँ उपस्थिति है, वहाँ ये उपस्थित दिखाई देते हैं। हमारे भी हर मंच पर ये दिखते हैं। इन्होंने आवाज़ पर ऑडियो-बुक का बीज डाला। इनका मानना है कि भारत में ऑडियो बुक्स में अभी बहुत सम्भावने हैं। ये हिन्दी साहित्य को किसी भी तरह से जनप्रिय बनाना चाहते हैं। इसीलिए अपनी आवाज़ में प्रसिद्ध कहानियों को वाचने का सिलसिला शुरू कर दिया है।
अनुराग शर्मा |
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आइए इनसे कुछ बाते हैं करते हैं।
सवाल- आप इतना सबकुछ करते हैं, कहीं आपका २४ घण्टा ४८ का तो नहीं होता! :)
अनुराग: मेरा दिन सिर्फ़ १५-१६ घंटे का होता है क्योंकि और कुछ हो न हो ८-९ घंटे की नींद मेरी सबसे ज़रूरी खुराक है. काम शुरू करने से पहले जहाँ तक सम्भव हो उसकी योजना मन में बना लेता हूँ, याददाश्त अच्छी है और मन शांत रहता है इसलिए थोड़ी आसानी हो जाती है. समय का सदुपयोग करता हूँ. मेरा काम ऐसा है जिसमें नयी तकनीक से हमेशा रूबरू होना पड़ता है और मैं आजन्म विद्यार्थी हूँ. किताबें पढने के बजाय जहाँ तक सम्भव हो ऑडियो बुक्स को सुनता हूँ. ड्राइव करते समय रेडियो पर खबरें और CD पर किताबें व संगीत सुनता हूँ. दफ्तर व घर में काम करते समय भी अपने काम से जुड़े हुए पॉडकास्ट सुनता हूँ.
सवाल:- जबकि भारत में इंटरनेट गति की बहुत अच्छी हालत नहीं है, फिर आप कैसे मान रहे हैं कि हमारा कहानियों, उपन्यासों, नाटकों को आवाज़ देने का प्रोजेक्ट सफल होगा?
अनुराग- पता नहीं इसका उत्तर मैं ठीक से (express) समझा पाऊँगा की नहीं, मगर उदाहरणों से कोशिश करता हूँ:
क) सुनना प्राकृतिक है, पढ़ना नहीं.
ख) आज इन्टरनेट धीमा हो सकता है मगर कल उसे तेज़ ही होना है.
ग) ८० के दशक में भारतीय बैंकों ने कंप्यूटर लगाने की कोशिश की थी. एक लाख रुपये में बिना हार्ड डिस्क के १२८ MB राम के कंप्यूटर आए तो लोगों ने कहा की पैसे की बर्बादी है. वामपंथी दलों ने तो बहुत पुरजोर विरोध इस बिना पर किया की कंप्यूटर से सारा भारत बेरोजगार हो जायेगा. एक दशक के अन्दर न सिर्फ़ कंप्यूटर सुधरे, उसी जुडी हुई नई तकनीक, इन्टरनेट, मोबाइल आदि छा गए. बेरोजगारी तो दूर, आज भारतीयों को सारी दुनिया में रोज़गार मिला कंप्यूटर की बदौलत. यह घटना बताने का तात्पर्य यह है कि दृष्टा आज को नहीं कल और परसों को देखता है - यहीं पर वह अन्य लोगों से भिन्न होता है.
घ) पढने में समय लगता है. धीमी गति में डाउनलोड होने पर भी वह डाउनलोड दूसरा काम करते हुए - मसलन आप नहायिये तब तक डाउनलोड हो जाता है - कपड़े पहनिए तब तक सुना भी जा सकता है.
प) वृद्ध लोग, कमज़ोर आंखों वाले, या मेरे जैसे जो आँखें बंद करके बेहतर ध्यान दे पाते हैं - ऐसे लोगों के लिए तो ऑडियो-बुक्स वरदान के समान हैं. मैं कितना भी थका हुआ हूँ, भले ही पढ़ न सकूं, सुन तो सकता ही हूँ.
फ) कागज़ आया और चला गया - श्रुतियां उससे पहले भी थीं और उसके बाद भी रहेंगी - सरस्वती वाक्-देवी हैं. संस्कृत का पूरा नाम संस्कृत-वाक् है. हमारी संस्कृति में कथा का पाठ नहीं वाचन होता है.
भ) टीवी आया तो सबने कहा कि रेडियो के दिन पूरे हुए - मगर हुआ क्या? AM से हम FM में आ गए और आगे शायद कहीं और जाएँ मगर निकट भविष्य में सुनना आउट ऑफ़ फैशन नहीं होने वाला है यह निश्चित है.
सवाल- क्या आप अपने वाचन से संतुष्ट हैं या इसमें परिमार्जन के पक्षधर हैं?
अनुराग- मैं अपने वाचन से कतई भी संतुष्ट नहीं हूँ मगर मेरा विश्वास है कि -लेट परफेक्शन नोट बी दि एनेमी ऑफ़ द गुड. (मेरे ही) दूसरे शब्दों में -बात तो आपकी सही है यह, थोडा करने से सब नहीं होता फ़िर भी इतना तो मैं कहूंगा ही, कुछ न करने से कुछ नहीं होता। इस प्रक्रिया में मेरा वाचन भी सुधरेगा - दूसरे जब यह काम शुरू हो जायेगा, तो दूसरी बहुत अच्छी आवाजें सामने आयेंगी. जब हम एक टीम बना पायेंगे, तो कथा-संकलन संगीत, आवाज़ व रिकार्डिंग तकनीक के श्रेष्ठ पक्ष सामने आयेंगे।
सवाल- भारत से दूर रहकर खुद को भारत से जोड़ना ब्लॉगिंग के कारण कुछ आसान नहीं हो गया है?
अनुराग- भारत से दूर रहकर खुद को भारत से जोड़ना ब्लॉगिंग के कारण आसान हुआ है- मैं इसका श्रेय यूनीकोड और ट्रांसलिट्रेशन को दूंगा जिन्होंने हम जैसों में लिखना आसान कर दिया.
सवाल- आवाज़ पर आपकी भावी योजनाएँ क्या हैं?
अनुराग- आवाज़ की भावी योजनाएँ तो सारी टीम को मिलकर लोकतांत्रिक (पारंपरिक शब्दों में याज्ञिक) रूप से ही तय होनी चाहिए।
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18 श्रोताओं का कहना है :
अनुराग जी आपकी हर बात से सहमत हूँ, सही है सुनना कभी भी आउट ऑफ़ फैशन नही हो सकता, यकीनन धीरे धीरे आपके सहयोग से हम आवाज़ पर एक ऐसा संग्रह बना लेंगे जो आने वाली कई सदियों तक साहित्य को सहेज कर रखने में मदद करेगा.
रूचिकर ।
अनुराग जी के बारे में जानकर अच्छा लगा.
चाहता था कि आप से बात हो सके और आप(अनुराग) को पढ़कर अच्छा लगा।
अनुराग जी के बारे में जानकर अच्छा लगा। आपकी योजनाएँ कामयाब हों तथा आवाज़ पर बहुत कुछ नया आए- यही कामना है। सस्नेह
अनुराग जी,
आपकी आवाज़ मैंने कहानियों और कविताओं के पॉडकास्ट में सुनी है, बहुत ही प्यारी आवाज़ है। आपकी आवाज़ सुनकर ऐसा लगता है कि हमेशा जवान रहने वाली आवाज़ है। और यदि आपका भरोसा है कि हमलोग ऑडियो बुक के माध्यम से हिन्दी साहित्य का प्रचार-प्रसार कर सकते हैं तो मुझे भी लगता है। खूब जमेगा रंग जब मिल-बैठेंगे हम लोग। सफलता की शुभकामनाएँ और हिन्द-युग्म पर आपका एक बार और अभिनंदन।
बहुत अच्छा लगा आप सभी के विचार जानकर. आप सभी की सहृदयता के किए आभार! विशेषकर आवाज़ की टीम, जिन्होंने बिना देखे, बिना मिले ही मुझमे संभावनाएं देखीं और सेवा का अवसर दिया!
आप हमनाम तो है ही ,पढता अक्सर आया हूँ अब सुन भी लेगे जब मिल बैठेगे दो अनुराग
smart indian ...ji ke baarey padhkar khushi hui
अनुराग भाई के बारे में यहां पर कुछ और जानना बहुत अच्छा लगा। आपलोगों का आभार।
अनुराग जी के बारे में जानकर अच्छा लगा.
अनुराग जी आपकी लगन और उत्साह के बारे में पढ़कर और जानकर बहुत ही खुशी होती है. आपकी आवाज़ हर दिन प्रगति करती रहे ऐसी तमन्ना है. मेरी शुभकामनाएं हमेशा आपके साथ हैं.
शन्नो
प्रेमचंद जैसे महान कहानीकार की छोटी छोटी कालजयी कहानियों कहानियों में अनुराग जी की मार्मिक आवाज ने मानो प्राण ही फूंक दिए हैं और काले सफेद अक्षर बोलने लगे हैं.
अनुराग जी ,
आपकी एक टिप्पणी ने हमे व्यथित किया था ,कहानी तो सुनते थे ,और सोचते थे की कोई ,अध्यन के लिए गया हुआ विधार्थी अपने देश को याद कर रहा है ,मगर
जब आपकी तस्वीर देखी
तो ,समझ पाये कि आप एक परिपक्व इंसान हैं ,जो प्रेमचंद के साहित्य से सबसे ज्यादा जुड़े हैं ,मौजूदा हालत में तो ,प्रेमचंद की कहानियों को सुनने वाला श्रोता वर्ग अभी न के बराबर ही है ,किंतु आपके इस प्रयास के उज्जवल भविष्य की कामना करती हूँ |
i knew him through blogging only, i didnt know that i am talking to such mature , intelligent and to a very good writer ,there is too much difference in age still he talks just like a friend, i m so much thankful Anurag for ur support and friendly advices , looking forward to visit Pittsburgh
पारुल जी, लावण्या जी, शन्नो जी, नीलम जी, वैशाली जी, अनुराग जी, अशोक जी, और अतुल जी, आप सभी के मधुर शब्दों के लिए भी बहुत आभारी हूँ. जिसे आप जैसे सहृदयी मित्र मिलें उसे और क्या चाहिए? धन्यवाद और शुभकामनाएं!
बहुत खुशी हुई अनुराग जी के बारे मे पढ कर आभार्
अनुराग जी से मुलाकात सुखद रही...मिलनसार व्यक्तित्व के धनी हैं वे,निश्चित ही उनका उद्देश्य पूर्ण होगा।.......मेरे जैसे पढने में रुचि न रखने वालों के लिए भी सुनना बेहतर विकल्प है।
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