रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


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प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Wednesday, September 17, 2008

स्वर और सुर की देवी - एम एस सुब्बलक्ष्मी





"जब एक बार हम अपनी कला और भक्ति से भीतर की दिव्यता से सामंजस्य बिठा लेते हैं, तब हम इस शरीर के बाहर भी प्रेम और करुणा का वही रूप देख पाते हैं...कोई भी भक्त जब इस अवस्था को पा लेता है सेवा और प्रेम उसका जीवन मार्ग बन जाना स्वाभाविक ही है."

ये कथन थे स्वरों की देवी एम् एस सुब्बलक्ष्मी के जिन्हें लता मंगेशकर ने तपस्विनी कहा तो उस्ताद बड़े गुलाम अली खान साहब ने उन्हें नाम दिया सुस्वरलक्ष्मी का, किशोरी अमोनकर ने उन्हें सातों सुरों से उपर बिठा दिया और नाम दिया - आठवाँ सुर. पर हर उपमा जैसे छोटी पड़ जाती है देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित पहली संगीत से जुड़ी हस्ती के सामने. संगीत जोगन एम् एस सुब्बलक्ष्मी पद्मा भूषण, संगीत नाटक अकेडमी सम्मान, कालिदास सम्मान जैसे जाने कितने पुरस्कार पाये जीवन में पर प्राप्त सभी सम्मान राशिः को कभी अपने पास नही रखा, सामाजिक सेवाओं से जुड़े कामो के दान कर दिया.शायद उनके लिए संगीत से बढ़कर कुछ भी नही था. united nation में हुआ उनका कंसर्ट एक यादगार संगीत आयोजन माना जाता है. १६ सितम्बर १९१६ में जन्मीं सुब्बलक्ष्मी जी का बचपन भी संगीतमय रहा. मदुरै (तमिल नाडू ) के एक संगीत परिवार में जन्मी (उनके पिता सुब्रमनिया आइयर और माता वीणा विदुषी शंमुखादेवु प्रसिद्ध गायक और वीणा वादक थे) सुब्बलक्ष्मी ने ३ साल की उम्र से कर्णाटक संगीत सीखना शुरू कर दिया था और ८ वर्ष की उम्र में कुम्बकोनाम में महामहम उत्सव के दौरान अपना पहला गायन दुनिया के सामने रखा, और ये सफर १९८२ में रोयल अलबर्ट हाल तक पहुँचा. सुब्बलक्ष्मी जी इस सदी की मीरा थी, मीरा नाम से बनी तमिल फ़िल्म में उन्होंने अभिनय भी किया, पर जैसे उन के लिए वो अभिनय कम और ख़ुद को जीना ज्यादा था. यह फ़िल्म बाद में हिन्दी में भी बनी (१९४७) में, जिसमें उन्होंने दिलीप कुमार राय के संगीत निर्देशन में जो मीरा भजन गाये, वो अमर हो गये. फ़िल्म की कमियाबी के बाद उन्होंने अभिनय से नाता तोड़ अपने आप को संगीत और गायन के लिए पूरी तरह समर्पित कर दिया. १९४० में उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े टी सदासिवम से विवाह किया पर निसंतान रही. अपने पति के पुर्वविवाह से हुए दो बच्चियों को उन्होंने माँ का प्यार दिया. दोनों राधा और विजया भी संगीत से जुड़ी हैं आज.



भारत कोकिला सरोजिनी नायडू ने एक बार एम् एस के लिए इस तरह अपने उदगार व्यक्त किए थे -

"भारत का हर बच्चा बच्चा एम् एस सुब्बलक्ष्मी की आवाज़ से वाकिफ है न सिर्फ़ उनकी आवाज़ बल्कि उनका जादूई व्यक्तित्व और प्रेम भरा दिल करोड़ों भारतीयों के लिए एक प्रेरणा है..मैं चाहती हूँ की मेरा ये संदेश दुनिया के कोने कोने तक पहुंचे ताकि सब जानें की हिंदुस्तान की धरती पर एक ऐसी गायिका रहती है जिसकी आवाज़ में ईश्वर का वास है."

महात्मा गाँधी और एम् एस जब भी कभी एक शहर में होते, जरूर मिलते. गाँधी जी एम् एस के जादुई गायन के मुरीद थे. १९४७ में उन्होंने अपने ७८ जन्मदिन पर सुब्बलक्ष्मी जी आग्रह किया कि वो उनकी आवाज़ में हरी तुम हरो भजन सुनना चाहते हैं. चूँकि वो इस भजन से परिचित नही थी उन्होंने किसी और गायिका की सिफारिश की, पर गाँधी जी बोले "किसी और के गाने से बेहतर ये होगा कि आप अपनी आवाज़ में बस ये बोल दें". गाँधी जी के इन शब्दों को सुनने के बाद एम् एस के पास कोई रास्ता नही बचा था. उन्होंने भजन सीखा और ३० सितम्बर रात ३ बजे इसे अपनी आवाज़ में रिकॉर्ड किया, चूँकि वो ख़ुद उस दिन दिल्ली में उपस्थित नही हो सकती थी, आल इंडिया रेडियो ने उनकी रेकॉर्डेड सी डी को हवाई रस्ते से दिल्ली पहुँचने की व्यवस्था करवाई. वो महात्मा का आखिरी जन्मदिन था जब उन्होंने एक एस के मधुर स्वर में 'हरी तुम हरो' सुना.

१९९७ में अपने पति की मृत्यु के बाद उन्होंने public performance करना बंद कर दिया. ११ दिसम्बर २००४ को इस दिव्य गायिका ने संसार से सदा के लिए आंख मूँद ली.

तो आईये सुनते हैं, वही भजन उसी अलौकिक आवाज़ में आज एक बार फ़िर -

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आप दक्षिण भारत में कहीं भी चले जायँ, मंदिरों में सुबह की शुरूआत सुब्बलक्ष्मी द्वारा गाये गये भजन 'सुप्रभातम्' से ही होती है। सुनिए 'सुप्रभातम्' भजन के दो वर्जन-

१॰ श्री काशी विश्वनाथ सुप्रभातम्



२॰ रामेश्वरम् सुप्रभातम्



जानकारी सोत्र - इन्टरनेट
संकलन - सजीव सारथी


वाह उस्ताद वाह ( अंक २ )

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5 श्रोताओं का कहना है :

KRISHNA RAJ KUMAR का कहना है कि -

Nice tribute to a truly great one!!! she may not be physically present but her voice will live along for years and years to come!!!

राज भाटिय़ा का कहना है कि -

सब से पहले तो आप से कहन चाहुगां की टिपण्णी देने के लिये इसे ढुढनां पडता हे , पता ही नही चलता टिपण्णी कहा दे, कृपया इसे ठीक कर ले शायद कई लोग चले जाते हो आप का सुन्दर लेख पढ कर.
आप ने बहुत ही सुन्दर विवरण दिया हे, साथ मे मधुर गीत भी,
धन्यवाद

पारुल "पुखराज" का कहना है कि -

adhhbhut...aanandum

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

बहुत अच्छी जानकारी है |

अवनीश तिवारी

Smart Indian - स्मार्ट इंडियन का कहना है कि -

सुब्बुलक्ष्मी जी बेशक भारत के महानतम कलाकारों में से एक हैं. उनके बारे में इतने जानकारीपूर्ण लेख और सुमधुर संगीत की सफल प्रस्तुति के लिए धन्यवाद!

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