अवनीश तिवारी लिख रहे हैं हरफनमौला फनकार किशोर कुमार के सगीत सफर की दास्तान, जिसकी पहली कड़ी आप यहाँ पढ़ चुके हैं, अब पढ़ें आगे -
साथियों ,
इस महीने याद करेंगे किशोर कुमार के जीवन के उस दशक की जो उनके भीतर के कुदरती कला को प्रस्तुत कर उनको एक बेजोड़ कलाकार के रूप में स्थापित करता है. १९६०-१९७० का वह दशक हिन्दी फ़िल्म जगत में किशोर के नाम से छाया रहा चाहे अभिनय हो, संगीत बनाना हो या गाना गाना और या फ़िर फिल्मो का निर्देशन, लगभग फिल्मी कला के हर क्षेत्र में किशोर ने सफल प्रयोग किए. किसी साक्षात्कार में उन्होंने बताया था कि उन दिनों वे इतने व्यस्त थे कि एक स्टूडियो से दुसरे स्टूडियो जाते समय, चलती गाडी में ही अगले दिए गए कामों (assignments) की तैयारी करने लगते.
इस सुनहरे दशक में किशोर के अभिनय और आवाज़ की कुछ यादगार फिल्मे -
१. १९६० - बेवकूफ , गर्ल फ्रेंड
गर्ल फ्रेंड फ़िल्म सत्येन बोश की निर्देशित फ़िल्म थी जिसका एक गीत अपनी छाप छोड़ गया गायिका सुधा मल्होत्रा के साथ गाया गीत " कश्ती का खामोश सफर है " यादगार रहा
२. १९६१ - झुमरू
किशोर के हरफनमौला होने का परिचय देती यह फ़िल्म कभी भुलाई नही जा सकती इसके योडेल्लिंग अंदाज़ में गाये सारे गीत आज भी ताजे हैं " कोई हम दम ना रहा , कोई सहारा ना रहा ..." यह गीत तो किशोर को भी बेहद पसंद था बड़े भाई अशोक कुमार भी इसी गीत से छोटे किशोर को याद कर लिया करते थे
३. १९६२ - बॉम्बे का चोर - माला सिन्हा के साथ अभिनय किया
४. १९६२ - Half Ticket - अभिनेत्री मधुबाला के साथ की यह फ़िल्म मस्ती और हंसी से भरपूर थी बच्चों की तरह शरारत करते किशोर को खूब पसंद किया गया
५. १९६४ - दूर गगन की छाँव में - " आ चल के तुझे मैं लेकर चलूं ..." यह मीठा गाना काफी लोकप्रिय हुया
यह फ़िल्म किशोर को भी प्रिय थी
६. १९६५ - श्रीमान फंटूस - यह नाम लेते ही गम से दिल को भर जाने वाला गाना याद आ जाता है गाना था - " वो दर्द भरा अफ़साना ..." जितने भी बड़े स्टेज शो हुए, लगभग सभी में किशोर ने इस गीत को दोहराया
६. १९६७ - हम दो डाकू
७. १९६८ - पडोसन - यह एक ऐसी दिलचस्प फ़िल्म है कि जिसे १०० बार देखने के बाद भी देखने का मन करे
साइड हीरो के रूप में किए गए अभिनय से किशोर ने इसे आज तक जवां रखा है
" एक चतुर नार..." इस भिडंत गाने के लिए सफल गायक मन्ना दे ने तक किशोर के हुनर की दाद दी
शास्त्रीय संगीत से बेखबर किशोर ने तैयारी कर कामयाबी से इस गीत को पूरा किया
८. अन्य फिल्मे -
१९६८ - श्रीमान , पायल की झंकार
१९७० - आंसू और मुस्कान आदि ...
गायक बना संगीतकार -
संगीत की समझ आने पर किशोर ने संगीतकार का भी काम किया उनका हुनर यहाँ भी हिट हुया
१९६२ - झुमरू में संगीत बनाया इतना ही नही तो गीत के बोल भी लिखे और सभी जानते है गानों से ही यह फ़िल्म आज भी देखी जाती है
१९६४ - दूर गगन की छाँव में और १९६७ - हम दो डाकू में भी संगीत दिया
किशोर कुमार आपने गानों में योडेलीन के अंदाज़ के कारण जाने जाते रहे. यह नुस्खा उन्होंने अपने मझले भाई अनूप कुमार के एक रिकॉर्डिंग से छिप कर सीखा था. अनूपजी ने इसे विदेश से लाये थे.
गीत और संगीत में किशोर इतने उलझे थे कि उनके अभिनय के गीत उस समय मोहम्मद रफी जी को गाने पड़े.
साथ का यह फोटो किशोर कुमार के अलग अलग पहलू को बता रहा है.
गायकी में सम्मान -
यह एक सफल और कई मायनो में याद गार फ़िल्म रही १९६९ में शक्ति सामंत की फ़िल्म "आराधना"
राजेश खन्ना पर फिल्माए गीतों ने तो हिन्दी फिल्मो में Romantic Songs की कड़ी में एक हलचल सी मचा दी "मेरे सपनों की रानी कब आयेगी तू ..." और "रूप तेरा मस्ताना ..." - आज भी सुपर हिट है
" रूप तेरा मस्ताना ..." - इस गीत के लिए किशोर को जीवन का पहला फ़िल्म फेयर अवार्ड मिला
यही फ़िल्म है जहाँ से मशहूर संगीतकार आर. डी. बर्मन ने अपने पिता की गैरमौजूदगी में ख़ुद ब ख़ुद काम संभाला और फ़िर बस आगे चलते ही गए.
राजेश खन्ना बताते हैं कि पहली बार उनके लिए गाने से पहले किशोर दा ने उन्हें बुलाया और उनसे सवाल-जवाब किए. गानों के बन जाने पर राजेश जी को पता चला कि किशोर उस मुलाक़ात में उनके बोलने के अंदाज़ की मालूमात कर रहे थे. बस इसके बाद किशोर और राजेश खन्ना एक दुसरे के लिए पर्याय से हो गए.
१९६० में उस जमाने की मशहूर और खुबसूरत आदकारा मधुबाला के साथ शादी के बंधन में बंधे पारिवारिक नाराजगी के चलते उन्हें इस सम्बन्ध में तकलीफों का सामना करना पडा दिल की मरीज़ मधुबाला के इलाज़ के लिए किशोर ने कोशिश की लेकिन १९६९ में यह साथ टूट गया और बिना साथी के किशोर फ़िर अकेले पड़े.
गैर हिन्दी गाने -
असल में किशोर बंगाली थे और बंगला में भी गाने गाये १९६४ में सत्यजीत रॉय जैसे सफल निर्देशक की फ़िल्म "चारुलता" में उन्होंने गुरुदेव रबिन्द्रनाथ टैगोर के बंगला गीत " आमी चीनी गो चीनी तोमारे ..." गीत को गाकर यह साबित कर दिया कि वे एक प्रतिभाशाली ( versatile ) कलाकार थे वे सत्यजीत रॉय के करीब रहे और "पाथर पंचोली" फ़िल्म के निर्माण में उन्होंने रोय जी की आर्थिक मदद भी की
इस तरह से १९६०-१९७० का दशक किशोर कुमार को एक कुशल कलाकार के रूप में देखता है
इस महीने के इस किशोरनामे को मैं कुछ पंक्तियों से सलाम करता हूँ -
गजब के सूर थे और खूबसरत थी आवाज़ ,
लाजवाब अभिनय था और अलग ही अंदाज़ ,
छीडके थे जो बीज अपने हुनर के तुमने ,
बन चमन महका करती है वो आज
- अवनीश तिवारी
( जारी...)
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6 श्रोताओं का कहना है :
kishore da ke baare me mujhe padhna hamesh achcha lagta hai. achcha likha hai.
avneesh ji ,kishore ji ke baarey mein bahut achhey tareeqe se aapne jaankari di....unke gaye geet,sangeet or samman ki jaankari di....bahut bahut dhanywaad...agli kadi ka intzaar rahega....
बहुत ही ज्ञानवर्धक आलेख। लग रहा है कि आप किशोर के बारे में सबकुछ बताकर ही छोड़ेंगे:) वीडियो नहीं चल रहा है। कृपया दुबारा चेक करें।
badhiya hai
bahut hi gahtiya likhte ho bhai.
kishor kumar ek yug purush the
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